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माफ करना आसान है?

अगर यही गलती मुझसे होती तो?

अखिल भारतीय लेखन प्रतियोगिता
विषय...माफ करना आसान है?


कहानी
माफ करना आसान है?

पुष्पा ऑफिस जाने के लिए निकल ही रही थी तो,उसने बाबूजी को मां से कहते हुए सुना “कुंडली मिलान हो गया है। एक-दो दिन में वे लोग पुष्पा को देखने आ सकते हैं ।
पुष्पा ने सुन तो लिया पर मन ही मन झुंझला गई ,फिर वही देखने दिखाने का नाटक।

रात में भोजन के समय बाबूजी बोले “परसों शाम को वे लोग आने वाले हैं। घर, वर अच्छा है,अगर रिश्ता तय हो जाए तो सोने में सुहागा, इकलौता लड़का है, दो बहनों का विवाह हो चुका है ,अपना मकान है ।और क्या चाहिए?”

रमाकांत अपने माता-पिता के साथ आए। छोटी बहन सीमा खिड़की में से देखकर बोली’ दीदी जीजाजी तो बहुत सुंदर स्मार्ट है।” ।सुन पुष्पा और भी निराश हो गई, मुझ सांवली साधारण रंग रूप वाली को क्यो कर हां कहेंगे?”

दूसरे दिन बाबूजी खुशी-खुशी मिठाई लेकर ही घर आए। पुष्पा को खिला कर बोले लड़के वालों को रिश्ता मंजूर है ।यह सुन पुष्पा आश्चर्य मिश्रीत खुशी से सराबोर हो वहां से भाग खड़ी हुई।


शादी के बाद कई दिनों तक वह यह समझ नहीं पायी कि रमाकांत ने कैसे हां कर दी?
, धीरे-धीरे गांठे खुलने लगी ।पुष्पा की नौकरी ,अच्छी सैलरी उसके रंग रूप पर भारी थी, रमाकांत नौकरी तो करते थे पर, घर परिवार कि जिम्मेदारी के प्रति वे लापरवाह थे।

अपनी थोड़ी सी कमाई भी वह अय्याशी में उड़ा देते। अब तो उनकी नजर पुष्पा के वेतन पर भी रहती। बाबूजी कई बार उन्हें समझाते पर रमाकांत पर कोई असर नहीं होता।

इसी बीच सोना का जन्म हुआ। सोना खुश नसीब थी रमाकांत का रंग रूप उसे मिला था। रमाकांत उससे बहुत प्यार करते। घर गृहस्थी के काम, नौकरी और छोटी सोना इसी में पुष्पा खुश थी। रमाकांत घर पर ज्यादा रहते ही नहीं थे, उनके कई दोस्त थे उनके साथ शाम गुजारते। ससुर जी अक्सर उन्हें टोकते थे ।

एक दिन सब्जी लेकर आते समय एक ऑटो की टक्कर से ससुर जी गिर पड़े। सर में चोट लगी थी ।बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती किया।
उन्ही दिनों पुष्पा की भी तबीयत ठीक नहीं थी 2 महीने का गर्भ था । अस्पताल की भागदौड़ और घर की देखभाल में पुष्पा की हालत पस्त हो गई। ऑपरेशन में काफी खर्चा आया फिर भी ससुर जी को बचा नहीं सके। यही क्या कम था कि पुष्पा का मिसकैरेज हो गया।
शरीर और मन दोनों से ही वह निढाल हो गई वह चाहती थी कि रमाकांत उसकी इस अवस्था में उसके साथ रहे, उसकी देखभाल करें उसका गम बाटे पर, यह उसका स्वप्न हीं रहा। बाबूजी के ना रहने पर रमाकांत पर किसी का अंकुश नहीं रहा तो वह और भी निर्द्वन्द होते गए।

मां के तो वैसे भी लाडले थे रमाकांत “मर्द थोड़ी बहुत अय्याशी करें तो हर्ज क्या है? कमाते जो है!” इसी विचारधारा की थी वे।

धीरे -धीरे रमाकांत और पुष्पा के बीच दूरियां बढ़ने लगी, पुष्पा रमाकांत की सारी इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करती रही पर जल्दी ही वह समझ गई घर गृहस्थी के मोह से बाहर की दुनिया के आकर्षण में बंधा रमाकांत उससे काफी दूर निकलता जा रहा है। एक दिन उनके कपड़ों में सिनेमा के दो टिकट मिले पुष्पा का रहा-सहा धैर्य जवाब देने लगा ।

उसने टिकट दिखाकर जानना चाहा, रमाकांत अब और ढीठ हो चुके थे। उसे हीराकत भरी नजरों से देखते हुए बोले”तुम्हें साथ ले जाकर क्या फायदा तुम घर में ही ठीक हो!”
पुष्पा का संयम जवाब देने लगा वह लड़ने पर उतारू होती देख रमाकांत बाहर निकल गए ।

बड़ी होती बेटी के समक्ष इस तरह से वह लड़ नहीं सकती थी तो मन मसोस कर रह गई ।
किसे बताती ? छोटी बहन की शादी थी, इस वक्त अपने मां बाबूजी को बताकर वह उनकी परेशानी बढ़ाना नहीं चाहती थी।

अब तो रमाकांत कई कई दिनों तक घर से गायब रहने लगे, धीरे-धीरे दोनों के बीच की दूरियां और बढ़ गई ।
एक दिन रमाकांत अपना सूटकेस भरकर बोले मैं माया के साथ रहने जा रहा हूं। सासू मां ने रोकने ,समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ।
गुस्से में वे पुष्पा को ही दोष देती रही। पुष्पा क्या बोलती? वह चुपचाप सुनती रही पर ,अंदर ही अंदर ही आत्मसम्मान की ज्वाला धधकने लगी।

सोना को उसने इतना बताया था कि रमाकांत की ट्रांसफर हो गई है वह दूसरे शहर में रहते हैं और उसने भी सच मान लिया! आठ दिन के अंतराल से रमाकांत घर आ जाते थे। जब भी आते सोना के लिए कुछ ना कुछ ले आते हैं वह भी अपने पापा की राह देखती ।

इस बार तीन-चार महीने बीत गए पर रमाकांत नहीं आए सासू मां की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी पुष्पा ने रमाकांत के मित्र के द्वारा संदेश भिजवाया पर वे जब तक आए माताजी नहीं रही।

एक दिन अचानक पुष्पा की मुलाकात माया से हो गई तब उसे पता चला माया और रमाकांत में अनबन हो गई है और वह किसी और के साथ—- सुनकर पुष्पा को बहुत वितृष्णा हुई, लगा जब पहली बार घर छोड़कर जा रहे थे तभी उसे तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर कर देने चाहिए थे पर माताजी और बेटी के भविष्य की सोच उसके हाथ रुक गए थे।

समय के साथ-साथ सोना भी समझदार होती गई अब वह अपने माता-पिता के बीच के रिश्ते को कुछ-कुछ समझने लगी थी।

इसी तरह 2 साल और निकल गए कि अचानक एक दिन रमाकांत सामान सहित आए। पुष्पा समझ नहीं पायी। सोना के स्कूल जाने के बाद रमाकांत से बोली “कितने दिनों के लिए आए हो”

“ हमेशा के लिए।”

“ क्यों ?”

“क्यों क्या यह मेरा घर नहीं है?”

“ हां है “

“अब हमारी बेटी सयानी हो गई हैउसे भी मेरी जरूरत है !”

रमाकांत की चालबाजी देख, पुष्पा का रह सहा धैर्य जवाब देने लगा। वह बोली “अब हमें अकेलेपन की आदत हो गई है। जब जरूरत थी तब कहां थे आप?”

“अब तो आ गया हूं ना”?

“ आप अपनी इच्छा से गए थे, अब आए हो वह अपनी इच्छा से नहीं! आपको माया ने और उस दूसरी ने भी छोड़ दिया! तो आपको इस घर और बेटी की जरूरत महसूस हुई है! आपको जरूरत है रहिए! एक कमजोर सी डोर हम दोनों के बीच अभी भी बांधी है ,वह टूटने तक आप रह सकते हैं।”

“क्या पुरानी बातें भूलकर फिर से –क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकती?”

“क्या आप मेरे वो दिन वो रातें लौटा सकते हो जो मैंने आपके बिना गुजारी थी ।मेरी पुरी जवानी अकेले पन की आग में जल कर भस्म हो गई उस जलन को आपका ‌माफीनामा भी शांत नहीं कर सकता ।और “माफ उसे किया जाता है जिसे गलती का एहसास हो आपको अपनी गलती पर कोई पछतावा नहीं है !आपकी जरूरत आपको यहां ले आई !” जब उन दोनों ने आपको— कहते-कहते पुष्पा रुक गई ।

कुछ पल बाद वह बोली अगर यही गलती मुझसे होती तो क्या आप मुझे माफ कर पाते ?”

रमाकांत के मुंह से एक भी शब्द नहीं फूटा!

पुष्पा ने कहा- “नहीं कर पाते न क्योंकि आप मर्द है, तो आपकी आवारगी जायज है !और मैं औरत हूं मैं गुनहगार कहलाती।” आप सोना के पिता होने के नाते यहां रह सकते हैं पर मुझसे कोई अपेक्षा ना रखना!
समाज के सामने हम पति-पत्नी जरूर होंगे पर मुझसे रिश्ता रखने की कोशिश मत करना कह कर पुष्पा काम पर निकल गई ।

और रमाकांत हारे हुए जुआरी की तरह उसे देखते रहे।
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लेखन—सौ प्रतिभा परांजपे