अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर
हौसलों की उड़ान
लक्ष्मी झोला उठाकर घर से बाहर निकली, तभी उसकी बड़ी बेटी सीमा ने कहा,
'मम्मी मुझे यूनिवर्सिटी में थोड़ा काम है'।
'ठीक है बेटी, तुम स्कूटर ले जाओ, मैं रिक्शा से --- '
'नहीं नहीं मम्मी, मैं आपको ड्राप कर दूंगी। कहां जाना है आपको ?' 'सपना बिल्डिंग में, चोपड़ा आंटी के यहां और वहां से शर्मा और कुलकर्णी के घर '
'हां, हां, ठीक है, चलिए।'
लक्ष्मी चोपड़ा आंटी के यहां पहुंची तो वे मोबाइल पर किसी से बात कर रही थीं। लक्ष्मी ने मैनीक्योर का सामान अंदर से लाकर टेबल पर रखा।मैनीक्योर करवाते करवाते आंटी जी की बातें उसके कानों में पड रही थीं। उन्होंने मिसेज मनचंदानी को घर बुला लिया
'अभी दो दिन बाद महिला दिवस पर क्लब में क्या-क्या करना है? उसकी लिस्ट बनानी है ।'
। मेनीक्योर खत्म होते ही लक्ष्मी ने उनका पेडीक्योर भी करना शुरू किया ।
'मम्मी मुझे यूनिवर्सिटी में थोड़ा काम है'।
'ठीक है बेटी, तुम स्कूटर ले जाओ, मैं रिक्शा से --- '
'नहीं नहीं मम्मी, मैं आपको ड्राप कर दूंगी। कहां जाना है आपको ?' 'सपना बिल्डिंग में, चोपड़ा आंटी के यहां और वहां से शर्मा और कुलकर्णी के घर '
'हां, हां, ठीक है, चलिए।'
लक्ष्मी चोपड़ा आंटी के यहां पहुंची तो वे मोबाइल पर किसी से बात कर रही थीं। लक्ष्मी ने मैनीक्योर का सामान अंदर से लाकर टेबल पर रखा।मैनीक्योर करवाते करवाते आंटी जी की बातें उसके कानों में पड रही थीं। उन्होंने मिसेज मनचंदानी को घर बुला लिया
'अभी दो दिन बाद महिला दिवस पर क्लब में क्या-क्या करना है? उसकी लिस्ट बनानी है ।'
। मेनीक्योर खत्म होते ही लक्ष्मी ने उनका पेडीक्योर भी करना शुरू किया ।
चोपड़ा आंटी मनचंदानी भाभी से बोलीं ,
'वुमन ऑफ द क्लब किसे देना है, यह तो तय हो गया , पर सोशल वर्क के तहत एक गरीब तबके की महिला का भी तो सम्मान करना है। तो किसे चुना जाए ?'
तभी मनचंदानी भाभी ने लक्ष्मी की तरफ देखकर कहा,
'यह लक्ष्मी भी तो कितनी मुश्किलों से लड़कर, मेहनत कर, यहां तक पहुंची है इसके हौसलों की तो दाद देनी पड़ेगी।'
'वुमन ऑफ द क्लब किसे देना है, यह तो तय हो गया , पर सोशल वर्क के तहत एक गरीब तबके की महिला का भी तो सम्मान करना है। तो किसे चुना जाए ?'
तभी मनचंदानी भाभी ने लक्ष्मी की तरफ देखकर कहा,
'यह लक्ष्मी भी तो कितनी मुश्किलों से लड़कर, मेहनत कर, यहां तक पहुंची है इसके हौसलों की तो दाद देनी पड़ेगी।'
उनकी बातें सुन लक्ष्मी सकुचा गई , पर बोली कुछ नहीं। काम खत्म कर सामान बटोर कर, यथास्थान रखा और शर्मा आंटी के घर निकल पड़ी ।
काम निपटा कर घर पहुंची तो दोपहर के दो बज गए थे। कुछ खाना बना था, खाना खा कर थोड़ी देर लेटी, तो सुबह की चर्चा ने उसके मन में उथल-पुथल मचा दी। उस समय अगर वह हिम्मत हार जाती तो - - - - !!!
काम निपटा कर घर पहुंची तो दोपहर के दो बज गए थे। कुछ खाना बना था, खाना खा कर थोड़ी देर लेटी, तो सुबह की चर्चा ने उसके मन में उथल-पुथल मचा दी। उस समय अगर वह हिम्मत हार जाती तो - - - - !!!
लक्ष्मी की आंखों के सामने मानों उसी की कहानी किसी चलचित्र की भांति आने लगी - - -
तीन भाइयों की अकेली बहन थी वह। बापू की हजामत की दुकान थी। पुश्तैनी काम था। मां घर के काम कर, छोटे बच्चों की मालिश करने चली जाती । लक्ष्मी को भी तेल मालिश करने का शौक था तो उसने छोटे-छोटे दो भाइयों की, अड़ोस-पड़ोस के छोटे बच्चों की मालिश करनी शुरू कर दी । सभी कहते लक्ष्मी तेरी हाथों में तो जादू है। तब कहां पता था कि यही हुनर एक दिन जीवन यापन का साधन बन जाएगा।
स्कूल की पढ़ाई तो दो-तीन कक्षा के बाद ही छूट गई थी। बापू जितना कमाता, घर में कम ही देता और नशे में ज्यादा उड़ा देता था। मां जैसे तैसे घर चलाती। भाइयों की भी पढ़ने में रुचि नहीं थी। तो बापू ने उन्हें भी काम पर लगा दिया। कम उम्र में पैसा हाथ आते ही भाइयों के भी रंग ढंग बदलने लग गए।
तीन भाइयों की अकेली बहन थी वह। बापू की हजामत की दुकान थी। पुश्तैनी काम था। मां घर के काम कर, छोटे बच्चों की मालिश करने चली जाती । लक्ष्मी को भी तेल मालिश करने का शौक था तो उसने छोटे-छोटे दो भाइयों की, अड़ोस-पड़ोस के छोटे बच्चों की मालिश करनी शुरू कर दी । सभी कहते लक्ष्मी तेरी हाथों में तो जादू है। तब कहां पता था कि यही हुनर एक दिन जीवन यापन का साधन बन जाएगा।
स्कूल की पढ़ाई तो दो-तीन कक्षा के बाद ही छूट गई थी। बापू जितना कमाता, घर में कम ही देता और नशे में ज्यादा उड़ा देता था। मां जैसे तैसे घर चलाती। भाइयों की भी पढ़ने में रुचि नहीं थी। तो बापू ने उन्हें भी काम पर लगा दिया। कम उम्र में पैसा हाथ आते ही भाइयों के भी रंग ढंग बदलने लग गए।
लक्ष्मी बारह तेरह साल की हुई ही थी, की उसकी मां ने उसकी शादी मनोहर के साथ कर दी। इस तरह मां ने तो जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली। मनोहर आठवीं पास था। उसके प्रेस की एक दुकान थी। दिन भर वह कपड़े प्रेस करताऔर शाम को घर आता तो अक्सर मुर्गा दारू लेकर आता। लक्ष्मी के बापू भी शराब पीते थे,तो शुरू में उसे इसमें कोई दोष नज़र नहीं आया। लक्ष्मी घर को साफ सुथरा सजा के रखती।मनोहर का भी ख्याल रखती थी। वह अपनी गृहस्थी में खुश थी। वह मनोहर को प्यार से समझाती थी की बुरी आदतें छोड़ दे। कुछ दिन तक तो सब ठीक-ठाक चलता रहा,
पर फिर, वही सब ढाक के तीन पात।
पर फिर, वही सब ढाक के तीन पात।
बच्चे बड़े हो रहे थे। उनके सामने रोज रोज किच-किच उसे अच्छी नहीं लगती थी। एक दिन, पैसे ना होने की वजह से वह खाने में कुछ अच्छा नहीं बना पाई, तो मनोहर का पारा चढ़ गया और उसने मारपीट शुरू कर दी।
धीरे-धीरे लक्ष्मी की सहनशक्ति भी जवाब देने लगी और तब, एक दिन उसने मनोहर का हाथ पकड़ लिया। तब तो मनोहर का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में लक्ष्मी से कह दिया ,
'काली कलूटी, रहना है तो जैसा मैं कहूं, वैसे रहा कर।तुझसे बढ़कर कई मिल जाएंगी मुझे!'
लक्ष्मी एकदम सकते में आकर गुमसुम हो गई।
अकेले कैसी रहेगी, बच्चों को लेकर मनोहर के बिना ?? अब लक्ष्मी के सोचने का ढंग भी बदलने लगा। वह बच्चों को स्कूल भेज,स्वयं काम ढूंढने लगी। उसने पास ही रहने वाली अस्पताल की नर्स सिस्टर जोजफ से बात की।सिस्टर ने कहा 'लक्ष्मी, तुम कम पढ़ी-लिखी हो, ऐसे में अस्पताल में तुम्हें क्या काम मिलेगा ?अच्छा,यह बतला ,और क्या क्या आता है तुझे ?'
तब लक्ष्मी ने बतलाया कि वह तेल मालिश का काम जानती है। सिस्टर जोसेफ नेअस्पताल की एक जच्चा महिला के घर मालिश का काम उसे दिलवा दिया। लक्ष्मी मन लगाकर काम करने लगी , तो उसे दो-तीन घर यही काम मिल गया।
कुछ पैसे हाथ में आने लगे तो मन में हिम्मत आती गई। उन पैसों को वह मनोहर से छुपा कर रखने लगी । पर एक दिन मनोहर ने उसके पैसे निकाल लिए। फिर तो लक्ष्मी का संयम जवाब दे गया। उसने मनोहर से साफ शब्दों में कह दिया कि उसे नहीं रहना है उसके साथ । मनोहर हेकडी में था, सो उसने भी कह दिया, 'जा जा देखूं तो कौन तुझे रखता है।'
लक्ष्मी ने कुछ ही दिनों में एक कमरे का मकान देख लियाऔर मां के यहां से जो गृहस्थी का सामान मिला था , वह और बच्चों को लेकरअलग रहने लगी। बच्चे भी पिता की मारपीट से तंग आ गए थे , तो वह भी लक्ष्मी के साथ ही रहना चाहते थे।
'काली कलूटी, रहना है तो जैसा मैं कहूं, वैसे रहा कर।तुझसे बढ़कर कई मिल जाएंगी मुझे!'
लक्ष्मी एकदम सकते में आकर गुमसुम हो गई।
अकेले कैसी रहेगी, बच्चों को लेकर मनोहर के बिना ?? अब लक्ष्मी के सोचने का ढंग भी बदलने लगा। वह बच्चों को स्कूल भेज,स्वयं काम ढूंढने लगी। उसने पास ही रहने वाली अस्पताल की नर्स सिस्टर जोजफ से बात की।सिस्टर ने कहा 'लक्ष्मी, तुम कम पढ़ी-लिखी हो, ऐसे में अस्पताल में तुम्हें क्या काम मिलेगा ?अच्छा,यह बतला ,और क्या क्या आता है तुझे ?'
तब लक्ष्मी ने बतलाया कि वह तेल मालिश का काम जानती है। सिस्टर जोसेफ नेअस्पताल की एक जच्चा महिला के घर मालिश का काम उसे दिलवा दिया। लक्ष्मी मन लगाकर काम करने लगी , तो उसे दो-तीन घर यही काम मिल गया।
कुछ पैसे हाथ में आने लगे तो मन में हिम्मत आती गई। उन पैसों को वह मनोहर से छुपा कर रखने लगी । पर एक दिन मनोहर ने उसके पैसे निकाल लिए। फिर तो लक्ष्मी का संयम जवाब दे गया। उसने मनोहर से साफ शब्दों में कह दिया कि उसे नहीं रहना है उसके साथ । मनोहर हेकडी में था, सो उसने भी कह दिया, 'जा जा देखूं तो कौन तुझे रखता है।'
लक्ष्मी ने कुछ ही दिनों में एक कमरे का मकान देख लियाऔर मां के यहां से जो गृहस्थी का सामान मिला था , वह और बच्चों को लेकरअलग रहने लगी। बच्चे भी पिता की मारपीट से तंग आ गए थे , तो वह भी लक्ष्मी के साथ ही रहना चाहते थे।
अब लक्ष्मी की असली लड़ाई शुरू हुई । घर, बच्चे, काम करते-करते वह कई बार घबरा जाती। मायके में मां को जब पता चला , तो उन्होंने उसे ही समझौता करने के लिए कहा । पर लक्ष्मी तो अलग रहने का संकल्प ले चुकी थी। तो मायके वालों ने भी उस से मुंह मोड़ लिया।
इतनी सारी मुश्किलों में एक संतोष था कि उसके बच्चे समझदार थे। पढ़ाई खूब मन लगाकर करते ।साल दर साल अच्छे अंको से पास होते गए।अब उसने एक सस्ती सी साइकिल खरीद ली और साड़ी पहनना छोड़ ,सलवार कुर्ती पहने लग गई। मालिश का काम भी साल भर नहीं मिल पाता था। उसी की एक कस्टमर आंटी ने उसे ब्यूटी पार्लर का काम सिखाया।लक्ष्मी के हाथों में जादू सा था। मालिश करते करते हाथ भी मुलायम हो गए थे।
जल्दी ही वह आइब्रो बनाना, मेनिक्योर करना, पैडिक्योर करना मेहंदी लगाना सीख गई।पार्लर वाली मैडम बीच-बीच में उसे यह काम दे देती , तो आमदनी भी ठीक होने लगी । जल्दी ही उसने एक सस्ता सा मोबाइल की खरीद लिया।लेकिन लक्ष्मी की परेशानियां अभी खत्म नहीं हुई थीं। एक दिन, काम से आते हुए किसी गाड़ी वाले का धक्का लगा और वह साइकिल से गिर पड़ी। पैर की हड्डी में चोट थी ,जैसे तैसे घर पहुंची ।पैर में सूजन थी। बेटी डॉक्टर के पास ले गई। पन्द्रह दिनों का प्लास्टर चढ़ गया। लक्ष्मी सकते में आ गई । दस पन्द्रह दिन का नागा करेगी, तो काम के घर हाथ से निकल जाएंगे। उसने फोन कर सभी घरों में सूचना दे दी। उसकी कस्टमर नेकदिल थीं, सभी कस्टमर्स ने उसे आराम करने की सलाह दी। पर लक्ष्मीको घर में बैठे रहने की आदत नहीं थी। उसने सोचा , बैठे बैठे ही कुछ काम करें।उसने अपनी बेटी सीमा से कह कर सिलाई वाली बुटीक की दुकान से साड़ियों में फाल लगाना , बटन, हुक लगाने का काम मांगवा लिया।
ताकि कुछ आमदनी हो सके।अपनी बेटी को भी वह पार्लर का काम सीखने के लिए भेजने लगी। बेटा पढ़ाई के साथसाथ पेपर बांटने का काम करता था। इससे उसका भी कुछ खर्च निकल जाता था। पैर ठीक होते ही उसने दुगने उत्साह से काम शुरू किया। अब उसकी बेटी ने एमबीए कर लिया। बेटा भी 12वीं पास हो गया। तो उसने एक सेकंड हैंड स्कूटी ले ली। जिससे वह दूर के काम पर भीआसानी से पहुंच जाती थी।
इतनी सारी मुश्किलों में एक संतोष था कि उसके बच्चे समझदार थे। पढ़ाई खूब मन लगाकर करते ।साल दर साल अच्छे अंको से पास होते गए।अब उसने एक सस्ती सी साइकिल खरीद ली और साड़ी पहनना छोड़ ,सलवार कुर्ती पहने लग गई। मालिश का काम भी साल भर नहीं मिल पाता था। उसी की एक कस्टमर आंटी ने उसे ब्यूटी पार्लर का काम सिखाया।लक्ष्मी के हाथों में जादू सा था। मालिश करते करते हाथ भी मुलायम हो गए थे।
जल्दी ही वह आइब्रो बनाना, मेनिक्योर करना, पैडिक्योर करना मेहंदी लगाना सीख गई।पार्लर वाली मैडम बीच-बीच में उसे यह काम दे देती , तो आमदनी भी ठीक होने लगी । जल्दी ही उसने एक सस्ता सा मोबाइल की खरीद लिया।लेकिन लक्ष्मी की परेशानियां अभी खत्म नहीं हुई थीं। एक दिन, काम से आते हुए किसी गाड़ी वाले का धक्का लगा और वह साइकिल से गिर पड़ी। पैर की हड्डी में चोट थी ,जैसे तैसे घर पहुंची ।पैर में सूजन थी। बेटी डॉक्टर के पास ले गई। पन्द्रह दिनों का प्लास्टर चढ़ गया। लक्ष्मी सकते में आ गई । दस पन्द्रह दिन का नागा करेगी, तो काम के घर हाथ से निकल जाएंगे। उसने फोन कर सभी घरों में सूचना दे दी। उसकी कस्टमर नेकदिल थीं, सभी कस्टमर्स ने उसे आराम करने की सलाह दी। पर लक्ष्मीको घर में बैठे रहने की आदत नहीं थी। उसने सोचा , बैठे बैठे ही कुछ काम करें।उसने अपनी बेटी सीमा से कह कर सिलाई वाली बुटीक की दुकान से साड़ियों में फाल लगाना , बटन, हुक लगाने का काम मांगवा लिया।
ताकि कुछ आमदनी हो सके।अपनी बेटी को भी वह पार्लर का काम सीखने के लिए भेजने लगी। बेटा पढ़ाई के साथसाथ पेपर बांटने का काम करता था। इससे उसका भी कुछ खर्च निकल जाता था। पैर ठीक होते ही उसने दुगने उत्साह से काम शुरू किया। अब उसकी बेटी ने एमबीए कर लिया। बेटा भी 12वीं पास हो गया। तो उसने एक सेकंड हैंड स्कूटी ले ली। जिससे वह दूर के काम पर भीआसानी से पहुंच जाती थी।
सब याद करते करते उसकी आंखों में आंसू आ गए। बेटी अब कहती है मां मेरी नौकरी लगते ही आप आराम करना।पर लक्ष्मी खाली बैठना नहीं चाहती थी।कभी-कभी लक्ष्मी सोचती हैअगर मनोहर एक अच्छा पति होता तो क्या वह यह सब कर पाती ?? उसने तो अपने बच्चों की खातिर हिम्मत जुटाई । उसके बच्चों की सफलता ही उसका हौसला है।उन्हें पढ़ा लिखा कर इतना योग्य बनाना चाहती है , कि वे सफलता के आकाश में ऊंची उड़ान भर सकें। उसने तो उसके नाजुक पंखों से उसकी आंखों में जितना आकाश समाया , उसे पूरा नापने की कोशिश कर ली। यही उसके हौसलों की उड़ान थी। वह ना तो किसी कंपनी की सीईओ है, न ही किसी बैंक में मैनेजर और ना आंटी की वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड जीतने वाली मैडम है।
वह तो एक मामूली अनपढ़ मालिश वाली है ।
वह तो एक मामूली अनपढ़ मालिश वाली है ।
क्या आपको नहीं लगता है कि वही असली वुमन ऑफ द ईयर है।
किसी ने ऐसे लोगों के लिए सच ही कहा है;
आसमां की परछाई समेटे बैठी हूं,
कोई परिंदा तो आए, हौसलों की उड़ान भरने को - - - - !
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श्रीमती प्रतिभा परांजपे
किसी ने ऐसे लोगों के लिए सच ही कहा है;
आसमां की परछाई समेटे बैठी हूं,
कोई परिंदा तो आए, हौसलों की उड़ान भरने को - - - - !
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श्रीमती प्रतिभा परांजपे
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