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रक्तपिशाच का रक्तमणि १९

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेमकहानी
भाग १९

आशय, वक्रतुंड और आर्या सहस्त्रपाणी के निवास की खोज में जंगल के सबसे घने हिस्से में पहुँच गए थे। आशय अकेला चल रहा था, जबकि आर्या और वक्रतुंड उसके पीछे-पीछे चुपके से चल रहे थे। रास्ते में बीतता हर पल खतरे से भरा था। पेड़ों की छाया में कुछ हिल रहा था, मानो जंगल ही जीवंत हो।

आर्या सतर्क थी, लेकिन वक्रतुंड थोड़ा डरा हुआ था। "क्या हमारा इतने चुपके से आगे बढ़ना उचित है?" वक्रतुंड फुसफुसाया। आर्याने उसे चुप रहने का इशारा किया। आशय अभी भी उनकी उपस्थिति से अनभिज्ञ था, और तेज़ी से आगे बढ़ रहा था।

तभी, आगे घनी झाड़ियों से अजीब-सी आकृतियाँ दिखाई देने लगीं। पेड़ों से दो लंबे और भयानक मानव जैसे राक्षसी जीव निकले। उनके अंग लोहे जैसे मजबूत थे, उनकी आँखें लाल लाल चमक रही थीं, और उनके चेहरों पर एक भयानक विकृत मुस्कान थी। जैसे ही वक्रतुंड ने उन्हें देखा, उसने आर्या को पीछे धकेल दिया और कहा, "तुम पीछे रहो, मैं उनका सामना करूँगा।"

वक्रतुण्ड ने अपना अस्त्र निकाला और राक्षसी जीवों पर आक्रमण कर दिया। किन्तु राक्षस की शक्ति पहले ही प्रहार में प्रकट हो गई। एक जीव ने वक्रतुण्ड को उठाकर दूर फेंक दिया और दूसरे ने उसकी छाती पर बड़े जोर से प्रहार किया। वक्रतुण्ड के मुख से दर्द की चीख निकली और वह भूमि पर गिर पड़ा। यह देखकर आर्या भय से चिल्ला उठी, "वक्रतुण्ड!"

आर्या की आवाज़ सुनकर आशय सतर्क हो गया, जो आगे चल रहा था। उसने मुड़कर देखा तो आर्या पेड़ों के बीच से वक्रतुंड की ओर रोती चिल्लाती हुई भाग रही थी। उसे स्थिति समझने में देर नहीं लगी। वह तुरंत मुड़ा और आर्या और वक्रतुंड की ओर दौड़ा।

आशय ने जैसे ही उस भयानक जीव को देखा, उसने अपनी तलवार निकाल ली। "तुम क्या चाहते हो?" उसने राक्षसों पर चिल्लाया, लेकिन वे केवल क्रूरता से हँसे।

उन्होंने भी आशय पर ज़ोरदार हमला किया। लेकिन आशय एक अनुभवी योद्धा था। उसने अपनी तीखी तलवार से एक राक्षस का हाथ काट दिया, जिससे उसके हाथ से काले रक्त की धारा बहने लगी। एक और राक्षस ने आशय के सिर पर वार करने की कोशिश की, लेकिन आशयने उसे जल्दी से चकमा देकर उस जीव के पैर में अपनी तलवार से वार कर दिया।

उसने वक्रतुंड की ओर देखा, जो अभी भी ज़मीन पर लेटा हुआ था। "क्या तुम ठीक हो?" आशय ने पूछा। वक्रतुंड ने अपनी आँखें खोलीं और कहा, "मैं... मैं ठीक हूँ... लेकिन ये जीव बहुत शक्तिशाली हैं।

आर्या उस लड़ाई में कुछ नहीं कर सकी, लेकिन उसने खुद को शांत रखा। वह एक तरफ दौड़ी और वक्रतुंड के पास पहुँची। उसने वक्रतुंड को सहारा दिया और उसे उठाने की कोशिश करने लगी।

"अब मैं कुछ नहीं कर सका , लेकिन मुझे ज़िंदा रहना है, आर्या," वक्रतुंड डर के मारे कह रहा था। उसे अपनी जान की चिंता थी।

इस बीच, आशय एक राक्षस से लड़ रहा था। उसने एक मज़बूत लकड़ी की कील दूसरे प्राणी की छाती में ठोक दी। वह आगे बढ़ता रहा, और आखिरकार राक्षस ज़ोर से चीख़ते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। बचा हुआ राक्षस भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन आशय ने उसे जाने नहीं दिया। उसने अपनी तलवार के एक सटीक वार से उसे भी खत्म कर दिया।

लड़ाई खत्म करने के बाद, आशय का गुस्सा उसके दिल से बाहर उमड़ पड़ा। उसने अपनी तलवार म्यान में डाल ली और वक्रतुंड और आर्या को गुस्से से भरी नज़रों से देखा। "तुम दोनों मेरे पीछे क्यों आए? मैंने तुम्हें साफ़-साफ़ बताया था कि यह सफ़र बहुत ख़तरनाक है!" आशय ने गुस्से से कहा। उसकी आवाज़ जंगल में गूँज उठी।

वक्रतुंड अपनी चोटों से व्याकुल था, फिर भी उसने जवाब देने की कोशिश की। "आशय, हम तो बस..."

"रुको! मैं तुम्हारी सफाई नहीं सुनना चाहता," आशय ने उसे बिच में ही रोक दिया। "तुम्हारी इस हिमाकत की कीमत तुम्हारी जान ले लेगी। समझ रहे हो? अगर तुम ज़्यादा घायल हो जाते, तो मैं तुम्हें छोड़कर आगे नहीं बढ़ पाता। और मेरा तो बस एक ही मकसद है, राजवीर को बचाना, और फिर मेरा समय तुम्हारे साथ ही बीतता।

ऐसे समय बर्बाद करने के लिए हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है," आर्या आगे बढ़ी। वह शांत थी, पर दृढ़ थी। "आशय, हम यहाँ इसलिए आए हैं क्योंकि राजवीर हमारा भी दोस्त है। हम उसे छोड़ नहीं सकते। चाहे तुम्हें पसंद हो या न हो, हम उसे बचाने की कोशिश जरूर करेंगे।"

"आर्या, यह कहना तुम्हारे लिए आसान है," आशय ने एक व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ जवाब दिया। "क्या तुम्हें इस जंगल की गंभीरता का अंदाज़ा है? यहाँ हर पेड़, हर परछाई तुम्हारी जान लेने को तैयार है। और ये राक्षसी जीव? इनके घातक प्रहार से आज तक कोई नहीं बच सकता।"

"आर्या ने गहरी साँस ली और दृढ़ता से कहा, "मुझे पता है, आशय। लेकिन तुम हमें कम आंकते हो। अगर हमें राजवीर के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी तो भी हम ऐसाही करेंगे और भले ही तुम हमें कमजोर समझते हों, लेकिन हमारा प्यार और विश्वास हमें राजवीर को बचाने की ताकत देता है।

" आशय ने दृढ़ता से उत्तर दिया, "जंगल में प्रेम और विश्वास किसी काम के नहीं, आर्या! यहाँ तो केवल हथियार और कौशल ही काम आते हैं। अगर राजवीर को बचाना है, तो तुम्हें भावनाओं में नहीं बहना चाहिए।"

"वक्रतुण्ड, जो अब थोड़ा शांत हो गया था, "आशय, हम जानते हैं कि तुम एक कुशल योद्धा हो और इन राक्षसों के बारे में ज़्यादा जानते हो। लेकिन तुम राजवीर के दोस्त होते हुए भी हमसे नफ़रत क्यों करते हो? हम तो बस तुम्हारी मदद करना चाहते हैं।"

"नफ़रत?" आशय ने व्यंग्यात्मक लहजे में उसकी ओर देखा। "नफ़रत नहीं, वक्रतुण्ड, मुझे तुम्हारा वादा तोड़कर मेरे पीछे आना मुझे पसंद नहीं तुम मेरे पीछे आकर गलत रास्तो पर आ चुके हो। अगर मैं समय पर नहीं पहुँचता, तो क्या तुम्हें अंदाज़ा है कि ये जीव तुम्हारे साथ क्या करते?"

"आर्या ने शांति से उत्तर दिया, "अगर तुम समय पर नहीं पहुँचते, तो भी हम लड़ते, आशय। हम हार सकते थे, लेकिन कोशिश ज़रूर करते। राजवीर को बचाने के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं। भले ही तुम्हें हम कमज़ोर लगें, लेकिन हमारा लक्ष्य और इच्छाशक्ति मज़बूत है।"

"आशय ने आँखें बंद कर लीं, उसका गुस्सा कम होने लगा। "तुम्हे समझ रहा है क्या," उसने धीरे से कहा, " इस  यात्रा में न केवल जीवन के लिए, बल्कि तुम्हारे आत्मा के लिए भी बहुत बड़ा ख़तरा है। सहस्त्रपाणी के निवास तक पहुँचना मृत्यु को निमंत्रण देने के समान है।"

"आर्या उसके सामने आई और बोली, "आशय, हमें मृत्यु का कोई भय नहीं है। हम राजवीर के लिए आए हैं, और जब तक वह बच नहीं जाता, हम पीछे नहीं हटेंगे।"

"वक्रतुंड ने भी आशय की ओर देखा और कहा, "हम तुम्हें परेशान करना नहीं चाहते। हम तो बस तुम्हारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने आए हैं।"

"आशय ने कुछ देर सोचा। अंततः उसने गहरी साँस ली और सिर हिलाया। "ठीक है," उसने कहा, "लेकिन याद रखना, अपना हर कदम सोच-समझकर रखना। क्योंकि तुम नहीं जानते कि आगे क्या ख़तरा आ सकता है।

आर्या और वक्रतुंड ने आँखों में विश्वास दिखाते हुए सिर हिलाया। उनकी एकता अब मज़बूत हो गई थी, और तीनों सहस्त्रपाणी के निवास की ओर बढ़ने के लिए तैयार थे।

आशय, वक्रतुंड और आर्या एक साथ बैठ गए। आर्या ने वक्रतुंड के घावों पर दवा लगाई।

"तुम्हारा आना वाकई बहुत ग़लत है, लेकिन अगर तुमने पहले ही तय कर लिया है, तो मैं अभी कुछ नहीं कर सकता। मैं तुम्हारी जान बचाने की कोशिश करूँगा, लेकिन अपनी जान जोखिम में नहीं डालूँगा। तुम राजवीर के दोस्त हो सकते हो, लेकिन अभी तक मेरे दोस्त नहीं हुए हो," आशय ने कहा।

"और अगली जगह और भी ख़तरनाक होगी। तुम दोनों को तैयार रहना चाहिए, वक्रतुंड, ठीक से चल पा रहे हो ना?"

इस मुलाक़ात के बाद, आर्य और वक्रतुंड अब भयमुक्त हो गए थे, आशय उनके साथ चल रहा था। उनका एक-दूसरे पर भरोसा मज़बूत हो गया था। अब उनका अगला लक्ष्य स्पष्ट था, सहस्त्रपाणी  के निवास तक पहुँचना और राजवीर को बचाना।

क्रमशः 

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