भाग १७
गाँव में शाम हो चुकी थी। सूरज क्षितिज के पीछे डूब रहा था और हवा में ठंडक थी। पिशाच शिकारी के रूप में प्रसिद्ध आशय गाँव लौट आया था। उसके चेहरे पर उसका आत्मविश्वास झलक रहा था, लेकिन उसकी आँखें बेचैनी से भरी थीं। राजवीर उसका घनिष्ठ मित्र था, और आशय को आभास हो गया था कि उसके साथ कुछ बुरा हुआ है।
गाँव पहुँचते ही वह पुरानी हवेली में पहुँचा, जहाँ उसने वक्रतुंड और आर्या को देखा। उन दोनों के चेहरों पर चिंता देखकर उसे एहसास हुआ कि स्थिति गंभीर है। आशय ने सीधे पूछा,
"राजवीर कहाँ है? और तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
आँखों में आँसू लिए खड़ी आर्या ने कहा, "तुम कौन हो, हम राजवीर के मित्र हैं।"
"राजवीर... त्रिकाल की हिरासत में है। वह उसे अपने गुरु के पास ले जाने वाला था।"
यह सुनकर आशय स्तब्ध रह गया। उसके मन में एक तूफ़ान उठा। वह एक पल के लिए ठिठक गया, फिर बोला, "यह सब कैसे हुआ? त्रिकाल राजवीर तक कैसे पहुँचा?"
"त्रिकाल और उसके दोस्तों ने गाँव पर हमला किया था और आर्या को ले गए थे। राजवीर और मैं उसे बचाने त्रिकाल के किले में गए थे। हमारे दो करीबी दोस्त मारे गए थे और राजवीर भी उनके कब्जे में चला गया।" वक्रतुंड एक ही साँस में बोल पड़ा।
"अगर उसे त्रिकाल और उसके दोस्तों ने पकड़ लिया, तो अब तक मार दिया गया होगा। तुमने मुझे पहले क्यों नहीं खबर की?" आशय ने थोड़ा चिढ़कर कहा।
"हमें नहीं पता था कि तुम कहाँ हो, राजवीर ने बस एक बार तुम्हारा ज़िक्र किया था और वह तुमसे मिलने के लिए तरस रहा था। हमने राजवीर को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन त्रिकाल और उसके दोस्तों की ताकत के आगे हम बेबस थे।" वक्रतुंड ने जवाब दिया।
आशय ने गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ खींच लीं। "तुमने राजवीर को अकेला क्यों छोड़ दिया? उसने तुम्हारे लिए कितना कुछ किया था, और तुमने उसे त्रिकाल के चंगुल में मरने दिया?"
आर्या ने उदास होकर कहा, "हमने कोशिश की, आशय। लेकिन त्रिकाल इतना शक्तिशाली है कि उसे हराना नामुमकिन है। और अब वे अपने गुरुवर्य तक पहुँच गए हैं। हमें वह जगह भी नहीं पता। अगर हम दोबारा वहाँ गए, तो सब लोग भयानक मौत से मरेंगे।"
आशय ने गहरी साँस ली। उसका दिमाग़ तेज़ी से दौड़ रहा था। राजवीर के बारे में सोचकर उसका मन दर्द से भर गया, लेकिन वह हक़ीक़त के सामने डटा रहा। उसने कहा, "अगर वह त्रिकाल के चंगुल में फँस गया है, तो अब उसे बचाना नामुमकिन है। तुम जानते नहीं कि त्रिकाल और उसके साथी कितने क्रूर हैं? उनके सामने अकेले ज़िंदा रहना नामुमकिन है।"
आर्या ने गुस्से से कहा, "लेकिन वह तुम्हारा दोस्त है, आशय! क्या तुम उसे बचाना नहीं चाहते? तुम उसे ऐसे कैसे छोड़ सकते हो?"
"उसे ज़रूर पता होगा कि वह उनसे अकेले नहीं लड़ पाएगा, लेकिन वह तुम्हारे लिए उनके किले में गया, इसका मतलब उसे पता था कि उसके जीवन का अंत आ गया है।" आशय ने अपने गले में जमा गांठ को निगल लिया।
आशय ने आँखें घुमाईं और शांत लेकिन दृढ़ स्वर में उत्तर दिया, "आर्या, एक पिशाच शिकारी के रूप में, मैंने अपने जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियों का सामना किया है। त्रिकाल, विकराल और द्रोहकाल बहुत शक्तिशाली हैं। अगर उन्होंने अभी तक राजवीर को नहीं मारा है, तो उन्होंने उसे अपने गुरुके हिरासत में रखा होगा। उस गुरुकुल में जाना मतलब अपनी मौत को आमंत्रित करने जैसा है।"
वक्रतुंड ने बीच में ही टोक दिया। "लेकिन आशय, क्या तुम कुछ कर सकते हो? तुम्हारे पास कोई योजना ज़रूर होगी। राजवीर हमेशा कहता था कि तुमने असंभव को भी संभव कर दिखाया है।"
आशय ने एक कड़वी मुस्कान दी। "हाँ, लेकिन उस समय मेरे सामने जो चुनौतियाँ थीं, वे अलग थीं। ये तीनों और उनके गुरुवर्य सहस्रपाणि, सिर्फ़ पिशाच नहीं, बल्कि अमरत्व की शक्ति प्राप्त किए हुए प्राणी हैं। और अगर तुम कह रहे हो कि राजवीर उस गुरुकुल में है, तो उसे बचाने के लिए बहुत देर हो चुकी है।"
आर्या ने निराशा में कहा, "तो क्या इसका मतलब है कि हमें राजवीर को छोड़ देना चाहिए?"
आशय एक पल के लिए चुप रहा। उसके मन में एक द्वंद्व चल रहा था एक तरफ उसे राजवीर का प्यार और वफ़ादारी याद आ रही थी, दूसरी तरफ उसे एक भयावह हक़ीक़त का एहसास हो रहा था। आख़िरकार उसने कहा, "हाँ आर्या, कभी-कभी हक़ीक़त को स्वीकार करना ज़रूरी होता है। अगर तुम फिर से उस तरफ़ गए, तो त्रिकाल और उसके साथियों के सामने तुम्हारा कुछ नहीं चलेगा। राजवीर एक योद्धा है, उसने अपनी नियति का सामना ज़रूर किया होगा।"
आर्या और वक्रतुंड आशय के इस फैसले से स्तब्ध रह गए। पिशाच शिकारी के रूप में प्रसिद्ध आशय भी इस युद्ध में भाग लेने को तैयार नहीं था। वक्रतुंड ने आखिरकार जल्दबाजी से पूछा, "आशय, अगर हमें राजवीर के बारे में कोई सुराग मिल जाए, तो क्या तुम हमारी मदद करोगे?"
आशय ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "अगर कुछ और हो सके, तो मैं मदद करूँगा। लेकिन मैं इसके लिए तुम्हारी और अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहता।"
यह कहकर वह गाँव से जाने लगा, लेकिन उसके दिल में राजवीर के लिए एक तरह का अफ़सोस था। उसकी आँखों में उदासी थी, लेकिन उसके कदमों में कोई दृढ़ता नहीं थी।
आर्या वक्रतुंड के सामने आत्मविश्वास से खड़ी रही, उसकी आँखों में ज़िद और दृढ़ संकल्प साफ़ दिखाई दे रहा था। "वक्रतुंड, अगर आशय ने हाथ उठा दिया तो क्या हुआ? उसका फैसला उसका है, लेकिन हम राजवीर को नहीं छोड़ सकते। उसने हम सबके लिए लड़ाई लड़ी है, उसने अपने गाँव के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की। क्या उसे त्रिकाल के चंगुल में मरने देना चाहिए, ये हमारे लिए उचित नहीं है?"
वक्रतुंड ने आर्या के शब्दों की शक्ति को महसूस करते हुए अपना सिर नीचे कर लिया। वह कुछ कहने ही वाले थे, लेकिन आर्या रुकी नहीं। उन्होंने आगे कहा, "त्रिकाल, विकराल और द्रोहकाल सभी शक्तिशाली हैं, यह सच है। लेकिन हमें डरना क्यों चाहिए? अगर हम साथ रहें, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। हमें सहस्त्रापाणि का निवास ढूँढ़ना ही होगा, है ना? तो चलो उसे ढूँढ़ ही लेते हैं! इस युद्ध में हार मानना मेरे खून में नहीं है। और राजवीर के खून में तो बिल्कुल नहीं है!"
वक्रतुंड ने ऊपर देखा, आर्या के चेहरे पर दृढ़ संकल्प देखकर उसका हृदय भी शांत हो रहा था। "तुम सही कह रही हो, आर्या। हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए। हम सब मिलकर सहस्त्रापाणि का निवास ढूँढ़ लेंगे और राजवीर को वापस लाएँगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
आर्या हल्के से मुस्कुराई और सिर हिलाया। अब वह इस युद्ध में और भी दृढ़ थी।
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आशय के गाँव छोड़ने के बाद, अतीत की यादें उसके मन में उभरने लगीं। पहाड़ी रास्ते पर चलते हुए, उसे राजवीर के साथ हुई एक घटना याद आ गई। यह वह समय था जब आशय मगरमच्छ के शरीर में छुपे हुए एक विशाल राक्षस से लड़ रहा था। उस मगरमच्छ राक्षस को हराना लगभग नामुमकिन था। वह अत्यंत शक्तिशाली था और उसके जबड़ों में फँसे व्यक्ति का बचना नामुमकिन था।
उस लड़ाई में, आशय का पैर उसके जबड़ों में फँस गया था। वह उसे पानी के नीचे खींचने ही वाला था। आशय की शक्ति समाप्त हो रही थी, और उसे लग रहा था कि उसकी मृत्यु निकट है। उसने प्रतिरोध करना बंद कर दिया था। तभी अचानक राजवीर ने एक साहसिक निर्णय लिया। अपनी जान जोखिम में डालकर, वह पानी में कूद गया और उस मगरमच्छ राक्षस से टकरा गया।
राजवीर ने मगरमच्छ के जबड़ों में एक बड़ी लकड़ी की कील ठोक दी और उसे आशय को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उस लड़ाई में खुद राजवीर को भी गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन उसने अपने दोस्त को बचा लिया। राजवीर का खून से लथपथ चेहरा और उसका दृढ़ संकल्प आशय की आँखों के सामने साफ़ दिखाई दे रहा था।
उस याद ने आशय को रोक दिया। उसके पैर अचानक अकड़ गए। उसे एहसास हुआ कि जिस आदमी ने मेरे लिए अपनी जान जोखिम में डाली थी, उसे छोड़ना उसके लिए ठीक नहीं था। भले ही उसने अपनी जान गँवा दी थी, लेकिन राजवीर की दोस्ती का कर्ज चुकाने के लिए उसे एक बार फिर उठ खड़ा होना था।
क्रमशः
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