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रक्तपिशाच का रक्तमणि १०२

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग १०२

ज़िंदगी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखती। हर पल आगे बढ़ना ही उसकी नियति है। आर्या के जीवन में जो कुछ भी हो रहा था, वह अब मानवीय सीमाओं से परे था। वह अब सिर्फ़ आर्या नहीं थी, वह एक अद्भुत शक्ति थी, जो राजवीर के काटने के बाद उसके शरीर में पनप रही अज्ञात ऊर्जा के साथ एक ऐसे रूप में प्रकट हो रही थी जिसे पहले और भी रहस्यमय और असंभव माना जाता था।

उसकी हर साँस, हर धड़कन अब एक नई ऊर्जा पैदा कर रही थी, जो विनाशकारी भी हो सकती थी और रक्षक भी। उसके आस-पास की दुनिया उसके साथ बदल रही थी, और उस परिवर्तन को रोकने वाला कोई नहीं बचा था। वह अब एक अलग शक्ति बन चुकी थी, उग्र, अलग और समझ से परे।

दूसरी ओर, आँगन के एक कोने में राजवीर और बलदेव खामोश खड़े थे। उनके चेहरे स्याह थे। उनकी आँखों में संदेह और भय साफ़ दिखाई दे रहा था। आशय ज़मीन पर बैठे, एकटक ज़मीन को घूर रहा था। उसके मन में बस एक ही विचार था, बेबसी का वह पल, जब उस औरत की जान आर्या के हाथों से जा रही थी और वह कुछ नहीं कर पाया।

उस क्षण, उसे स्पष्ट रूप से एहसास हुआ कि उसकी सभी शक्तियों की सीमाएँ हैं। उसका पूरा अस्तित्व उस एक पल में मानो खो गया था। उसके सामने, एक इंसान को एक पिशाच द्वारा मारा जा रहा था। उसकी जान जा रही थी। वह दर्द, वह अधूरापन उसके दिल में गहराई तक जड़ें जमा चुका था। उसकी आँखों के सामने बस एक ही दृश्य था, वह औरत, जिसकी जान जा रही थी और वह कुछ नहीं कर पा रहा था। उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। उसके दिल में बस एक बेबसी का एहसास था।

उस पल, आर्या अलग लग रही थी। उसके चेहरे पर कोई उलझन नहीं थी, बल्कि एक शांत, लेकिन रहस्यमय संतुष्टि का प्रतिबिंब था। उसने अपने हाथ पर गिरे खून को अपनी जीभ पर लिया, मानो वह किसी पुरानी पहचान को फिर से खोज रही हो। खून का स्वाद न केवल उसे तृप्त कर रहा था, बल्कि उसके अंधेरे, विस्मृत पक्षों को जगा रहा था।

आँखें बंद करके, उसने एक गहरी साँस ली, और उसी क्षण उसकी आत्मा में कुछ गहरा, अनजाना खुल रहा था। यह रक्त अब उसके लिए सिर्फ़ एक शारीरिक ज़रूरत नहीं थी, यह उसके नवजात अस्तित्व का प्रमाण था, उसके भीतर की उस अँधेरी शक्ति की पहचान, जिसका जागना अब अपरिहार्य था।

राजवीर उसके पास गया। उसकी आँखों में अभी भी चिंता और प्यार था।

राजवीर: (धीमी आवाज़ में) "आर्या... तुम यहाँ कब से खड़ी हो? खुद को इतना मत थकाओ कि तुम्हारा शरीर पूरी तरह थक जाए।"

आर्या: (जंगल की ओर गौर से देखते हुए) "मेरे अंदर जो कुछ भी हो रहा है... वह मुझे शांत नहीं बैठने दे रहा है।"

राजवीर: (थोड़ा आगे आकर) "मुझे पता है। लेकिन इससे लड़ना ज़रूरी है। अंदर जो जागृत हुआ है, वह सिर्फ़ ताकत नहीं है, यह एक प्यास है, आर्या। यही तुम्हें पिशाचों की ओर खींचती रहेगी।"

आर्या: (उसकी ओर मुड़ते हुए, आँखें चमकाते हुए) "और अगर मैं उस प्यास को और चाहूँ तो क्या होगा? अगर वह शक्ति मुझे पूर्णता दे दे तो क्या होगा? राजवीर, जब से मैं इस रूप में आयी हूँ, पहली बार, मैं खुद को संपूर्ण महसूस कर रही हूँ, कमज़ोर नहीं, डरा हुआ नहीं, बल्कि सक्षम।"

राजवीर: (गंभीर होते हुए) "आर्या, काबिल होने का घमंड और पिशाच होने की हवस एक ही राह पर चलते हैं। मैंने अपने ज़माने में अपने अंदर इसका अनुभव किया है। अगर उसने तुम्हारा दिल जीत लिया, तो तुम अपनी इंसानियत खो दोगी। हम सब तुम्हारे लिए लड़े, लेकिन तुम्हें तय करना होगा कि तुम क्या बनना चाहती हो।"

आर्या: (आह भरते हुए, लेकिन थोड़ी कड़वाहट से मुस्कुराते हुए) "मुझे माफ़ करना राजवीर। लेकिन तुम उस पल में मेरे साथ थे, जब मैं मौत के कगार पर थी। जहाँ सब कुछ खत्म सा लग रहा था। तुम्हारी ताकत ही थी जिसने मुझे उस अंधेरे से बाहर निकाला। अब, अगर मैं इस शक्ति को दूर धकेल दूँ, तो मुझे लगता है कि मैं फिर से शक्तिहीन हो जाऊँगी।"

राजवीर: (धीमी आवाज़ में) "लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूँ, है ना? ताकत सिर्फ़ अंदर ही नहीं होती... कभी-कभी हाथ में हाथ डालकर चलने वाले इंसान में भी होती है।"

आर्या कुछ देर बिना कुछ बोले उसे देखती रही। लेकिन उसकी आँखों में अब वो पुरानी पहचान नहीं रही थी।

आर्या की आँखों में सिर्फ़ शक्ति की नहीं, बल्कि पागलपन भरी, समझ से परे की चमक थी। उसकी हरकतों, साँसों और पूरी शारीरिक भाषा में कुछ बेचैनी और असंतुलन था। आशय दूर से सब कुछ देख रहा था। कुछ देर चुप रहने के बाद, उसने सख्ती से कहा।

"वह अब एक ख़तरा बनती जा रही है।" उसकी आवाज़ में कोई झिझक नहीं थी, बस एक हक़ीक़त का एहसास था।

"अगर उसकी यह चाहत, यह पिशाच शक्ति, यूँ ही बढ़ती रही, तो एक दिन यह यहाँ सबको तबाह कर देगी। और उस पल के आने से पहले, हमें इससे लड़ना होगा। और मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूँ।" उसकी बातें सुनकर, आसपास का माहौल और भी गमगीन हो गया।

हालाँकि, राजवीर के शरीर में खून का ज्वार उमड़ पड़ा। वह पल भर में आशय के सामने खड़ा हो गया, उसकी नज़रें उस पर टिकी थीं। उसकी आवाज़ में काँप नहीं थी, बल्कि एक दृढ़ता थी।

"नहीं!" उसने बस इतना ही कहा। फिर गहरी साँस लेते हुए उसने आगे कहा,

"अभी भी समय है। आर्या अभी भी हमारी है। भले ही उसके अंदर की शक्ति अलग हो, भले ही उसका व्यवहार अजीब हो, वो अब भी वही है... आर्या। वो मुझ पर भरोसा करेगी, और मैं उसे रोकूँगा। उसे शांत किया जा सकता है, रास्ता दिखाया जा सकता है। आख़िरकार, ये हमारे प्यार की लड़ाई है, और मैं उसे प्यार से वापस लाऊँगा। हथियार तो आखिरी सहारा होते हैं... वो समय अभी नहीं आया है।" आशय ने एक पल के लिए उसकी तरफ़ देखा, फिर नज़रें फेर लीं और चुप हो गया, शायद उसमें भी थोड़ा विश्वास बचा हुआ था।

राजवीर ने आर्या को एक अँधेरे कमरे में बंद कर दिया। उस कमरे के दरवाज़े पर उसने एक बहुत ही प्राचीन और शक्तिशाली मंत्र-युक्त हथियार रखा था, जिसे सिर्फ़ उसकी शक्ति से ही हिलाया जा सकता था। बाहर से, कमरा अभेद्य लग रहा था। लेकिन राजवीर जानता था कि यह सुरक्षा सिर्फ़ थोड़े समय के लिए ही थी। क्योंकि आर्या अब एक साधारण स्त्री नहीं रही थी, उसकी रगों में अब आदिम पिशाचों का खून बह रहा था। वह न सिर्फ़ शक्तिशाली थी, बल्कि उसके खून में पनप रही अज्ञात शक्ति उसका रूप भी बदल रही थी।

वह जानता था कि कमरा, चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, आर्या के भीतर से फूट रही शक्ति के लिए एक अस्थायी अवरोध ही बनेगा। फिर भी, उसे थोड़ा और समय चाहिए था, उसके बाहर आने से पहले कुछ निर्णायक कदम उठाने के लिए। इसीलिए उसने कमरे को न सिर्फ़ एक जेल की तरह, बल्कि अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए एक विलंबकारी तंत्र के रूप में भी इस्तेमाल किया।

तभी, महाभूषण उनके पास पहुँचे। उन्होंने सबके चेहरों को देखा और गंभीर स्वर में कहा, "इस सारे शोरगुल में तुम एक बात भूल रहे हो। राजवीर का बच्चा..."

राजवीर जल्दी से उठ खड़ा हुआ। "हाँ! वह बच्चा अभी भी गद्दे पर पड़ा हुआ था!"

वह नीचे की ओर भागा और वहाँ, एक कोने में, उसे एक नन्हा बच्चा दिखाई दिया। नीली आँखें, चाँद सी चमक रही थीं। बच्चा उसकी गोद में आ गया, और पूरा माहौल स्तब्ध रह गया। बच्चा रो रहा था, भूखा था। लेकिन आर्या कमरे में बंद थी। उसे आर्या के हात देना ख़तरनाक था।

उन्होंने पास की एक गाय का दूध गर्म किया और उसे गरम करके बच्चे को दिया। कुछ ही देर में बच्चा शांत हो गया।

लेकिन उसी समय, आर्या ने कमरे में ज़ोर-ज़ोर से धमाका करना शुरू कर दिया। वह कमरे का दरवाज़ा तोड़कर बाहर आई। आँखें लाल, चेहरा विकृत क्रोध से भरा हुआ था।

आशय धनुष लिए सामने खड़ा हुआ, जैसे ही वह अपने धनुष की डोरी खींचने वाला था, आर्या एक ही पल में उसके पास पहुँच गयी, इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, उसके चेहरे पर एक ज़ोरदार मुक्का पड़ा। आशय दूर जाकर निचे गिरा, उसका धनुष एक तरफ़ गिर गया।

एक बार फिर, आर्या उस पिशाच शक्ति के साये में चली गयी थी ... और अब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है।

क्रमशः

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