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रक्तपिशाच का रक्तमणि ३६

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ३६


राजवीर उन काली आकृतियों को पार करके आगे बढ़ गया था। गुफा का वातावरण और भी ठंडा और भयावह होता जा रहा था। उसके सामने एक छोटा रास्ता दिखाई दे रहा था, जो गुफा के अंदर तक जाता था। उसके अंत में एक गुप्त द्वार दिखाई दे रहा था। जैसे ही वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा, उसे एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, मानो कोई उसे चेतावनी दे रहा हो। उसने इधर-उधर देखा, ऊपर-नीचे देखने की कोशिश की, लेकिन उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया।

गुफा की दीवारों पर कुछ शिलालेख खुदे हुए थे। उन पर कोई अनजानी भाषा में उलझे हुए अक्षरों में लिखा था जिसे राजवीर समझ नहीं पाया, लेकिन कुछ जगहों पर स्पष्ट मानव आकृतियाँ और एक बड़े लाल रंग में एक रत्न जैसा आकार था।

"यह ज़रूर रक्तमणि का संकेत होगा," राजवीर मन ही मन बुदबुदाया।

उसने दीवार पर हाथ फिराया और उसी समय ज़मीन के नीचे कुछ हिलता हुआ महसूस किया। अचानक, ज़मीन से एक विशालकाय मूर्ति उभरी। उसकी लाल आँखें चमक रही थीं और वह सीधे राजवीर की ओर दौड़ी।

राजवीर सतर्क था। वह तुरंत पीछे कूदा, मूर्ति अचानक जीवित हो गई और उस पर हमला करने लगी। इसे किसी भी हथियार से नष्ट नहीं किया जा सकता था। राजवीर ने जल्दी से सोचा और समझ गया, यह एक तरह की परछाई थी, जो सिर्फ़ सामने वाले के मन में बैठे डर पर ही असर कर सकती थी।


"अगर मैं इससे डरता रहा, तो यह और भी मज़बूत हो जाएगी," राजवीर ने खुद को समझाया। उसने अपना मन स्थिर रखा और मूर्ति का सामना किया। जैसे-जैसे वह निडर होता गया, मूर्ति धीरे-धीरे विलीन होने लगी। अंततः वह पूरी तरह से गायब हो गई और सामने के गुप्त पत्थर के दरवाज़े खुल गए।

दरवाज़े के अंदर एक बड़ा सा कमरे जैसा क्षेत्र था। बीच में एक पुरानी किताब खुली हुई थी और वह खून की तरह लाल रंग से रंगी हुई थी। राजवीर धीरे से किताब के पास गया और देखा। अंदर कुछ लिखावट थी।

"यह रक्तमणि अमरता के विनाश का रहस्य है। यह मणि केवल वही व्यक्ति पा सकता है जो इसका असली उत्तराधिकारी हो। लेकिन इसे पाने के लिए, आपको इसका नक्शा ढूँढ़ना होगा, जो इस गुफा में ही कही छिपा है।"

उसी समय, ज़मीन के नीचे किसी चीज़ के खड़खड़ाने की आवाज़ आई। जब राजवीर ने पीछे मुड़कर देखा, तो उसे एहसास हुआ कि नक्शा एक खंभे पर लिखा गया था, लेकिन उसे पाने के लिए उसे एक और जाल पार करना था।

उसी समय, थांग गाँव में क्रूरसेन का एक जासूस, जो आर्या और बलदेव पर नज़र रख रहा था, उसने अपने साथियों को संदेश भेजा, "राजवीर गाँव से चला गया है। यही सही समय है, हम आर्या को तुरंत उठा लेंते है, ताकि जैसे ही वह किसी बच्चे को जन्म दे, उसका बच्चा हम गुरु के हाथों में रख सकते है।"

क्रूरसेना के लोग गाँव की ओर बढ़ने लगे। बलदेव ने उन्हें भाँप लिया। "ये लोग यहाँ क्यों इकट्ठे हुए हैं? ज़रूर वे आर्या को परेशान करने की योजना बना रहे होंगे।" बलदेव ने आर्या की सुरक्षा का उचित प्रबंध किया और स्वयं जाँच-पड़ताल करने आगे बढ़ गया।


राजवीर खंभे पर लगे नक्शे की ओर बढ़ रहा था। लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ा, ज़मीन के नीचे का फ़र्श हिलने लगा। अचानक दीवारों से बड़े-बड़े काँटे निकल आए। यह देखकर राजवीर तेज़ी से आगे कूदा, लेकिन अब उसके सामने एक विशाल अग्निकुंड था।

वह दूसरी तरफ़ पहुँचना चाहता था, लेकिन कोई रास्ता नहीं था। सोचते-सोचते उसने देखा कि दीवारों पर कुछ पहेलियाँ लिखी हुई थीं।

राजवीर नक्शे तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन जब उसने उस सीधे खंभे पर दो पहेलियाँ लिखी हुई देखीं, तो वह थोड़ा घबरा गया। उन पहेलियों का जवाब दिए बिना आगे बढ़ना नामुमकिन था।

उसने पहली पहेली हल करने के लिए ले ली। वह उसके ठीक सामने दिखाई दे रही थी।

"मैं प्रकाश में हूँ, लेकिन मैं अंधकार का एक हिस्सा हूँ। जितना ज़्यादा तुम मुझे पकड़ने की कोशिश करोगे, मैं उतना ही अदृश्य होता जाऊँगा। मैं कौन हूँ?"

राजवीर ने आँखें बंद कीं और सोचा। जब उसने अंधकार और प्रकाश के बारे में सोचा, तो उसे एहसास हुआ "छाया!"

उसने एक खंभे पर खुदी हुई एक पत्थर की पटिया को छुआ और उत्तर दिया, "छाया!"
उसी क्षण, खंभा हिल गया और पहली बाधा का द्वार हट गया।

लेकिन तुरंत ही, उसके सामने एक और पहेली प्रकट हुई।

"मैं कभी चलता नहीं, बल्कि हमेशा आगे बढ़ता हूँ। मैं कभी रुकता नहीं, बल्कि हमेशा चलता रहता हूँ। कोई मेरे साथ नहीं चल सकता, लेकिन मैं सबको साथ ले कर चलता हूँ। मैं कौन हूँ?"

राजवीर ने नक्शे की तरफ़ देखा। उसने पहले भी सुना था कि ऐसे प्राचीन स्थानों में समय और नियति से जुड़ी पहेलियाँ होती हैं। उसने सोचा और जवाब दिया "समय!"

राजवीर ने पहली दो पहेलियाँ सुलझा ली थीं और खंभे पर लगे रहस्यमयी तंत्र को सक्रिय कर दिया था। जब लगा कि रास्ता साफ़ हो गया है, खंभे पर एक और पहेली दिखने लगी। यह आखिरी बाधा थी।

"मैं किसी को नहीं छोड़ता, एक बार मेरे चंगुल में आ जाए तो कोई फिर नहीं बचता। मैं किसी को छूता नहीं, फिर भी सबको गले लगाता हूँ। मैं कौन हूँ?"

राजवीर थोड़ा उलझन में था। पहली दो पहेलियों के जवाब थे 'छाया' और 'समय'। यह पहेली भी उसी तरह की लग रही थी। उसने सोचा—ऐसा क्या है जो सब तक पहुँचता है और कोई भी उसके चंगुल से नहीं बच पाता?

अचानक उसके मन में एक शब्द आया  "मृत्यु!"

उसने दृढ़ता से खंभे को छुआ और कहा, "मृत्यु!"

एक पल के लिए कुछ भी नहीं हिला। राजवीर को लगा कि उसका जवाब ग़लत था। एक पल में पूरी गुफा हिल गई। खंभा अंदर सरका और सामने का दरवाज़ा ज़ोरदार आवाज़ के साथ खुल गया। दीवार पर एक चमकदार नक्काशी चमक उठी जिसके अंदर एक नक्शा उकेरा हुआ था। राजवीर की साँसें थम गईं। उसने आखिरी बाधा पार कर ली थी।

"मेरी परीक्षा पूरी हो गई," राजवीर मन ही मन बुदबुदाया और एक कदम आगे बढ़ा। लेकिन उसे नहीं पता था कि यह तो बस पहली बाधा का हल था। उसकी असली परीक्षा तो आगे शुरू होने वाली थी।

नक्शा देखते ही उसे एहसास हुआ कि वह रक्तमणि एक प्राचीन मंदिर के तहखाने में दबी है, जो सहस्त्रपाणि साम्राज्य के बहुत पास था। "तो मुझे वहाँ पहुँचना ही होगा," उसने मन ही मन कहा।

उसी समय, उसे एक अलग ही अनुभूति हुई। गुफा के अँधेरे से कोई उसे देख रहा था। वह पीछे मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उसने सोचा, "शायद यह मेरा भ्रम है।" लेकिन वह पूरी तरह से ग़लत था।

क्रूरसेन के लोग बड़ी संख्या में थांग गाँव में घुसने लगे। बलदेव को एहसास हुआ कि आर्या और उसका अजन्मा बच्चा बहुत ख़तरे में हैं।

उसने आर्या से सावधान रहने को कहा, "राजवीर जल्द ही लौट आएगा, लेकिन तब तक तुम्हें सुरक्षित रहना होगा। इन लोगों के इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं, बलदेव उसकी रक्षा के लिए दिन-रात नज़र रख रहा था।"

आर्या चिंतित हो गई। उसे अपने बच्चे के लिए डर महसूस होने लगा। लेकिन उसने कमज़ोर न पड़ने का दृढ़ निश्चय किया।

राजवीर को अब गुफा से वापस लौटना पड़ा। लेकिन उसे एहसास हुआ कि बाहर निकलने का रास्ता बदल चूका है। वह गुफा से बाहर निकलनेकी कोशिश करने लगा, लेकिन वह रास्ता अब दिखाई नहीं दे रहा था।

"गुफा ने अपना रूप बदल लिया है। यह और भी बड़ा जाल है।"

उसे बाहर निकलने का कोई नया रास्ता ढूँढ़ना पड़ने वाला था। और उसी समय, एक साया उसके पीछे-पीछे चल रहा था, कोई उसका पीछा कर रहा था।

राजवीर को नक्शा मिल चूका था। लेकिन उसे बाहर निकलना ही था। क्रूरसेन के आदमियों ने थांग गाँव को घेर लिया था। बलदेव और आर्या उनसे कैसे निपटेंगे? और सबसे अहम सवाल यह था कि क्या राजवीर समय पर वहाँ पहुँच पाएगा या नहीं।

क्रमशः

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