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रक्तपिशाच का रक्तमणि ७५

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ७५

सर्पकला अपनी जादुई अंगूठी के मदत से राजवीर का पीछा कर रही थी। उसके हाथ में अंगूठी की रोशनी धीरे-धीरे चमक रही थी और उसे एक खास दिशा में ले जा रही थी। हर चमक के साथ उसकी धड़कन भी बढ़ रही थी। यह अंगूठी उसे सही दिशा दिखा रही थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ रहा था।

वह घने जंगलों से गुज़र रही थी, जहाँ पेड़ों की घनी छाया में सूरज की रोशनी भी कैद सी लग रही थी। पेड़ों की शाखाओं में फँसे पक्षी अचानक एक आवाज़ के साथ उड़ रहे थे, मानो जंगल ने भी उसकी मौजूदगी का एहसास कर लिया हो। हवा धूल उड़ा रही थी, पत्ते सरसरा रहे थे, लेकिन उसने अपनी यात्रा में किसी भी चीज़ को बाधा नहीं बनने दिया। उसके मन में बस एक ही विचार था, राजवीर। वह कहाँ है? वह क्या कर रहा है? और सबसे ज़रूरी बात, क्या उसके पास अभीभी रक्तमणि है?

वह तेज़ गति से आगे बढ़ती रही। उसकी चाल तेज़ थी, लेकिन उसका दिल भावनाओं से भरा हुआ था। प्रेम, क्रोध, ईर्ष्या और वासना, ये सारी भावनाएँ मिलकर उसके खून में उमड़ रही थीं। वह उससे मिलना चाहती थी। वह उसे एक बार फिर अपनी ओर खींचना चाहती थी।

आखिरकार, कुछ घंटों की अथक यात्रा के बाद, वह उस जगह पहुँची जहाँ राजवीर, बलदेव और बाकी भेड़िये साथ बैठे गंभीर बातचीत कर रहे थे। पेड़ों के पीछे से उसने देखा। राजवीर गंभीर चेहरे से कुछ कह रहा था, बलदेव और बाकी लोग उसकी बातें सुन रहे थे। उस पल, उसे एहसास हुआ कि वह अभी भी नहीं बदला है। लेकिन वह उसका नहीं था, भले ही राजवीरने उसे ठुकरा दिया था, लेकिन सर्पकलाने उसे अपने मनसे कभी नहीं निकाला था। आज, वह उसे वापस अपनी ओर खींचने वाली थी... हक़ से, बल से, या जादू से!

राजवीर गाँव में अपने घर के बाहर एक पेड़ की छाँव में अपने साथियों के साथ विचार-मंथन कर रहा था।

"हमें सहस्त्रपाणि के किले में प्रवेश करना है। उसके सिंहासन के नीचे रक्तमणि छिपा है, और हम उसका इस्तेमाल उसे नष्ट करने के लिए कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें सही समय और एक योजना की ज़रूरत है," वह कह रहा था। बाकी लोग उससे सहमत थे, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था।

अचानक, हवा में एक अजीब सी धुंध फैल गई। हल्की हवा के साथ, एक मनमोहक लेकिन खतरनाक गंध ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। राजवीर ने आँखें खोलीं और सामने देखते हुए थोड़ा उलझन में पड़ गया। उसके सामने सर्पकला खड़ी थी, चेहरे पर एक मोहक मुस्कान, आँखों में मोह का पर्दा और पूरे शरीर पर एक मोटा काला-नीला लबादा। उसकी सुंदरता इतनी प्रभावशाली थी कि उसके आस-पास के सभी भेड़िये उसे ऐसे देखने लगे मानो वो मोहित हो गए हों।

सर्पकला धीरे-धीरे, आत्मविश्वास से आगे बढ़ी और राजवीर के सामने रुक गई। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में कई भावनाएँ एक साथ कौंध रही थीं, ज्वलंत घृणा, प्रेम और जलती हुई वासना। उसकी उपस्थिति ने एक पल के लिए आसपास के वातावरण को स्तब्ध कर दिया।

उसने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया, सूरज की किरणें उसकी उंगलियों के बीच सर्प जैसी अंगूठी पर चमक रही थीं। उसकी आवाज़ मधुर थी, लेकिन उसमें एक अदृश्य शक्ति थी।

"राजवीर, कैसे हो, क्या तुम मुझे भूल तो नहीं गए?" उसने थोड़ी काँपती हुई, लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा,

"क्या हम एक पल अकेले में बात कर सकते हैं?" उसके हर शब्द में एक जादू था, जो मन और तन दोनों को खींच रहा था। वह इंतज़ार कर रही थी, राजवीर के जवाब का, उसकी आँखों की प्रतिक्रिया का, और शायद... उसके दिल के कमज़ोर पलों का!

राजवीर को लगा कि स्थिति ख़तरनाक है। उसने जल्दी से आर्या को आवाज़ दी, "आर्या, अंदर जाओ और चाहे कुछ भी हो जाए, बाहर मत आना।" उसकी आवाज़ में चिंता थी। आर्या ने एक पल के लिए उसकी तरफ़ देखा, लेकिन उसके चेहरे पर राजवीर पर भरोसा साफ़ दिखाई दे रहा था। वह बिना कुछ कहे घर के अंदर चली गई।

सर्पकला धीमे कदमों से आगे बढ़ी और राजवीर के सामने रुक गई। उसकी आँखों में एक अलग ही भाव था, प्यार, नफ़रत और गहरी चाहत, सब एक साथ।

राजवीर एक पल के लिए चुप रहा, लेकिन फिर शांति से बोला, "आओ, लेकिन मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन में क्या है, सर्पकला। मुझे फिर से बेवकूफ़ बनाने की कोशिश मत करना।"

वह मुस्कुराई और उसे पास वाले पेड़ों के पीछे ले गई। बाकी लोग उनके पीछे जाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सर्पकला ने हाथ उठाकर उन्हें रोक दिया। "यह हमारी निजी बातचीत है," उसने कहा।

आर्या घर की पिछली खिड़की से चुपके से राजवीर और सर्पकला की बातचीत सुन रही थी।

सर्पकला राजवीर के बहुत करीब आ गई। उसकी नाज़ुक उंगली उसके गालों को छू गई। उसने अपना हाथ उसकी कमर पर रखा और उसे अपने पास खींच लिया। राजवीर ने उसका हाथ हटा दिया और फिर पीछे हट गया। "राजवीर," उसने धीमी आवाज़ में कहा, "तुम अब भी वैसे ही हो, उतने ही सुंदर, उतने ही गुस्सैल, और मैं अब भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ।"

राजवीर ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "मैंने यह पहले भी सुना है, और मैंने इसे पहले भी तुम्हे ना कहा था। मैं तुमसे प्यार नहीं करता, सर्पकला। मेरा दिल तो पहले ही किसीने ले लिया है।"

सर्पकला के चेहरे पर एक दर्द भरा भाव आ गया। लेकिन वह तुरंत ही ठीक हो गया।

"मुझे भी पता है," वह मुस्कुराई,

"लेकिन राजवीर, क्या तुम जानते हो? सहस्त्रपाणि तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। वह तुम्हें मार डालेंगे। तो फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते? हम साथ चलेंगे, कहीं दूर। मैं तुम्हें आर्या को छोड़ने के लिए नहीं कह रही, लेकिन उसके मरने के बाद तुम मेरे साथ चलोगे, है ना? सहस्त्रपाणि पहले उसे मार डालेंगे, फिर उसके जाने के बाद, तुम मेरे साथ ज़रूर रह पाओगे।"

यह सुनकर राजवीर का गुस्सा फूट पड़ा।

"आर्या की मौत? मेरी पत्नी की बलि? यह मुमकिन नहीं है, सर्पकला! तुम मुझे कुछ भी दे दो, लेकिन मैं उस सहस्त्रपाणि को आर्या की जान कभी नहीं लेने दूंगा।"

सर्पकला के चेहरे पर गुस्सा झलक आया। वह झट से आगे झुकी और उसके बहुत करीब आकर बोली, "राजवीर, तुम मुझे फिर से ठुकरा रहे हो। एक बार फिर... और तुम्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।"

सर्पकला इतनी क्रोधित हुई कि वह सीधे घर में घुस गई और आर्या पर झपटने लगी। लेकिन तभी बलदेव छलांग लगाकर उसके सामने आ गया और उसके हमले को रोक दिया।

"मैं तुम्हें आर्या को छूने नहीं दूँगा!" बलदेव दहाड़ा।

सर्पकला ज़ोर से दहाड़कर बलदेव पर झपटी। उसके नाखूनों से बलदेव के हाथ पर गहरे घाव हो गए, लेकिन बलदेव ने उसे पीछे धकेल दिया। दोनों कुछ देर तक वहीं लड़ते रहे, लेकिन अचानक बलदेव का ज़ोरदार वार सर्पकला की बाईं आँख पर लगा। वह दर्द से चीखी और पीछे हट गई। उसके चेहरे से काला खून बहने लगा।

"मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगी, राजवीर! और तुम मूर्ख भेड़िये, तुम बच नहीं पाओगे," वह चिल्लाई। जैसे ही उसे अपने घाव से दर्द होने लगा, वह पीछे हट गई और एक तेज़ आवाज़ के साथ, चमगादड़ में तब्दील होकर वहाँ से उड़ गई।

वहाँ बैठे सभी भेड़िये कुछ पलों के लिए सर्पकलाके जादू में फँस गए, लेकिन जैसे-जैसे उस जादू का असर कम होने लगा, उनके चेहरों का स्तब्ध भाव भी गायब होने लगा। हालाँकि वे उसके रूप के जाल में फँसे कुछ पल गँवा चुके थे, लेकिन अब उन्हें स्थिति का पूरा एहसास हो गया था। सर्पकला न केवल आर्या के लिए, बल्कि पूरे गाँव के अस्तित्व के लिए खतरा थी।

राजवीर और बलदेव ने एक-दूसरे को गंभीर निगाहों से देखा। अब स्थिति और भी जटिल होती जा रही थी। सर्पकला आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थी, और अभी-अभी मिली हार ने उसके अहंकार को और भी ज़्यादा ठेस पहुँचाई थी।

"वह ज़रूर वापस आएगी," बलदेव ने गहरी आवाज़ में कहा, उसके शब्दों में दृढ़ संकल्प और चिंता दोनों साफ़ दिखाई दे रहे थे। राजवीर ने गहरी सोच में अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। सर्पकला ने जो कुछ अभी देखा था, उससे वह और भी ज़्यादा क्रोधित और ख़तरनाक हो जाएगी। वह वापस आएगी, लेकिन इस बार, वह बदला लेने के लिए और भी ज़्यादा ताकतवर होकर आएगी।

"हाँ, लेकिन आर्या अब सुरक्षित है," राजवीर ने आह भरते हुए जवाब दिया। सर्पकला को वापस जाते देख आर्या की आँखें गर्व और प्यार से चमक उठीं। वह चुपचाप राजवीर को देखती रही, वह जानती थी कि वह उसे बचाने के लिए कितनी भी दूर तक लड़ सकता था।

क्रमशः


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