भाग ४०
अँधेरी रात के साये थांग गाँव पर छा रहे थे। चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ सा लग रहा था, मानो वह भी खतरे की आशंका से डरा हुआ हो। आर्या और बलदेव राजवीर के घर लौट आने से बहुत राहत महसूस कर रहे थे, लेकिन अनजाने में ही बाहर एक चौकस निगाह उन पर घूम रही थी।
जब राजवीर और आर्या नक्शा खोलकर उसका अध्ययन कर रहे थे, तभी घर के बाहर एक अँधेरी परछाईं ठहरी हुई थी। क्रूरसेन का एक जासूस, जो घर पर कड़ी नज़र रख रहा था, थोड़ा आगे बढ़ा और अंदर हो रही बातचीत पर ध्यान केंद्रित करने लगा। घर के अंदर, राजवीर आर्या को नक्शे पर बने चिह्नों के बारे में समझा रहा था, जबकि बलदेव बाहर खड़ा उनके लिए किसी के आने पर नज़र रख रहा था। जासूस ने आसानी से हर शब्द पकड़ लिया था।
बलदेव को अचानक लगा कि घर के बाहर कोई है। उसकी स्वाभाविक भेड़िये जैसी सूंघने की शक्ति तेज़ हो गई थी। उसने अपने कान खड़े किए और एक पल के लिए चुप रहकर बाहर की हलचल सुनने लगा। कोई सावधानी से कदम पीछे खींच रहा था। वह बिना एक पल की देरी किए बाहर चला गया। लेकिन तब तक वह आदमी भाग चुका था। बलदेव ने चिंतित नज़रों से इधर-उधर देखा। चाँद बादलों के बीच से झाँक रहा था और उसकी धुंधली रोशनी में उसे आगे झाड़ियों में हलचल महसूस हो रही थी।
"कौन है?" बलदेव चिल्लाया।
कोई जवाब नहीं आया। पत्ते सरसराए और पल भर में अजनबी अँधेरे में गायब हो गया। बलदेव कुछ देर वहीं खड़ा उसे ढूँढ़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस आदमी ने अपने वजूद का कोई निशान नहीं छोड़ा था। आखिरकार वह भारी कदमों से घर लौट आया।
वह अजनबी गाँव से अलग रास्ते पर भाग रहा था। वह एक पल भी रुकना नहीं चाहता था। उसकी धड़कती हुई धड़कन और पसीने से भीगे कपड़े उसकी जल्दबाज़ी की गवाही दे रहे थे। आखिरकार वह एक सुनसान इलाके में पहुँचा, जहाँ क्रूरसेनके आदमी पहले से ही जमा थे। उसने हाँफना बंद किया और जल्दी से बोला,
"राजवीर वापस आ गया है... वह अपने घर में है!"
क्रूरसेन की आँखें चमक उठीं। "अरे वाह...... तो? क्या तुम्हें कुछ और पता चला?"
"हाँ... वे घर में एक नक्शा देख रहे थे! मैं साफ़ सुन नहीं पाया, लेकिन वे कोई जगह ढूँढ़ रहे हैं!" जासूस ने कहा।
क्रूरसेनने अपना माथा रगड़ा। "नक्शा? तो वे रक्तमणि ढूँढ़ रहे होंगे..."
उसके पीछे खड़े कुछ अनुयायी एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। अगर यह नक्शा राजवीर के हाथ लग गया, तो सहस्त्रपाणि के लिए बाधा बन सकता था।
क्रूरसेन अपने आदमियों के घेरे में खड़ा होकर जासूस को घूरने लगा। उसके चेहरे पर एक भयावह शांति थी, लेकिन उसकी आँखों में गहरी क्रूरता झलक रही थी। जासूस अभी भी खड़ा हाँफ रहा था। क्रूरसेन उसके पास गया और ठंडे स्वर में बोला, "अब तुम्हें अगला काम करना होगा। तुम्हें तुरंत सहस्त्रपाणि के पास जाना होगा। उन्हें पूरी सच्चाई बता देना और आगे क्या करना है, इस बारे में उनसे स्पष्ट आदेश ले आना। याद रखना, अगर तुमने कोई गलती की, तो वह तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे... और मैं भी नहीं!"
जासूस ने अपने गले में जमा लार निगल ली और तुरंत सिर झुका लिया। वह बिना समय गँवाए सहस्त्रपाणी की ओर दौड़ा और अँधेरे में विलीन हो गया। उसके कदमों की आहट धीमी होती गई और क्रूरसेन अपने बाकी आदमियों की ओर मुड़ा, "हमें भी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। राजवीर की हर हरकत पर नज़र रखना। जब तक हम उससे यह नक्शा नहीं ले लेते, हम चैन से नहीं बैठ पाएँगे!"
उस रात, जब बलदेव और राजवीर नक्शे का अध्ययन कर रहे थे, बलदेव ने संदेह व्यक्त किया कि बाहर कोई उसकी बातें सुन रहा है।
"राजवीर, कोई हमारे घर पर नज़र रख रहा है।" बलदेव ने सावधानी से कहा।
राजवीर ने गंभीरता से पूछा, "क्या तुम्हें यकीन है?"
"हाँ, मैंने आवाज़ सुनी थी। लेकिन जब मैं बाहर गया, तो वह भाग गया था।"
राजवीर ने भौंहें चढ़ाईं। "इसका मतलब है कि वह हमारी बातें सुनके गया होगा..."
"वह ज़रूर उस क्रूरसेन का आदमी होगा," बलदेव गुर्राया।
"तो फिर हमें जल्दी से चलना होगा। अगर क्रूरसेन को इस बारे में पता चल गया, तो वे हमसे पहले ही रक्तमणि ढूँढ़ने के लिए हम पर हमला कर देंगे। उन्हें उस नक्शे की भी ज़रूरत होगी, उसके बिना वे वहाँ नहीं पहुँच पाएँगे।"
"उन्हें यह भी पता होगा कि वह रक्तमणि हमारे लिए कितना ज़रूरी है।" बलदेव ने खिड़की से बाहर देखा। "तुम्हें जल्दी से निकलना होगा!"
राजवीर ने नक्शे की तरफ़ देखा। "हाँ, लेकिन बहुत सोच-समझकर। क्योंकि अब मैं सिर्फ़ रक्तमणि ढूँढ़ने नहीं जा रहा, बल्कि आर्या और अपने अजन्मे बच्चे की रक्षा भी करने जा रहा हूँ!"
उसी समय, क्रूरसेन ने अपने आदमियों को बुलाया। "राजवीर वापस आ गया है, और उसके पास रक्तमणि का नक्शा है।"
उसके अनुयायी गुर्राए। "तो फिर हमें क्या करना चाहिए?"
क्रूरसेन ने ठंडे स्वर में उत्तर दिया, "वह नक्शा मुझे चाहिए। किसी भी कीमत पर!"
"और राजवीर?"
क्रूरसेन ने अंधेरे में कहीं दूर अपनी नज़रें गड़ा दीं और एक भयावह मुस्कान दी। "हम उसे खत्म कर देंगे। लेकिन पहले नक्शा!"
राजवीर और बलदेव ने उस रात ज़्यादा सतर्क रहने का फैसला किया। दोनों ने तय किया था कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे किसी को भी उनकी हरकत का पता चले। आर्या गहरी नींद में सो रही थी, उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की सुरक्षा अब उनकी थी।
राजवीर ने एक बार फिर नक्शे पर निशानों को देखा। "मैं कल सुबह जा रहा हूँ। मुझे जल्दी चलना होगा ताकि कोई मेरा पीछा न कर सके।"
बलदेव ने सिर हिलाया। "और इस बार मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा!"
राजवीर ने एक पल के लिए उसकी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा दिया। "इस बार मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत पड़ेगी, बलदेव, लेकिन आर्या के लिए तुम्हें उसके साथ रहना होगा।"
रात ढल रही थी, लेकिन राजवीर और बलदेव के मन में विचारों का तूफ़ान उठ रहा था। अब उनकी अगली यात्रा और भी कठिन और ख़तरनाक होने वाली थी।
राजवीर आधी रात को जल्दी उठ गया। आर्या और बलदेव अभी भी सो रहे थे। वह सावधानी से उठा और अपने सफर की तैयारी करने लगा। सबसे पहले उसने अपनी तलवार निकाली और उसकी धार तेज़ करने के लिए अपनी उँगली उसकी धार पर फिराई। तलवार की धार बहुत तेज़ हो गई थी। फिर उसने एक छोटा सा थैला ज़रूरी सामान से भर लिया, कुछ सूखा खाना, एक मज़बूत रस्सी और एक खंजर, जो जंगल में काम आ सके। उसने विनायक का दिया हुआ थैला भी ले लिया, जिसके बारे में विनायक ने कहा था कि वह यात्रा में उसके काम आएगा।
उसने नक्शा फिर खोला और ध्यान से देखने लगा। उस पर हर निशान को ध्यान से देखते हुए, उसने मन ही मन पूरे रास्ते की योजना बनाई। इस बार कोई गलती नहीं होगी। नक्शे पर उस जगह का साफ़ ज़िक्र था जहाँ रक्तमणि छिपा होने की संभावना थी। हालाँकि, उस जगह तक जाने वाला रास्ता अनिश्चित था, और उसे नहीं पता था कि वहाँ क्या ख़तरा हो सकता है।
अपनी तैयारी पूरी करने के बाद, उसने गहरी साँस ली और आर्या की ओर देखा। वह अभी भी गहरी नींद में थी। उसने उसके माथे को हल्के से चूमा, अपने बच्चे के लिए उसके पेट पर हाथ फेरा, वह उसकी संतान थी, कोई उसे कितना भी कहे, वह उसे मानव जाति का दुश्मन मानने को तैयार नहीं था। उसने अपना हाथ रोका और उसे अलविदा कहते हुए चुपचाप दरवाज़े की ओर चल दिया। उसे यह साहसिक कार्य अकेले ही करना था।
राजवीर जैसे ही धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतर रहा था, उसके तेज़ कानों ने एक आहट सुनी। उसे लगा कि घर के बाहर कुछ हलचल हो रही है। वह सतर्क हो गया। सुबह के उस रहस्यमय सन्नाटे में कोई धीमे कदमों से आगे बढ़ रहा था। उसने अपनी तलवार की मूठ हल्के से पकड़ी और सावधानी से आगे बढ़ा। उसने घर के दरवाज़े की दरार से झाँका। एक पल के लिए उसे लगा कि झाड़ियों की परछाई में कुछ हिल रहा है, क्या यह उसका भ्रम था? लेकिन नहीं, अब उसे पैरों की स्पष्ट आहट सुनाई दे रही थी।
वह और सतर्क हो गया। कोई घर के पास इधर-उधर घूम रहा था, घर की हर गतिविधि पर नज़र रख रहा था। राजवीर को एहसास हुआ कि ये कोई साधारण यात्री नहीं थे। वह मन ही मन अनुमान लगाने लगा, क्या ये क्रूरसेन के लोग तो नहीं थे? या सहस्त्रपाणि द्वारा भेजा गया कोई और? एक पेड़ के पीछे एक काली आकृति हिलती हुई दिखाई दी, लेकिन जैसे ही उसने वहाँ देखा, वह पल भर में गायब हो गई। राजवीर का शक गहरा गया। अब उसके पास सावधान रहने के अलावा कोई चारा नहीं था।
क्रमशः
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