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रक्तपिशाच का रक्तमणि २३

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेमकहानी
भाग २३

जब सहस्रपाणि अपने शिकार अभियान से लौटे, तो उन्होंने उम्मीद की थी कि गुरुकुल के शिष्य उनकी वापसी और विजय का जश्न मना रहे होंगे, लेकिन उनकी उम्मीदों के विपरीत, पूरा गुरुकुल घोर अराजकता में डूबा हुआ था। कुछ शिष्य आपस में लड़ रहे थे, कुछ ने तो अपने हथियार भी निकाल लिए थे। कुछ घायल थे, जबकि कुछ के चेहरों पर क्रोध और निराशा साफ़ दिखाई दे रही थी। सहस्रपाणि इस पूरी अराजकता को देखकर क्षण भर के लिए आश्चर्यचकित रह गए।

सहस्रपाणि न केवल एक शक्तिशाली योद्धा और गुरुकुल के एक शिक्षक थे, बल्कि वे क्रूरता और भय के साक्षात् अवतार थे। उनका शरीर अन्य साधारण पिशाचों से कई गुना बड़ा और शक्तिशाली था। वे सात फुट से भी ज़्यादा लंबे थे, और उनकी मांसपेशियों पर बने गहरे नीले निशान उनके शरीर पर प्राचीन मंत्रों के प्रमाण थे। उनकी त्वचा में एक अलग ही चमक थी, मानो उस पर किसी अज्ञात शक्ति का आवरण हो।

उनकी आँखें लाल-हरे रंग की थीं, अँधेरे में चमगादड़ की तरह चमक रही थीं। उनकी नाक से आती तीखी गंध कड़वे खून और मौत का संदेश दे रही थी। उनके लंबे और तीखे नाखूनों ने कई जीवों का खून बहाया था, और उनकी हर उँगली के तीखे नाखून एक ही समय में तलवार और पंजों का काम करते थे।

सहस्रपाणि के बाल सफ़ेद और भारी थे, जो उसके माथे पर बिखरे पड़े थे। उसके शरीर पर प्राचीन काल के अनगिनत युद्धों के निशान थे, कुछ तलवार के गहरे घाव, तो कुछ अज्ञात राक्षसी जीवों के पंजों की गहरी खरोंचें भी दिख सकती थी। उसने अपनी मांसपेशियों और शरीर पर अंतहीन संघर्ष सहे थे, लेकिन किसी भी युद्ध में वह कभी पीछे नहीं हटा था।

उसकी आवाज़ गहरी और गूंजती थी, मानो किसी गहरे गर्त में गिरते पत्थर की आवाज़ हो। एक बार जब वह दहाड़ता, तो उसके आस-पास के जीवों पर मौत की छाया पड़ जाती। ऐसा लगता जैसे उसके चलते हुए धरती हिल रही हो, और उसकी उपस्थिति लोगों के खून की गति को धीमा कर देती।

लेकिन सहस्रपाणि न केवल शारीरिक रूप से भयंकर नहीं थे ; वे एक चालाक और निर्दयी नेता भी थे। उनके दिमाग में हमेशा तरकीबें और क्रूर चालें चलती रहती थीं। उन्होंने अपने शत्रुओं का नाश केवल बल से ही नहीं, बल्कि बुद्धि से भी किया था। उनके हृदय में सहानुभूति के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके लिए जीवन केवल बलवानों का शासन और दुर्बलों का विनाश था।

उनके गुरुकुल के प्रत्येक शिष्य ने उनकी क्रूरता का अनुभव किया था। उन्होंने कभी क्षमा नहीं की, और विश्वासघाती को सबके सामने इतनी कड़ी सज़ा दी कि फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वे उनके विरुद्ध जाएँ।

सहस्रपाणि पिशाच योनि से उत्पन्न एक अद्वितीय प्राणी थे, उस लोक में उनका प्रभुत्व था, जहाँ मृत्यु भी उनके आदेश पर कार्य करती थी।

"खामोश !" सहस्रपाणि ने एक विशाल सिंह की तरह दहाड़ लगाई। उनकी आवाज़ ने पूरे गुरुकुल को स्तब्ध कर दिया। सभी ने उन्हें भयभीत आँखों से और फिर एक-दूसरे को देखा। वे क्रोधित होकर आगे आए, उनके बलवान शरीर पर अभी भी कुछ रक्त के धब्बे थे।

"यहाँ क्या चल रहा है?" उसने गुसैल आवाज़ में पूछा। "क्या कोई मुझे बताएगा ?"

उसकी बात सुनकर एक शिष्य आगे आया, झुककर प्रणाम किया और विनम्रता से बोला, "गुरुदेव, यह विवाद एक सुंदर मानव कन्या को लेकर है। कुछ शिष्यों का मानना है कि उसे जीवित रखना चाहिए, जबकि कुछ का मानना है कि उसे मार देना चाहिए।"

यह सुनकर सहस्रपाणि क्रोधित हो गए। उनके नाखूनों के सिरे किले के पत्थर से टकराए और चिंगारियाँ उड़ने लगीं। "मैंने पहले भी कहा था कि मानव स्त्रियाँ कमज़ोरी का कारण होती हैं। और यह उसका एक आदर्श उदाहरण है। एक लड़की की वजह से गुरुकुल के शिष्य एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं! यह तुम्हारी शर्मनाक स्थिति है!"

"वह लड़की कहाँ है, उसे अभी खत्म कर दो।"

वह आगे बढ़ता गया, और अधिक क्रोधित होता गया। उसकी उपस्थिति ने ही सभी शिष्यों को और अधिक भयभीत कर दिया।

"हमें नहीं पता कि वह इस उलझन में कहाँ चली गई।" शिष्य ने धीरे से उत्तर दिया।

क्रोधित सहस्रपाणि जैसे ही कुछ और कहने वाले थे, त्रिकाल बाहर से आया। उसके चेहरे पर विजयी भाव था। उसने सहस्रपाणि को प्रणाम किया और कहा, "गुरुदेव, मैं आपके सबसे बड़े शत्रु को यहाँ ले आया हूँ। वह इस समय तहखाने में कैद है। अब आपही उसका न्याय करें।"

क्रोध के बजाय, सहस्रपाणि की आँखों में क्रूर संतुष्टि की चमक थी। वे तुरंत तहखाने की ओर चल पड़े। "मैं उस मूर्ख राजवीर को खुद देखूँगा। मैं तय करूँगा कि उसे कैसे सज़ा दूँ।"

लेकिन, तहखाने में पहुँचते ही उनके सामने एक चौंकाने वाला दृश्य खड़ा था, राजवीर वहाँ नहीं था।

सहस्रपाणि ने अपने तीखे नाखूनों से पत्थरों पर प्रहार किया। पत्थर के टुकड़े उड़ गए, और इस आवाज़ से आस-पास खड़े कुछ शिष्य डर के मारे पीछे हट गए।

"वह कहाँ गया?" सहस्रपाणि की गरजती आवाज़ पत्थर की दीवारों से गूँजी। "क्या कोई बताएगा?"

तभी, एक शिष्य हाँफता हुआ बाहर से दौड़ता हुआ आया। उसका शरीर बुरी तरह घायल था, और खून बह रहा था। वह सहस्रपाणि के सामने काँपते हुए गिर पड़ा और अस्पष्ट स्वर में बोलने लगा, "गुरुदेव... मुझे क्षमा करें... लेकिन... एक शक्तिशाली योद्धा... वह... वह जो शायद उस सुंदर स्त्री के साथ राजवीर को बचाने आया था। उसने मुझ पर हमला किया। हमने उसे रोकने की कोशिश की... लेकिन वह बहुत तेज़ और बलवान था।"

सहस्रपाणि की आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उनके शरीर से निकलती गर्मी ने आस-पास के शिष्यों को थोड़ा पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

"क्या......? कौन था वह ?"

शिष्य ने बड़ी मुश्किल से जवाब दिया, "उसका नाम... मुझे नहीं पता! लेकिन वो कोई पिशाच शिकारी लग रहा था।"

यह सुनकर सहस्रपाणि के चेहरे का गुस्सा और भी बढ़ गया। उन्होंने ज़मीन पर ज़ोर से लात मारी। "तो, एक तुच्छ मानव कन्या और एक शिकारी यहाँ घुस आए और तुम्हारी नाक के नीचे अपने कैदी को छुड़ाकर चले गए ? यह मेरे लिए अपमानजनक है!"

गुरुकुल के अन्य शिष्य भयभीत हो गए। वे सहस्रपाणि के क्रोध को पूरी तरह समझ गए। एक मानव कन्या और एक शिकारी उनके गुरुकुल में घुस आए थे, उनके कैदी को मुक्त कर दिया था, और इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, वे तितर-बितर हो गए थे।

"त्रिकाल!" सहस्रपाणि ने ज़ोर से पुकारा।

त्रिकाल तुरंत आगे बढ़ा। "आदेश दें, गुरुदेव!"

"हम इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकते। जब तक मैं इन मनुष्यों का अंत नहीं कर देता, मैं चैन से नहीं बैठूँगा। अपने योद्धाओं को तुरंत इकट्ठा करो। जाओ और उन्हें पकड़ कर मेरे सामने ले आओ!"

त्रिकाल के चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान आ गई। "ऐसा ही होगा, गुरुदेव!"

त्रिकाल ने गुरुकुल से कुछ योद्धा चुने, कुछ तलवारें उठा रहे थे, तो कुछ अपने नाखून तेज़ कर रहे थे। एक शिष्य अपने विषैले बाणों को तेज़ करने लगा।

उसी समय, एक कोने में खड़ा राक्षस किसी विचार में खोया हुआ था। सहस्रपाणि का आदेश सुनते ही, वह त्रिकाल के पास पहुँचा।

"गुरुदेव बहुत क्रोधित हैं। लेकिन क्या हमें तुरंत उन मनुष्यों का पीछा करना चाहिए? वे पहले ही काफ़ी दूर निकल चुके होंगे।"

त्रिकाल ने उसे घूरकर देखा। "अब हमारे पास एक ही विकल्प है, उन्हें मार डालना। उस शिकारी ने हमारे गुरुकुल का अपमान किया है। और गुरुदेव सहस्रपाणि इस अपमान को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।"

"लेकिन........" राक्षस कुछ कहने ही वाला था कि त्रिकाल ने उसे बीच में ही रोक दिया।

तैयार हो जाओ। हम उन सभी को ढूँढ़कर खत्म कर देंगे।"

त्रिकाल ने घायल शिष्य को बुलाया, उसने सटीक स्थान बताया जहाँ उसने आशय का सामना किया था। उसने यह भी गिना कि उसके साथ कितने और लोग थे।

शिष्य के अनुसार, उसके साथ सिर्फ एक लड़की और एक लड़का था। जो त्रिकाल के योद्धाओं का सामना नहीं कर सकते थे।

गुरुकुल में अब सबकी आँखों में एक ही ज्वाला थी, आशय, आर्या , वक्रतुंड और राजवीर का पूरी क्रूरता से नाश करने की।

उस रात चाँद बादलों के पीछे चला गया था, मानो इन रक्तपिपासु योद्धाओं के हृदय के अँधेरे को छिपाने की कोशिश कर रहा हो।

क्रमशः


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