भाग २०
सहस्त्रपाणि का पर्वतीय निवास अत्यंत दुर्गम और खतरनाक वातावरण से घिरा हुआ था। आशय, आर्या और वक्रतुण्ड की यात्रा अत्यंत कठिन थी। ऊँचे पहाड़ों और घने जंगलों को पार करते हुए, वे अंततः उस स्थान पर पहुँच गए। निवास एक भव्य किले जैसा लग रहा था, जो काले बादलों से घिरा हुआ था। उस स्थान पर मृत्यु का स्पर्श महसूस किया जा सकता था, और चूँकि आशय, जो भय से नहीं डरता था, इन दोनों को अपने साथ लेकर आने के वजह से थोड़ा डर रहा था।
गुरुकुल में प्रवेश करना आसान नहीं था। वहाँ प्रवेश करना मृत्यु को आमंत्रण देने जैसा था। सहस्त्रपाणि का किला बाहर से सुरक्षित था और उसमें प्रवेश करना बहोत कठिन था। वक्रतुण्ड को पीछे की ओर लगभग पगडंडी के आकार का एक रास्ता मिला, जहाँ से उन्होंने प्रवेश करने का फैसला किया । आशय जानता था कि राजवीर कहीं अंदरही होगा।
आर्या और आशय एक बड़े स्तंभ के नीचे कुछ देर रुके थे। आशय अपनी अगली योजना बना रहा था, आर्या उसके पास पहुँची। उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय था।
"आशय, मुझे गुरुकुल के पहरेदारों का ध्यान बंटाने का एक मौका दो," आर्या ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा।
आशयने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। "आर्या, तुम्हारा विचार चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, वह बहुत खतरनाक है। तुम्हारी सुंदरता उन्हें मोहित कर लेगी, यह सच है, लेकिन तुम्हें गुरुकुल के राक्षसों के पास भेजना तुम्हें मौत के कगार पर धकेलने जैसा है!"
"मुझे पता है," आर्या ने धीरे से कहा, "लेकिन क्या तुम्हें कोई और विकल्प नज़र आता है? हमें राजवीर की स्थिति देखनी चाहिए। यह भी निश्चित नहीं है कि वह उनकी हिरासत में ज़िंदा है या नहीं। अगर तुम और वक्रतुंड पहरेदारों से लड़ने गए, तो तुम आसानी से हार जाओगे। मुझे जाने दो। मैं उनका ध्यान रखूंगी। इस तरह तुम्हारे पास राजवीर को बचाने का समय मिल जाएगा।"
आशय ने आँखें बंद कर लीं। वह उसकी बातों के पीछे की सच्चाई जानता था, लेकिन वह उसे स्वीकार नहीं करना चाहता था। "आर्या," उसने धीमी आवाज़ में कहा, "अगर तुम्हारे साथ कुछ अच्छा या बुरा होता है, तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?"
आर्या थोड़ा मुस्कुरायी। "मैं खुद। और ये सिर्फ़ मेरा कामही नहीं है, बल्कि राजवीर के लिए मेरा प्यार भी है, और मुझे उसके लिए कुछ भी करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। तुम भी उससे प्यार करते हो ना, आशय? तो मुझे मत रोको।"
आशय ने आह भरी। "ठीक है, लेकिन सावधान रहना। और अगर तुम्हें कोई परेशानी हुई, तो हम किले के पास ही होंगे।"
आर्या मुस्कुरायी और बोली, "मैं वापस आऊँगी। मुझमें राजवीर के लिए कुछ भी करने की ताकत है।"
आर्या साहसपूर्वक सहस्त्रपाणि के निवास के विशाल द्वार के पास पहुँची। उसके मन में थोड़ा डर था, लेकिन उसका चेहरा आत्मविश्वास से भरा हुआ था। द्वार के बाहर खड़े दो नरभक्षियों में से एक ने उसे आते देखा और उसे रोक दिया। वह लंबा, सांवला और विकृत चेहरेवाला था। उसके बड़े, पीले दांतों और खून से सने पंजों ने उसकी भयावह उपस्थिति को और भी भयावह बना दिया था।
"तुम कौन हो?" वह गुर्राया, उसकी लाल आँखें आर्या को घूर रही थीं। "और तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
आर्या ने एक पल के लिए भी बिना किसी डर के, अपने चेहरे पर उलझन भरा भाव बनाया और नरभक्षी की आँखों में देखते हुए कहा,
"मेरा नाम आर्या है। मैं जंगल से होकर जा रही थी, लेकिन रास्ता भटक गई। मुझे बहुत प्यास लगी है। मैंने अपने सामने यह किला देखा, इसलिए मैं पूछने आई थी कि क्या मुझे अंदर थोड़ा पानी मिल सकता है।"
नरभक्षी ने उसे शक की निगाह से देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आ गई। "हूँ... तुम कह रही हो कि तुम्हें प्यास लगी है?" वह थोड़ा आगे बढ़ा और अपने नाखून उसके गाल के पास ले आया। "तुम्हारा खून बहुत मीठा होगा... क्या मुझे तुम्हें किले के अंदर आने देने से पहले उसे चखने मिलेगा?"
आर्या ने खुद को संभाला और चेहरे पर डरी हुई मुस्कान बिखेरी। "नहीं... मैं यहाँ बस पानी लेने आई थी। अगर तुम मेरी मदद नहीं कर सकते, तो मैं कहीं और चली जाऊँगी।"
नरभक्षी ने उसकी तरफ देखा और अपने पीछे खड़े दूसरे पिशाच नरभक्षी को देखकर गुर्राया, "वह बहुत खूबसूरत है... अगर तुम उसे ज़िंदा रखोगे, तो गुरुकुल में बहुत मज़ा आएगा!"
दूसरा नरभक्षी खिलखिलाकर हँसा। "ठीक है! उसे अंदर आने दो, फिर गुरुदेव आने पर तय करेंगे कि उसके साथ क्या करना है!"
आर्या ने राहत की साँस ली। उसकी पहली योजना सफल हो गई थी। अब वह अंदर जा सकेगी और अपने साथियों को राजवीर को ढूँढ़ने में मदद करने का मौका पा सकेगी।
वहाँ मौजूद शिष्य उसके रूप-रंग को देखकर चकित रह गए। कुछ को वह बहुत आकर्षक लगी, तो कुछ को उसका रूप-रंग खतरनाक लगा। उन्होंने उसे गुरुकुल में प्रवेश तो दे दिया, लेकिन अब उसके बारे में चर्चा शुरू हो गई थी।
जैसे ही आर्या को किले के विशाल कमरे में लाया गया, नरभक्षियों के दोनों समूहों के बीच गरमागरम बहस छिड़ गई। पहले समूह का एक लंबा, भयंकर चेहरे वाला पिशाच, जिसके घने और घुंघराले बाल थे, ज़ोर से चिल्लाया, "मुझे लगता है इसे तुरंत चीर देना चाहिए! इतना ताज़ा, गर्म खून मिलना शैतान का आशीर्वाद होगा। हमें इसका स्वाद लेना चाहिए!" उसकी आँखों में खून की प्यास चमक रही थी।
उसके साथ मौजूद कुछ लोग भी सहमत हुए। "हाँ! उसकी नाज़ुक गर्दन में अपने दाँत गड़ाने में कितना मज़ा आएगा! हमें इसे तुरंत खत्म कर देना चाहिए।"
दूसरी तरफ खड़े एक पिशाच ने आपत्ति जताई और कठोर स्वर में कहा, "अरे मूर्खो! हम इतनी सुंदर स्त्री को क्यों मारें? गुरुकुल में हमेशा नीरसता रहती है, गुरुदेव के बिना हमारे पास मनोरंजन के लिए कुछ नहीं है! अगर वह हमारे साथ यहाँ रहे, तो गुरुकुल का जीवन बहुत सुखद हो जाएगा।"
उसके बगल में खड़े दूसरे समूह ने भी उसकी बात की पुष्टि की। "सही कहा! अगर इतनी सुंदर स्त्री को जीवित रखा जाए, तो गुरुकुल में एक नई तरह की बहार आ जाएँगी। उसे सिर्फ़ खून चूसने के लिए इस्तेमाल करना बहुत बड़ी भूल होगी!"
बहस तेज़ हो गई। पहले समूह के एक सदस्य ने अपने लंबे नाखूनों से दीवार खरोंचते हुए पूछा, "अगर हम उसे जीवित रखेंगे, तो उस पर नज़र कौन रखेगा? अगर वह यहीं रहकर हमें परेशान करने लगी तो क्या होगा? क्या तुम्हें इसके मायाजाल में फँसने का डर नहीं है?"
दूसरे समूह के एक नरभक्षी ने गुस्से से जवाब दिया, "वह तो बस एक साधारण मानव स्त्री है। हम उससे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली हैं। वह हमें कैसे परेशान कर सकती है? उलटा, उसे जीवित रखकर हम गुरुदेव को एक बड़ा प्रस्ताव दे सकते हैं। चलो, फैसला उन्हीं पर छोड़ देते हैं!"
बहस बढ़ती जा रही थी, हर समूह अपनी-अपनी राय पर अड़ा हुआ था। और इस मौके का फ़ायदा उठाकर आर्या अपने मन में अगली योजना बना रही थी।
आर्या के आगमन से गुरुकुल के शिष्यों में बहस छिड़ गई। कुछ शिष्यों ने कहा,
"अगर इतनी सुंदर स्त्री हमारे साथ रहेगी, तो हमारा गुरुकुल और भी प्रभावशाली हो जाएगा।"
जबकि कुछ अन्य ने उनका विरोध करते हुए कहा,
"वह हमारे लिए खतरा हो सकती है। बेहतर होगा कि हम उसे मारकर खा जाएँ।"
दोनों समूहों के बीच बहस इतनी गरमा गई कि उन्होंने आर्या की उपस्थिति को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया। दरवाज़े के पास खड़े पहरेदार भी आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए अंदर आ गए। इस अवसर का लाभ उठाकर, आशय और वक्रतुंड गुरुकुल में प्रवेश कर गए। वे सावधानी से भीतरी दीवारों को पार करते हुए, राजवीर को किले में जगह-जगह ढूँढ़ते रहे।
तहखाने के अँधेरे हिस्से में एक कोने में, आशय और वक्रतुंड को राजवीर लोहे की ज़ंजीरों में बंधा हुआ दिखा। उसका शरीर खून से लथपथ था, उसके घावों से खून बह रहा था, उसका चेहरा काला और नीला पड़ गया था, और एक आँख सूजी हुई थी। उसकी दोनों आँखें बंद थीं, और उसकी कमज़ोर साँसें बता रही थीं कि उसमें अभी भी जान बाकी है।
क्रमशः
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