भाग- 2
रात्रि के भोजन की सारी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी थी।सुबह से ही आयुष और शांति की जो भूख हड़ताल थी मानो उसके समापन का समय आ गया।
रोज की तरह आज भी शांति ने पहले आयुष और निखिल को भोजन परोसा।
“अब रात को भी पानी से ही काम चलाना है क्या मैडम”
आयुष ने शांति से मजाकिया अंदाज में कहा।
“जी वो, मैं बाद में खा लूँगी न”
शांति ने नजरें चुराते हुए कहा।
“आज का खाना तो लाजवाब है।तुम भी हमारे साथ खाओ”
“थैंक यू!आपके बाद मैं खा लूँगी,आप एक और रोटी लीजिए न”
“मैं रोटी जरूर लूँगा और चावल भी। पहले तुम अपनी थाली सजाओ”
आयुष ने एक थाली शांति की ओर सरकाते हुए कहा।
शांति ने नजरें चुराते हुए कहा।
“आज का खाना तो लाजवाब है।तुम भी हमारे साथ खाओ”
“थैंक यू!आपके बाद मैं खा लूँगी,आप एक और रोटी लीजिए न”
“मैं रोटी जरूर लूँगा और चावल भी। पहले तुम अपनी थाली सजाओ”
आयुष ने एक थाली शांति की ओर सरकाते हुए कहा।
“मम्मी प्लीज! आप भी खा लो न हमारे साथ”
निखिल ने एक कटोरी सब्जी परोसते हुए कहा।
बाप-बेटे के इस प्रस्ताव को वह ठुकरा न सकी और उनके साथ बड़ी प्रसन्नता के साथ भोजन किया।गरमागरम रोटियाँ, दाल- चावल, आलू गोभी की सब्जी,आचार और पापड़ के स्वाद ने आयुष के तन और मन दोनों को तृप्त कर दिया। इसके साथ ही अब सुबह की सारी नाराजगी भी दूर हो गई।भोजन के पश्चात वह मीठा खाने का आदी था।फ्रिज में नारियल की बर्फी रखी हुई थी उसने एक टुकड़ा मुँह में दबाया और सीधे अपने लैपटॉप के साथ व्यस्त हो गया।
उसके मन में केवल एक ही विचार आ रहा था। खुद को साबित करने का यही तो अवसर है इसलिए वह दुहलानी सर की उम्मीदों पर खरा उतरकर ही दिखाएगा।
अगर समीर और उसकी मेहनत रंग लाई तो ऑफिस में उनका मान बढ़ जाएगा।
निखिल ने एक कटोरी सब्जी परोसते हुए कहा।
बाप-बेटे के इस प्रस्ताव को वह ठुकरा न सकी और उनके साथ बड़ी प्रसन्नता के साथ भोजन किया।गरमागरम रोटियाँ, दाल- चावल, आलू गोभी की सब्जी,आचार और पापड़ के स्वाद ने आयुष के तन और मन दोनों को तृप्त कर दिया। इसके साथ ही अब सुबह की सारी नाराजगी भी दूर हो गई।भोजन के पश्चात वह मीठा खाने का आदी था।फ्रिज में नारियल की बर्फी रखी हुई थी उसने एक टुकड़ा मुँह में दबाया और सीधे अपने लैपटॉप के साथ व्यस्त हो गया।
उसके मन में केवल एक ही विचार आ रहा था। खुद को साबित करने का यही तो अवसर है इसलिए वह दुहलानी सर की उम्मीदों पर खरा उतरकर ही दिखाएगा।
अगर समीर और उसकी मेहनत रंग लाई तो ऑफिस में उनका मान बढ़ जाएगा।
बिना शोर के बहती ये शीतल हवाएँ जिसका आनंद उठाने शांति आँगन में गई। नवंबर के महीने का शुरुआती चरण।वातावरण में कुछ ठंडकता थी।आकाश में सितारे आज नदारद से प्रतीत हुए और बारिश के आसार नजर आ रहे थे।शांति ने मायके फोन लगाया और अपनी माँ से बात करने लगी।
“प्रणाम माँ,कैसे हो आप सब”
“जीती रह बेटी, हम लोग यहाँ सब भले चंगे हैं। तुम लोग तो वहाँ ठीक हो न”
“हाँ माँ, हम भी एकदम बढ़िया हैं”
माँ और बेटी के बीच बातचीत शुरू ही हुई थी कि कमरे से आती हुई चिल्लाने की आवाज सुनकर उसका ध्यान भंग हो गया।उसने तुरंत ही पास रखी कुर्सी पर फोन रख दिया और कमरे की ओर भागी।
आयुष और निखिल आमने-सामने खड़े थे।
“प्रणाम माँ,कैसे हो आप सब”
“जीती रह बेटी, हम लोग यहाँ सब भले चंगे हैं। तुम लोग तो वहाँ ठीक हो न”
“हाँ माँ, हम भी एकदम बढ़िया हैं”
माँ और बेटी के बीच बातचीत शुरू ही हुई थी कि कमरे से आती हुई चिल्लाने की आवाज सुनकर उसका ध्यान भंग हो गया।उसने तुरंत ही पास रखी कुर्सी पर फोन रख दिया और कमरे की ओर भागी।
आयुष और निखिल आमने-सामने खड़े थे।
“सच, बोलो मुझे झूठ बिल्कुल भी पसंद नहीं”
आयुष ने चिल्लाते हुए कहा।
आयुष ने चिल्लाते हुए कहा।
“पापा,वो मैं”
निखिल ने अपना सिर नीचे झुका लिया।
निखिल ने अपना सिर नीचे झुका लिया।
“क्या हुआ जी, अब क्या किया निखिल ने,जो आप ऐसे बरस रहे हैं”
शांति हैरान होते हुए कहा।
शांति हैरान होते हुए कहा।
“वो तो तुम अपने लाडले से पूछो। आखिर क्या किया है इसने”
आयुष ने गुर्राते हुए कहा।
आयुष ने गुर्राते हुए कहा।
“निखिल! तुम्हारे पापा क्या बोल रहे हैं
और तुम इतना डरे हुए क्यों हो”
शांति ने निखिल के दोनों हाथ थामकर कहा।
और तुम इतना डरे हुए क्यों हो”
शांति ने निखिल के दोनों हाथ थामकर कहा।
“मम्मी..मैने”
इतना कहकर आयुष शांति के आँचल में छुप गया।
इतना कहकर आयुष शांति के आँचल में छुप गया।
“तुम्हारा लाडला क्या ही बताएगा”
आयुष ने तिरछी नजरों से निखिल को घूरते हुए कहा।
उसने बताया कि अभी कुछ समय पहले ही निखिल के क्रिकेट कोच का फोन आया था और उन्होंने जानकारी दी है कि निखिल तीन-चार दिनों से खेलने ही नहीं गया है। अनुपस्थिति की वजह उसने कुछ दिनों से स्वास्थ ठीक न होना बताया है। उसने कोच से ये भी कहा है कि उसके पिता ने ही पढ़ाई का हवाला देते हुए अपना नाम खारिज कराने का सुझाव दिया है।
ये सारी बातें सुनकर शांति के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई और उसने निखिल की ओर संशय भरी निगाहों से देखते हुए कहा,”नहीं नहीं, हमारा निखिल ऐसा नहीं कर सकता जी। जरूर आपको कोई गलतफहमी हुई है”
आयुष ने तिरछी नजरों से निखिल को घूरते हुए कहा।
उसने बताया कि अभी कुछ समय पहले ही निखिल के क्रिकेट कोच का फोन आया था और उन्होंने जानकारी दी है कि निखिल तीन-चार दिनों से खेलने ही नहीं गया है। अनुपस्थिति की वजह उसने कुछ दिनों से स्वास्थ ठीक न होना बताया है। उसने कोच से ये भी कहा है कि उसके पिता ने ही पढ़ाई का हवाला देते हुए अपना नाम खारिज कराने का सुझाव दिया है।
ये सारी बातें सुनकर शांति के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई और उसने निखिल की ओर संशय भरी निगाहों से देखते हुए कहा,”नहीं नहीं, हमारा निखिल ऐसा नहीं कर सकता जी। जरूर आपको कोई गलतफहमी हुई है”
“तो क्या इसके कोच झूठ बोल रहे हैं! वैसे भी तुम्हें तो बहुत अच्छा लगा होगा न ये सुनकर! आखिर तुम भी तो यही चाहती थी”
“ये आप कैसी बातें कर रहे हैं! मैं भी तो दिल से चाहती हूँ कि हमारा निखिल आपका सपना पूरा करे”
“झूठ! बिल्कुल झूठ!अगर तुम सच में ऐसा चाहती न तो अपने लाडले को जरूर समझाती। तुम्हें तो बस अपनी पड़ी है,किचन मास्टर जो बनाना चाहती हो इसे”
“देखिए आप गलत सोंच रहे हैं।ऐसा बिल्कुल भी नहीं है मैं भी तो”
“मुझे सब पता है शांति!तुम क्या चाहती हो”
“ये आप कैसी बातें कर रहे हैं! मैं भी तो दिल से चाहती हूँ कि हमारा निखिल आपका सपना पूरा करे”
“झूठ! बिल्कुल झूठ!अगर तुम सच में ऐसा चाहती न तो अपने लाडले को जरूर समझाती। तुम्हें तो बस अपनी पड़ी है,किचन मास्टर जो बनाना चाहती हो इसे”
“देखिए आप गलत सोंच रहे हैं।ऐसा बिल्कुल भी नहीं है मैं भी तो”
“मुझे सब पता है शांति!तुम क्या चाहती हो”
अपने माता- पिता के बीच तकरार देख निखिल के सब्र का बाँध टूट गया और वह जोर से बोला,”बस!पापा। आप मम्मी को कुछ मत बोलिए प्लीज!”
“पाप मुझे क्रिकेट खेलना अच्छा नहीं लगता…
बिल्कुल भी पसंद नहीं मुझे क्रिकेट”
निखिल ने ऊँची आवाज में कहा।
“पाप मुझे क्रिकेट खेलना अच्छा नहीं लगता…
बिल्कुल भी पसंद नहीं मुझे क्रिकेट”
निखिल ने ऊँची आवाज में कहा।
“ये तुम क्या बोल रहे हो निखिल। होश में तो हो न!”
“क्रिकेट का बैट मुझसे अच्छे से पकड़ा नहीं जाता, बॉल फेंकता हूँ तो कहीं और भाग जाती है। और तो और सारे लड़के मेरा मजाक उड़ाते है पापा”
“ओह!ऐसा क्या,जब तुम प्रैक्टिस ही नहीं करोगे तो मजाक तो बनोगे ही न।एक तो प्रैक्टिस के लिए नहीं गए ऊपर से ये बहाने। वैसे भी तुम्हारा ध्यान तो कहीं और ही लगा रहता है”
“क्रिकेट का बैट मुझसे अच्छे से पकड़ा नहीं जाता, बॉल फेंकता हूँ तो कहीं और भाग जाती है। और तो और सारे लड़के मेरा मजाक उड़ाते है पापा”
“ओह!ऐसा क्या,जब तुम प्रैक्टिस ही नहीं करोगे तो मजाक तो बनोगे ही न।एक तो प्रैक्टिस के लिए नहीं गए ऊपर से ये बहाने। वैसे भी तुम्हारा ध्यान तो कहीं और ही लगा रहता है”
आयुष और निखिल के बीच बहस बढ़ने लगी। शांति ने बचाव करते हुए कहा,”देखिए आप लोग शांत हो जाइए प्लीज! निखिल बेटा! तुम मुझे तो बता सकते थे मैं तुम्हारे कोच से बात करती। उन सभी लड़कों से बात करती। मैं उनको समझाती ऐसे किसी को चिढ़ाना गलत बात है”
“मुझे नहीं खेलना मम्मी कोई क्रिकेट विकेट”
झटके से हाथ छुड़ाकर निखिल कमरे की ओर भागा।
झटके से हाथ छुड़ाकर निखिल कमरे की ओर भागा।
“निखिल, निखिल बेटा सुनो तो”
शांति ने उसे कई बार पुकारा किंतु वह रुका नहीं।
उसके सामने खड़ा हुआ आयुष यह सब देखता ही रह गया।
“आप चिंता मत कीजिए। मैं उसे समझाऊँगी न! अपने पापा का सपना वो ऐसे नहीं तोड़ सकता”
शांति ने आयुष का हाथ थामकर कहा।
आयुष की आँखें क्रोध से लाल हो गई। उसकी साँसे तेज और बदन में चिंगारी सी भर गई। एक झटके से उसने शांति का हाथ छुड़ाया और ऊँची आवाज में कहा,”देख लिया तुमने!मेरा बेटा मेरी बात तक नहीं सुन रहा है। उसे मेरे खिलाफ
भड़काकर अब ये नाटक कर रही हो तुम”
“प्लीज! आप ऐसे झूठे इल्ज़ाम तो मत लगाइए। मैंने ऐसा कुछ भी तो नहीं किया”
“सबकुछ तुमने ही तो किया है।मेरे सारे सपने बिखर गए।अरे! मेरे भोले भाले बेटे को किचन में उलझाकर कर तुमने उसे छुई मुई बना दिया। कितनी बार कहा था तुमसे! उसे मैदान का चैंपियन बनाना है लेकिन वो तो क्रिकेट का बैट भी नहीं पकड़ सकता”
“आप मेरी बात सुनिए। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है वो तो बस”
“बस! अब और ये नाटक नहीं। आज इतना तो समझ आ गया मुझे। तुम न कभी अच्छी पत्नी बन पाई और अब एक अच्छी माँ भी बन पाना तुम्हारे लिए मुश्किल है”
दरवाजे को धक्का देते हुए आयुष हॉल में चला गया।
शांति ने उसे कई बार पुकारा किंतु वह रुका नहीं।
उसके सामने खड़ा हुआ आयुष यह सब देखता ही रह गया।
“आप चिंता मत कीजिए। मैं उसे समझाऊँगी न! अपने पापा का सपना वो ऐसे नहीं तोड़ सकता”
शांति ने आयुष का हाथ थामकर कहा।
आयुष की आँखें क्रोध से लाल हो गई। उसकी साँसे तेज और बदन में चिंगारी सी भर गई। एक झटके से उसने शांति का हाथ छुड़ाया और ऊँची आवाज में कहा,”देख लिया तुमने!मेरा बेटा मेरी बात तक नहीं सुन रहा है। उसे मेरे खिलाफ
भड़काकर अब ये नाटक कर रही हो तुम”
“प्लीज! आप ऐसे झूठे इल्ज़ाम तो मत लगाइए। मैंने ऐसा कुछ भी तो नहीं किया”
“सबकुछ तुमने ही तो किया है।मेरे सारे सपने बिखर गए।अरे! मेरे भोले भाले बेटे को किचन में उलझाकर कर तुमने उसे छुई मुई बना दिया। कितनी बार कहा था तुमसे! उसे मैदान का चैंपियन बनाना है लेकिन वो तो क्रिकेट का बैट भी नहीं पकड़ सकता”
“आप मेरी बात सुनिए। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है वो तो बस”
“बस! अब और ये नाटक नहीं। आज इतना तो समझ आ गया मुझे। तुम न कभी अच्छी पत्नी बन पाई और अब एक अच्छी माँ भी बन पाना तुम्हारे लिए मुश्किल है”
दरवाजे को धक्का देते हुए आयुष हॉल में चला गया।
रात के ग्यारह बज चुके थे।कमरे में चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। शांति की गोद में निखिल गहरी नींद में समा चुका था।उसके बालों पर हाथ फेरते हुए शांति ने उसका माथा चूमा और धीमे स्वर में कहा,”मै तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ बेटा। लेकिन आज जो भी हुआ न उसने कुछ जख्मों को फिर से हरे कर दिए”
अपने कमरे की खिड़की से ही उसने हॉल की ओर झाँका। बत्ती बुझी हुई होने से कुछ साफ नहीं दिखा किंतु दूसरे कमरे से आती हुई हल्की रौशनी से उसने अनुमान लगा लिया कि आयुष सोफे पर ही लेटा हुआ है।
शांति को याद आया कि वह अपना फोन आँगन में ही छोड़ आई है।
अंधियारी रात और ऊपर से बादलों का काला साया ऐसा लग रहा था जैसे इसने सारी खुशियों को अपनी आगोश में ले लिया हो और चारों ओर गम ही बिखेर दिया हो। आसमान को निहारती हुई शांति आँगन के बीचों बीच खड़ी हो गई।
“तुम्हें तो बहुत अच्छा लगा होगा न ये सुनकर! आखिर तुम भी तो यही चाहती थी”
“तुम्हें तो बस अपनी पड़ी है,किचन मास्टर जो बनाना चाहती हो इसे”
“तुम न कभी अच्छी पत्नी बन पाई और अब एक अच्छी माँ भी बन पाना तुम्हारे लिए मुश्किल है”
आयुष द्वारा कहे गए ये कड़वे बोल बार-बार उसके कानों में गूँज रहे थे।
“तुम्हें तो बस अपनी पड़ी है,किचन मास्टर जो बनाना चाहती हो इसे”
“तुम न कभी अच्छी पत्नी बन पाई और अब एक अच्छी माँ भी बन पाना तुम्हारे लिए मुश्किल है”
आयुष द्वारा कहे गए ये कड़वे बोल बार-बार उसके कानों में गूँज रहे थे।
क्रमशः…..
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