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फिर आएगी बहार 04

शांति के जीवन में क्या फिर से आ आयेगी बहार
फिर आएगी बहार 04



रात की बारिश ने पूरे आँगन को तहस नहस कर दिया था। शांति उसी की साफ सफाई में लगी हुई थी। इसी बीच उसके फोन की घंटी बजी।"जरूर माँ का ही कॉल होगा, कल से बात ही कहाँ हो पाई है उनसे!ये काम निपटा लूँ फिर आराम से बात करूँगी"
बुदबुदाते हुए उसने फोन को नजरअंदाज किया और अपने कार्यों में लगी रही।दो से तीन बार घंटी बजने पर आखिरकार वह हॉल में गई जहाँ सोफे पर उसका मोबाइल रखा हुआ था।
"अरे!इनके इतने मिस्ड कॉल" घबराते हुए उसने स्वयं फोन लगाया।
"कहाँ थी मैडम! इमर्जेंसी में कोई मर जाए तो उसके बाद ही कॉल उठाओगी क्या" आयुष ने फोन पर झल्लाते हुए कहा।
"जी मैं तो वो" शांति इससे आगे कुछ कह पाती आयुष ने उसे हड़बड़ाते हुए बताया कि वो अपना पेनड्राइव घर में ही भूल गया है। आँगन में सफाई करते हुए शांति के हाथ गंदे हो चुके थे। फोन को कान में टिकाते हुए उसने अपने दोनों हाथ धोए और सोफे के इर्द गिर्द पेनड्राइव को तलाशने लगी।
"जल्दी से देखो,मेरे पास ज्यादा टाईम नहीं है" आयुष ने घबराते हुए कहा।
"जी मिल गया,सोफे के नीचे गिरा था" शांति के आँखों में चमक आ गई।
"हाँ ठीक है।अब मेरी बात ध्यान से सुनो,उसे लेकर सीधे बंटी के पास जाओ। वो मुझे इंपोर्टेंट फाइल मेल कर देगा"
आयुष के जान में जान आई। इसी बीच समीर उसके पीछे आ खड़ा हुआ और उसने कहा,”मित्तल जी!क्या हुआ कोई परेशानी है क्या,जल्दी चलिए न”
“क्या बताऊँ शर्मा जी,मैं तो अपना पेन ड्राइव ही भूल गया हूँ”
“कोई बात नहीं मित्तल जी।भाभी जी को बोलिए जल्दी से प्रेजेंटेशन वाली फाइल आपको मेल करे”
“हाँ वो कर ही रही है। मुझे बस दस मिनट टाइम चाहिए आप जाकर सर को बता देंगे प्लीज!”
आयुष के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई।वह फोन पर ही शांति की निगरानी करता रहा। शांति ने उसे बताया कि उनका पड़ोसी बंटी कॉलेज के लिए निकल चुका है। उसने आसपास छान मारा परन्तु कोई नहीं मिला जो फाइल को मेल कर दे या उसे अभी आयुष तक पहुँचा दे। आयुष को अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आया क्योंकि उसे तुरंत प्रेजेंटेशन के लिए बुला लिया गया।अब उसके पास केवल दो रास्ते थे।या तो वह मौखिक ही अपना प्रेजेंटेशन देगा या फिर सबके सामने अपनी लापरवाही कबूल कर लेगा। उसे स्वयं की गलती पर अफसोस तो हो ही रहा था परन्तु शांति के लिए अब उसके मन में और अधिक आक्रोश भर आया।अगर शांति इस टेक्नोलोजी के क्षेत्र में आगे रहती तो उसे आज इस परिस्थितियों का सामना न करना पड़ता। भले ही इंसान कम पढ़ा लिखा हो लेकिन आज के इस दौर में जान बुझ कर पीछे रह जाना ये भी तो गलत है। आखिरकार परिणाम की चिंता न करते हुए उसने फैसला ले ही लिया कि उससे जो भी बन पड़े।वह हार मानने के बजाय मौखिक रूप से अपना प्रेजेंटेशन देगा।
तालियों की गड़गड़ाहट ने आयुष का अभिवादन किया। समीर के प्रेजेंटेशन के बाद दुहलानी सर आयुष से ही आस लगाए बैठे थे। चेहरे पर मायूसी के साथ अपनी नजरें झुकाए हुए वह सबके सामने पहुँचा। भगवान को याद करते हुए उसने अपना प्रेजेंटेशन शुरू किया।उसकी प्रस्तावना से लोग अत्यंत प्रभावित हुए परन्तु जैसे- जैसे वह आगे बढ़ा सभी हैरान होने लगे क्योंकि उसने अभी तक प्रोजेक्टर का उपयोग नहीं किया। दुहलानी सर ने आयुष को प्रोजेक्टर की ओर इशारा करते हुए दिखाया किंतु उसने जानबूझ कर उसे नजरंदाज किया और धन्यवाद कहते हुए सीधे अपनी जगह पर आ गया।इस बार लोगों की तालियों में कोई गूँज न थी। मिस्टर दुहलानी,समीर और अन्य सभी कर्मचारियों की नजर आयुष के इस व्यवहार पर ही था। इसके पश्चात एक्सल नेट की टीम अन्य सेंटर के लिए रवाना हो गई।कार्यक्रम समाप्त होने पर मिस्टर दुहलानी ने आयुष,समीर और अन्य दो कर्मचारियों को अपने केबिन में बुलाया।
“ये कैसा प्रेजेंटेशन था आयुष! मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी” मिस्टर दुहलानी ने नाराज होते हुए कहा।
“सॉरी सर।आज मेरा दिन ही खराब था इसलिए तो मुझसे इतनी बड़ी भूल हो गई” आयुष ने नजरें झुकाए हुए कहा। उसने मिस्टर दुहलानी को सारा हाल सुनाया कि कैसे पेनड्राइव के भूल जाने पर उसकी सारी मेहनत व्यर्थ हो गई।
“समीर तुम्हारा प्रेजेंटेशन बहुत बढ़िया था। तुम्हारी मेहनत साफ झलक रही थी लेकिन अफसोस आयुष की वजह से सब” मिस्टर दुहलानी ने समीर के पीठ पर हाथ रखते हुए कहा।
आयुष की ओर तिरछी नजरों से निहारते हुए समीर बोला,”मैंने इसके लिए रात दिन एक कर दिया था सर।मेरी वाइफ रुचि ने भी इसमें मेरी पूरी हेल्प की है।अब मित्तल जी को किसी से कोई हेल्प न मिले तो हम क्या ही करे!मुझे तो लगा था भाभी जी जल्दी से फाइल मेल कर देंगी लेकिन हुआ तो कुछ और ही”
“मैं क्या करता सर! व्हाट्सएप पर फोटो सेंड करना होता तो वो कर सकती थी लेकिन पेनड्राइव से फाइल ढूंढ कर मेल करना ये उसके बस की बात नहीं थी” आयुष ने अपना मुँह लटकाते हुए कहा।
मिस्टर दुहलानी बोले,”देखो आयुष!आज जो भी हुआ न! वो ठीक तो नहीं हुआ। अब फैसला तो गुप्ता सर के हाथों में ही है। मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे इस प्रेजेंटेशन के बाद हमारे सेंटर सिलेक्ट हो पाएगा”
मिस्टर दुहलानी ने आई.सी.आई. कम्प्यूटर सेंटर में अवकाश की घोषणा करते हुए सभी कर्मचारियों को घर जाने का आदेश दिया।


इतने प्रयत्नों के बाद के बाद भी आज शांति असफल रही इससे उसका मन अत्यंत दुःखी हो गया। उसकी नाकामी से आज आयुष का कार्य इस तरह बिगड़ जाएगा उसने कभी सोचा नहीं था। बीते दिनों में उसकी नाराजगी क्या कम थी जो आज एक और अनहोनी ने दस्तक दे दी। आयुष ने उसे इस प्रेजेंटेशन के बारे में कुछ भी तो नहीं बताया था। ये कोई बड़ा कार्यक्रम ही रहा होगा। काश!आज किसी भी तरह वो आयुष की सहायता कर पाती। इन्हीं विचारों में डूबी हुई शांति ने पेनड्राइव दराज में रखा और पुनः अपने कार्यों में व्यस्त हो गई।
शुरुआत से ही घरेलु कार्यों में शांति का जीवन ऐसा उलझा कि उसने कभी व्हाट्सएप, यूट्यूब के अलावा इंटरनेट का अन्य उपयोग किया ही नहीं था। आयुष के लैपटॉप पर तो वह कभी झाँक ही नहीं पाई और न ही उसे कभी ईमेल उपयोग करने का मौका मिल पाया। दोपहर के दो बज रहे थे। आँगन में बैठी शांति रात्रि के भोजन के लिए चावल चुन रही थी इसी बीच आयुष की बाइक गेट पर आकर रुकी।उसे देखते ही झट से आकर शांति ने गेट खोला और उसका बैग उठाना चाहा किंतु आयुष ने उसे नजरंदाज किया और आगे बढ़ गया। कपड़े बदलकर वह सोफे पर बैठा ही था कि उसके फोन की घंटी बज उठी। स्क्रीन पर समीर का नंबर देख उसकी धड़कनें तेज हो गई।।ट्रे में पानी का गिलास और कुछ नमकीन नाश्ता शांति ने मेज पर रखा।आयुष के चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थीं और वह बार-बार फोन पर एक ही बात दोहरा रहा था,”जिसका डर था भी हुआ”
“सब मेरी गलती है”

“क्या हुआ जी!आप सेंटर से भी जल्दी आ गए” शांति ने धीमे स्वर में कहा।
“होना क्या है!मेरी लापरवाही से आज पूरे सेंटर का नाम खराब हो गया। मैं इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता हूँ” आयुष ने अपना माथा पकड़ते हुए कहा।