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रक्तपिशाच का रक्तमणि ३१

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेमकहानी
भाग ३१


थांग गाँव में बर्फीले पहाड़ों की छाँव में, राजवीर और आर्या एक नई ज़िंदगी शुरू कर चुके थे। उनका प्यार परवान चढ़ रहा था, और अब उनके जीवन में एक नई सुनहरी रोशनी चमकने वाली थी, उनके बच्चे के रूप में। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। मुसीबतों के तूफ़ान उनके इर्द-गिर्द उमड़ रहे थे, और उनका सबसे करीबी दोस्त, बलदेव, उन्हें लगातार आगाह कर रहा था।

बलदेव तड़प रहा था। वह जानता था कि आर्या और राजवीर के रिश्ते का हल ढूँढ़ना मुश्किल होगा, लेकिन उसे अपनी पूर्व प्रेमिका और उनके अजन्मे बच्चे की चिंता थी।

"राजवीर, मुझे तुमसे कुछ देर बात करनी है," बलदेव ने गंभीर स्वर में कहा।

"बोलो," राजवीर ने धीरे से जवाब दिया।

"क्या तुम जानते हो कि तुम और आर्या जो कर रहे हो वह प्रकृति के विरुद्ध है? क्या तुमने कभी सोचा है कि एक पिशाच और एक इंसान के मिलन से पैदा हुआ बच्चा कितना भयानक होगा?"

राजवीर उसे घूर रहा था। "बलदेव, मैंने इस बारे में बहुत सोच लिया है। और मैं किसी को भी हमारे जीवन में दखल नहीं देने दूँगा। जो भी मेरे बेटे को परेशान करेगा, मैं उसे खत्म कर दूँगा।"


बलदेव के चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी।

"जितना तुम सोच रहे हो, उतना आसान नहीं है, ये इंसान उसे राक्षस समझेंगे, और पिशाच उसे अपना सबसे अच्छा योद्धा बनाने की कोशिश करेंगे। लेकिन असली डर तो अभी बाकी है. उस बच्चे के खून में दोनों लोकों की शक्ति होगी। और इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो ऐसी शक्ति चाहते होंगे, जो इसका फ़ायदा उठाएँगे।"

"तो?"

"तो तुम उसे जानते हो, सहस्त्रपाणि," बलदेव ने ठंडे स्वर में उत्तर दिया।

दूर, सहस्त्रपाणि अपने गुरुकुल में एक रहस्यमय ध्यान में लीन था। उसके पास एक भविष्यडोह था जो उसे भविष्य के कुछ चित्र दिखा रहा था। वह उसे भविष्य का दृश्य दिखा सकता था। आज वह देख रहा था कि क्या उसमें राजवीर और आर्या दिखाई दे सकते हैं या नहीं।

"हे भविष्यडोह" बोल कहा है राजवीर? बोल कहाँ है, क्या तुम उसे देख नहीं पा रहे?, क्या मैं मान लूँ कि तुम्हारी शक्ति चली गई है? मुझे जो चाहिए वो दिखाओ, मैं तुम्हारे प्रिय रक्त से तुम्हारा अभिषेक करके तुम्हारे मटके को पूरी तरह भर दूँगा। बताओ वो कहाँ हैं?" सहस्त्रपाणि एक मटके जैसी वस्तु से बात कर रहा था।

उस मटके पर हर जगह लाल रंग दिखाई दे रहा था। मटके के अंदर पानी जैसा एक द्रव बह रहा था। सहस्त्रपाणि उस द्रव पर भविष्य की तस्वीरें देख सकता था, लेकिन जब भी वह उससे राजवीर के बारे में पूछता, तब वह कोई जवाब नहीं देता और अब भी यही हो रहा था।

लेकिन इस बार उसने अपना प्रश्न थोड़ा बदल दिया और आर्या के बारे में प्रश्न पूछने लगा।

"क्या तुम्हें पता है कि खिरसू गांव की आर्या इस समय कहाँ है, उसका भविष्य क्या है?" सहस्त्रपाणि को पता था कि आर्या, वक्रतुंड और राजवीर एक साथ निकले थे।

वे सभी आदिवासियों के साथ थे। उसके बाद वक्रतुंड अकेले ही खिरसू गाँव आ गया। बाकी दोनों कहाँ गए, यह किसी को नहीं पता था। जब त्रिकाल ने आर्या को पकड़ लिया था, तब राजवीर उसे बचाने आया था, वह भी अपनी जान की परवाह किए बिना। इन सब बातों को देखते हुए, यही निष्कर्ष निकला कि राजवीर और आर्या साथ ही होंगे।

एक बार आर्या का पता चल गया, तो राजवीर कहाँ है, यह उसे जल्दी पता चल जाएगा, इसलिए वह भविष्यडोह से आर्या के बारेमे प्रश्न पूछ रहा था।

आर्या का नाम सुनते ही भविष्यडोहमें पानी जैसा द्रव एक चक्र में घूमने लगा मानो उसमें सूर्य का प्रकाश भर गया हो।

उसमें कुछ चित्र दिखाई देने लगे थे। एक तेजस्वी शिशु जन्म ले रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसकी ध्वनि से पूरी धरती हिल रही हो। आसमान गरज रहा था। बच्चे की किलकारियों से पहाड़ दरक रहे थे।

यह तस्वीर देखकर सहस्त्रपाणि चौंक गया और होश में आ गया। उसके चेहरे पर थोड़ी विकृत खुशी झलक रही थी।

"तो यह है वह शक्तिशाली शिशु... अगर यह मेरे हाथों में आ जाए, तो मैं पूरे ब्रह्मांड पर राज कर सकूँगा!"

उसने अपने शिष्यों को बुलाया। "राजवीर और आर्या अभी भी जीवित हैं और अब..." उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई।

"आर्या गर्भवती है! जल्द ही उसका एक बच्चा होगा। अगर यह बच्चा पैदा हो गया और हम इसे पा लेते हैं, तो मैं इस ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली योद्धा बन सकता हूँ।"


शिष्यों में कानाफूसी शुरू हो गई। एक ने पूछा, "गुरुदेव, आप हमसे क्या करवाना चाहते हैं?"

सहस्त्रपाणि ने उन्हें घूरकर देखा।

"उन्हें ढूँढ़ो, वे थांग गाँव के किसी घर में हैं। मैंने अपने भविष्यडोह में थांग गाँव के पास एक पहाड़ को देखा है, उस पहाड़ पर एक स्वस्तिक चिन्ह है जो किसी और पहाड़ पर नहीं है, वे दोनों वहीं हैं।

उन पर नज़र रखना। और ख़ासकर, बच्चे के जन्म तक इंतज़ार करना। उन्हें बिल्कुल भी पता नहीं चलना चाहिए कि हम उस पर नज़र रख रहे हैं। वरना, वे बच्चे के जन्म से पहले ही वहा से चले जाएँगे। क्योंकि उस बच्चे के रक्त से ही मैं बलवान बन सकता हूँ, फिर इस दुनिया में मुझे कोई नहीं हरा सकता!"

राजवीर देर रात जंगल में अकेला घूम रहा था। उसके मन में अनगिनत विचार आ रहे थे। बलदेव की हर बात में सच्चाई थी। लेकिन वह एक पिता था, और अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए वह कुछ भी कर सकता था।

"मुझे कुछ करना ही होगा..." उसने मन ही मन बुदबुदाया।

वह सोच रहा था कि क्या वह अपने परिवार के लिए कहीं दूर कोई सुरक्षित जगह ढूँढ़ पाएगा? लेकिन वह जानता था कि सहस्त्रपाणि और उसके अनुयायी उन्हें ढूँढ़ने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

वह सोच ही रहा था कि उसे कदमों की आहट सुनाई दी। वह सतर्क हो गया। उसने अपनी तलवार निकाली और पेड़ों के पीछे छिप गया।

"राजवीर, मैं हूँ!" बलदेव ने धीमी आवाज़ में कहा।

राजवीर ने धीरे से अपनी तलवार नीचे कर ली। "क्या हुआ?"

बलदेव ने गहरी साँस ली। "अगर हम इसका कोई हल नहीं ढूँढ़ पाए, तो सहस्त्रपाणि हमें पकड़ लेगा। और उस बच्चे को हमसे छीन लेंगे।"

राजवीर उलझन में था। "तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो?"

बलदेव ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया, "क्योंकि मुझे लगता है कि कुछ शक्तियाँ तुम सभी को ढूँढ़ रही हैं।"

राजवीर ने दाँत दबाये  "इसका मतलब युद्ध अटल है।"

"हाँ। और तुम्हें अपने परिवार की रक्षा करनी होगी।"

आर्या उस रात अपने अपनी घर के बाहर खड़ी थी। ठंडी हवा उसके बालों को उड़ा रही थी, और उसके चेहरे पर खुशी और डर का एक अजीब सा मिश्रण साफ़ दिखाई दे रहा था।

उसके मन में कई सवाल थे, क्या यह बच्चा उसे और राजवीर को खुशियाँ देगा या कोई नई मुसीबत लेकर आएगा? वह आँखें बंद करके, पेट पर हाथ रखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

"मेरा बच्चा..." वह बुदबुदाई।

तभी राजवीर उसके पीछे आया और धीमी आवाज़ में पूछा, "तुम किस सोच में डूबी हो?"

आर्या मंद-मंद मुस्कुराई और धीरे से बोली, "क्या मैं तुम्हें एक राज़ बताऊँ?"

राजवीर ने मुस्कुराते हुए पूछा, "अब कौन सा राज़?"

उसने शर्माते हुए कहा, "तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा।"

राजवीर उलझन में था। "और मुझे कब पता चलेगा?"

"जब समय आएगा," वह मंद-मंद मुस्कुराई।

लेकिन कुछ पल बाद, वह गंभीर हो गई और बोली, "राजवीर, क्या तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे? चाहे कुछ भी हो जाए?"

राजवीर ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

"मैं अपनी आखिरी साँस तक तुम्हारे और हमारे बेटे के साथ रहूँगा।"

आर्या की आँखों में आँसू आ गए। उसने उसे कसकर गले लगा लिया।

लेकिन दोनों में से किसी को भी पता नहीं था कि बाहर अँधेरे में कोई उनकी बातचीत सुन रहा है। और उनके जीवन का तूफ़ान अभी थमा नहीं है ......।

क्रमशः


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