Login

रक्तपिशाच का रक्तमणि ३३

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेमकहानी
भाग ३३


थांग गाँव में शाम की ठंडी हवा बह रही थी। जैसे-जैसे सूरज ढल रहा था, आसमान में लालिमा छा रही थी। गाँव में एक वीरान सा माहौल छा गया, मानो कोई बड़ी विपत्ति आ पड़ी हो। राजवीर एक शांत कोने में विचारों में खोया हुआ था। सहस्त्रपाणि की छाया अब उसके परिवार के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गई थी।

वह जानता था कि वह अकेले यह लड़ाई नहीं जीत सकता। उसे आशय की ज़रूरत थी। आशय न केवल उसका दोस्त था, बल्कि एक कुशल योद्धा, शिकारी और अनुभवी रणनीतिकार भी था। इसलिए उसने गाँव के एक भरोसेमंद आदमी को बुलाया, एक तेज़-तर्रार और फुर्तीला यात्री जो पहले एक व्यापारिक कारवां में काम कर चुका था। अपने तेज़ घोड़े से वह एक दिन में कई मील की यात्रा कर सकता था।

"मेरे दोस्त आशय को ढूँढ़ो और उसे जल्द से जल्द यहाँ आने के लिए कहो। मैं बहुत खतरे में हूँ।" राजवीर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

उस आदमी ने दृढ़ता से सिर हिलाया, "मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा।" और तुरंत वह अपने घोड़े पर सवार होकर गाँव से बाहर निकल गया।

उस रात खाने की मेज़ पर शांति नहीं थी। बलदेव चुप था, उसके मन में कुछ विचार चल रहे थे। राजवीर ने आर्या की तरफ़ देखा, वह भी बेचैन थी, पर उसके चेहरे पर एक तरह का भरोसा था।

"मैंने एक ज़रूरी फ़ैसला लिया है," राजवीर ने अचानक कहा।

"मैं कल सुबह रक्तमणी गुफा की तलाश में निकलूँगा।" उसने अपना दृढ़ निश्चय सबको बता दिया।

जब आर्या के चेहरे पर चिंता के भाव दिखे, तो बलदेव ने तुरंत उसकी बात का खंडन किया।

"अकेले?" बलदेव ने आश्चर्य भरी नज़रों से पूछा। "तुम अकेले जाओगे? यह पागलपन है, राजवीर!"

राजवीर ने आँखें बंद कर लीं और गहरी साँस लेते हुए शांत स्वर में उत्तर दिया, "यह लड़ाई मेरी है, बलदेव। मुझे जाना ही होगा।"

"मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा," बलदेव ने दृढ़ता से कहा।

राजवीर ने मना कर दिया। "नहीं। मुझे पता है कि अगर तुम मेरे साथ रहोगे, तो मुझे सहारा मिलेगा। लेकिन आर्या को तुम्हारी यहाँ ज़रूरत है। उसे अपनी और हमारे अजन्मे बच्चे की रक्षा के लिए किसी की ज़रूरत है। तुम उनकी देखभाल कर सकते हो। अगर तुम यहाँ रहोगे, तो मुझे यकीन होगा कि वह तुम्हारे साथ सुरक्षित है।"

बलदेव गुस्सा हो गया, उसने चम्मच हाथ में पटक दिया और कुर्सी पर उठ कर बैठ गया।

"राजवीर, अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो क्या होगा? अगर तुम उस गुफा में फँस गए तो क्या होगा? उस जगह का इतिहास कहता है कि जो कोई अंदर गया है वह कभी बाहर नहीं आया,  ऐसे वक्त दूसरा पहले के लिए साथ दे सकता हैं, इसलिए मेरी बात सुनो, हम दोनों साथ चलेंगे।"

"अभी मेरे पास अकेले जाने के अलावा कोई चारा नहीं है," राजवीर ने धीरे से जवाब दिया।

"सहस्त्रपाणि हम पर हमला करने के लिए तैयार है। उसे हराने के लिए हमें रक्तमणि को ढूँढ़ना होगा। उसे हराने का यही एकमात्र तरीका है।"

आर्या चुप रही। उसकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसने उन आंसुओं रोक लिया।"मैं कुछ नहीं कहूँगी, क्योंकि मुझे पता है कि तुम अपना मन नहीं बदलोगे। लेकिन जल्दी वापस आना, राजवीर, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी।"

सुबह होते ही राजवीर अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। बलदेव ने आखिरी उपाय के तौर पर उसे रोकने की कोशिश की।

"क्या तुम सच में जा रहे हो? तुम अब भी अपना मन बदल सकते हो?" बलदेव ने छोटी आशा से पूछा।

राजवीर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और धीरे से मुस्कुराया। "डरो मत मैं ज़रूर वापस आऊँगा।"

बलदेव को यकीन नहीं हुआ। लेकिन आखिरकार उसने हार मान ली। "ठीक है, लेकिन सावधान रहना।"

गाँव की सीमा पर पहुँचकर राजवीर आखिरी बार मुड़ा। आर्या दरवाज़े पर खड़ी थी, उसकी आँखें चिंता से भरी थीं। बलदेव भी उसके बगल में था, उसके चेहरे पर भी चिंता साफ़ झलक रही थी, उसके हाथ काँप रहे थे।

"अपना ध्यान रखना, मैं जरूर आऊँगा," राजवीर ने धीमी आवाज़ में आर्या से कहा और अपने घोड़े को जोत लिया।

सूरज की पहली किरण के साथ, राजवीर जंगल की अंधेरी छाया में निकल पड़ा। रास्ते में उसे अनगिनत बाधाओं का सामना करना पड़ने वाला था, लेकिन उसके मन में बस एक ही विचार था, रक्तमणि
की खोज!

राजवीर ने अपनी यात्रा अकेले ही शुरू की थी। अपने घोड़े को धीमी गति से चलाते हुए, वह जंगल के संकरे रास्तों से आगे बढ़ रहा था। चारों ओर सन्नाटा था, केवल उसके घोड़े के खुरों की आवाज़ और हल्की हवा की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी।

जंगल का रास्ता पार करते हुए, उसे एहसास हुआ कि यह क्षेत्र सरल नहीं है। पेड़ों की गहरी परछाइयाँ पूरे आकाश को ढँक रही थीं। पेड़ों की शाखाएँ ऐसे हिल रही थीं मानो कोई हवा में उसका पीछा कर रहा हो।

"यह गुफा आख़िर कहाँ है?" राजवीर मन ही मन बुदबुदाया।

वह उसी दिशा में जा रहा था जहाँ विनायक ने उसे बताया था। उसने गुफा के बारे में बहुत कुछ सुना था, उस जगह पर कुछ भयानक, अपवित्र शक्ति थी, जो अंदर जाने वालों को ज़िंदा वापस नहीं लौटने देती थी।

अचानक, उसका घोड़ा बेचैनी से पैर पटकने लगा। उसे आभास हुआ कि कुछ गड़बड़ है। उसने अपनी तलवार उठाई और आगे देखा। आगे रास्ते पर काले धुएँ जैसी एक परछाईं चल रही थी।

धुंधली परछाइ धीरे-धीरे कुछ आकार ले रही थी, वह एक बड़ी, जली हुई सी दिखने वाली मानव आकृति थी। उसकी आँखें लाल लाल चमक रही थीं।

राजवीर ने अपनी तलवार आगे बढ़ाई। "तुम कौन हो?"

वह आकृति एक पल के लिए चुप रही, फिर वह दुष्टता से मुस्कुराई। "मुझे नहीं लगा था कि तुम इतनी दूर तक पहुँच पाओगे, राजवीर। तुम रक्तमणि ढूँढ़ने आए हो ना?"

राजवीर एक कदम पीछे हट गया। "तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?"

आकृति आगे बढ़ी। "क्योंकि इस गुफा में आने वाला हर व्यक्ति पहले से ही मेरी नज़र में है। मैं इस गुफा का रक्षक हूँ!"

एक पल में, वह आकृति हवा में उड़ी और हवा के झोंके की गति से राजवीर की ओर दौड़ी।

राजवीर समय रहते सतर्क हो गया और उसने अपनी तलवार से ज़ोरदार वार किया। लेकिन उसका वार आकृति के आर-पार हो गया! वह किसी मायावी शक्ति से बनी थी।

राजवीर ने जल्दी से दिशा बदली और एक ऊँचे पेड़ के पीछे छिप गया। उसे जल्दी से कुछ करना था, वरना वह शक्ति उसे नष्ट कर देती।

उसे विनायक के शब्द याद आ गए, “रक्तमणि ही एकमात्र ऐसी शक्ति है जो ऐसी दुष्टात्माओं का नाश कर सकती है।”

"मुझे जल्द से जल्द रक्तमणि की तलाश करनी होगी!” राजवीर ने निश्चय किया।

राजवीर सावधानी से एक पेड़ के पीछे छिप गया था। उसके सामने, वह भयानक आकृति हवा में तैर रही थी, उसकी लाल आँखें बिजली की तरह चमक रही थीं। उसका शरीर धुएँ की तरह हिल रहा था, मानो वह किसी भी क्षण अचानक किसी चीज के पीछे अदृश्य होकर फिर प्रकट हो रही थी।

“तुम मुझसे छिप नहीं सकते, राजवीर!” वह छाया धमकी भरे अंदाज़ में हँसी। “मैं तुम्हें उस गुफा में प्रवेश करने से पहले ही खत्म कर दूँगी।”

राजवीर ने मन ही मन सोचा, यह दुश्मन शारीरिक नहीं है, इसलिए इसके सामने तलवार बेकार है। उसे पराजित करने के लिए कोई अलग रणनीति अपनानी होगी।

राजवीर ने तलवार को कसकर हाथ में पकड़ा और एक तरफ़ छलांग लगा दी। वह आकृति भी तेज़ी से आगे बढ़ी और हवा में विलीन होकर फिर उसके सामने आ गई।

लेकिन राजवीर रुका नहीं। उसने सामने एक बड़े पत्थर के पीछे छिपने की कोशिश की। तभी उसे याद आया, यह दुश्मन न सिर्फ़ उसके शरीर पर, बल्कि उसकी हरकतों पर भी नज़र रख रहा था।

उसने जल्दी से अपने शरीर से धूल झाड़ी और एक पुराने पेड़ के सूखे खोखले में घुस गया। खोखले से बाहर देखते हुए, उसने एक योजना बनाई।

"अगर यह प्राणी मेरी हरकतों पर नज़र रख रहा है, तो मुझे इसे भ्रमित करना होगा।"

राजवीर ने तुरंत पास पड़े कुछ छोटे पत्थर उठाए। उसने पहला पत्थर एक दिशा में फेंका, जिससे अचानक एक आवाज़ हुई और वह आकृति उस तरफ़ कूद गई।

फिर उसने दूसरी दिशा में एक और पत्थर फेंका, और आवाज़ सुनते ही वह आकृति उसी दिशा में वापस उड़ गई।

धीरे-धीरे उसने कुछ पत्थर अलग-अलग दिशाओं में फेंके, जिससे एक भ्रम पैदा हुआ - मानो उसकी कई तस्वीरें अलग-अलग जगहों पर दिखाई दे रही हों।

क्रमशः

कहानी अभी लिखी जा रही है। अगले एपिसोड इरा के फेसबुक पेज पर नियमित रूप से पोस्ट किए जाएँगे, इसलिए पेज को फ़ॉलो करते रहें। यदि आपको यह कहानी श्रृंखला पसंद आती है तो प्रतिक्रिया अवश्य दें।

यह कहानी काल्पनिक है। इसमें चित्रित नाम, पात्र, स्थान और घटनाएँ लेखक की कल्पना की उपज हैं या काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, घटना या स्थान, जीवित या मृत, से इसकी कोई भी समानता पूर्णतः संयोगवश है।

सभी अधिकार सुरक्षित, इस प्रकाशन के किसी भी भाग को लेखक की स्पष्ट लिखित अनुमति के बिना किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से पुन: प्रस्तुत या कॉपी नहीं किया जा सकता है, या किसी डिस्क, टेप, मीडिया या अन्य सूचना भंडारण उपकरण पर पुन: प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। पुस्तक समीक्षाओं के संक्षिप्त उद्धरणों को छोड़कर