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बनफूल पार्ट ४

एक सम्राट की चाहत.....

कुछ ही क्षण गुज़रे थे...

उस ठंडे संगमरमर पर गूँजते और भी ठंडे जूतों की आहट ने हर किसी के दिल की धड़कनें थमा दीं—
टक...
टक...
टक...
टक...

हर कदम के साथ उपस्थित हर एक दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह आवाज़ ही इस बात का सबूत थी कि मामला बेहद गंभीर है। अब तक जितने भी बड़े ऑपरेशन हुए थे, उनमें से मुश्किल से दो-एक बार ही युगंधर जहागीरदार स्वयं हेडक्वार्टर आया था। वरना उसके आदेश हमेशा शेरा के ज़रिये ही पहुँचते थे। और आज जब वह ख़ुद यहाँ आया था, इसका मतलब साफ़ था—मामला न सिर्फ़ नाज़ुक था बल्कि बेहद संवेदनशील भी।

अपनी डॉमिनेटिंग पर्सनैलिटी के साथ युगंधर भीतर दाख़िल हुआ। उसकी ठंडी नज़र जैसे ही उपस्थित सभी लोगों पर पड़ी, हर कोई पुतले की तरह अलर्ट मोड में जम गया। मानो किसी ने उनकी गर्दन पर धारदार तलवार रख दी हो। आठ-दस घंटे का सफ़र और उससे पहले की डील के बावजूद उसकी शख़्सियत का आकर्षण ज़रा भी कम न हुआ था। बल्कि उसके चेहरे पर अजीब-सी तृप्ति की झलक थी, और आँखें जैसे किसी सपने में खोई हुई थीं।

अंदर आते ही वह एक पल ठहरा और फिर अपने केबिन की ओर बढ़ गया। उसके पीछे शेरा, निखिल, शौनक, डैनियल, अधिराज और विधिवेश—उसके चुनिंदा टीम हेड्स—सावधानी से उसकी अनुमति पाकर भीतर दाख़िल हुए। युगंधर अपनी कुर्सी पर पीछे झुककर आँखें बंद किए पड़ा रहा। सबकी साँसें थमी हुई थीं। किसी में इतनी हिम्मत न थी कि कुछ पूछ सके। वे बस उसकी आवाज़ का इंतज़ार कर रहे थे।

वक़्त बीतता गया... वह चुप था... आँखें भी बंद थीं... पर अचानक उसके होंठों के कोरों पर एक अस्फुट मुस्कान की लकीर उभरी। सबने उसे देखा—पर हर किसी को लगा, यह तो बस एक भ्रम है। किसे विश्वास होता कि द ग्रेट युगंधर जहागीरदार हँस भी सकता है! उन्हें लगा शायद बोनस के नशे में ही उन्हें यह सब भास हो रहा है।

थोड़ी देर बाद युगंधर ने आँखें खोलीं, सामने खड़े चेहरों को देखा, फिर एक गहरी साँस लेकर बोला—
“You have to find out a girl... एक लड़की को ढूँढना है तुम्हें। जितनी जल्दी हो सके।”

“ओके बॉस, वह लड़की कौन है?”—शेरा ने संयम से पूछा।
“मालूम नहीं।”

“कहाँ रहती है?”
“मालूम नहीं।”

“नाम, बॉस??”
“मालूम नहीं।”

“कोई पहचान?”
“नो आइडिया।”

“कोई फ़ोटो, बॉस?”—डैनियल के मुँह से प्रश्न निकल गया।
बस, उसी क्षण युगंधर की जलती हुई नज़र उस पर पड़ी। और वह नज़र जैसे हर एक की आत्मा तक काँप गई।

“Is that any kind of question–answer session?”

सभी की ज़ुबान तालु से चिपक गई। किसी को कुछ पूछने की हिम्मत न रही। आखिर इतने ग़ैर-मुमकिन हालात में किसी को कैसे तलाशें? फिर भी शेरा ने साहस बटोरा—
“बॉस, ढूँढना है तो कम-से-कम एक स्केच चाहिए।”

युगंधर ने बस हल्की-सी “हम्म्म्म” कहकर सहमति दे दी। तुरंत एक स्केच आर्टिस्ट बुलाया गया। वह पोर्ट्रेट बनाने में माहिर था। उसने अपने सारे औज़ार तैयार किए और कान में साँस रोके युगंधर का वर्णन सुनने लगा।

लेकिन... आश्चर्य! उस लड़की का वर्णन करते हुए युगंधर शब्द खोजने में अटकने लगा। आँखें बंद कर वह किसी और ही दुनिया में डूब गया था। उसके होठों पर जो मुस्कान खेल रही थी, इस बार किसी से छुप न सकी।

यह दृश्य देखकर अधिराज और विधिवेश की हालत बिगड़ गई। शेरा का दिल जैसे फटने को हुआ। डैनियल मन-ही-मन भगवान का नाम जपने लगा। स्केच आर्टिस्ट के हाथ में पकड़ी पेंसिल तक काँप रही थी।

“नहीं... ये नहीं... नहीं!! नहीं!!!”—युगंधर बार-बार सुधारता रहा।
विधिवेश ने मन ही मन खुद को चुटकी काटी—
“बस! अब तो शराब छोड़नी ही पड़ेगी... वरना ऐसे-ऐसे खतरनाक भ्रम होंगे कि आदमी पागल हो जाएगा!”

आखिरकार आर्टिस्ट ने स्केच पूरा किया। सबकी उत्सुकता चरम पर थी। उसने काँपते हाथों से वह चित्र युगंधर के सामने रखा। युगंधर कुछ पल उसे निहारता रहा, फिर हल्की-सी पलकें झुकाकर अनुमोदन कर दिया।

अब सबने एक-एक कर वह स्केच देखा—और देखे ही रह गए।

एक चेहरा... आधा बालों से ढका हुआ। किसी सुंदर युवती का था यह चेहरा—बस इतना ही। इसके अलावा कुछ भी स्पष्ट न था। कोई नाम, कोई ठोस पहचान, कुछ भी नहीं। लेकिन अब और सवाल करने की हिम्मत किसी में न बची थी।

बस इतना जान लिया गया कि नैनीताल से लौटते वक़्त कहीं न कहीं युगंधर ने इस लड़की को देखा था—और अब उसे किसी भी क़ीमत पर सामने लाना था।


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वर्तमान—
वह दिन था... और आज का दिन है। पूरी टीम ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी। नैनीताल और उसके आसपास का कोना-कोना छान मारा। लेकिन उस लड़की की एक झलक तक हाथ न आई...❗


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