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रक्तपिशाच का रक्तमणि १५

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग १५

त्रिकाल की क्रूर हँसी किले की दीवारों से गूँज रही थी। आर्या एक अँधेरे कमरे में बंद थी, उसका मन भय और आशा के बीच उलझा हुआ था। उसे पूरा विश्वास था कि राजवीर आकर उसे बचा लेगा। दूसरी ओर, त्रिकाल ने अपने सभी साथियों को राजवीर और उसके दोस्तों के किले में घुसने की किसी भी कोशिश को नाकाम करने के लिए तैयार रखा था।

राजवीर, कबीर, विराट और वक्रतुंड किले के नजदीक पहुँचे और हमले की योजना बनाई। "हमें एक तेज़ और निर्णायक हमला करना होगा," राजवीर ने कहा। "आर्या वहाँ है, लेकिन त्रिकाल उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचने देगा, क्योंकि वह हमारे लिए उसने बनाया हुआ बस एक जाल है।"

"हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे," विराट ने दृढ़ता से कहा। "हम आर्या और इस गाँव के लिए अपनी जान भी दे देंगे।"

उन्होंने रात के घने अंधेरे में किले पर हमला किया। वक्रतुंड ने किले का मुख्य द्वार तोड़ दिया, और साथ ही कबीर और विराट ने दुश्मन के पहरेदारों को गुमराह कर दिया।

वक्रतुंड ने किले का मुख्य द्वार खोलने के लिए अपनी चतुराई का इस्तेमाल करने का फैसला किया। उन्होंने किले के क्षेत्र का बारीकी से निरीक्षण किया और महसूस किया कि द्वार के पास पहरेदारों को चकमा देने के लिए उन्हें कुछ अलग करना होगा। वह एक लंबे मोड़ से होते हुए पीछे की ओर गए, जहाँ किले की दीवार में एक कमज़ोर जगह थी।

वहाँ, उन्होंने अपनी तलवार से एक हल्की सी आवाज़ पैदा की, जिससे पहरेदारों का ध्यान भंग हो गया। जैसे ही पहरेदार उस दिशा में मुड़े, वक्रतुंड ने मौके का फायदा उठाया। वह सावधानी से आगे बढ़े और मुख्य द्वार तक पहुँच गए। दरवाजे के किनारे लगे गुप्त लीवर का इस्तेमाल करके उन्होंने बड़े साइड वाले दरवाजे को खोल दिया।

जैसे ही दरवाजा ज़ोर से खुला, उन्होंने इशारा किया, "राजवीर, समय हो गया है! अंदर आ जाओ!" वक्रतुंड की चाल से मुख्य द्वार खुल गया और राजवीर और उसके साथी त्रिकाल से निर्णायक युद्ध के लिए तैयार होकर किले में प्रवेश कर गए।

राजवीर एक लंबी छलांग लगाकर किले में दाखिल हुआ, उसकी आँखों में आर्या को बचाने का दृढ़ संकल्प साफ़ दिखाई दे रहा था।

"राजवीर, क्या तुम्हें लगता है कि तुम मुझे हरा सकते हो?" त्रिकाल की आवाज़ ठंडी और क्रूर थी। वह राजवीर के सामने खड़ा हो गया , उसके साथी उसके पीछे तैयार खड़े थे।

"तुम आर्या को छोड़ दो," राजवीर ने माँग की। "तुम्हारा अंत निकट है।"

"मेरा अंत? तुम बड़े विश्वास से बोल रहे हो, राजवीर," त्रिकाल ने उत्तर दिया।

"और मैं तुम्हारे इन सीधे-सादे दोस्तों को देख रहा हूँ। ये हमारी क्रूर सेनाओं के सामने कब तक टिक पाएँगे?"

युद्ध तेज़ हो गया। कबीर और विराट ने त्रिकाल के साथियों को रोकने की कोशिश की। उन्होंने अपनी पूरी ताकत से उन्हें रोके रखा, लेकिन त्रिकाल के साथियों की ताकत अमानवीय थी। विकराल ने कबीर पर भीषण प्रहार किया। कबीर आखिरी क्षण तक लड़ता रहा, लेकिन उसकी जान चली गई।

"कबीर!" विराट ज़ोर से चिल्लाया, लेकिन उसके पास रुकने का समय नहीं था। उसने एक ही छलांग में विकराल पर हमला कर दिया और उसे रोक दिया। विराट ने अपनी पूरी ताकत से विकराल को मारने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा।

विकराल और विराट के बीच मुकाबला बेहद घमासान था। विराट की हर चाल विकराल की ताकत के आगे फीकी पड़ गई। विकराल ने उसे बुरी तरह पीटा था; उसके शरीर पर जगह-जगह चोटें लगी थीं, फिर भी विराट ने हार नहीं मानी। वह लड़खड़ाता हुआ खड़ा रहा, उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प था।

"भले ही आज मेरा अंत हो जाए, मैं तुम्हें आसानी से जीतने नहीं दूँगा," विराट दहाड़ा।

विकराल गुस्से से विराट की ओर झपटा। तभी विराट ने ज़मीन पर गिरी एक बड़ी लकड़ी की कील उठाई और उसे कसकर अपने हाथ में पकड़ लिया। विकराल उस पर कूद रहा था, और विराट ने कील को सीधा पकड़ रखा था। कील तेज़ी से आगे बढ़ते विकराल के सीने में धँस गई।

विराट ने अपनी बची हुई सारी ताकत जुटाई और कील को विकराल के सीने में और गहराई तक दबा दिया। विकराल के मुँह से एक भयानक चीख निकली, उसका शक्तिशाली शरीर कमज़ोर होने लगा। कुछ ही पलों में, विकराल ज़मीन पर गिर पड़ा, अब वह पूरी तरह से बेजान हो चूका था।

उसका शरीर धीरे-धीरे हवा में लुप्त होने लगा। विकराल का पूरा शरीर हवा में घुल गया था और विराट के सामने सिर्फ़ एक कंकाल दिखाई दे रहा था।

विराट थककर ज़मीन पर गिर पड़ा, लेकिन उसके चेहरे पर जीत का संतोष झलक रहा था। "आज एक राक्षस कम हो गया," वह धीरे से बुदबुदाया।

उसी समय, अकराल ने विराट पर हमला कर उसे मार डाला। राजवीर ने यह सब देखा, लेकिन आर्या को बचाने के लिए उसे आगे बढ़ना पड़ा। "मैं तुम्हारा बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दूँगा," उसने मन ही मन कहा।

राजवीर का सामना त्रिकाल से हुआ। उनकी शक्तियों में टकराव हुआ। हर प्रहार और जवाबी प्रहार से पूरा किला हिल रहा था। राजवीर ने अपनी पूरी ताकत जुटाई और त्रिकाल की शक्ति को चुनौती दी।

आर्या, जो अभी भी अपने कमरे में फँसी हुई थी, आवाज़ सुनकर सतर्क हो गई। "राजवीर आ गया है," उसने मन ही मन कहा। वह उसकी मदद करने की हर संभव कोशिश कर रही थी, लेकिन वह अभी भी फँसी हुई थी।

"अपनी सारी ताकत के बावजूद, त्रिकाल, तुम हार जाओगे," राजवीर ने कहा। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास और गुस्सा दोनों थे।

"तुम्हें अभी तक मेरी ताकत का अंदाज़ा नहीं है," त्रिकाल ने जवाब दिया और उसने एक ज़ोरदार हमला किया। राजवीर ने हमले को चकमा दिया और त्रिकाल के चेहरे पर ज़ोरदार वार किया।

राजवीर ने आख़िरकार एक पल के लिए त्रिकाल को कमज़ोर कर दिया और तेजी से उस पल आर्या के कमरे का दरवाज़ा तोड़ दिया। "आर्या, जल्दी आओ, यहाँ से निकल जाओ," उसने कहा।

आर्या ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगी, राजवीर।"

"तुम्हें सुरक्षित रहना होगा," राजवीर ने कहा। "कबीर और विराट ने हम दोनों के लिए अपनी जान दी है। हम उन्हें निराश नहीं कर सकते।"

कबीर और विराट की बात सुनकर आर्या के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। आख़िरकार, आर्या एक बार राजवीर की बात से सहमत हो गई।

किले के अँधेरे माहौल में, वक्रतुंड और आर्या किले के मुख्य द्वार की ओर बढ़ रहे थे। आर्या के चेहरे पर थोड़ी बेचैनी थी, लेकिन उसने अपना संकल्प और भी मज़बूत कर लिया था। "मेरा फ़ैसला नहीं बदलेगा। मैं राजवीर को नहीं छोड़ूँगी," उसने वक्रतुंड से कहा।

वक्रतुंड ने उसे शांत करने की कोशिश की, "तुम सही रास्ते पर हो, आर्या। राजवीर और त्रिकाल के बीच युद्ध में ज़्यादा उलझना हमारे लिए ख़तरनाक हो सकता है। हम अकेले उससे नहीं लड़ पाएँगे।"

आर्या क्रोधित और थोड़ी परेशान हुई, "यह मेरा फ़ैसला है, वक्रतुंड। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उसे तब तक अकेला नहीं छोड़ूँगी जब तक वह नहीं आ जाता।" वह वक्रतुंड के सामने से हटकर किले के द्वार में वापस आ गई।

अब राजवीर और त्रिकाल के बीच द्वंद चल रहा था। जैसे ही राजवीर ने आर्या को फिर देखा, वह गुस्से से चिल्लाया। "आर्या, यहाँ से निकल जाओ," उसकी आँखें बहुत तेज़ लग रही थीं। आख़िरकार, उसने अपना इरादा बदला और बाहर जाने के लिए मुड़ी।

आर्या वहाँ से थोड़ी तेज़ी से चली गई, लेकिन उसी समय त्रिकाल ने मानो मौके का फ़ायदा उठाते हुए राजवीर के शरीर पर एक ज़ोरदार मुक्का मारा। त्रिकाल ने अपना सारा क्रोध और शक्ति राजवीर के सिर पर एक ज़ोरदार मुक्का मारकर दिखाई। मुक्का इतना ज़ोरदार था कि राजवीर सदमे में ज़मीन पर गिर पड़ा। उसका दिमाग गहरे अँधेरे में खो गया।

आर्या ने निराशा से पीछे मुड़कर देखा, लेकिन उसी क्षण उसके हृदय में एक गहरा, स्तब्ध कर देने वाला एहसास हुआ। राजवीर जिस स्थिति में था, उसमें वह त्रिकाल की आँखों से उसकी गन्दी इच्छाशक्ति का अंदाज़ा लगा सकती थी।

अंततः आर्या और वक्रतुंड राजवीर को छोड़कर किले से बाहर आ गए, लेकिन वे उदास थे। कबीर और विराट का बलिदान उनके लिए एक वरदान बन चूका था, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करें।

"क्या हम त्रिकाल की क्रूरता का अंत कर सकते हैं?" आर्या ने दृढ़ता से कहा।

"हमें कबीर और विराट के लिए, और अपने गाँव के लिए यह करना ही होगा।"

"राजवीर अब हमारे साथ नहीं है। हम उसे कैसे हराएँगे?" वक्रतुंड डरते हुए उससे बात कर रहा था।

आर्या उनके बगल में खड़ी थी, उसकी आँखों में राजवीर का चेहरा झलक रहा था। "मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी, राज," उसने कहा।

"अब मुझे देखना होगा कि इस लड़ाई का अंत कैसे किया जाए।"

किले से निकलते ही उन्हें एहसास हुआ कि राजवीर अब त्रिकाल के साथ है और उस पर वह और भी क्रूरता से हमला करेगा। लेकिन वक्रतुंड और आर्या को समझ नहीं आ रहा था कि अपने दोस्तों के बलिदान का सम्मान करने के लिए वे आगे क्या कर सकते थे।

क्रमशः 

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