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रक्तपिशाच का रक्तमणि ३८

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ३८

राजवीर के तेज़ कदम साफ़ दिखाई दे रहे थे। आर्या और अजन्मे बच्चे की चिंता उसके मन पर एक छाया की तरह छाई हुई थी। गुफा से निकलते ही वह जंगल पार करके थांग गाँव की ओर चल पड़ा। लेकिन उसे क्या पता था कि रास्ते में उसे कुछ भयानक खतरों का सामना करना पड़ेगा।

रात के अँधेरे में झाड़ियों के बीच से गुज़रते हुए, राजवीर के कदमों की आहट उस खामोश माहौल में भारी लग रही थी। थांग गाँव में आर्या और अजन्मे बच्चे के ख्यालों ने उसका मन मोह लिया था। उसके कदम तेज़ हो रहे थे, लेकिन अचानक वह रुक गया।

उसके सामने का दृश्य भयावह था। चाँद की हल्की रोशनी में ज़मीन पर पड़े चार-पाँच शव साफ़ दिखाई दे रहे थे। उनके शरीर पर गहरी खरोंचें थीं, मानो किसी के भयानक पंजों ने उन्हें चीर डाला हो। एक हल्की सी गंध उसकी नाक में घुसी। वह सतर्क हो गया।

"आखिर यह क्या है?" उसने मन ही मन बुदबुदाया और अपनी तलवार निकाल ली।

जैसे ही वह लाशों को पार करके आगे बढ़ने ही वाला था कि उसके पीछे एक लाश हिलने लगी!

"खर्रर्र...."

एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, और एक लाश का हाथ ज़मीन पर पड़ा। राजवीर सिहर उठा। उसके सामने एक लाश धीरे-धीरे उठने लगी। लाश का शरीर खड़ा हो गया और उसकी खोखली आँखों से एक नीली रोशनी चमकने लगी।

"तुम्हें...तुम्हें...यहाँ...नहीं...आना...चाहिए..." मरे हुए आदमी के खोखले गले से एक भयानक आवाज़ निकली।

राजवीर ने घूरकर देखा। अब सिर्फ़ एक नहीं, बल्कि सारी लाशें हिल रही थीं।

वे सब एक विकृत तरीकेसे उठने लगे और राजवीर की ओर मुड़े। उनकी हड्डियाँ टूटने जैसी आवाज़ें, खून से सने उनके कपड़े और उनकी खोखली आँखें - पूरा दृश्य बेहद भयावह था।

उनमें से एक अचानक उछल पड़ा और राजवीर की ओर दौड़ा!

राजवीर ने तुरंत अपनी तलवार घुमाई। उसके वार से मृतक का शरीर दो टुकड़ों में बँट गया, लेकिन वह फिर से हिलने लगा, अपने सड़े हुए हाथ आगे बढ़ा रहा था।

"यह तो कुछ अलग है..." राजवीर को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण लाश नहीं थी।

एक पल में, बाकी लाशें भी उस पर गिर पड़ीं। एक ने उसका हाथ काटने की कोशिश की, जबकि दूसरे ने राजवीर को ज़मीन पर गिराने की कोशिश की।

"इन्हे अब रोकना होगा!" राजवीर ने मन ही मन ठान लिया।

उसने जल्दी से एक हाथ झटककर तलवार भोंक दी, लेकिन लाश फिर से उठ रही थी। तलवार के वार से वे रुके नहीं!

राजवीर ने इधर-उधर देखा। उसे एक बड़े सूखे पेड़ की एक टहनी दिखाई दी।

"आग! सिर्फ़ आग ही उन्हें नष्ट कर सकती है!"

वह जल्दी से पेड़ के पास पहुँचा और एक बड़ा टुकड़ा तोड़ लिया। उसकी कमर में एक पत्थर का पट्टा बंधा था। उसने जल्दी से उस पत्थर के पट्टे पर टहनी रगड़नी शुरू कर दी। देखते ही देखते टहनी में आग लग गई और एक मशाल बन गई।

उस तेज़ रोशनी में लाशें चीख उठीं।

"हाँ! ये सब इसे सहन नहीं कर पाएँगे!"

राजवीर ने मशाल मृतकों की ओर घुमा दी। जो लोग मशाल के संपर्क में आए, वे दर्द से ज़मीन पर गिर पड़े। एक-एक करके वे जल रहे थे, और उनकी नीली रोशनी पूरे जंगल में भयानक परछाइयाँ डाल रही थी।

आखिरकार, सभी ज़मीन पर गिर पड़े। उनकी राख की हल्की गंध हवा में फैल गई और एक बार फिर अँधेरा छा गया।

राजवीर हाँफता हुआ खड़ा था। उसके हाथ में मशाल मंद थी, लेकिन वह विजयी था।

"यह सहस्त्रपाणि के लोगों का काम होगा... उन्हें शायद पता चल गया होगा कि मुझे रक्तमणि का नक्शा मिल चूका है?"

उसने निचे गिरी हुई सारी राख को देखा। क्या यह सिर्फ़ एक चेतावनी थी, या कुछ और बड़ा होने वाला था?

वह मन ही मन सोचते हुए फिर से थांग गाँव की ओर चल पड़ा।

राजवीर सावधानी से जंगल के रास्ते से आगे बढ़ा। लाश के खतरे से बचकर, उसने सोचा कि अब वह सुरक्षित चल सकता है। लेकिन उसकी चेतना जल्दी ही गायब हो गई।

हवा के साथ, सड़े हुए खून और गीले बालों की भयानक गंध उसके नथुनों में भर गई।

गंध इतनी तेज़ और बेचैन करने वाली थी कि उसका पेट मचल उठा। कोई भयानक, भूखा और खून से लथपथ जीव उसकी ओर बढ़ रहा था।

राजवीर एक पेड़ के पीछे छिप गया और घने अंधेरे में झाँका।

कुछ ही पलों में, घास हिलने लगी और पत्तों के बीच से कोई बड़ी चीज़ निकली।

उस अंधेरे में भी उसे न ढूँढ़ पाना नामुमकिन था। लगभग सात फुट लंबा, बालों वाला और सड़े हुए खून की गंध से भरा, वह शिकारी जंगल में घूमने वाले किसी भी अन्य जंगली जानवर से बिल्कुल अलग था।

जंजीर के टूटे हुए टुकड़े अभी भी उसके शरीर से लटक रहे थे, मानो वह किसी तरह की कैद से छूटकर आया हो। उसके लंबे पैर के नाखून ज़मीन में गड़े हुए थे, और किसी जानवर का खून अभी भी उसके मुँह में लगा हुआ था।

राजवीर की धड़कनें तेज़ हो गईं जैसे ही उसने उसकी लाल आँखों में चमक देखी।

राजवीर अभी भी सतर्क था। वह जानता था कि यह कोई आसान ख़तरा नहीं है। भालू जितना ताकतवर और भेड़िये जितना फुर्तीला यह शिकारी उसे आसानी से गिरा सकता था।

राजवीर ने अपनी तलवार म्यान से निकाली।

"यह कौन है?" उसके मन में एक सवाल उठा।

लेकिन इससे पहले कि वह कुछ सोच पाता, शिकारी ज़ोर से दहाड़ा और उस पर झपटा!

राजवीर एक तरफ़ हट गया, लेकिन घातक प्रहार से बच गया, उसके पंजों ने पेड़ की छाल फाड़ दी थी!

"यह बहुत शक्तिशाली है," राजवीर को एहसास हुआ।

वह थोड़ा दूर कूदा और अपनी तलवार से वार किया।

आह!

तलवार ने शिकारी के हाथ पर गहरा घाव कर दिया।

लेकिन खून की जगह, एक काला, कीचड़ जैसा रस बहने लगा।

दर्द से चीखने की बजाय, शिकारी ने एक ऐसी आवाज़ निकाली जो ज़्यादा क्रूरता से हँसने जैसी लग रही थी, और घाव ने उसे और ताकत दे दी।

राजवीर को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण राक्षस नहीं था। यह ज़रूर कोई शापित योद्धा होगा, जो किसी के श्राप से मौत के कगार पर खड़ा था।

"अगर यह तलवार उसे परेशान नहीं करती, तो मुझे कोई और रास्ता ढूँढ़ना होगा!"

वह शिकारी से बचकर एक सूखे पेड़ के पास गया। राजवीर ने पहले कहीं पढ़ा था कि उस पेड़ की छाल में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो काली शक्तियों को कमज़ोर कर देते हैं।

पेड़ का एक टुकड़ा तोड़कर, उसने उसे अपनी तलवार की नोक से कसकर बाँधा और आत्मविश्वास से शिकारी की ओर फिर से दौड़ा।

इस बार, राजवीर ने सीधे सामने खड़े शिकारी की छाती पर वार किया।

जैसे ही पेड़ की छाल उस पर लगी, शिकारी ने एक भयानक चीख निकाली!

कुछ ही पलों में उसका पूरा शरीर अंदर से जलने लगा और कुछ ही पलों में वह राख में तब्दील हो गया। सफ़ेद और काली राख हर जगह फैल गई। राजवीर उसके शरीर से एक तेज़ रोशनी निकलती हुई देख सकता था।

राजवीर ने गहरी साँस ली।

यह सुनिश्चित करते हुए कि शिकारी मर चुका है, उसने अपनी तलवार म्यान में रख ली।

लेकिन उसके दिल में अभी भी बेचैनी थी।

"क्या यह तो बस शुरुआत थी? और कितने शिकारी मेरा इंतज़ार कर रहे हैं?"

वह फिर से तेज़ी से थांग गाँव की ओर चल पड़ा...।

आखिरकार वह थांग गाँव के द्वार पर पहुँच गया। गाँव में शांति थी, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी।

"आर्या, ठीक होगी ना ?" वह अपने घर की ओर दौड़ा।

घर के बीचों-बीच उसे क्रूरसेन का घर दिखाई दिया, जिसके बाहर कुछ अलग तरह के हट्टे-कट्टे आदमी बैठे बातें कर रहे थे। गौर से देखने पर उसे एहसास हुआ कि वे लोग उसके घर पर नज़र रखे हुए हैं, इसलिए वह चुपके से पीछे के रास्ते से अपने घर की ओर चला गया ताकि वे उसे देख न सकें।

जब वह घर के पिछले दरवाज़े पर पहुँचा, तो उसे अंदर से आर्या की आवाज़ सुनाई दी। वह बलदेव से किसी गंभीर बात पर बात कर रही थी।

"बलदेव, हमें कब तक इंतज़ार करना होगा? पता नहीं राजवीर कहाँ चला गया! मुझे डर लग रहा है..."

राजवीर के चेहरे पर एक शांत मुस्कान आ गई। वह घर की दहलीज़ से अंदर आया और बोला, "मैं आ गया!"

आर्या उसे देखकर दंग रह गई, उसकी आँखों में खुशी के आँसू बह रहे थे।

क्रमशः

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