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रक्तपिशाच का रक्तमणि ३९

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ३९

पिछले कुछ दिनों से मौत के साये से बचकर राजवीर आखिरकार थांग गाँव लौट आया था। हालाँकि उसके शरीर के ज़ख्म पल भर में भर गए थे, लेकिन खून से सने कपड़े उसकी भयानक यात्रा की गवाही दे रहे थे। लेकिन उसकी जेब में रखे रक्तमणी के नक्शे ने उसके सारे दर्द को एक अर्थ दे दिया था।

जैसे ही उसने पिछले दरवाज़े से घर में कदम रखा, आर्या की आँखों के सामने राजवीर का चेहरा उभर आया। ज़मीन पर बैठी आर्या की आँखों में आँसू आ गए।

"राजवीर!" उसकी आवाज़ काँप उठी। वह दौड़कर आगे बढ़ी और उसे कसकर गले लगा लिया। वह उसके कंधे पर सिर रखकर रोने लगी थी।

"क्या तुम ठीक हो?" उसकी आवाज़ चिंता से भरी थी।

राजवीर मुस्कुराया, लेकिन उस मुस्कान में उसके संघर्ष की झलक थी।

"मैं वापस आ गया हूँ ना? अब सब ठीक है।" उसने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियों से उसके आँसू पोंछने लगा।

बलदेव भी एक तरफ खड़ा था। उसने गहरी साँस ली और राजवीर के कंधे पर हाथ रखा। "सच में, यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि तुम इतनी जल्दी वापस आ गए। हम सोच भी नहीं सकते कि तुम्हें क्या-क्या सहना पड़ा होगा। लेकिन मुझे अपने सफ़र के बारे में थोड़ा बताओ ताकि मैं भी उससे प्रेरित हो सकूँ।"

"तुम्हें बताने के लिए पूरा दिन चला जाएगा," राजवीर ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए मज़ाक किया। "लेकिन सबसे ज़रूरी बात, मेरे पास रक्तमणि का नक्शा आ चुका है।"

यह सुनकर बलदेव खुश हो गया, फिर कुछ सोच में पड़ गया। उसने दरवाज़े की दरार से बाहर झाँका और फिर पूछा, "तुम पिछले दरवाज़े से क्यों आए?"

राजवीर ने दरवाज़ा बंद किया और धीमी आवाज़ में जवाब दिया।

"गाँव में कुछ संदिग्ध लोग घूम रहे हैं। मुझे लगता है हमारे घर पर कड़ी नज़र रखी जा रही है। वे हमारे पीछे पड़े हैं, क्या तुम्हें इसके बारे में कुछ पता है?"

आर्या थोडी डरी हुई थी। "हाँ, वे हाल ही में गाँव में आए हैं, मुझे नहीं पता वे कौन हैं?"

बलदेव ने आह भरी और गंभीरता से बात करने लगा।

"वे क्रुरसेन के लोग ही होंगे। यह कोई साधारण यात्री नहीं है। वह कुछ दिन पहले गाँव आया था, लेकिन इसने यहाँ किसी से ज़्यादा बात नहीं की है। इसने हमारे घर के पासही एक घर ख़रीदा है। मुझे भी उस पर शक है, लेकिन मुझे अभी तक उसके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला है।"

राजवीर ने अपनी भौहें उठाईं। "तो क्या यह सच है कि वह हम पर नज़र रख रहा है?"

बलदेव ने सिर हिलाया। "हाँ। मुझे डर है कि उसे रक्तमणि की हमारी खोज के बारे में कुछ पता है, या वह इसके बारे में पता लगाने हमारे पास आया है।"

राजवीर के मन में विचारों की बाढ़ आ गई। अगर क्रूरसेन हमारा पीछा कर रहा है, तो सहस्त्रपाणी को हमारी गतिविधियों के बारे में ज़रूर पता होगा।

"हमें पता लगाना होगा कि क्रूरसेन को यहाँ किसने भेजा? वह यहाँ क्यों आया? और उसका असली मकसद क्या है?"

बलदेव ने उलझन भरे अंदाज़ में पूछा, "क्या हम उसकी गतिविधियों पर नज़र रख सकते हैं?"

"हमें यही करना चाहिए!" राजवीर की आवाज़ दृढ़ थी।

"लेकिन उससे पहले... हमें इस नक्शे का अच्छी तरह से विश्लेषण करना होगा।"

राजवीर ने अपने कपड़ों के नीचे से एक कपड़ा निकाला और उसे मेज़ पर बिछा दिया। आर्या और बलदेव भी पास आ गए।

नक्शा पुराने ज़माने की शैली में टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में बनाया गया था। उस पर आदिवासी भाषा में कुछ रहस्यमयी चिन्ह और पहेलियाँ लिखी हुई थीं जो राजवीरनेही खंभे को देख कर बनाई थी।

बलदेव नक्शे को घूरता रहा। उसकी आँखों में संदेह की झलक थी। उसने नक्शे का कपड़ा हाथ में लिया, उस पर बनी रेखाओं और चिह्नों को गौर से देखा, और फिर गंभीर स्वर में बोला, "राजवीर, क्या तुम्हें यकीन है कि यह नक्शा असली है? क्योंकि यह कपड़ा बिल्कुल नया लग रहा है। अगर यह नक्शा सचमुच सैकड़ों साल पुराना होता, तो इस पर समय के निशान ज़रूर दिखते, फटे हुए किनारे, उधड़े हुए किनारे, या घिसा हुआ कपड़ा। लेकिन इसे देखकर, मुझे लगता है कि इसे हाल ही में किसी ने बनाया होगा।"

राजवीर ने बलदेव से नक्शा लिया और उसकी आँखों में देखते हुए शांत स्वर में कहा, "बलदेव, तुम्हारा शक सही है। लेकिन यह सही नक्शा है। बस असली नक्शा दीवार पर था, और मैंने उसे नए कपड़े पर ज्यों का त्यों बना दिया।"

बलदेव की भौहें अभी भी थोड़ी उठी हुई थीं। वह अभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं था। "तो तुम कह रहे हो कि यह नक्शा अपने असली रूप में नहीं था?"

राजवीर ने इनकार में सिर हिलाया। "यह नक्शा गुफा के अंदर एक खंभे पर उकेरा गया था। वहाँ की पहेलियों को सुलझाने के बाद ही वह सामने आया। मैंने यहाँ उन चिह्नों को बड़ी सावधानी और सटीकता से फिर से बनाया है। इसलिए चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

बलदेव ने नक्शे को देखते हुए एक पल सोचा। फिर उसके चेहरे का तनाव थोड़ा कम हुआ। "अगर तुम कहते हो कि यह नक्शा विश्वसनीय है, तो मुझे तुम पर विश्वास है। लेकिन फिर भी, हमें इसकी अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए। क्योंकि अगर यह हमारे दुश्मन द्वारा बनाया गया कोई फ़र्ज़ी नक्शा है, तो यह हमें गलत दिशा में ले जाएगा।"

राजवीर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और आत्मविश्वास से कहा, "तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो, बलदेव। मुझे जल्दी निकलना है। रक्तमणि को ढूँढने का समय बहुत कम है।"

बलदेव ने गहरी साँस ली और गंभीर स्वर में कहा, "ठीक है, तो चलो तुम्हारे जाने की तैयारी शुरू करते हैं। लेकिन याद रखना, यह सफ़र आसान नहीं होगा।"

"यह जगह कहाँ है?" आर्या ने पूछा।

राजवीर ने नक्शे के कोने की ओर देखा।

"यह कोई साधारण गाँव या जंगल नहीं है। यह एक बहुत ही रहस्यमय और गुप्त जगह है। शायद वहाँ किसी खास समय पर ही पहुँचना संभव हो।"

बलदेव ने गौर से पूछा, "तो तुमने जाने का फैसला कब किया है? लेकिन उससे पहले, तुम थक गए होंगे। थोड़ा आराम कर लो, फिर हम आगे बात करेंगे।"

आर्या राजवीर को लेकर अपने शयनकक्ष में चली गई। लगभग एक महीने बाद, राजवीर नक्शे की प्रति लेकर आया था। वह उससे अपने मन की बातें, जो वह बलदेव के सामने नहीं कह सकती थी, करने को उत्सुक थी।

रात की ठंडी हवा खिड़की से धीरे-धीरे अंदर आ रही थी। राजवीर और आर्या अपने शयनकक्ष में आ गए, दोनों काफी देर तक एक-दूसरे के साथ चुपचाप बैठे रहे। राजवीर का सफ़र मुश्किल भरा था, लेकिन अब आर्या को सुरक्षित देखकर उसके दिल को तसल्ली हुई। हालाँकि, आर्या अलग-अलग बातें कर रही थी। अपने सफ़र के बारे में, अपनी चिंताओं के बारे में, और अपने अजन्मे बच्चे के बारे में। कभी उसकी आवाज़ में मिठास होती, कभी थोड़ी चिंता, और कभी उसकी आवाज़ में एक छोटे बच्चों जैसी ज़िद।

राजवीर उसकी हर बात पर ध्यान दे रहा था, उसके बालों को हल्के से सहला रहा था। जैसे-जैसे वह बोल रही थी, आर्या की आवाज़ धीमी होती गई, उसकी आँखों पर थकान की परछाईं पड़ने लगी और कुछ ही पलों में वह उसके कंधे पर सिर रखकर सो गई। उसकी शांत, बेफ़िक्र साँसों की आवाज़ सुनकर राजवीर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने उसके माथे को हल्के से चूमा और खुद भी उसके बगल में चुपचाप लेट गया, लेकिन थोड़ी देर बाद वह फिर चुपके से उठा और बलदेव के पास चला गया।

उस रात, राजवीर और बलदेव दोनों गाँव के कुछ लोगों से चुपके से पूछताछ करने लगे।

उन्हें पता चला कि क्रूरसेन और उसके आदमी गाँव में राजवीर के घर के सामने लगातार घूम रहे थे, मानो घर की खबर लेना चाहते हों।

जब सुबह आर्या और राजीव घर नक्शा देखने लगे, तो बलदेव बाहर पहरा दे रहा था।

तभी... किसी चीज़ के हिलने की आवाज़ आई!

बलदेव सतर्क हो गया और उसने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली।

उनके घर की खिड़की के बाहर कोई खड़ा था।

"कौन है?" बलदेव ज़ोर से चिल्लाया। यह सुनकर जो भी वहाँ था, चुपके से भाग गया। बलदेव बाहर देखने गया तो पाया कि वहाँ कोई नहीं था।


क्रमशः 

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