भाग- 1
सागर (मध्यप्रदेश)
दीनदयाल नगर
सुबह के सात बज रहे थे।सोफे पर बैठा हुआ पैंतीस वर्षीय आयुष। गोरा रंग। लंबी कद काठी का हृष्ट- पुष्ट शरीर। सफेद कमीज, काला पेंट पहना हुआ और टाई बेल्ट लगाकर वह काम पर जाने के लिए तैयार था।चाय की चुस्कियाँ लेते हुए वह अखबार के पन्ने पलटने लगा।
"ये रही आपकी गरमा- गरम पकौड़े, तीखी चटनी के साथ"
आयुष की पत्नि शांति ने मेज पर नाश्ता परोसते हुए कहा।
दीनदयाल नगर
सुबह के सात बज रहे थे।सोफे पर बैठा हुआ पैंतीस वर्षीय आयुष। गोरा रंग। लंबी कद काठी का हृष्ट- पुष्ट शरीर। सफेद कमीज, काला पेंट पहना हुआ और टाई बेल्ट लगाकर वह काम पर जाने के लिए तैयार था।चाय की चुस्कियाँ लेते हुए वह अखबार के पन्ने पलटने लगा।
"ये रही आपकी गरमा- गरम पकौड़े, तीखी चटनी के साथ"
आयुष की पत्नि शांति ने मेज पर नाश्ता परोसते हुए कहा।
"अभी तो तुम किचन में गई हो मैडम! इतनी जल्दी ये सब कैसे"
आयुष ने आश्चर्यचकित हो कर कहा।
आयुष ने आश्चर्यचकित हो कर कहा।
"जी वो, आपको लेट हो जाता न! इसलिए"
शांति के स्वर धीमे हो गए।
वह इससे आगे कुछ कह पाती आयुष ने झट से प्लेट आगे की ओर सरका दिया और ऊँची आवाज में कहा, "इससे अच्छा तो मैं भूखा ही चला जाता, तुम्ही खाओ ये पकौड़े"
"लेकिन एक बार आप"
"अब क्या लिख कर दूँ तुम्हें! निखिल! इधर आओ"
"प्लीज़, आप उसे कुछ मत बोलिए"
"निखिल,निखिल! जल्दी किचन से बाहर आओ"
आयुष की आँखें क्रोध से लाल हो चुकी थी।
शांति के स्वर धीमे हो गए।
वह इससे आगे कुछ कह पाती आयुष ने झट से प्लेट आगे की ओर सरका दिया और ऊँची आवाज में कहा, "इससे अच्छा तो मैं भूखा ही चला जाता, तुम्ही खाओ ये पकौड़े"
"लेकिन एक बार आप"
"अब क्या लिख कर दूँ तुम्हें! निखिल! इधर आओ"
"प्लीज़, आप उसे कुछ मत बोलिए"
"निखिल,निखिल! जल्दी किचन से बाहर आओ"
आयुष की आँखें क्रोध से लाल हो चुकी थी।
दस वर्षीय निखिल थरथराता हुआ रसोईघर से बाहर आया।
"ककक्क..क्या हुआ पापा,चटनी ज्यादा तीखी है क्या, मुझसे कोई गलती हो गई क्या?"
निखिल ने लड़खड़ाती जुबान से कहा।
आयुष तमतमाते हुए उसके करीब आया और उसके कान मरोड़ते हुए कहा,"तुम्हारी क्रिकेट टूर्नामेंट की तैयारी हुई या नहीं"
"जी पापा वो, मैं बस"
"क्या मैं बस"
"पापा मैं तो बस मम्मी की हेल्प”
"मुझे ये सब नहीं पता, लेकिन इस बार टूर्नामेंट में तुम्हारा सिलेक्शन नहीं हुआ न तो फिर सोंच लेना"
आयुष ने उसके कान को झटके से छोड़ते हुए कहा। अपनी बड़ी - बड़ी आँखों से माँ और बेटे को घूरते हुए उसने एक गिलास पानी पूरा गटक लिया।
"ककक्क..क्या हुआ पापा,चटनी ज्यादा तीखी है क्या, मुझसे कोई गलती हो गई क्या?"
निखिल ने लड़खड़ाती जुबान से कहा।
आयुष तमतमाते हुए उसके करीब आया और उसके कान मरोड़ते हुए कहा,"तुम्हारी क्रिकेट टूर्नामेंट की तैयारी हुई या नहीं"
"जी पापा वो, मैं बस"
"क्या मैं बस"
"पापा मैं तो बस मम्मी की हेल्प”
"मुझे ये सब नहीं पता, लेकिन इस बार टूर्नामेंट में तुम्हारा सिलेक्शन नहीं हुआ न तो फिर सोंच लेना"
आयुष ने उसके कान को झटके से छोड़ते हुए कहा। अपनी बड़ी - बड़ी आँखों से माँ और बेटे को घूरते हुए उसने एक गिलास पानी पूरा गटक लिया।
“सुनिए जी! एक बार बात तो सुनिए”
शांति ने आयुष को रोकना चाहा किंतु वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
वह दरवाजे पर खड़ी होकर उसे निहारती रही। आयुष ने फटाफट बाइक का किक लगाया और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गया।
निखिल शांति के करीब आया और कसकर उसका हाथ थाम लिया।अपने पिता का यह बर्ताव उसके लिए नया नहीं था। उसे तो अब इन सब की आदत हो चुकी थी किंतु उसे इस बात का दुःख हुआ कि उसके पिता जी बिना नाश्ता किए ही चले गए।अब माँ के गले से भी निवाला कहाँ उतर पाएगा! ये सोंचकर उसकी आँखों से बूंदें बरस पड़े।
शांति ने निखिल के आँसू पोंछते हुए कहा,"बेटे! तुम अपने पापा की बातों का बिल्कुल भी बुरा मत मानना।उनको काम का कितना प्रेशर है न! बस इसलिए उनका थोड़ा सा मूड खराब है"
निखिल ने हाँ में सिर हिलाया।माँ से सांत्वना पाकर उसका मन थोड़ा शांत हुआ और वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा।पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाला निखिल पढ़ाई में तो अव्वल था किन्तु कोई भी मैदानी खेल उसके लिए जंग लड़ने के समान था।पिता की आज्ञा पालन के लिए ही वह मजबूरन क्रिकेट में अपने हाथ-पाँव मार रहा था। उसे अपनी माँ के साथ रसोई के कार्यों में बड़ा आनंद आता था। पढ़ाई-लिखाई की व्यस्तता के बीच में समय निकालकर वह दिन में एक बार अपनी माँ की मदद जरूर कर लेता था।
शांति ने आयुष को रोकना चाहा किंतु वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
वह दरवाजे पर खड़ी होकर उसे निहारती रही। आयुष ने फटाफट बाइक का किक लगाया और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गया।
निखिल शांति के करीब आया और कसकर उसका हाथ थाम लिया।अपने पिता का यह बर्ताव उसके लिए नया नहीं था। उसे तो अब इन सब की आदत हो चुकी थी किंतु उसे इस बात का दुःख हुआ कि उसके पिता जी बिना नाश्ता किए ही चले गए।अब माँ के गले से भी निवाला कहाँ उतर पाएगा! ये सोंचकर उसकी आँखों से बूंदें बरस पड़े।
शांति ने निखिल के आँसू पोंछते हुए कहा,"बेटे! तुम अपने पापा की बातों का बिल्कुल भी बुरा मत मानना।उनको काम का कितना प्रेशर है न! बस इसलिए उनका थोड़ा सा मूड खराब है"
निखिल ने हाँ में सिर हिलाया।माँ से सांत्वना पाकर उसका मन थोड़ा शांत हुआ और वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा।पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाला निखिल पढ़ाई में तो अव्वल था किन्तु कोई भी मैदानी खेल उसके लिए जंग लड़ने के समान था।पिता की आज्ञा पालन के लिए ही वह मजबूरन क्रिकेट में अपने हाथ-पाँव मार रहा था। उसे अपनी माँ के साथ रसोई के कार्यों में बड़ा आनंद आता था। पढ़ाई-लिखाई की व्यस्तता के बीच में समय निकालकर वह दिन में एक बार अपनी माँ की मदद जरूर कर लेता था।
सागर के मोती नगर में स्थित आई. सी.ई कम्प्यूटर सेंटर।जहाँ आयुष कंप्यूटर प्रशिक्षक के रूप में पदस्थ था। इस समय सेंटर में आवाजाही लगी हुई थी।अपनी बाईक पार्किंग में खड़ी करने के पश्चात आयुष ने अंदर प्रवेश किया।
“गुड मॉर्निंग सर”
रिसेप्शन पर बैठी मिस रिया ने मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया।
आयुष जरा सा बनावटी मुस्कान के साथ आगे बढ़ा।अटेंडेंस रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के पश्चात वह सीधे कंप्यूटर लैब की ओर जाने लगा।
“अरे! मित्तल सर।आप यहाँ है! दुहलानी सर ने तो आपको और शर्मा सर को अर्जेंट ऑफिस में बुलाया है”
लैब से बाहर आती हुई मिसेज वर्मा मैडम ने आयुष से कहा।
“गुड मॉर्निंग सर”
रिसेप्शन पर बैठी मिस रिया ने मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया।
आयुष जरा सा बनावटी मुस्कान के साथ आगे बढ़ा।अटेंडेंस रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के पश्चात वह सीधे कंप्यूटर लैब की ओर जाने लगा।
“अरे! मित्तल सर।आप यहाँ है! दुहलानी सर ने तो आपको और शर्मा सर को अर्जेंट ऑफिस में बुलाया है”
लैब से बाहर आती हुई मिसेज वर्मा मैडम ने आयुष से कहा।
“ओह! मैं तो भूल ही गया था। कल रात व्हाट्सएप ग्रुप में सर ने मीटिंग के लिए इनफॉर्म किया था।
हड़बड़ाते हुआ आयुष ऑफिस की ओर भागा।
हड़बड़ाते हुआ आयुष ऑफिस की ओर भागा।
कंप्यूटर सेंटर के निदेशक मिस्टर सूर्य प्रकाश दुहलानी। पैंतालीस वर्षीय मिस्टर दुहलानी ने अपने बल बूते और सहकर्मियों के सहयोग से आई.सी.ई. कंप्यूटर सेंटर को आज इस मुकाम तक पहुँचाया है। सामान्य कद काठी और जरा सा उभरा हुआ पेट।आँखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा लगाए हुए मिस्टर दुहलानी अपनी कुर्सी पर बिराजमान थे।
सात- आठ कर्मचारियों की कतार में जाकर आयुष भी खड़ा हो गया।
“गुड मॉर्निंग एवरीवन”
मिस्टर दुहलानी ने मुस्कुराते हुए सभी का अभिवादन किया।
उन्होंने बताया कि एक्सेल नेट कंप्यूटर एजुकेशन एक ऐसी संस्था है जो छात्रों को कंप्यूटर शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करता है।उनकी टीम ने अपने कोर्स संचालन के लिए सागर के कुछ संस्थानों का चुनाव किया है।जो भी कंप्यूटर सेंटर अपना बेहतर प्रस्तुतीकरण देगा उनके यहॉं विभिन्न कोर्स संचालित किए जाएँगे।उन्होंने आयुष और समीर का नाम पुकारते हुए सामने आने को कहा।
“मुझे अपने सभी कर्मचारियों पर पूरा भरोसा है फिर भी मैंने समीर और आयुष को इस काम के लिए चुना है। कल सुबह दस बजे आपको एक्सल नेट की टीम के सामने अपना प्रेजेन्टेशन देना है”
सात- आठ कर्मचारियों की कतार में जाकर आयुष भी खड़ा हो गया।
“गुड मॉर्निंग एवरीवन”
मिस्टर दुहलानी ने मुस्कुराते हुए सभी का अभिवादन किया।
उन्होंने बताया कि एक्सेल नेट कंप्यूटर एजुकेशन एक ऐसी संस्था है जो छात्रों को कंप्यूटर शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करता है।उनकी टीम ने अपने कोर्स संचालन के लिए सागर के कुछ संस्थानों का चुनाव किया है।जो भी कंप्यूटर सेंटर अपना बेहतर प्रस्तुतीकरण देगा उनके यहॉं विभिन्न कोर्स संचालित किए जाएँगे।उन्होंने आयुष और समीर का नाम पुकारते हुए सामने आने को कहा।
“मुझे अपने सभी कर्मचारियों पर पूरा भरोसा है फिर भी मैंने समीर और आयुष को इस काम के लिए चुना है। कल सुबह दस बजे आपको एक्सल नेट की टीम के सामने अपना प्रेजेन्टेशन देना है”
“यस सर” आयुष और समीर ने एक साथ कहा।
“देखिए, एक्सल नेट की टीम हमें तभी चुनेगी जब उन्हें लगे कि हमारा सेंटर वाकई इसके काबिल है। और हाँ!ये कोई मामूली बात नहीं है ये हमारे लिए बहुत फायदे का सौदा है।भले ही स्टूडेंट्स अपने एक्सल नेट के बेसिक कोर्स के लिए यहाँ आएँगे लेकिन हम उन्हें अपने बड़े कोर्स के लिए मोटिवेट करेंगे”
“ये तो बहुत अच्छी बात है सर! इससे हमारे सेंटर का काफी नाम भी होगा”
समीर ने उत्साहित होते हुए कहा।
समीर ने उत्साहित होते हुए कहा।
“हाँ समीर! इसलिये तो मैंने ये जिम्मेदारी आप दोनों के ऊपर छोड़ दी है। आप दोनों का प्रेजेंटेशन ही हमारे सेंटर को नया मुकाम दिल सकता है।तो कल के लिए बेस्ट ऑफ लक! अभी से लग जाइये अपने काम में”
मिस्टर दुहलानी ने दोनों के कंधो पर हाथ रखते हुए कहा।
वहाँ उपस्थित सभी कर्मचारियों ने तालियों से उनका अभिवादन किया और सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए।
आयुष का हमउम्र और उसके ही समान कद काठी वाला समीर शर्मा। वैसे तो आए दिन वह उसका शुभचिंतक बना फिरता है किंतु अंदर से वह उसका प्रतिद्वंदी ही था।
मिस्टर दुहलानी ने दोनों के कंधो पर हाथ रखते हुए कहा।
वहाँ उपस्थित सभी कर्मचारियों ने तालियों से उनका अभिवादन किया और सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए।
आयुष का हमउम्र और उसके ही समान कद काठी वाला समीर शर्मा। वैसे तो आए दिन वह उसका शुभचिंतक बना फिरता है किंतु अंदर से वह उसका प्रतिद्वंदी ही था।
घर का सारा काम निपटाकर शांति सोफे पर बैठी।
गेहुँआ रंग। छरहरा बदन। तीखे नैन- नक्श और काले घने बाल। हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी हुई शांति। उम्र के बत्तीसवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी थी। शादी के इतने वर्षों बाद भी उसके जीवन में वो बहार नहीं थी जो उसके तन मन को प्रफुल्लित कर दे। प्रेम का वो सावन जिसके बरसने से उसका बदन खिल उठता। इस रिश्ते को बेहतर बनाने में उसने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी और अपना सर्वस्व आयुष के नाम कर दिया। जिन परिस्थितियों में उनका सम्बन्ध जुड़ा था वह उससे भली भाँति परिचित थी। इसलिए आज तक उसने आयुष से कोई शिकायत नहीं की।सुबह से खाली पेट होकर भी आज उसे कुछ खाने की इच्छा न हुई। दिन चढ़ गया और उसने एक गिलास पानी से ही अपना गुजारा कर लिया।
मन में रह- रहकर विचार आता ”आयुष का गुस्सा शांत हुआ होगा या नहीं! शायद कैंटीन से कुछ खा लिया होगा या फिर शर्मा जी के साथ टिफिन साझा कर लिया होगा।एक बार पूछ कर देखूँ! शांति मोबाईल की स्क्रीन को निहारने लगी किंतु उसे फोन करने की हिम्मत न जुटा पाई।
दोपहर के दो बज रहे थे।अपनी कुर्सी पर बैठा आयुष कुछ पुरानी फाइलों को उलटते हुए सोंच विचार कर रहा था। दुहलानी सर ने उस पर जो विश्वास जताया है उसका मान वह जरूर रखेगा।पिछली बार भी तो कड़ी मेहनत करते हुए उसने साइंस कॉलेज में अपना प्रेजेंटेशन दिया था जिसकी बदौलत वहाँ के अधिकतर छात्रों ने आई. सी.ई कम्प्यूटर सेंटर में प्रवेश लिया था।
“आइए मित्तल जी। मेरे पेट में तो चूहे बैंड बजा रहे हैं आप भी अपना पिटारा खोलिए”
समीर ने अपना टिफिन खोलते हुए आयुष से कहा।
समीर ने अपना टिफिन खोलते हुए आयुष से कहा।
“नहीं शर्मा जी, आज तो मैं अपना टिफिन ही नहीं ला पाया”
आयुष ने अपना खाली बैग टटोलते हुए कहा।
आयुष ने अपना खाली बैग टटोलते हुए कहा।
“ओह! लगता है आज भाभी जी नाराज है। इसलिए आपका लंच पैक नहीं किया”
“आप भी न शर्मा जी!ऐसा नहीं है”
“अच्छा!आइए फिर आज इसी में काम चला लेते हैं”
“न-न शर्मा जी, आप आराम से लंच कीजिए। मैं बाद में कुछ खा लूँगा।
मुझे कुछ प्रिंट्स निकालने थे मैं उसको पहले कर लेता हूँ”
“आप भी न शर्मा जी!ऐसा नहीं है”
“अच्छा!आइए फिर आज इसी में काम चला लेते हैं”
“न-न शर्मा जी, आप आराम से लंच कीजिए। मैं बाद में कुछ खा लूँगा।
मुझे कुछ प्रिंट्स निकालने थे मैं उसको पहले कर लेता हूँ”
समीर का टिफिन देख आयुष के पेट में भी थोड़ी हलचल हुई किंतु सुबह का दृश्य एक बार फिर उसकी आँखों के सामने छा गया। सुबह के नाश्ते पर तो उसने अपना सारा गुस्सा निकाला था।जरूर शांति भी भूख हड़ताल में ही बैठी होगी। उसे इस बात का अहसास है कि उसका तरीका थोड़ा गलत था किंतु वह गुस्से में तो सब कुछ भूला बैठता है। निखिल अब बड़ा हो रहा है और उसे अपने पिता की बातों को समझना होगा। आयुष ने मन ही मन विचार किया कि शाम को वह निखिल के साथ अच्छे से पेश आएगा। उसे भली भाँति समझाएगा कि जीवन में एक लक्ष्य तय करना कितना जरूरी है। पढ़ाई और खेल ही तो विद्यार्थी जीवन का सार है।उसने बोतल से एक घूँट पानी गटका और अपनी फाइलों को समेटते हुए क्लास की ओर बढ़ा।
शाम के सात बज रहे थे। भगवान को धूप बत्ती दिखाने के पश्चात शांति किचन के कार्यों में व्यस्त थी।आलू- गोभी और दाल तड़के की सुगंध किचन से बाहर तक फैली हुई थी। आटा गूंथते हुई शांति का ध्यान सिर्फ आयुष की ओर था।
“सुबह का माहौल जैसा भी रहा हो, मनपसंद खाना देखकर शायद उनकी नाराजगी दूर हो जाए।उनसे सॉरी बोल दूँगी वो भी तो अपनी जगह सही हैं। अगर एक पिता अपने बेटे से कुछ माँगे तो इसमें बुराई क्या है।निखिल को भी कोशिश करनी चाहिए आखिर बात उसके पापा के सपनों की भी है”
मन ही मन विचार करती हुई शांति ने सारा काम निपटाया और दरवाजे पर पलकें बिछाई रही। निखिल से कहा कि वह फटाफट अपना होमवर्क समाप्त कर ले ताकि आज रात का भोजन जल्दी से किया जा सके।खिड़की से आती हुई बाईक रुकने की आवाज शांति के कानों में पड़ी। वह झट से किचन की ओर भागी और गरमा गरम रोटियाँ सेकने लगी।
आयुष ने अंदर प्रवेश किया और अपना बैग सोफे पर रखा। सामने वाली कुर्सी पर बैठा हुआ निखिल अपनी पढ़ाई में व्यस्त था। आयुष ने इधर- उधर झाँका और डेयरी मिल्क का एक बॉक्स उसकी किताब के ऊपर ही रख दिया। डेयरी मिल्क तो उसका पसंदीदा चॉकलेट था वो भी बॉक्स भर के!
उसने अपनी ललचाई नजरें ऊपर उठाई ।अपने पिता को सामने देख उसके चेहरे पर चमक आ गई किंतु वह खामोश ही रहा।
“पढ़ाई चल रही निखिल बाबू की”
आयुष ने निखिल के गाल सहलाते हुए कहा।
“हाँ पापा”
जवाब देते हुए निखिल ने अपना सिर नीचे झुका लिया।
आयुष ने बॉक्स से एक डेयरीमिल्क निकालकर उसे खिलाया और हल्की मुस्कुराहट के साथ उसे गले से लगा लिया।
रसोईघर के दरवाजे पर खड़ी हुई शांति इस मनोरम दृश्य को निहार रही थी। बाप बेटे का मधुर मिलन देख उसकी आँखें भर आईं।
जवाब देते हुए निखिल ने अपना सिर नीचे झुका लिया।
आयुष ने बॉक्स से एक डेयरीमिल्क निकालकर उसे खिलाया और हल्की मुस्कुराहट के साथ उसे गले से लगा लिया।
रसोईघर के दरवाजे पर खड़ी हुई शांति इस मनोरम दृश्य को निहार रही थी। बाप बेटे का मधुर मिलन देख उसकी आँखें भर आईं।
क्रमशः……..
Download the app
आता वाचा ईराच्या कथा सोप्या पद्धतीने, आजच ईरा app इंस्टॉल करा