भाग १००
जैसे ही खंजर आर्या की गर्दन में घुसा, उसके शरीर से खून बहने लगा। वह ज़मीन पर गिर पड़ी, गाँव में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, मानो समय भी एक पल के लिए रुक गया हो। सहस्त्रपाणि के चेहरे पर एक घिनौनी खुशी चमक उठी, उसे जीत का भ्रम हो रहा था। उसके लिए, यह सिर्फ़ एक स्त्री का मृत्यु नहीं था, बल्कि भविष्य में आने वाले एक संभावित संकट का पूर्णतः नाश था। सहस्त्रपाणि के चेहरे पर विजय की एक अव्यक्त मुस्कान चमक उठी।
"शत्रु का नाश हो गया!" वह दहाड़ा, और सैनिकों को अपने पीछे खड़ा करके, वह गाँव से निकल गया। उसके कदमों में गर्व था, लेकिन उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि जो उसने ख़त्म किया है, वह असल में ख़त्म नहीं हुआ है, यह तो बस एक रहस्य फिरसे पलकने लगा था। धरती पर हार की परछाई अभी भी काँप रही थी, लेकिन सहस्त्रपाणि के हृदय में अब बस एक ही भावना थी "शक्ति,” अपार शक्ति"।
उसे लग रहा था कि अब उसे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन वह नहीं जानता था कि यह तो बस शांति का दिखावा है, असली तूफ़ान तो अभी आना बाकी है। जैसे-जैसे खून की एक-एक बूँद ज़मीन में मिलती गई, ज़मीन के नीचे से एक नई ऊर्जा उभरने लगी, जो सहस्त्रपाणि की विनाशकारी विजय को भी नष्ट कर देने वाली थी।
कुछ ही क्षणों बाद, घर की दहलीज़ पर एक सफेद लौ प्रकट हुई, महाभूषण। वही महाभूषण जिसे सहस्त्रपाणि ने कई दिनों तक किले में कैद रखा था। अँधेरे से बचकर वह सीधे आर्या के घर पहुँच गया था। जैसे ही उसने उसका खून से लथपथ शरीर देखा, उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
महाभूषण उस ठहरे हुए क्षण में रुक गया। घर का वातावरण मृत सन्नाटे से भर गया था, मानो समय एक क्षण के लिए रुक गया हो। आर्या उसकी आँखों के सामने ज़मीन पर औंधे मुँह पड़ी थी, उसके सफ़ेद कपड़ों पर लाल खून के धब्बे थे। उस दृश्य ने एक क्षण के लिए उसकी साँस भी रोक दी। इस स्त्री का गर्भ केवल एक शिशु नहीं था, वह शक्ति का एक बीज था, जो विनाश और सृजन की सीमा पर खड़ा था। महाभूषण का मन एक ही विचार से भ्रमित था, यह अंत है या आरंभ?
वह धीरे-धीरे उसके पास गया और घुटनों के बल बैठ गया। उसके हाथ आर्या की नाड़ी को छूने की कोशिश कर रहे थे। कुछ पलों के बाद, कुछ शांत साँसों के बाद, उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक आ गई, नाड़ी अभी भी चल रही थी। वह जीवित थी! कमज़ोर और क्षीण, लेकिन उसके अंदर अभी भी कुछ धड़क रहा था। महाभूषण के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने उसे उठाया, हल्के से उसके बालों में हाथ फेरा और कहा।
"यह अंत नहीं है, आर्या... तुम्हारा युद्ध शुरू होने वाला है।"
"आर्या!" उसने धीरे से उसकी गर्दन से सहस्त्रपाणि वाला खंजर निकाला और अपना वस्त्र फाड़कर उसके घाव पर बाँध दिया। लेकिन खून बहुत ज़्यादा बह रहा था। उसे एहसास हुआ कि समय बहुत कम है।
महाभूषण के हाथ काँप रहे थे, लेकिन उनके जप में एकाग्रता थी। वह अपने ज्ञान के दायरे से ऊपर उठ गए और एक प्राचीन और अत्यंत दुर्लभ मंत्र का जाप शुरू किया, ऐसा मंत्र जो केवल अर्ध-मृत प्राणी को ही जीवन के कगार से वापस ला सकता था। आर्या का चेहरा शांत था, मानो उसके शरीर से प्राण निकल रहे हों। लेकिन उसके माथे से पसीने की धार बह रही थी, और उसकी साँसें, हालाँकि बहुत धीमी थी, महाभूषण के मंत्रोच्चार के साथ ही चल रही थीं।
उस क्षण, मानो समय रुक गया हो, या मानो भाग गया हो। महाभूषण ने अपना वस्त्र उसके घाव पर और कसकर बाँधा और आर्या के माथे पर हाथ रखकर आँखें बंद कर लीं। उसके मन में बस एक ही विचार था,
"तुम्हें जीवित रहना ही होगा... क्योंकि तुम्हारे बच्चे की साँसें इस सृष्टि के भविष्य की आखिरी उम्मीद हो सकती हैं।" वातावरण में ऊर्जा की एक लहर उठी। एक क्षण के लिए, आर्या का शरीर एक मंद प्रकाश से चमक उठा... और महाभूषण की आँखों में नई चमक आ गई, क्योंकि उस प्रकाश में उसे एक नए जीवन की लहर महसूस हो रही थी।
महाभूषण घर से बाहर भागे, उनके हाथ खून से सने थे, लेकिन उनके चेहरे पर कोई डर नहीं था, यह बस एक ज़रूरी लक्ष्य था। बाहर पहुँचते ही उन्होंने ज़ोर से चिल्लाया। कुछ ही क्षणों में, गाँव की अनुभवी महिलाएँ, जिन्होंने कई बच्चों को जन्म दिया था, दौड़ती हुई उनके पास आईं।
"उसे बचाना ज़रूरी है... अभी..." महाभूषण ने काँपती आवाज़ में कहा। आर्या की हालत को देखते हुए, जो सात महीने की हो चुकी थी, उन्हें लगा कि अब बच्चे को बाहर निकालने का सही समय आ गया है। महिलाओं ने एक-दूसरे को देखा और बिना किसी हिचकिचाहट के अंदर दौड़ पड़ीं।
आर्या बेहोश हो चुकी थी, लेकिन उसकी धीमी साँसें अभी भी जीवन का संकेत दे रही थीं। महिलाओं ने जल्दी से उसकी जाँच की।
"सात महीने बीत गए हैं और बच्चा बाहर आने को तैयार है," एक बुढ़िया ने गंभीर स्वर में कहा, समय बहुत कम था। वे जल्दी से तैयारी में लग गईं। गर्म पानी, साफ़ कपड़े, औषधीय जड़ी-बूटियाँ तैयार करना... घर के दरवाज़े के बाहर खड़ा महाभूषण सब कुछ देख रहा था। उसकी आँखों में बेबसी थी, पर एक उम्मीद भी थी, कि यह बच्चा, जिसके पास ब्रह्मांड की रक्षा का रहस्य था, अब जन्म लेने वाला है... वो भी अँधेरे में रोशनी की किरण बनकर।
औरतें गर्म पानी के बर्तन लेकर आईं। एक ने आर्या के माथे पर गीला कपड़ा रखा, दूसरी ने उसके पेट पर काँपता हुआ हाथ रखा। मौसम बिगड़ता जा रहा था।
अचानक, गाँव में एक अजीब सी ठंड फैल गई। आसमान कड़ाही की तरह काला हो गया, मानो सूरज डूब गया हो। पेड़ों की शाखाएँ एक अनजानी हवा में काँपने लगीं, पक्षी अपने घोंसलों से निकलकर असमंजस में आकाश में उड़ने लगे। हवा पल-पल तेज़ होती जा रही थी, यह सिर्फ़ हवा नहीं थी, बल्कि उसमें कुछ भयावह, जीवंत था। पूरे गाँव में धूल के बवंडर उठने लगे। लोग दरवाज़े बंद करने लगे, लेकिन दरवाज़े अपने आप खुलने लगे, खिड़कियों के शीशे टूट गए।
अचानक, आसमान में ज़ोरदार गड़गड़ाहट हुई और गाँव के बीचों-बीच बिजली गिरी। ज़मीन काँप उठी। जब गाँव वालों ने बिजली की चमक को देखा, तो उनकी आँखों के सामने एक अजीब सी लालिमा छा गई, मानो धरती के गर्भ से कोई प्राचीन, अज्ञात शक्ति उभर रही हो। गाँव का माहौल अब शांत नहीं, बल्कि उथल-पुथल का पूर्वाभास दे रहा था, तूफ़ान सिर्फ़ हवा में नहीं था, बल्कि सृष्टि के सार को भेदने की कोशिश कर रहा था।
आर्या की हालत गंभीर हो गई। महिलाओं ने अपना संयम बनाए रखते हुए, गिले कपड़ेसे उसके पेट पर हल्की गर्मी की परत चढ़ाई। उसके गले में नए कपड़े लपेटे गए, लेकिन खून बहना बंद नहीं हुआ।
तभी, घर के पास भेड़िये के कदमों की आहट सुनाई दी। दरवाज़ा खोलकर, राजवीर और उसके युद्ध के लिए तैयार साथी अंदर दाखिल हुए। आर्या की हालत देखकर उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह जल्दी से घर में घुसा और पागलों की तरह आर्या को ढूँढ़ने लगा।
"क्या वो ज़िंदा है?" वह चीखा। महाभूषण ने उसे रोका और कहा,
"मैं उसके बच्चे को बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। समय बहुत कम है!"
राजवीर गुस्से से आगबबूला हो गया।
"आर्या को बचाना चाहिए था! तुमने बच्चे पर ध्यान क्यों दिया?" वह चिल्लाया, महाभूषण को उठाकर दीवार पर पटकने की कोशिश की। लेकिन तभी आशय वहाँ पहुँच गया और राजवीर को चुप रहने को कहते हुए बीच-बचाव करने लगा।
"राजवीर, पहले ये देखो। आर्या ने इस बच्चे के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है... हमें उसका फैसला मानना ही होगा।"
राजवीर की आँखों में आँसू आ गए। तभी घर के अंदर वाले कमरे से एक मीठी सी आवाज़ आई, एक बच्चे के रोने की पहली आवाज़। सबका ध्यान उसी तरफ गया। राजवीर पागलों की तरह कमरे में भागा।
उस कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर उसने देखा, एक बूढ़ी औरत की गोद में, एक प्यारा सा, गोरी त्वचा वाला, नीली आँखों वाला बच्चा फूट-फूट कर रो रहा था। बच्चे के चेहरे पर एक दिव्य चमक थी।
राजवीर ने धीरे से बच्चे को उठाया और अपनी छाती से लगा लिया, उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं। उसे याद आया, आर्या ने उस पर कितना भरोसा किया था, और अब यह बच्चा उसका अपना था।
"देखो आर्या," उसने कहा, "हमारा बच्चा, हमारी विरासत।"
उसने बच्चे को वापस उस औरत को सौंप दिया और आर्या के पास दौड़ा। आर्या अभी भी खून से लथपथ थी। उसकी आँखों में कोमलता थी। लेकिन उसका शरीर थक चुका था। वह बोल नहीं पा रही थी, लेकिन उसका चेहरा कह रहा था
"बच्चे का ख्याल रखना।"
राजवीर ने उसका हाथ थाम लिया। आशय और बलदेव उनके पीछे खड़े थे, मानो वे उस पल के साक्षी हों।
आर्या की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं।
क्रमशः
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