प्याराबंधन*
राखी कितनी तारीख को है यह देखने के लिए रक्षा कैलेंडर के पन्ने पलट कर देख रही थी ।
इस बार रक्षाबंधन पर उसने मायके जाना तय किया।
राखी का दिन वैसे भी उसके लिए खास है क्योंकि वही उसका जन्मदिन भी है तभी तो उसका नाम रक्षा रखा था।
भैया कितने खुश थे उसके जन्म पर, यह मां के मुंह से उसने कई बार सुना था।
सच ही तो था, तभी तो भैया उसे बहुत प्यार करते हैं।
हर वर्ष राखी पर उसकी पसंद का चाॅकलेट केक लेकर आतेऔर उसका जन्मदिन मनाते।
सोचते सोचते रक्षा की आंखों में से आंसू झरने लगे ।कितने साल हो गए हैं उसे भैया को अपने हाथों से राखी बांधे, और उनके हाथ से केक खाये हुए। वह राखी पोस्ट कर देती और भैया भी नेग भेज देते है।
क्या करती वह, शादी के समय दोनों परिवारों के बीच संबंधों में जो कड़वाहट आई थी;। उसने रिश्तो की मिठास में जहर घोल दिया था। रक्षा को सारी घटनाएं याद आने लगीं ।
अभी बी.एससी के प्रथम वर्ष में ही थी रक्षा, तभी राकेश से उसकी मुलाकात कॉलेज में हुई ।
राकेश फायनल ईयर में थे। दो-तीन वर्ष लगे, उन्हे एक दूसरे को अच्छे से जानने समझने मे; धीरे धीरे पहचान प्यार में बदल गयी। राकेश को एम.एससी करते ही बैंक में नौकरी मिल गई ।
भैया को जब उसके और राकेश के रिश्ते के बारे में पता चला तो उन्होंने ही आगे बढ़कर राकेश के घर वालों से बात बढ़ाई।
रक्षा के पापा सरकारी नौकरी में थे तो बंधी बंधाई आमदनी थी।और भैया ने अभी-अभी बिझिनेस शुरू किया था।
राकेश के घर वालों ने शादी के पहले दहेज को लेकर कोई मांग नहीं की थी, फिर भी पापा ने यथासंभव जरूरत की सभी वस्तुएं उसे दीं। पर पता नहीं ऐन शादी में किसी बात पर अनबन हो ही गई।
राकेश के ताऊ जी और फूफा जी ने पापा को खूब सुनाया। शादी तो हो गई पर दोनों परिवारों के संबंध टूट गए।
राकेश इन सब बातों से अनभिज्ञ थे, जब उन्हें पता चला, तो उन्होंने पापा और भैया की घरवालों की तरफ से माफी मांगी पर-- एक बार जो खटास संबंधों में आ गई वह समय के साथ कम तो हुई पर खत्म नहीं हो पायी।
इस बार रक्षाबंधन पर उसने मायके जाना तय किया।
राखी का दिन वैसे भी उसके लिए खास है क्योंकि वही उसका जन्मदिन भी है तभी तो उसका नाम रक्षा रखा था।
भैया कितने खुश थे उसके जन्म पर, यह मां के मुंह से उसने कई बार सुना था।
सच ही तो था, तभी तो भैया उसे बहुत प्यार करते हैं।
हर वर्ष राखी पर उसकी पसंद का चाॅकलेट केक लेकर आतेऔर उसका जन्मदिन मनाते।
सोचते सोचते रक्षा की आंखों में से आंसू झरने लगे ।कितने साल हो गए हैं उसे भैया को अपने हाथों से राखी बांधे, और उनके हाथ से केक खाये हुए। वह राखी पोस्ट कर देती और भैया भी नेग भेज देते है।
क्या करती वह, शादी के समय दोनों परिवारों के बीच संबंधों में जो कड़वाहट आई थी;। उसने रिश्तो की मिठास में जहर घोल दिया था। रक्षा को सारी घटनाएं याद आने लगीं ।
अभी बी.एससी के प्रथम वर्ष में ही थी रक्षा, तभी राकेश से उसकी मुलाकात कॉलेज में हुई ।
राकेश फायनल ईयर में थे। दो-तीन वर्ष लगे, उन्हे एक दूसरे को अच्छे से जानने समझने मे; धीरे धीरे पहचान प्यार में बदल गयी। राकेश को एम.एससी करते ही बैंक में नौकरी मिल गई ।
भैया को जब उसके और राकेश के रिश्ते के बारे में पता चला तो उन्होंने ही आगे बढ़कर राकेश के घर वालों से बात बढ़ाई।
रक्षा के पापा सरकारी नौकरी में थे तो बंधी बंधाई आमदनी थी।और भैया ने अभी-अभी बिझिनेस शुरू किया था।
राकेश के घर वालों ने शादी के पहले दहेज को लेकर कोई मांग नहीं की थी, फिर भी पापा ने यथासंभव जरूरत की सभी वस्तुएं उसे दीं। पर पता नहीं ऐन शादी में किसी बात पर अनबन हो ही गई।
राकेश के ताऊ जी और फूफा जी ने पापा को खूब सुनाया। शादी तो हो गई पर दोनों परिवारों के संबंध टूट गए।
राकेश इन सब बातों से अनभिज्ञ थे, जब उन्हें पता चला, तो उन्होंने पापा और भैया की घरवालों की तरफ से माफी मांगी पर-- एक बार जो खटास संबंधों में आ गई वह समय के साथ कम तो हुई पर खत्म नहीं हो पायी।
भैया की शादी में केवल वह और राकेश गए तो थे, पर शादी के बाद राकेश के साथ ही वह वापस आ गई।
आगे चलकर रक्षा को बेटी, बेटा हुए। भैया का परिवार भी फल फूल गया। उसने कई बार भैया और पापा को उसके घर आने का न्योता दिया, पर पापा कभी नहीं आए। तो वह अपने आप को संभाल नहीं पायी। वह सोचती कि जो गलती उसके पति ने नहीं की, उसकी सजा उन्हें क्यों? आखिर उसने पापा से फोन पर पूछ ही लिया। पर 'बेटी के घर का पानी नहीं पीते' वाला दकियानूसी जवाब देकर उन्होंने अपना दामन बचा लिया।
आगे चलकर रक्षा को बेटी, बेटा हुए। भैया का परिवार भी फल फूल गया। उसने कई बार भैया और पापा को उसके घर आने का न्योता दिया, पर पापा कभी नहीं आए। तो वह अपने आप को संभाल नहीं पायी। वह सोचती कि जो गलती उसके पति ने नहीं की, उसकी सजा उन्हें क्यों? आखिर उसने पापा से फोन पर पूछ ही लिया। पर 'बेटी के घर का पानी नहीं पीते' वाला दकियानूसी जवाब देकर उन्होंने अपना दामन बचा लिया।
काल की आंधी में कुछ पुराने पेड़ धराशाई हो ही जाते हैं वैसे उसके सास ससुर भी नहीं रहे।
मायके में भी मां उसे अनाथ कर गई।
मां को याद कर रक्षा की आंखें भर आई।
यही सब बातें याद कर उसने इस बार राखी पर मायके जाना तय किया था।
राखी से 4 दिन पहले ही वह मायके आ गई । रक्षा ने महसूस किया मां के जाने के बाद पापा का स्वभाव बच्चों जैसा हो गया है, तबीयत भी ठीक नहीं रहती।
भाभी ने बातों ही बातों में बताया कि उनके ऑफिस से आने में देर हो जाती है, तो पापा घबरा जाते हैं। अकेलापन उनसे बिल्कुल सहा नहीं जाता।
भाभी ने कहा" सोचती हूं नौकरी छोड़ दू.....,"
पर रक्षा जानती थी कि भैया का काम नरम गरम चलता है अगर भाभी भी नौकरी छोड़ दे तो इस महंगाई के जमाने में घर चलाना मुश्किल है।
रात में सोने से पहले वो पापा के पास गई।
"दामाद जी नहीं आए पापा ने पूछा "
"आएंगे लेने के लिए....",
देर रात तक वह पापा से बातें करती रही।
सुबह-सुबह चाय नाश्ते पर भैया ने भी बात छेड़ दी,। "कितने वर्षों के बाद राखी पर तुम आई हो, बोलो नेग में क्या चाहिए"?
"जो मांगूंगी दोगे?....... देखो बाद में मुकर न जाना" रक्षा ने हंसते हुए कहां"
"मांगो तो,"
"इतने वर्षों की नेग है तो सूद समेत वसूल करूंगी।"
"बाप रे, तुम तो बैंक वाले की बीवी की तरह ब्याज भी वसूलना चाहती हो," भैया हंसते हुए बोल पड़े।
"हां,.... वह तो मैं हूंँ ही, बैंक वाले की बीवी......,"
"कहो तो...."
"पर पहले राखी तो बांध लूं फिर मांगूंगी।"
रक्षा ने राखी का थाल सजाकर भाई को टीका लगाया। राखी बांधी। फिर भैया का हाथ पकड़ कर बोली। "शगुन मे मुझे रुपया, जेवर नहीं, अपने हिस्से का प्यार चाहिए वह भी सूद समेत।
"...मतलब ?" भैया भाभी दोनों बोल पड़े ।
"पापा का प्यार ! .....भैया ,मैं पापा को अपने साथ ले जाना चाहती हूं मुझे भी उनकी सेवा करने का मौका चाहिए।"
".... पर पापा, वह नहीं मानेंगे।"
" कल रात मैंने पापा से बात की है, उन्हें उनके दामाद के साथ हुए अन्याय का वास्ता दिया और एक मौका मांगा है, मुश्किल से ही सही, पर वे मान गए।"
"ठीक है जैसा तुम चाहो पर-- राकेश जी, उनसे अनुमति?" "उनकी भी यही इच्छा है भैया" कहते हुए रक्षा ने भाई का मुंह मीठा किया।
भैया ने भी शगुन मे लिफाफा थाली में रक्खा ,तभी भाभी अंदर से चॉकलेट केक सजाकर लायी।
"आप को याद था भैया,? "
रक्षा ने खुश होकर कहां।
" अरे पगली तेरा जन्मदिन में कैसे भूल सकता हूं भैया ने उसे केक खिलाते हुए कहा"।
दूसरे दिन राकेश लेने के लिए आए पापा के पैर छूते ही पापा ने उन्हें गले लगा लिया।
कार में बैठते समय भैया ने कहा
"देखो रक्षा, भूल मत जाना वह मेरे भी पापा हैं..... "
"हां भैया, मूलधन में अपनी हिस्सेदारी बराबरी की है, मैं तो ब्याज ---कहते हुए रक्षा हंँसने लगी ।
पापा को कार में बैठाते हुए , राकेश ने कहा "हां हां जब आपका मिलने का मन हो जरूर आइए, अपने हिस्से का प्यार पाने के लिए" ।
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लेखिका.सौ.प्रतिभा परांजपे
मायके में भी मां उसे अनाथ कर गई।
मां को याद कर रक्षा की आंखें भर आई।
यही सब बातें याद कर उसने इस बार राखी पर मायके जाना तय किया था।
राखी से 4 दिन पहले ही वह मायके आ गई । रक्षा ने महसूस किया मां के जाने के बाद पापा का स्वभाव बच्चों जैसा हो गया है, तबीयत भी ठीक नहीं रहती।
भाभी ने बातों ही बातों में बताया कि उनके ऑफिस से आने में देर हो जाती है, तो पापा घबरा जाते हैं। अकेलापन उनसे बिल्कुल सहा नहीं जाता।
भाभी ने कहा" सोचती हूं नौकरी छोड़ दू.....,"
पर रक्षा जानती थी कि भैया का काम नरम गरम चलता है अगर भाभी भी नौकरी छोड़ दे तो इस महंगाई के जमाने में घर चलाना मुश्किल है।
रात में सोने से पहले वो पापा के पास गई।
"दामाद जी नहीं आए पापा ने पूछा "
"आएंगे लेने के लिए....",
देर रात तक वह पापा से बातें करती रही।
सुबह-सुबह चाय नाश्ते पर भैया ने भी बात छेड़ दी,। "कितने वर्षों के बाद राखी पर तुम आई हो, बोलो नेग में क्या चाहिए"?
"जो मांगूंगी दोगे?....... देखो बाद में मुकर न जाना" रक्षा ने हंसते हुए कहां"
"मांगो तो,"
"इतने वर्षों की नेग है तो सूद समेत वसूल करूंगी।"
"बाप रे, तुम तो बैंक वाले की बीवी की तरह ब्याज भी वसूलना चाहती हो," भैया हंसते हुए बोल पड़े।
"हां,.... वह तो मैं हूंँ ही, बैंक वाले की बीवी......,"
"कहो तो...."
"पर पहले राखी तो बांध लूं फिर मांगूंगी।"
रक्षा ने राखी का थाल सजाकर भाई को टीका लगाया। राखी बांधी। फिर भैया का हाथ पकड़ कर बोली। "शगुन मे मुझे रुपया, जेवर नहीं, अपने हिस्से का प्यार चाहिए वह भी सूद समेत।
"...मतलब ?" भैया भाभी दोनों बोल पड़े ।
"पापा का प्यार ! .....भैया ,मैं पापा को अपने साथ ले जाना चाहती हूं मुझे भी उनकी सेवा करने का मौका चाहिए।"
".... पर पापा, वह नहीं मानेंगे।"
" कल रात मैंने पापा से बात की है, उन्हें उनके दामाद के साथ हुए अन्याय का वास्ता दिया और एक मौका मांगा है, मुश्किल से ही सही, पर वे मान गए।"
"ठीक है जैसा तुम चाहो पर-- राकेश जी, उनसे अनुमति?" "उनकी भी यही इच्छा है भैया" कहते हुए रक्षा ने भाई का मुंह मीठा किया।
भैया ने भी शगुन मे लिफाफा थाली में रक्खा ,तभी भाभी अंदर से चॉकलेट केक सजाकर लायी।
"आप को याद था भैया,? "
रक्षा ने खुश होकर कहां।
" अरे पगली तेरा जन्मदिन में कैसे भूल सकता हूं भैया ने उसे केक खिलाते हुए कहा"।
दूसरे दिन राकेश लेने के लिए आए पापा के पैर छूते ही पापा ने उन्हें गले लगा लिया।
कार में बैठते समय भैया ने कहा
"देखो रक्षा, भूल मत जाना वह मेरे भी पापा हैं..... "
"हां भैया, मूलधन में अपनी हिस्सेदारी बराबरी की है, मैं तो ब्याज ---कहते हुए रक्षा हंँसने लगी ।
पापा को कार में बैठाते हुए , राकेश ने कहा "हां हां जब आपका मिलने का मन हो जरूर आइए, अपने हिस्से का प्यार पाने के लिए" ।
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लेखिका.सौ.प्रतिभा परांजपे
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