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रक्तपिशाच का रक्तमणि ५५

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ५५


जब आर्या और बलदेव जंगल से चले गए, तो राजवीर वहीं तड़पता हुआ खड़ा था। उसका पूरा शरीर काँप रहा था, हाथों की नसें फूल रही थीं, और आँखें और भी लाल हो गई थीं। उसे कुछ चाहिए था, खून! लेकिन उसके सामने खड़े छाया सैनिक उसके किसी काम के नहीं थे। उनमें न खून था, न मांस, वे तो बस अँधेरे से बनी खोखली परछाइयाँ थीं।

"बलदेव..." वह चिल्लाया। वह उसकी पकड़ से छूट गया था। वह आर्या को लेकर भाग गया था। उसे बलदेव चाहिए था। रक्तमणि के श्राप ने उसे अपने कब्जे में ले लिया था। कहीं अंदर ही अंदर, उसका मन अभी भी उसे नुकसान पहुँचाने के विचार से जूझ रहा था। बलदेव... उसे बलदेव पर ज़रा भी दया नहीं आ रही थी।

भूख बढ़ती जा रही थी। उसकी आत्मा सचमुच संघर्ष कर रही थी। उसकी रगों में आग फैल रही थी, उसके पेट में अँधेरा बढ़ रहा था।

तभी, दुर्मद और क्रूरसेन उसके सामने प्रकट हुए।

"राजवीर..." दुर्मद की आवाज़ धीमी और रहस्यमयी थी। वह थोड़ा आगे बढ़ा और राजवीरके सामने एक ताँबे का कटोरा थाम दिया।

"यह लो। इससे तुम्हारी प्यास बुझ जाएगी।"

राजवीर ने कटोरा नाक से लगाया और उसे सूंघा। ताज़े खून की गंध! उसके मुँह में पानी आ गया।

"यह किसका खून है?" वह किसी तरह पूछ पाया।

क्रूरसेन धीरे से मुस्कुराया। "तुम्हें इसके बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम बस पी लो। अपने शरीर को जो चाहिए वो लेने दो।"

राजवीर का मन अभी भी लड़खड़ा रहा था। लेकिन खून की गंध उस पर हावी हो रही थी। आखिरकार, भूख ने उस पर जीत हासिल कर ली। उसने कटोरे का सारा खून एक ही घूँट में पी लिया।

एक पल में, उसके शरीर में एक ऊर्जा का संचार हुआ। वह एक बार फिर ताकतवर महसूस करने लगा। उसकी आँखें और भी लाल हो गईं, उसके पूरे शरीर में ताकत उमड़ पड़ी।


दुर्मद ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "क्या तुम ऐसे ही प्यासे की तरह भटकते रहोगे, तुम चाहो तो तुम ये सब आरामसे हासिल कर सकते हो?"

क्रूरसेन आगे बढ़ा और बोला, "हम तुम्हारे मित्र हैं, राजवीर। हम तुम्हें सब कुछ दे सकते हैं। क्या तुम्हें और कुछ चाहिए? शक्ति? रक्त? सत्ता ? हम तुम्हें सब दे सकते हैं।"

राजवीर ने चिंतित नज़रों से उनकी ओर देखा। "मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस इस श्राप को दूर करना चाहता हूँ!"

दुर्मद मुस्कुराया। "वह भी दूर हो जाएगा। लेकिन उसके लिए तुम्हें हमारे गुरुजी से मिलना होगा। सहस्त्रपाणि तुम्हें वह उत्तर देंगे जो तुम चाहते हो।"

राजवीर हिचकिचाते हुए पीछे हट गया। वह जानता था कि सहस्त्रपाणि उसका शत्रु है। लेकिन रक्तमणि के प्रभाव से उसका मन कमज़ोर हो गया था। आर्या उससे दूर थी और यह सब बलदेव की वजह से था, इसलिए वह बलदेव से नाराज़ था।

"नहीं... मैं नहीं जाऊँगा।"

क्रूरसेन ने दूसरा ताँबे का कटोरा उसके सामने रख दिया। "इसमें से थोड़ा और ले लो। फिर देखो कैसे तुम्हारे मन का सारा भ्रम दूर हो जाता है।"

राजवीर ने कटोरा ले लिया। एक पल के लिए उसने खुद को संभालने की कोशिश की। लेकिन वह फिर हार गया। उसने खून के कटोरे में से एक और घूँट पी लिया।

और फिर सहस्त्रपाणि के प्रति उसकी नफ़रत कम होने लगी। उसके मन में एक अजीब सी शांति छाने लगी। श्राप का असर गहराता जा रहा था।

"अच्छा... मैं उससे मिलना चाहता हूँ।" राजवीर के मुँह से ये शब्द निकल पड़े।

दुर्मद और क्रूरसेन ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए। "तो चलो, अब तुम्हारी यात्रा एक नए रास्ते पर शुरू हो गई है।"

और राजवीर, जिसने सहस्त्रपाणि से युद्ध करने का निश्चय किया था, अब उसकी ओर बढ़ रहा था......

जब राजवीर ने सहस्त्रपाणि के किले में कदम रखा, तो पूरे वातावरण में एक रहस्यमयी माहौल था। किले की दीवारें काली, पत्थर की और अनोखी नक्काशी से तराशी हुई थीं। चारों ओर केवल अंधकार था, मानो प्रकाश ने कभी इस जगह को छुआ ही न हो। वह अभी भी उलझन में था, लेकिन रक्तमणि का असर उस पर हावी हो रहा था।

किले के भीतरी कमरेमें, सहस्त्रपाणि एक बड़े सिंहासन पर बैठा हुआ था। उसकी आँखें गहरी काली थीं, और उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। उसके एक हाथ में एक चमकीला चंद्रमणि था, और दूसरे हाथ में भारी मणिबंध से बना एक राजदंड।

"आखिरकार तुम आ ही गए..." सहस्त्रपाणि ने धीमी आवाज़ में कहा।

राजवीर सतर्क था। "आखिर तुम मुझसे क्या चाहते हो?"

सहस्त्रपाणि हल्के से मुस्कुराए। "बस एक छोटी सी चीज़... रक्तमणि। तुम इसे मुझे दे दो और मैं तुम्हें जीवन में जो कुछ भी चाहिए वो सब दे दूँगा।"

राजवीर एक पल के लिए रुका। "तुम मेरे जीवन से क्या चाहते हो?"

सहस्त्रपाणि उसे देखता रहा।

"हाँ, राजवीर, अब तुम इस श्राप के गुलाम हो। धीरे-धीरे तुम्हारे अंदर का राक्षसी स्वभाव तुम्हारी मानवता को नष्ट कर देगा, और फिर तुम्हारे प्रियजन तुम्हारे हाथों मारे जाएँगे। आर्या क्या सोचेगी? वह अब भी तुम पर विश्वास करती है। लेकिन जब उसे पता चलेगा कि तुम अब एक क्रूर राक्षस बन गए हो, तो वह हमेशा के लिए तुमसे दूर हो जाएगी।"

राजवीर ने उसे ऐसे देखा जैसे सदमे में हो। "आर्या का ज़िक्र मत करो! मैं तुम्हारे मुँह से उसका नाम भी नहीं सुन सकता।" उसकी आवाज़ थोड़ी कड़वी हो गई।

सहस्त्रपाणि धीरे से मुस्कुराया, "अगर तुम उसे बचाना चाहते हो, तो मुझे वह रक्तमणि दे दो। फिर तुम पहले जैसे ही रहोगे। वरना, तुम जल्द ही एक क्रूर, अमानवीय प्राणी में बदल जाओगे।"

राजवीर के मन में एक युद्ध छिड़ गया। एक तरफ रक्तमणि का असर उसे खा रहा था, तो दूसरी तरफ उसे आर्या और अजन्मे बच्चे की याद आ रही थी।

उसने आँखें बंद कर लीं। आर्या का मुस्कुराता हुआ, प्रेममय रूप उसकी आँखों के सामने प्रकट हुआ। उसने उस पर अटूट विश्वास किया था। बलदेव ने कई बार अपनी जान जोखिम में डाली थी। और अब वही बलदेव उसके हाथों मारा जाएगा?

"मुझे... मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए।" उसने आखिरकार कहा।

सहस्त्रपाणि ने आँखें थोड़ी सिकोड़ीं और उसकी ओर देखा। "ठीक है, मैं तुम्हें दो दिन का समय देता हूँ। उसके बाद, तुम्हें कोई ना कोई निर्णय लेनाही होगा।"

सहस्त्रपाणि ने एक सेवक को बुलाया और आदेश दिया, "राजवीर को पहाड़ पर बने विश्रामगृह में ले जाओ। उसे सारी सुविधाएँ दो।"

राजवीर ने बिना कुछ कहे सेवक के साथ जाने का फैसला किया। वह अभी भी असमंजस में था। रक्तमणि को अपनी जेब में कसकर पकड़े हुए, वह सहस्त्रपाणि के किले के एक दालान में चला गया।

लेकिन उसे नहीं पता था कि यह सिर्फ़ विश्राम नहीं, बल्कि एक अंतिम परीक्षा थी...

राजवीर के जाने के बाद, दुर्मद ने सहस्त्रपाणि की ओर देखा और पूछा,

"वह अब हमारे हाथ में है, तो क्यों न हम उसे मार डालें? वह अकेला है, अब उसके साथ कोई नहीं है। अगर वह ज़िंदा रहा, तो वह हमारे लिए फिर से ख़तरा बन सकता है। यह जानते हुए भी आप उसे मौक़ा क्यों दे रहे हो?"

सहस्त्रपाणि धीरे से मुस्कुराया । उनकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी। वह सिंहासन से उठा और धीरे-धीरे दुर्मद के पास पहुँचा।

"दुर्मद , तुम इस अँधेरी दुनिया में बहुत समय से रह रहे हो, लेकिन तुम अभी तक रक्तमणि की असली ताकत को नहीं समझ पाए हो।" उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा।

"अगर हम राजवीर को उसकी इच्छा के विरुद्ध मार भी दें, तो भी हमें रक्तमणि नहीं मिलेगी। उसे हमें उसकी इच्छा से ही सौंपना होगा। अन्यथा, हमें उसकी शक्ति नहीं मिलेगी और वह फिर से हमारे विरुद्ध उठ खड़ा होगा। रक्तमणि केवल एक पत्थर नहीं है; यह एक अलग शक्ति का वाहक है।

जब तक यह उसके शरीर पर है, वह आंशिक रूप से नहीं तो कम से कम उसके प्रभाव में तो है ही। और जैसे ही वह अपनी इच्छा से रक्तमणि छोड़ेगा, वह पहले जैसा कमज़ोर हो जाएगा। फिर उसे पहले जैसा एक साधारण पिशाच बनाया जा सकता है।"

सहस्त्रपाणि ने अपने हाथ में भारी राजदंड उठाया और उसके सिरे पर लगे नीले-चमकते पत्थर को छुआ, और आगे कहा,

"और जब वह पूरी तरह कमज़ोर हो जाएगा, तो हम उसे अपने अंधकार के पिंजरे में कैद कर देंगे। उसे अपने भीतर के अंधकार से लड़ने दो। वह अब इंसान नहीं रहा, लेकिन राक्षस भी नहीं। हम उसे उस अर्ध-जीवन में फँसाए रखेंगे। एक बार जब रक्तमणि हमारे हाथ में आ जाएगा, तो हम उस रक्तमणि को उसकी मूल जगह पर, अनंत अंधकार में रख देंगे। तब वह सिर्फ़ हमारे काम आएगा। और राजवीर ?"

सहस्त्रपाणि ने ठंडे स्वर में कहा, "वह अपनी जगह पहुँच जाएगा। हमारे अंधकार की उस गहराई में, जहाँ से कोई कभी नहीं बच पाया।"

दुर्मद ने सहस्त्रपाणि की ओर देखा। उसके चेहरे पर सम्मान और भय का मिश्रण दिखाई दिया। "तो हम बस इंतज़ार करेंगे?"

सहस्त्रपाणि मुस्कुराए। "हाँ, दुर्मद। अब बस इंतज़ार करना है। क्योंकि रक्तमणि ही अब अपना काम कर रहा होगा।"

क्रमशः


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