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रक्तपिशाच का रक्तमणि ७६

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ७६

सर्पकला जंगल की ओर भागने  लगी। उसकी एक आँख पूरी तरह से अंधी हो गई थी और वह दर्द से तड़प रही थी। लेकिन उस शारीरिक दर्द से भी ज़्यादा गहरा दर्द उसके दिल का था, राजवीर ने उसे एक बार फिर ठुकरा दिया था। वह एक बड़े पेड़ के तने से टिक गई, अपने दिल में जमे हुए दुख और अपमान से काँप रही थी। उसके गालों पर गरम आँसू बह रहे थे, लेकिन ये आँसू सिर्फ़ दर्द के नहीं थे, बदले की भावना ने उन्हें और भी भयानक बना दिया था।

सर्पकला हाँफती हुई एक बड़े पेड़ के तने पर रुक गई। उसकी साँसें तेज़ थीं, शरीर से पसीना बह रहा था और आँखों में गुस्से की चिंगारियाँ जल रही थीं। उसकी दाहिनी आँख से खून बह रहा था, लेकिन वह दर्द को नज़रअंदाज़ कर रही थी। उसे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ राजवीर द्वारा किए गए अपमान की थी! जिस आदमी को उसने पूरे दिल से अपना माना था, जिसके लिए उसने अपना तन-मन समर्पित कर दिया था, उसने एक बार फिर उसे ठुकरा दिया था।

वह दर्द से कराह उठी, मुट्ठियाँ भींच लीं और ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से वार करने लगी। उसके शरीर की हर कोशिका क्रोध और बदले की आग में जल रही थी। वह धीरे से उठी और एक पेड़ के तने से टिक गई। "मुझे क्या हुआ था?" उसने खुद से पूछा। उसकी घायल आँख अब लाल हो गई थी, धीरे-धीरे काला खून बह रहा था, लेकिन अपमान के दर्द के आगे वह दर्द भी कम लग रहा था। अचानक उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान आ गई।

"राजवीर," उसने धैर्य खोते हुए कहा, "तुमने मुझे ठुकरा दिया है, लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें ऐसे ही छोड़ दूँगी? मैं तुम्हें या तो अपना बना लूँगी। वरना, मैं तुम्हें और उस आर्या को भी मार डालूँगी!"

उसने अपना हाथ उठाया और उसकी उंगली में जादुई अंगूठी चमकने लगी। अब उसके मन में बस एक ही विचार था, किसी भी कीमत पर राजवीर को पाना। राजवीर ने उसे ठुकरा दिया था, लेकिन अब वह उसे जीतने वाली थी। प्यार से नहीं, तो ज़बरदस्ती से! उसकी अंगूठी से निकलती रोशनी की तेज़ किरणों ने उसे रास्ता दिखाया। वह अपनी दुखती आँखों को अनदेखा करते हुए फिर से उठी और आगे बढ़ने लगी। मानो किसी अजीब सी ऊर्जा ने उसके शरीर को जकड़ लिया हो।

"राजवीर, अब तुम्हारे पास छिपने की कोई जगह नहीं होगी!" वह गुर्राई। "राजवीर मेरा है, मैं उसे पाने के लिए कुछ भी करूँगी। कुछ भी!" वह आसमान की ओर देखते हुए चीखी। उसकी घायल आँखों से एक ठंडी रोशनी चमक उठी। अब पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं था। उसने खुद को संभाला और अँधेरे जंगल की परछाइयों में गायब हो गई। उसका ज़ख्म धीरे-धीरे अपने आप भर रहा था। वह जानती थी कि अब वह फ़िरसे राजवीर के गाँव लौट आएगी।

गाँव में, राजवीर और उसके दोस्त पूरी तरह सतर्क थे। बलदेव ने घर के आसपास पहरा बढ़ा दिया था। "वह वापस आएगी," उसने राजवीर की ओर देखते हुए कहा। "मैंने उसकी आँखों में न सिर्फ़ गुस्सा देखा, बल्कि एक पागल सी ज़िद भी देखी। वह नहीं रुकेगी।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है," राजवीर ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया। "जब तक वह वापस नहीं आ जाती, वह नहीं रुकेगी। लेकिन हम उसे कोई मौका नहीं देना चाहते।"

सभी पुरुष घर के सामने खड़े थे, अँधेरा छा रहा था। और फिर, मानो उनके डर को मूर्त रूप देने के लिए, सर्पकला गाँव में फिर से प्रकट हुई।

वह वापस आ गई थी, और भी ज़्यादा भयंकर, और भी ज़्यादा क्रूर। आँखों के चारों ओर काले घेरे होने के बावजूद, उसकी खूबसूरती ज़रा भी कम नहीं हुई थी। वह घर के सामने स्थिर खड़ी रही, और राजवीर उसे देखते ही आगे बढ़ा।

"राजवीर," वह धीरे से मुस्कुराई, लेकिन उस मुस्कान में कोमल प्रेम नहीं था, वह जानलेवा थी। "आखिरी बार सोच लो। तुम अब भी मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर सकते हो। मुझे वो दर्द मत दो जो मैं नहीं चाहती। अभी देर नहीं हुई है।"

राजवीर कुछ कह पाता, इससे पहले ही बलदेव अंदर आ गया। "तुम यहाँ फिर से क्यों आई हो? हम तुम्हारे साथ कोई सौदा नहीं करेंगे।"

सर्पकला के चेहरे पर तिरस्कार का भाव आ गया। वह एक कदम आगे बढ़ी और ठंडे स्वर में बोली, "अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो मैं सहस्त्रपाणि के पास चली जाऊँगी। मैं उसे रक्तमणि का रास्ता दिखाऊँगी!"

राजवीर के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। "तुम्हें पता ही नहीं है कि रक्तमणि कहाँ है," उसने हसीसे जवाब दिया।

सर्पकला ज़ोर से हँसी। "तुम्हें तो यही लगता है! लेकिन मैंने कल तुम्हारी बात सुनी, राजवीर। तुमने खुद अपने दोस्तों से बात करते हुए कहा था कि रक्तमणि सहस्त्रपाणि के सिंहासन के नीचे सुरक्षित है। अब मैं इसे राज़ रख सकती हूँ, या जाकर सहस्त्रपाणि को बता सकती हूँ।"

राजवीर के चेहरे पर बेचैनी फैल गई। उसने सोचा था कि रक्तमणि सुरक्षित है, लेकिन अगर सहस्त्रपाणि को इसके बारे में पता चल गया और उसने इसे फिर से छिपा दिया, तो उसे मारना नामुमकिन हो जाएगा।

"अब तुम्हारा क्या फैसला है, राजवीर?" सर्पकला की आवाज़ में एक विजयी स्वर था। "मेरे साथ आओ, आर्या को पीछे छोड़ दो, और हम हमेशा के लिए साथ रहेंगे।"

राजवीर ने उसे सख्ती से देखा। "चाहे तुम कितनी भी धमकियाँ दो, चाहे तुम कितनी भी कोशिशें करो, मैं अपने फैसले पर अडिग हूँ। मैंने आर्या के साथ जीवन बिताने का फैसला कर लिया है। और अगर तुम सहस्त्रपाणि को बताना चाहती हो कि रक्तमणि कहाँ है, तो जाओ। मुझे परवाह नहीं।"

सर्पकला के चेहरे पर गहरा गुस्सा झलक रहा था। वह हाथ में एक चमकदार साँप जैसी जंजीर लिए काँपने लगी। "तो आर्या को मरना ही होगा!" वह चीखी और आर्या की ओर दौड़ी।

हालाँकि, वह सफल नहीं हो सकी। इस बार, बलदेव फिर से तैयार था। जैसे ही उसने अपनी तलवार घुमाई, सर्पकला उसके वार से बचने के लिए पीछे मुड़ी। लेकिन इसी अफरा-तफरी में, एक वार उसकी पहले से ही घायल आँख पर लगा। वह दर्द से चीख पड़ी और उसके चेहरे से फिर से काला खून बहने लगा।

सर्पकला ने एक बार फिर आर्या को मारने की असफल कोशिश की, लेकिन इस बार बलदेव पूरी तरह सतर्क था। उसने जल्दी से अपनी तलवार से उस पर तेज़ी से वार किया। सर्पकला पलटी और वार से बचने की कोशिश की, लेकिन उसका पहले से ही खून से लथपथ चेहरा तलवार से बुरी तरह घायल हो गया।

उसकी घायल आँख पर फिर से चोट लगी और वह दर्द से चीख पड़ी। एक तीखी, दर्दनाक चीख हवा में गूँज उठी। उसके घाव से गहरा बैंगनी खून टपक रहा था। दर्द की लहरें उसके शरीर को झकझोरने लगीं। उसकी आँखों में अँधेरा छा गया और एक पल के लिए उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। संघर्ष करते हुए, वह थोड़ा पीछे हटी। उसने अपनी उँगलियों से जादुई अंगूठी को कसकर पकड़ रखा था ताकि वह गिर न जाए।

"मैं वापस आऊँगी!" वह दहाड़ी, उसकी आँखें अपमान और दर्द से जल रही थीं। "आज नहीं, राजवीर, पर मैं तुम्हें पकड़ूँगी और इस आर्या को खत्म किए बिना चैन से नहीं बैठूँगी!"

उसने पागल साँप की तरह अपना सिर नीचे कर लिया और ज़मीन पर लेटते ही उसने अपने शरीर को एक लंबे, ऐंठते साँप में बदल दिया। अपने घायल शरीर के बारे में सोचे बिना, वह आगे बढ़ी और तेज़ी से अँधेरे की ओर बढ़ने लगी। बलदेव ने एक गहरी साँस ली, उसके खून की कुछ बूँदें अभी भी उसकी तलवार की धार पर चमक रही थीं। भेड़ियों ने एक-दूसरे को देखा, लेकिन कोई कुछ नहीं कह सका। राजवीर का चेहरा गंभीर था, सर्पकला उनसे आगे बढ़ रही थी।

राजवीर के दिमाग में विचार उमड़ रहे थे। सर्पकला फिर से उनसे दूर भाग रही थी। राजवीर जानता था कि अगर इस बार उसे नहीं रोका गया, तो वह वापस सहस्त्रपाणि के पास जाकर रक्तमणि का पता बता देगी। उसने मन ही मन जल्दी से कुछ सोचा, उसके छोटे आकार का फायदा उठाकर उसे फँसाना ज़रूरी था। वह तेज़ी से आगे बढ़ा और उसकी आँखों में एक चमक आ गई। उसका ध्यान घर के दरवाज़े के सामने रखी बड़ी बाँस की टोकरी पर गया।

सर्पकला साँप का रूप धारण करके रेंगती हुई जंगल की ओर बढ़ रही थी। तभी राजवीर बिजली की तरह आगे बढ़ा। बिना एक पल भी हिचकिचाए, उसने टोकरी उठाई और साँप पर फेंक दी। साँप का शरीर ऐंठ गया था। वह टोकरी में फँस गया था, उसने छूटने की बहुत कोशिश की, लेकिन टोकरी के तंग आवरण और उसके छोटे शरीर ने उसकी गति को रोक दिया। वह उस लंबे साँप के शरीर में अटक गई थी, वह बाहर निकलना चाहती थी मगर उस छोटे सांपमेंसे बाहर निकलना मुश्किल हो गया था।

राजवीर शांत था। उसने धीरे से मुड़कर बलदेव की ओर देखा और कहा, "अब यह हमारे हाथ में है। हमें इस मुसीबत का अंत करना ही होगा।" बलदेव ने सहमति में सिर हिलाया, लेकिन वह साँप शांत बैठने वाला नहीं था, वह अभी भी छटपटा रहा था, उसका मायावी जादू सांप के शरीर में होने के कारण कुछ देर तक काम नहीं कर रहा था, लेकिन वह कभी भी फिर से शुरू हो सकता था। उसकी गहरी आँखों में तीव्र घृणा चमक रही थी।

क्रमशः

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