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रक्तपिशाच का रक्तमणि १०३

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग १०३

धीमी रोशनी वाले कमरे के बाहर, आशय एक कोने में अपनी चोटों का इलाज करते हुए लेटा था। उसका धनुष दूसरे छोर पर बहुत दूर जा कर गिरा था, वह असहाय होकर आर्या को घूर रहा था। कमरे में बंद आर्या, कैद से छूटने के बाद पहली बार पूरी तरह गुस्से में थी। उसका चेहरा लाल था, उसकी आँखें अंगारों की तरह थीं। उसमे एक अलग ही शक्ति आ गई थी, न पूरी तरह से स्त्री, न पूरी तरह से पिशाच।

आर्या की निगाहें आसपास की परछाइयों में घूम रही थीं, मानो किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में हों जो उसके भीतर के तूफ़ान का जवाब दे सके। लेकिन जहाँ उसकी निगाहें आखिरकार रुकीं, वहाँ राजवीर था, दीवार के पास सावधानी से खड़ा, उसके चेहरे पर अपराध का भाव दिख रहा था । उसकी उपस्थिति ने आर्या के भीतर के द्वंद्व को भड़का दिया। वह तेज़ी से मुड़ी, और उसके पैर उसकी ओर बढ़ने लगे। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था, सिर्फ़ एक पागल सा गुस्सा, मानो उसने अपनी मौत को गले लगा लिया हो, लेकिन किसी ने उसे अनिच्छा से उससे बाहर खींच लिया हो।

"तुम ही क्यों? तुम ही क्यों?" उसने तीखी आवाज़ में कहा।

"तुमने ऐसा क्यों किया? मुझे कमरे में क्यों बंद कर दिया?" उसकी आवाज़ में दुःख और गुस्से का ऐसा मिश्रण था कि आस-पास का माहौल एक पल के लिए मानो ठहर सा गया।

राजवीर ने उसके गुस्से भरे सवालों का जवाब देने की कोशिश नहीं की। उसकी आँखों में बस एक गहरी समझ और गहरा अफ़सोस साफ़ दिखाई दे रहा था। उन आँखों में कोई तर्क नहीं था, कोई औचित्य नहीं। बस एक एहसास था, कि उसने जो किया वो सही था, लेकिन उसके नतीजे आर्या के दर्द में झलक रहे थे। आर्या की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वो रोने से कोसों दूर थी।

"पहली बात तो ये कि मेरी मौत का कोई मतलब था... और तुमने उसे छीन लिया! अब मैं कौन हूँ? तुमने मुझे ये आधी ज़िंदगी दी, न मरने का गम , न जीने की ख़ुशी ... और अब तुम मुझे खुलकर साँस भी नहीं लेने दे रहे?" लेकिन राजवीर वहीं खड़ा रहा। उसके होंठ बंद थे, उसकी आँखों में गहरा दर्द था और वो उसके हर सवाल के लिए ज़िम्मेदार था... और शायद, हर दर्द का जवाब भी।

उसी पल, बलदेव सावधानी से आगे बढ़ा। उसके चेहरे पर चिंता और बेबसी साफ़ झलक रही थी। उसने अपनी आवाज़ में यथासंभव कोमलता लाते हुए आर्या को शांत करने की कोशिश की,

"आर्या... रुको। शांत हो जाओ। हम सब तुम्हारे साथ हैं। हमें यह सब समझना होगा... साथ मिलकर।" लेकिन ये शब्द उसके कानों तक नहीं पहुँचे। उसकी आँखों में अब सिर्फ़ खून था, उसकी साँसें पत्थर की तरह भारी हो गई थीं। उसके आस-पास की ऊर्जा ने घर की हवा को अँधेरी और गर्म बना दिया था। वह फिर चीखी, तीव्र, उग्र और दर्द से भरी उसकी चीख थी।

बलदेव की आँखों के सामने उसका रूप साफ़ दिखाई दे रहा था, एक शांत स्त्री से एक पिशाच शक्ति में वह बदल रही थी। उसका क्रोध उसके अंदर जमा हुई बेबसी और अब तक सहे गए दर्द के विस्फोट जैसा था। बलदेव पीछे हट गया, यह महसूस करते हुए, यह वह आर्या नहीं थी जिसे वह अब तक जानता था।

कमरे में सन्नाटे का एक गहरा पर्दा फैल गया, आर्या के शरीर से उठती काली ऊर्जा, उसकी आँखों में लाल रोशनी और हवा में छाई बेचैनी। लेकिन उसी क्षण, एक आवाज़ गूँजी, जो बाकी सब से बढ़कर थी, एक बच्चे के रोने की आवाज़। वह मासूम, पवित्र आवाज़ मानो अँधेरे को चीरती हुई आ रही थी। एक पल के लिए लगा जैसे समय थम सा गया हो। आर्या की आँखों की भयावह चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी। सिर्फ़ एक याद नहीं, बल्कि उसके मन में एक गहरा एहसास उमड़ पड़ा, मातृत्व का। जिस बच्चे के लिए उसकी सारी आंतरिक शक्तियाँ जागृत हो गई थीं, अब वह सचमुच उसकी उपस्थिति महसूस कर सकती थी।

वह धीरे से उस आवाज़ की ओर मुड़ी, उसकी चाल में अब भी संदेह की एक परत थी, लेकिन उसके नीचे एक आंतरिक लालसा थी, एक माँ के हृदय की। उसके पैरों तले ज़मीन का अँधेरा मिटने लगा, मानो उसके कदमों के पीछे से रोशनी फिर से उभर रही हो। जैसे ही उसने अपने सामने पड़े कम्बल में हिलते-डुलते उस नन्हे जीव को देखा, उसके चेहरे पर आश्चर्य और नमी से भरी शांति फैल गई। उसके दिल में उमड़ता क्रोध का तूफ़ान उस एक चीख़ में घुल गया। उसे याद आया... हाँ, उसने कुछ समय पहले एक बच्चे को जन्म दिया था। यह सिर्फ़ एक बच्चा नहीं था, यह उसका अपना खून था, उसका जीवन था, उसका उत्तर था। और उस एक पल में वह फिर से आर्या बन गई... एक माँ।

राजवीर और बलदेव उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे, उनकी आँखों में चिंता और डर साफ़ दिखाई दे रहा था। लेकिन वह उनकी ओर देखे बिना सीधे आगे बढ़ गई। उसके हर कदम में एक दृढ़ संकल्प था, मानो उसके भीतर के उथल-पुथल ने अब दिशाहीन क्रोध की जगह प्रेम का एक नया रूप धारण कर लिया हो। राजवीर के स्पर्श ने उसे थोड़ा झकझोरने की कोशिश की, लेकिन उसने उसका हाथ हटा दिया, न उसमें ज़बरदस्ती थी, न क्रोध; बस एक कोमल विचार था। वह धीरे-धीरे बच्चे के पास पहुँची। सफ़ेद कपड़ों में लिपटे उस नाज़ुक जीव को देखते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए, जिसकी सिसकियों ने मानो एक पल के लिए पूरी दुनिया को रोक दिया हो।


वह चुपचाप ज़मीन पर बैठ गई। उसकी हरकतें एक माँ जैसी सहजता से भरी थीं। बच्चे को गोद में उठाते हुए उसके चेहरे पर जो कोमल प्रेम झलक रहा था, वह उस युगपुरुष के रहस्य से भी ज़्यादा सिहरन पैदा करने वाला था। जैसे ही उसने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया, उसे ऐसे जकड़ लिया जैसे साँस ले रही हो, मानो वह न सिर्फ़ उसकी माँ हो, बल्कि उसकी रक्षक भी हो। उसने उसे स्तनपान कराना शुरू किया, और उस क्षण मानो समय रुक गया। वह स्थान अब सिर्फ़ एक माँ के प्रेम का साक्षी था, जहाँ कोई आसुरी शक्ति, श्राप या युद्ध का भय नहीं पहुँच सकता था। राजवीर और बलदेव अवाक रह गए, उस दृश्य के सामने दोनों ही बहुत छोटे लग रहे थे।

उस स्पर्श का प्रभाव चमत्कारी था। जैसे ही बच्चे ने उसके स्तन को छुआ, आर्या की रक्त की चमक एक-एक करके उसके शरीर से निकलने लगी। उसका रूप मानवीय हो गया। उसकी आँखों की लाली गायब हो गई, उसकी त्वचा स्वस्थ हो गई, उसने खुलकर साँस ली... पहली बार, शांति और प्रेम से।

आशय और महाभूषण, जो दूर खड़े थे, यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए। यह बालक केवल बालक नहीं था, उसमें कुछ असाधारण था। यदि उसके स्पर्श मात्र से पिशाच को शांत किया जा सकता, तो यह शक्ति विनाश के लिए नहीं... बल्कि सृजन के लिए, नव सृजन के लिए होती, यह वे स्पष्ट करने में सफल रहे थे। आर्या अपने हृदय से एक बार फिर आर्या बन चुकी थी। मानव। एक ममतामयी माँ।

उधर, सहस्त्रपाणि अपने किले में पहुँच चूका था। उसके चेहरे पर विजय की मुस्कान थी, लेकिन वह मुस्कान ज़्यादा देर तक मधुर नहीं रह पाई । उसका एक गुप्तचर पीछे से दौड़ा और उसके कान में कुछ फुसफुसाया। सहस्त्रपाणि के चेहरे का रंग उड़ गया।

"क्या कह रहे हो? आर्या मरी नहीं है? और राजवीर ने उसे पिशाच बना दिया?" उसने हैरानी से पूछा। गुप्तचरों ने सिर हिलाया।

"हाँ, महाराज। और उसने एक पुत्र को भी जन्म दिया है।"

"यह असंभव है!" सहस्त्रपाणि की आवाज़ चारों ओर गूँज उठी, और एक क्षण में सब कुछ शांत हो गया।

उसके चेहरे का विषाद अब एक भयभीत राक्षस में बदल गया था। उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं, उसके होठों के कोनों से धधकती आग की तरह साँसें निकल रही थीं। वह अपने सिंहासन से जासूस की ओर झुका और हाथ उठाकर फिर पूछा,

"मैंने उसकी लाश देखी! खून से लथपथ, बेजान... तो यह कैसे संभव है? उसे किसने ज़िंदा किया?" उसके शब्द खुद को यकीन दिलाने की एक नाकाम कोशिश लग रहे थे, एक राजा जो अपनी सर्वशक्तिमानता पर इतना विश्वास करता था कि सच सामने आने पर भी उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं था। जासूस चुपचाप खड़ा था, और उसकी आँखों में साफ़ दिख रहा था, वह समझ सकता था, लेकिन उसे यकीन नहीं था कि सहस्त्रपाणि उसकी बातें समझ पायेगा।

लेकिन सच्चाई सामने थी। आर्या ज़िंदा थी। उसका बच्चा ज़िंदा था। और उसके अस्तित्व के साथ, अब ब्रह्मांड के भविष्य का एक नया अध्याय लिखा जा रहा था।

क्रमशः


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