भाग ३५
राजवीर का प्रतिबिंब अब भी उससे बातें कर रहा था। राजवीर को डराकर भगा देना, यही काम उस प्रतिबिंब को को सौंपा गया था।
राजवीर: "यह सच है कि मेरे दिल में डर है। लेकिन मेरे पास उस डर पर काबू पाने की ताकत भी है। अगर मुझे मौत का सामना करना पड़ा, तो मैं उसके लिए तैयार हूँ। लेकिन मैं रुकूँगा नहीं!"
इन शब्दों के साथ, राजवीर की आँखों में एक अनोखी चमक आ गई। प्रतिबिंब एक पल के लिए लड़खड़ा गया, मानो उसके संकल्प ने उसे हिला दिया हो।
प्रतिबिंब: "अगर तुम आगे बढ़ते रहे, तो तुम न केवल खुद को, बल्कि आर्या और अपने अजन्मे बच्चे को भी खतरे में डालोगे। यह तुम्हारा अहंकार है, राजवीर। तुम्हारा अहंकार तुम्हारे प्रियजनों को बर्बाद कर देगा।"
यह देखकर कि उसे अपनी मौत का डर नहीं है, प्रतिबिंब अब राजवीर के परिवार की ओर मुड़ा।
राजवीरने शांति से उत्तर दिया,
राजवीर: "मैं अपने प्रियजनों को खतरे में नहीं डालना चाहता, मगर ये सिर्फ मुझे डराने ने के लिए तुम कह रहे हो। लेकिन मैं नहीं डरूंगा, अपने परिवार के लिए लड़ूँगा। मैंने यह सफ़र शुरू कर दिया है, और अब मैं इसे पूरा होने तक नहीं रुकूँगा।"
प्रतिबिंब ज़ोर से चिल्लाया, मानो उसके दृढ़ संकल्प ने उसे और भी उग्र बना दिया हो। लेकिन उसी क्षण, राजवीर ने एक कदम आगे बढ़ाया, और प्रतिबिंब का आकार और भी धुंधला होने लगा।
प्रतिबिंब: "तुम्हारा यह आत्म-बल तुम्हें आगे ले जाएगा, लेकिन याद रखना, तुम्हारे हर कदम के साथ, मुसीबतें और भी गहरी होती जाएँगी। देखते हैं तुम्हारा प्रण कब तक टिका रहता है।"
प्रतिबिंब गायब हो गया, और राजवीर ने अपनी तलवार वापस म्यान में रख ली। उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प साफ़ दिखाई दे रहा था। वह एक बार फिर गुफा के रहस्यमयी अंधेरे में आगे बढ़ने लगा, हर कदम और भी मज़बूत, और भी मज़बूत होता जा रहा था।
पूरी गुफा एक तेज़ आवाज़ से काँपने लगी। राजवीर ने इन संवेदनाओं को नज़रअंदाज़ किया और आगे बढ़ने लगा। अचानक उसे ज़मीन पर कुछ ऊँचा महसूस हुआ। उसने उसे हाथ से छुआ और पाया कि यह कोई नक्काशीदार पत्थर है, एक तरह की गुप्त सीढ़ी!
ये सीढ़ियाँ कहीं नीचे जा रही थीं। उसने अपनी तलवार निकाली और धीरे-धीरे नीचे चलने लगा।
सीढ़ियाँ उतरते हुए वह एक चौड़े कमरे में पहुँचा। कमरे के बीचों-बीच एक पुराना पत्थर का चौकोर टुकड़ा था, और उस चौकोर टुकड़े पर खुदा हुआ था"रक्तमणि का रहस्य"।
राजवीर का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। यही वह जगह थी जहाँ नक्शा होना चाहिए था! लेकिन उसे लग रहा था कि यहाँ के सन्नाटे में भी कुछ भयानक छिपा है।
तभी, ऐसा लगा जैसे पीछे से कोई ज़ोर से हँसा हो। उसने मुड़कर देखा, दो लाल आँखें कमरे के एक कोने से उस पर टिकी थीं!
राजवीर सतर्क हो गया और अपनी तलवार म्यान से निकालकर पीछे मुड़ा। कुछ काली आकृतियाँ अँधेरे से आगे बढ़ रही थीं। वे आकृतियाँ इंसानों जैसी लग रही थीं, लेकिन उनकी हरकतें अस्वाभाविक थीं, अलग और विकृत। उनकी आँखें लाल रंगो से चमक रही थीं और उनके शरीर काले साये से ढके हुए थे।
"ये सब कौन हैं?" राजवीर मन ही मन सोचने लगा।
आकृतियाँ धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगीं, उनके मुँह से एक अस्पष्ट, गहरी गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी। राजवीरने अपनी तलवार और कसकर पकड़ ली और एक कदम पीछे हट गया।
उनमें से एक आकृति आगे बढ़ी और गरजती हुई आवाज़ में बोली, "तुम कौन हो? तुम्हें यहाँ आने का अधिकार किसने दिया?"
राजवीरने दृढ़ता से उत्तर दिया, "मैं यहाँ एक रहस्य की खोज में आया हूँ। मैं एक ऐसे रक्तमणि की खोज करना चाहता हूँ जो सहस्त्रपाणी को नष्ट कर सके!"
ये शब्द सुनकर आकृतियाँ एक पल के लिए स्तब्ध रह गईं, फिर उनमें से एक ने कर्कश हँसी के साथ पूछा, "रक्तमणि ? हा...हा! इसे पाना इतना आसान नहीं है। जो भी इसकी तलाश में आता है, वह कभी वापस नहीं लौटता!"
राजवीर कुछ कह पाता, इससे पहले ही आकृतियों ने उस पर हमला कर दिया। पल भर में, उसने खुद को उनसे घिरा पाया। उनके हाथों में बड़े-बड़े लोहे के भाले और अजीबोगरीब हथियार थे। राजवीर ने अपनी तलवार से पहले हमले का जवाब दिया और एक आकृति के हमले को चकमा देते हुए, उस पर तेज़ी से तलवार से वार किया। आकृति तेज़ी से पीछे हट गई, लेकिन उसे कोई चोट नहीं आई।
"ये कोई साधारण दुश्मन नहीं हैं," राजवीर समझ गया। "ये किसी खास तरह के जीव हैं।"
गुफा की धुंधली रोशनी में, राजवीर की आँखों ने कुछ अलग देखा। उन आकृतियों की परछाइयाँ, हमेशा की तरह स्थिर नहीं थीं। वे ऐसे हिल रहे थे मानो खुद को किसी अलग रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हों।
उसने मन ही मन सोचा, "क्या ये परछाइयाँ उनकी मूल शक्ति का स्रोत हो सकती हैं?"
वह यह सोच ही रहा था कि एक आकृति उसकी ओर दौड़ी। राजवीर ने अपनी तलवार आड़ि घुमाई, जो परछाई की गर्दन में घुसकर वापस लौट आई, और इसी क्षण वह आकृति अचानक एक भयानक चीख के साथ ज़मीन पर गिर पड़ी और कुछ ही क्षणों में नष्ट हो गई।
"हां यही उपाय है!"
राजवीर ने तुरंत बाकी आकृतियों पर हमला कर दिया। उसने सीधे उनकी परछाइयों पर निशाना साधना शुरू कर दिया। एक-एक करके, आकृतियाँ डर के मारे चीखने लगीं और उनमें से कुछ राजवीर की ताकत का सामना नहीं कर सकीं।
सभी आकृतियाँ नष्ट हो जाने के बाद, राजवीर पत्थर की ओर वापस गया। अब उसे उस लेखन का कुछ अर्थ समझ आने लगा था।
उस पत्थर पर लिखा था,
"केवल वही जो अपने भय पर विजय प्राप्त कर लेता है, रक्तमणि को खोज पाएगा। मार्ग उस तलवार में है जो परछाइयों को चकनाचूर कर देती है, और उस हृदय में है जो सत्य का प्रकाश दिखाता है। रक्तमणिका असली नक्शा गुफा के अंदर है, लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए भय के द्वार से होकर गुजरना होगा।"
राजवीर ने संदेश पढ़ा और मन ही मन सोचा, "इसका मतलब है कि मुझे एक और कठिन परीक्षा का सामना करना होगा।"
उसने पत्थर पर बने नक्शे का अध्ययन किया और पाया कि गुफा के अगले भाग में एक गुप्त द्वार है। वह वहाँ से आगे बढ़ने के लिए तैयार था।
"अब पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है।"
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इस बीच, थांग गाँव में, बलदेव और आर्या राजवीर के लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। आर्या थोड़ा बेचैन थी।
आर्या : "राजवीर अभी तक नहीं लौटा है। मुझे चिंता हो रही है, बलदेव। अगर उसे कुछ हो गया तो क्या होगा?"
बलदेव: (गंभीर स्वर में) "राजवीर आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। लेकिन हाँ, वहाँ खतरे बिल्कुल अप्रत्याशित होंगे। हमें भी तैयार रहना चाहिए।"
इसी बीच, कुछ अनजान लोग गाँव में आकर रुक गए। उन्होंने अपनी पैनी निगाहों से बलदेव का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
बलदेव: (मनमे) "ये कौन हैं? और इनके यहाँ आने का क्या कारण है?"
वह सभी क्रूरसेन के लोग थे। वह आर्या और बलदेव को देखते हुए क्रूरसेन के घर में दाखिल हुए। बलदेव उन्हें देख रहा था।
क्रूरसेन के लोग लंबे, हट्टे-कट्टे और सांवले थे। उनकी आँखों में एक अजीब, भावशून्य चमक थी, मानो उनमें कोई भावना ही न हो। वे हमेशा गहरे रंग के, फटे-पुराने कपड़े पहनते थे और उनकी हरकतें सतर्क, लेकिन शिकारी जैसी होती थीं। उनकी मौजूदगी से माहौल दमनकारी लग रहा था।
बलदेव को क्रूरसेनके आने के बाद से ही उस पर शक था। वह कोई साधारण आदमी नहीं था, उसकी हरकतें किसी कठोर सैनिक जैसी लगती थीं, बलदेव ज़्यादातर आर्या पर ही अपनी आखे केंद्रित रखता था। जब भी आर्या बाहर निकलती, बलदेव को लगता कि उसके आदमी उसका पीछा कर रहे हैं।
गुफा में, राजवीर एक छोटे रास्ते पर आगे बढ़ रहा था। उस रास्ते के अंत में एक विशाल दरवाज़ा था, जो सूखे खून के धब्बों से ढका हुआ था।
"यह ज़रूर 'डर का दरवाज़ा' होगा।"
राजवीर दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ा। लेकिन उसी समय, उस दरवाज़े के पार से एक तेज़ आवाज़ आई...
"जो भी इस जगह में प्रवेश करेगा, उसकी आत्मा हमेशा के लिए इस गुफा में कैद हो जाएगी!"
राजवीर थोड़ा पीछे हट गया। उसे नहीं पता था कि उसके आगे और क्या-क्या ख़तरे हैं, और रक्तमणि ढूँढ़ने के लिए उसे अभी और कितनी परीक्षाओं का सामना करना पड़ने वाला है।
क्रमशः
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