Login

रक्तपिशाच का रक्तमणि ३२

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की कहानी
भाग ३२


थांग गाँव अब शांत लग रहा था, लेकिन उसके पेट में एक बड़ा तूफ़ान उठ रहा था। सहस्त्रपाणि के आदेश पर, उनके कुछ विश्वस्त सैनिक, जिनमें से एक क्रूरसेन के नाम से जाना जाता था, थांग गाँव में उसने और उसके लोगोने कदम रख चूके थे। उनके आगमन से गाँव में बेचैनी फैल गई थी, उनके चेहरे को देखकर गाँव वालों में भय की लहर दौड़ गई थी।

गाँव के बीचों-बीच एक पुराना लेकिन मज़बूत घर बेचा जा रहा था। और वह जगह क्रूरसेन और उसके लोगों ने खरीद ली थी। कोई भी आसानी से सोच सकता था कि ये नए प्रवासी शांतिपूर्वक जीवन जीने आए हैं। लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी, अगर वे देखने जाते, तो गाँव की शांति भंग करने आये थे।

कठोर चेहरे वाले क्रूरसेन ने जैसे ही घर खरीदा, उसके साथियों ने तुरंत घर के अलग-अलग हिस्सों पर नज़र रखने के लिए एक व्यवस्था बना ली। इस घर से वे राजवीर के घर पर आसानी से नज़र रख सकते थे।

"अब हम सही जगह पर हैं," क्रूरसेन मन ही मन बुदबुदाया।

"हमें बस सही समय का इंतज़ार करना होगा, राजवीर के घर में होने वाली हर घटना की जानकारी हमें यहीं बैठे-बैठे मिल जाएगी, इसलिए किसी परेशानी की ज़रूरत नहीं है..."

गाँव में आए अजनबियों के बारे में जल्द ही कानाफूसी शुरू हो गई। बलदेव और राजवीर दोनों जानते थे कि यह कोई साधारण घटना नहीं थी, इसमें कुछ न कुछ भयावह ज़रूर छिपा है।


"मुझे लगता है कुछ गड़बड़ है," बलदेव ने ठोड़ी पर हाथ रखते हुए कहा। "लगता है ये लोग कुछ अलग करने आए हैं।"

राजवीर ने सिर हिलाया। "हाँ, और अगर इनका संबंध सहस्त्रपाणी से है, तो जल्द ही हमें कुछ भयानक देखने को मिलेगा, हमें कुछ करना होगा।"

"तो अब हमें क्या करना चाहिए?" बलदेव उससे सवाल पूछ रहा था।

राजवीर कुछ देर चुप रहा। उसे कुछ याद आया।

"हमें अभी भी उस सहस्त्रपाणी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है," उसने कहा। "अगर हमें और जानकारी चाहिए, तो जब हम आदिवासी कबीले में थे, तब वहाँ एक बुज़ुर्ग महिला थीं, उसने मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया था । उसने विनायक नाम के एक पुस्तकाध्यक्ष का ज़िक्र किया था। उसने कहा कि विनायक के पास इस बारे में बहुत जानकारी है। उसने ही मुझे बताया था कि अगर आपको पिशाचो के बारे में और जानकारी चाहिए, तो विनायक से संपर्क करें।"

बलदेव ने पूछा, "वह कहाँ है?"

"इसी गाँव में........,मेरा दोस्त आशय हमें इसीलिए यहाँ लाया था। ताकि अगर हमें कभी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े, तो हम उसके पास जा सकें।"

बलदेव उलझन में था। "अगर हम वहाँ गए और उसे हमारी असली पहचान पता चल गई तो क्या होगा?"

"हमें कुछ बताने की जरुरत नहीं। हम बस जानकारी हासिल करना चाहते हैं।"

बलदेव अभी भी सोच रहा था। "अगर गाँव वालों को पता चल गया कि तुम पिशाच हो, तो वे तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। और तुम्हारे बाद आर्या को भी कोई मदद नहीं करेगा।"


राजवीर ने उससे आँखें मिलाईं। "मैं उसे कुछ महसूस नहीं होने दूँगा। हम बस जानकारी लेकर चले आएँगे।"

बलदेव ने गहरी साँस ली और सिर हिलाया। "ठीक है। चलो।"

गाँव के एक कोने में एक प्राचीन पुस्तकालय था। अंदर जाते ही उन्हें धूल भरी किताबों की खुशबू आ रही थी। वहाँ एक मेज़ पर सफ़ेद दाढ़ी वाला एक बूढ़ा आदमी बैठा था।

"तुम विनायक हो क्या ?" राजवीर ने पूछा।

बूढ़े ने सिर उठाया। "हाँ, तुम्हें किससे मिलना है?"

राजवीर और बलदेव ने एक-दूसरे को देखा और आगे बढ़ गए।

"हमें कुछ प्राचीन पिशाचो के बारे में जानकारी चाहिए," राजवीर ने धीरे से कहा।

विनायक ने उसे शक की निगाह से देखा। "तुम कौन हो?"

"हम तो बस एक खोज पर निकले यात्री हैं।"

विनायक एक पल के लिए चुप रहा। फिर वह उठा, एक अलमारी की तरफ़ गया और एक मोटी किताब निकाली।

"पिशाच और उनके प्रकार सिर्फ़ लोककथाएँ नहीं हैं," उसने कहा। "उनके रक्त में अनेक शक्तियाँ होती हैं, कुछ उन्हें अमरता प्रदान करती हैं, कुछ उन्हें भयंकर शिकारी बनाती हैं।"

राजवीर और बलदेव ध्यान से सुन रहे थे।

"क्या तुम्हें पता है कि सहस्त्रपाणि कौन हैं?"

विनायक थोड़ा आगे झुका और बोला, "हाँ, मुझे पता है। वह कोई साधारण पिशाच नहीं है। वह एक शापित पिशाच है, जो शक्तिशाली बनना चाहता है, और इसके लिए वह कुछ भी कर सकता है। और अगर उसे कुछ शक्तिशाली मिल जाए, जैसे..." वह रुका।

"जैसे ...................?" बलदेव ने पूछा

विनायक ने आँखें खोलीं। "जैसे किसी पिशाच और किसी मानव संतान का खून।"

राजवीर और बलदेव के शरीर में बिजली उमड़ पड़ी।

"वह उस बच्चे के खून से शक्तिशाली बन सकता है.???"

विनायक ने सिर हिलाया। "हाँ। और वह इसे किसी भी तरह से पाने की कोशिश करेगा।"

राजवीर ने अपनी मुट्ठियाँ खींच लीं। अब कोई सवाल ही नहीं था, उसके परिवार पर मुसीबत मंडरा रही थी।

"क्या उसे रोकने का कोई तरीका नहीं है?" राजवीर अभी भी सवाल पूछ रहा था।

विनायक ने पुरानी किताब के पन्ने पलटे और गंभीर स्वर में कहा, "अगर सहस्त्रपाणि को हराना है, तो तुम्हें 'रक्तमणी' ढूँढ़नी होगी।"

राजवीर और बलदेव ने एक-दूसरे की ओर देखा।

"रक्तमणी?" बलदेव ने पूछा।

विनायक ने एक मोटा बक्सा खोला और उसमें से एक हाथ से लिखी हुई किताब निकाली । उस पर कुछ रहस्यमयी चिह्न और टिप्पणियाँ थीं।

"हाँ," उसने आगे कहा, "यह रक्तमणि एक अमूल्य, लेकिन बेहद खतरनाक पत्थर है। यह सहस्त्रपाणि की अमरता की कुंजी है, लेकिन साथ ही यह उसके विनाश का कारण भी बन सकती है। अगर कोई उस रक्तमणि को सहस्त्रपाणी के सिर पर मार दे, तो वह नष्ट हो सकता है।"

राजवीर आगे झुका और पूछा, "मुझे यह रक्तमणि कहाँ मिल सकती है?"

विनायक ने गहरी साँस ली और पन्ना पलटकर एक खास जगह पर अपनी उंगली रख दी।

"यह किसी प्राचीन गुफा में रखा नक्शा हो सकता है।"

बलदेव ने अपनी भौहें उठाईं, "गुफा? यह गुफा कहाँ है?"

विनायक ने एक पीला पड़ चुका पुराना कागज़ निकाला। "यह गुफा यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है, लेकिन इसमें प्रवेश करना मौत को न्योता देना है। इसमें प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति कभी वापस नहीं लौटा है। उस गुफा में प्राचीन जाल, अज्ञात शक्तियाँ और उससे भी ज़्यादा भयानक कुछ छिपा है।"

राजवीर ने नक्शे की ओर देखा। "फिर भी, हमें उसे ढूँढ़ना ही होगा। क्योंकि अगर वह हमारे हाथ लग जाए, तभी हम रक्तमणि ढूँढ़ पाएँगे और सहस्त्रपाणि को मारने की कोशिश कर पाएँगे।"

विनायक ने सिर हिलाया। "हाँ, लेकिन तुम उसे मारना क्यों चाहते हो?"

"मानवता के कल्याण के लिए, उसने कई जानें ली हैं, हम ऐसा दोबारा नहीं होने देंगे," बलदेवने आश्वासन दिया।

"अच्छी बात है, पर याद रखना, यह आसान नहीं होगा। तुम्हें तैयार रहना चाहिए। क्योंकि एक बार तुमने इस रास्ते पर कदम रख लिया फिर वहासे वापस आना बहुत मुश्किल होगा।" विनायक ने स्नेह से कहा।

बलदेव और राजवीर उसे अलविदा कहने जा रहे थे, कि इसी बीच विनायक ने उन्हें फिर से पुकारा।

"रुको.........., राजवीर, तुम पिशाच हो ना? और बलदेव, तुम नरभक्षी भेड़िया।" विनायक ने दोनों को सही पहचाना था।

"तुम्हारे समाज के लोग तभी एकजुट होते हैं जब इस दुनिया में कोई भयानक संकट आता है, यानी उस शक्तिशाली बच्चे का जन्म होने वाला है, यह एक नए युग की शुरुआत हो सकती है।" विनायक ने बात जारी रखी।

"लेकिन मैं इसमें तुम्हारी मदद ज़रूर करूँगा, डरो मत।" विनायक ने उन्हें एक छोटा सा थैला दिया, "इसमें कुछ चीज़ें हैं जो तुम्हें गुफा तक पहुँचने में मदद करेंगी।"

विनायक को फिर से धन्यवाद देते हुए, और किसी को भी अपना असली रूप न बताने का वादा लेते हुए, राजवीर और बलदेव पुस्तकालय से चले गए।

उसी समय, क्रूरसेन ने अपने साथियों को इकट्ठा कर लिया था। वह उनसे बात कर रहा था।

"राजवीर अभी भी अनजान है। लेकिन वह और बलदेव कुछ खोज रहे हैं। उन पर नज़र रखना। और जब सही समय आएगा, तब हम उस पर हमला करेंगे और उस बच्चे को अपने गुरु के पास ले जाएँगे।"

अंधेरी रात के साये में, एक महान संघर्ष आकार ले रहा था। राजवीर और बलदेव अब एक महान सत्य की दहलीज पर खड़े थे। और क्रूरसेन उन पर झपटने के लिए तैयार था।

क्रमशः


कहानी अभी लिखी जा रही है। अगले एपिसोड इरा के फेसबुक पेज पर नियमित रूप से पोस्ट किए जाएँगे, इसलिए पेज को फ़ॉलो करते रहें। यदि आपको यह कहानी श्रृंखला पसंद आती है तो प्रतिक्रिया अवश्य दें।

यह कहानी काल्पनिक है। इसमें चित्रित नाम, पात्र, स्थान और घटनाएँ लेखक की कल्पना की उपज हैं या काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, घटना या स्थान, जीवित या मृत, से इसकी कोई भी समानता पूर्णतः संयोगवश है।

सभी अधिकार सुरक्षित, इस प्रकाशन के किसी भी भाग को लेखक की स्पष्ट लिखित अनुमति के बिना किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से पुन: प्रस्तुत या कॉपी नहीं किया जा सकता है, या किसी डिस्क, टेप, मीडिया या अन्य सूचना भंडारण उपकरण पर पुन: प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। पुस्तक समीक्षाओं के संक्षिप्त उद्धरणों को छोड़कर