भाग १८
गाँव धीमी गति से आगे बढ़ रहा था। गाँव वाले खुश थे कि लुटेरों का कहर खत्म हो गया, लेकिन कुछ लोगों के दिलों में अभी भी दर्द था। आर्या और वक्रतुंड, दोनों ही राजवीर की अनुपस्थिति से निराश थे। राजवीर की यादें उन्हें शांत बैठने नहीं दे रही थीं। अचानक, एक जाना-पहचाना चेहरा गाँव में फ़िरसे लौट आया, आशय। उसके चेहरे पर चिंता और दृढ़ संकल्प का मिला-जुला भाव था।
आशय के गाँव में दाखिल होते ही लोगों की नज़र उस पर पड़ गई। वह कुछ घंटे पहले ही गाँव में आकर चला गया था। गाँव के कुछ लोगों को पता था कि वह राजवीर के बारे में पूछ रहा है, इसलिए उससे सवाल पूछे गए, कुछ लोगों ने झूठे आरोप लगाए और उसे बदनाम किया, लेकिन आशय ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और न ही किसी को जवाब दिया। उसका उद्देश्य अटल था, राजवीर को वापस लाना। वह सीधा आर्या और वक्रतुंड से मिलने गया।
"आशय!" आर्या ने उसे आश्चर्य से देखते हुए कहा। "तुम फिर आ गए," वह आशय को देखकर बहुत खुश हुई।
"हाँ, मैं आ गया," आशय ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया। "राजवीर अभी भी त्रिकाल की गिरफ़्त में है, और मैं उसे छोड़कर कभी भाग नहीं पाऊँगा। मैं उसे बचाने के लिए आया हूँ, अब पीछे मुड़कर देखने का कोई रास्ता नहीं है।"
आर्या की आँखों में आशा की किरण चमक उठी। "क्या तुम सचमुच उसे बचा लोगे, आशय?"
"हाँ, लेकिन अकेले। मैं तुम दोनों पर कोई संकट नहीं बनाना चाहता, तुम इसी गाँव में रहो," आशय ने दृढ़ता से कहा।
"अकेले?" वक्रतुंड ने कड़वाहट से पूछा। "अगर राजवीर जैसे योद्धा को त्रिकाल और उसके साथियों ने बंदी बना लिया है, तो क्या तुम्हें लगता है कि तुम सब कुछ अकेले कर सकते हो?"
"हाँ, मुझे ऐसा लगता है," आशय ने दृढ़ता से उत्तर दिया। "अगर तुम दोनों मेरे साथ आओ, तो मुझे तुम्हारी रक्षा करनी होगी। तुम्हारी सुरक्षा मेरी ज़िम्मेदारी होगी और मुझे अपनी गति से चलना पसंद है, और तुम्हारा साथ मुझे बहुत धीमा कर देगा।"
"तुम्हे हमें नहीं बचाना है, तुम सिर्फ़ राजवीर को बचा लेना," आर्य ने दृढ़ता से उत्तर दिया।
"आर्या, यह कोई बच्चों का खेल नहीं है," आशय ने उसे समझाने की कोशिश की। "त्रिकाल और उसके साथियों का सामना करने के लिए अनुभव की ज़रूरत होती है। तुममें इतनी ताकत नहीं है, हो सकता है कि वह तुम्हें बंधक बनाकर मुझसे फिर कुछ ले ले। जो राजवीर के लिए भी मुश्किल होगा।
आर्या ने कहा,
"राजवीर हमारे लिए लड़ा, उसने मेरी और गांववालों की रक्षा की। अब में उसके बिना नहीं रह सकती।"
"राजवीर हमारे लिए लड़ा, उसने मेरी और गांववालों की रक्षा की। अब में उसके बिना नहीं रह सकती।"
आशय ने बिना किसी और बातचीत के अकेले जाने का फैसला किया। वह गाँव छोड़ने की तैयारी करने लगा। हालाँकि, वक्रतुंड और आर्या चुपचाप उसके पीछे जाने की योजना बना रहे थे।
आशय ने सहस्त्रपाणी के निवास पर जाने का अंतिम निर्णय लिया और अपनी तैयारी शुरू कर दी। उसने वक्रतुंड को बुलाया और कहा, "मेरे पास कुछ ज़रूरी हथियार हैं, लेकिन मुझे कुछ और चीज़ें चाहिए। क्या मुझे तुम्हारे गाँव से कुछ मदद मिल सकती है?" वक्रतुंड ने सिर हिलाकर जवाब दिया,
"हाँ, मुझे पता है किसके पास क्या मिलेगा।"
वे एक बूढ़े लोहार के पास गए और आशय की तलवार को तेज़ कर दिया । एक लंबा भाला चमड़े की रस्सी से बाँधा ताकि उसे उसकी पीठ पर लटकाया जा सके। वक्रतुंड गाँव के मछुआरे से बाँस का जाल लेकर आया, जबकि आशय ने अपनी फुर्ती के लिए हल्के और सुरक्षित कपड़े पहन लिए। आशय ने कहा, "यह जाल सहस्त्रपाणी के किले में किसी भयानक जानवर का सामना करने में मेरे काम आएगा।"
फिर वक्रतुंड ने घावों पर लगाने के लिए कुछ औषधीय जड़ी-बूटियाँ और मरहम इकट्ठा किया। उसने कहा, "जहाँ सहस्त्रपाणी का प्रभाव होगा, वहाँ विषैला वातावरण होगा, इसलिए वहां ये जड़ी-बूटियाँ काम आएंगी।"
आशय ने सुनार को कुछ चाँदी के सिक्के दिए और उसके बाणों के लिए कई तीर के सिरे बनाए। उसने यह सुनिश्चित किया कि उसके हाथ के धनुष का स्प्रिंग ठीक से काम कर रहा है या नहीं।
"अब सब कुछ तैयार है," आशय ने अपने हथियार का मूठ कसकर पकड़ते हुए कहा। "इसके लिए केवल साहस और योजना की आवश्यकता है, और मैं राजवीर को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।"
"मैं आज रात निकल जाऊँगा," उसने आर्या और वक्रतुंड को अपनी योजना के बारे में बताया।
दोनों ने बस सिर हिला दिया, क्योंकि आशय उनको साथ में ले जाने के लिए तैयार नहीं था।
"अगर वह अकेला चला गया, तो कोई फ़ायदा नहीं होगा," वक्रतुंड ने कहा।
"हाँ, हम उसके पीछे जाएंगे," आर्या ने कहा।
"लेकिन अगर उसे रास्ते में पता चल गया कि हम उसके पीछे हैं, तो वह क्रोधित हो जाएगा और हमें वापस भेज देगा," वक्रतुंड ने चिंतित होकर कहा।
"कुछ नहीं होगा, और अगर उसे दो-तीन दिन बाद पता भी चल गया, तो वह हमें वापस नहीं भेज पाएगा, क्योंकि तब तक हम गाँव से बहुत दूर निकल चुके होंगे।" आर्या ने उसे सकारात्मक रूप से जताया।
दोनों ने भी तैयारी की, कुछ हथियार और खाना पास में रखा और आशय के जाने का इंतज़ार करने लगे।
उस रात, आशय गाँव से निकल गया। अँधेरे में, वह जंगल में समा गया। लेकिन उसके पीछे, परछाईं की तरह, आर्या और वक्रतुंड चुपके से उसका पीछा कर रहे थे। आशय को उनके बारेमे कुछ भी पता नहीं चला।
आशय की यात्रा कठिन थी। सहस्रपाणि के निवास की खोज में, उसे राजवीर द्वारा पूर्व में दी गई जानकारी पर निर्भर रहना पड़ रहा था। उसे एहसास हुआ कि सहस्रपाणि का निवास कुछ रहस्यमय जगह पर था और उसे ढूँढ़ना आसान नहीं था। वह बीच-बीच में रुकता, थोड़ी देर आँखें बंद करता और रास्ते को याद करता। उसकी यात्रा फिर से शुरू हो जाती। उसकी गति बहुत तेज़ थी। और उसका पीछा करते हुए, आर्या और वक्रतुंड दोनों ही समान रूप से थक गए थे।
इस बीच, आर्या और वक्रतुंड दूर से उसका पीछा कर रहे थे। वे सतर्क थे, क्योंकि त्रिकाल के लोग जंगल में कहीं भी छिपे हो सकते थे।
"क्या उसे पता था कि हम उसका पीछा कर रहे हैं?" वक्रतुंड ने पूछा।
"नहीं, लेकिन उसे यह पता न चले तो अच्छा होगा," आर्य ने उत्तर दिया।
जंगल के रास्तों से गुजरते हुए, आशय को कुछ अजीब सी हलचल महसूस हुई। उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है। वह रुक गया और हवा की आवाज़ सुनने लगा, लेकिन आर्या और वक्रतुंड चतुर थे। जब वह रुकता तो वे भी चुपके से रुककर सामने जंगल में झाड़ियों में छिप जाते और कोई आहट न देखकर आशय अपना रास्ता फिर से शुरू कर देता।
"शायद मैं ज़रूरत से ज़्यादा शक कर रहा हूँ," उसने मन ही मन कहा और फिर से चलने लगा।
लेकिन उसे पता नहीं था कि उसका पीछा उसके दोस्त नहीं, बल्कि उसके दुश्मन भी कर रहे थे। त्रिकाल के आदमी जंगल में गश्त लगा रहे थे।
आशय का साये की तरह पीछा करने के बावजूद, आर्या और वक्रतुंड सतर्क थे। उन्हें पता था कि यह कोई निजी फ़ायदे का काम नहीं है। राजवीर को बचाना उनका सबसे बड़ा फ़र्ज़ था। और इसीलिए वे चुपके से आशय का पीछा कर रहे थे।
"चाहे कुछ भी हो जाए, हमें उसे बताना ही होगा कि हम उसके साथ हैं," वक्रतुंड ने कहा।
"हाँ, लेकिन सही समय आने तक इंतज़ार करो," आर्या ने कहा। "जब उसे हमारी मदद की ज़रूरत होगी, हम उसके सामने आएँगे।"
आशय एक जगह रुका और अपनी यात्रा का जायज़ा लिया। वह राजवीर को बचाने के लिए दृढ़ था, लेकिन उसे यह सोचने में परेशानी होने लगी थी कि क्या उसने उसके साथ आर्या और वक्रतुंड को लेकर आना चाहिए था।
उसी समय, आर्या और वक्रतुंड भी अंधेरे के साये में राजवीर को छुड़ाने के बारे में सोच रहे थे।
"हमें सही समय आने तक इंतज़ार करना चाहिए," आर्या ने दृढ़ता से कहा।
अब राजवीर को बचाने की ज़िम्मेदारी उन पर थी, और उन्होंने इसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने का फैसला कर लिया था।
अचानक, कुछ लोग आर्या और वक्रतुंड के सामने आ कर खड़े हो गए। हर एक के हाथ में अलग-अलग दिखने वाले हथियार थे। वक्रतुंड उनका सामना करने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन lउनके विशाल हथियारों के सामने वो शायदही टिक पाता।
क्रमशः
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