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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८३

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८३

गाँव में कोहराम मच गया। बलदेव, राजवीर और बाकी लोगों को बेअसर करने के बाद, वज्रदंत सीधे घर की ओर बढ़ा। उसकी भयानक शक्ति का कोई सामना नहीं कर सकता था। अब उसका एकमात्र लक्ष्य था, आर्या को खत्म करना! आर्या घर में अकेली खड़ी थी, उसके काँपते हाथ में एक छोटासा खंजर चमक रहा था। आर्या के दिल में डर की एक छाया छा गई, लेकिन उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प था।

वज्रदंत उसके सामने खड़ा था, एक विशाल पर्वत की तरह, खून से सना हुआ और क्रोध से काँप रहा था। उसकी आँखें धधक रही थीं, मानो वह अपने सामने खड़ी किसी भी बाधा को पल भर में चकनाचूर कर देगा। आर्या ने खंजर को अपने हाथ में और कसकर पकड़ लिया। वह जानती थी कि यह एक बहुत छोटा हथियार है, लेकिन अगर उसने इसे गिरा दिया, तो उसके पास खुद को बचाने के लिए कुछ नहीं बचेगा। वज्रदंत ने उसकी ओर देखा और एक गंदी मुस्कान दी।

"यह तुम्हारा आखिरी मौका है, लड़की," वह गुर्राया।

"क्या तुम्हें लगता था कि तुम और तुम्हारे रक्षक मुझे रोक सकते है?" वह एक कदम आगे बढ़ा, और उसके कदमों की आहट ज़मीन पर गूँज उठी। आर्या पीछे हट गई, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। लेकिन उसके मन में एक विचार कौंधा, वह आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थी। चाहे उसकी ज़िंदगी कितनी भी कमज़ोर क्यों न लगे, वह अंत तक लड़ेगी!

वज्रदंत ने आर्या की ओर देखा और ज़ोर से हँसा। "यह खेल बहुत लंबा चला है," उसने कहा। "राजवीर तुम्हें बचाने की कितनी भी कोशिश करें, अंत में तुम्हे मरना ही होगा।" उसने अपनी बड़ी तलवार उठाई। "यह पल आखिरी होगा!" वह चिल्लाया और आर्या पर तलवार तान दी।

एक कर्कश चीख आसमान में गूँजी। तलवार ज़मीन पर गिरी, और वज्रदंत दर्द से चीख उठा। उसके दाहिने हाथ का पंजा कोहनी से उसके शरीर से अलग हो चुका था! वह खून से लथपथ तड़पने लगा। आर्या डर के मारे पीछे हटी और देखा, वज्रदंत के पीछे एक साया खड़ा था।

वज्रदंत दर्द से तड़प रहा था। उसके खून से सने हाथों से बह रही खून की बूंदों ने ज़मीन को लाल कर दिया था। वह गुस्से से दहाड़ा, उसकी आँखें गुस्से से धधक रही थीं। दर्द के बावजूद उसने मुड़कर देखा, तो उसके सामने एक काली परछाईं दिखाई दी। परछाईं धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, और उसके हाथ में तलवार पर लगा खून चांदनी में चमक रहा था।

"तुम कौन हो?" वज्रदंत गुर्राया, उसकी आवाज़ अब थोड़ी काँप रही थी। परछाईं ने चुपचाप एक कदम आगे बढ़ाया। उसका चेहरा अब साफ़ नजर आ रहा था, वह आशय था! राजवीर का पुराना दोस्त, एक कुशल योद्धा और पिशाचों का महान शिकारी! उसका चेहरा कठोर और दृढ़ था।

"मैं तुम्हें खत्म करने आया हूँ," आशय ने ठंडी आवाज़ में कहा। उसकी आवाज़ मानो मौत को दावत दे रही थी। वज्रदंत ने दूसरे हाथ से तलवार उठाने की कोशिश की, लेकिन उसकी चाल धीमी थी। आशय की आँखें स्थिर थीं। उसके लिए, यह सिर्फ़ एक युद्ध नहीं, बल्कि एक यज्ञ था, बुराई का विनाश!

आशय आर्या को देख रहा था, यह देखने के लिए कि वह ठीक है या नहीं।

तभी, "आशय!" आर्या ज़ोर से चिल्लाई।

वज्रदंत ने अपने दूसरे हाथ में तलवार ली और आशय की ओर बढ़ा। उसके घाव से खून बह रहा था, लेकिन उसकी घृणा कम नहीं हुई थी। आशय एक तरफ कूद गया और वज्रदंत के वार को चकमा दे दिया। घर के बाहर आँगन में उनकी लड़ाई शुरू हो गई।

"क्या तुम मुझे एक हाथ से कमज़ोर समझते हो?" वज्रदंत चिल्लाया।

"तुम्हारी यह मूर्खता तुम्हें बहुत भारी पड़ेगी!"

आशय शांत था। उसने अपनी कोई भी भावनाएँ प्रकट नहीं कीं। वज्रदंत ने उस पर वार करने की कोशिश की, लेकिन आशय फुर्तीला था। वह हर वार को चकमा देता रहा। फिर, मौके का फायदा उठाकर उसने अपने छोटे लेकिन तीखे हथियार से वज्रदंत के कंधे पर गहरा घाव कर दिया। वज्रदंत दर्द से चीख उठा।

यह देखते ही सर्पकला उसकी ओर दौड़ी। उसने यह लड़ाई देखी और डर गई। उसने सोचा था कि वज्रदंत को कोई नहीं रोक सकता, लेकिन आशय ने पल भर में ही उसे लहूलुहान कर दिया था। आशय वज्रदंत जितना बलवान तो नहीं था, लेकिन उसके युद्ध करने के तरीके से उसकी कुशलता झलक रही थी।

वज्रदंत ने अपने विशाल शरीर को संतुलित करते हुए, पूरी ताकत से आशय पर तलवार चलाई, लेकिन आशय बेहद फुर्तीला था। वह वज्रदंत की हर चाल का अंदाज़ा लगा रहा था। वह वज्रदंत के वार को आसानी से चकमा दे रहा था, मानो युद्धभूमि में नाच रहा हो। हर बार वज्रदंत का वार हवा में फिसल जाता था, जिससे वह और भी ज़्यादा क्रोधित हो जाता था।

"रुको! मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!" वज्रदंत भयंकर गर्जना के साथ चिल्लाया। लेकिन आशय जानता था कि उसे यह युद्ध ताकत से नहीं, रणनीति से लड़ना होगा। उसने पल भर में स्थिति को समझ लिया और तेज़ी से पीछे कूद पड़ा। उस पल का फायदा उठाकर वह जंगल की ओर भागा। वज्रदंत ने गुस्से में एक भयानक दहाड़ लगाई और उसके पीछे दौड़ने लगा।

ज़मीन पर पड़ते उसके भारी कदमों की तेज़ आवाज़ ने पूरे वातावरण को हिलाकर रख दिया। जंगली पक्षी एक साथ उड़ गए, पेड़ों के पत्ते धड़ाम से गिरने लगे। आशय अँधेरे जंगल में सावधानी से आगे बढ़ रहा था, उसे पता था कि यहीं उसे वज्रदंत को घायल करना है। लेकिन वज्रदंत भी रुकने को तैयार नहीं था, उसका गुस्सा अब बेकाबू हो गया था, और वह बस आशय की मौत चाहता था!

जंगल में दाखिल होते ही आशय रुक गया। चारों तरफ घना अंधेरा था। उसे आशय कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन तभी पेड़ों के बीच से कुछ सरकता हुआ आया। वज्रदंत ने उसकी तरफ देखा, और वह वहीं ठिठक गया।

अचानक, तीखे बाणों की बौछार उस पर पड़ने लगी! वज्रदंत दर्द से चीख उठा। उसने अपने पूरे शरीर पर हाथ फिराए और बाणों को निकालने की कोशिश की, लेकिन वे अंदर तक घुस चुके थे।

"यह कैसी चीज़ है?" वह चिल्लाया।

"यह तुम्हारे अंत की शुरुआत है," आशय की आवाज़ पेड़ों में गूँज उठी। वज्रदंत ने उसकी तरफ देखा, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया। आशय एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगा रहा था, एक ख़ास हथियार लिए हुए, एक लंबी दूरी का धनुष जो एक साथ सात ख़ास तीर छोड़ सकता था।

"अगर तुम इतने शक्तिशाली हो, तो मुझे ढूँढ़ो और लड़ो," आशय ने मुस्कुराते हुए कहा।

वज्रदंत और भी क्रोधित हो गया और उसने एक हाथ से पास के एक पेड़ को उखाड़ दिया। लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। जैसे ही उसने एक तरफ़ देखा, दूसरी तरफ़ से एक लंबी दूरी का तीर उसकी जाँघ में जा लगा। वह फिर से दर्द से चीख उठा।

अब वज्रदंत जानता था, वह इस युद्ध में बच नहीं पाएगा। वह एक हाथ से अपने शरीर से तीर निकाल रहा था, उसके पूरे शरीर पर घाव थे, और वह जानता था कि उसके सामने वाला दुश्मन बेहद चालाक है।

"यह नामुमकिन है!" वह चिल्लाया। "मैं अमर हूँ, मैं नहीं मरूँगा!"

"अमर?" आशय ने घूरकर देखा। "सिर्फ़ वही अमर है जो सतर्क है। और तुम सतर्क नहीं थे!"

आशय ने अपने धनुष से आखिरी बाण निकाला, उसे पास रखी बोतल में रखे जादुई सफेद पानी में डुबोया, उसका अगला हिस्सा प्रज्वलित हुआ और उसने उसे सीधे वज्रदंत की छाती पर दे मारा। बाण तेज़ी से चलकर उसकी छाती में जा लगा। खून की एक तेज़ धारा बहने लगी और वज्रदंत के मुँह से एक ज़ोरदार कराह निकली। उसने एक पल तक लड़ने की कोशिश की, लेकिन आख़िरकार उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अपने शरीर का भार सहन न कर पाने के कारण, वह ज़ोरदार धमाके के साथ ज़मीन पर गिर पड़ा।

सर्पकला जंगल के किनारे से देख रही थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वज्रदंत, अजेय योद्धा आज आखिरकार हार गया था। आशय उसके ऊपर साये की तरह मंडरा रहा था, उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा था।

"खेल ख़त्म हो गया," आशय ने ठंडे स्वर में कहा। उसने अपनी तलवार से एक आखिरी वार किया, और वज्रदंत की साँस रुक गई।

सर्पकला भयभीत हो गई। उसे एहसास हुआ कि यह युद्ध अब एक अलग दौर में प्रवेश कर चुका है। वज्रदंत मर चुका था, लेकिन आर्या अभी भी ज़िंदा और अकेली थी। वह वापस आर्या के घर भागी।

क्रमशः

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