भाग ४१
राजवीर अपनी छोटी-सी गठरी कंधे पर लटकाए घर के दरवाज़े पर पहुँचा। बाहर की हवा अभी भी ठंडी थी, और सब कुछ शांत लग रहा था। हालाँकि, उसकी तेज़ इंद्रियों ने कुछ अलग ही भाँप लिया था, घर के बाहर हल्की-सी हलचल थी, मानो कोई सावधानी से आगे बढ़ रहा हो। वह एक पल के लिए रुका और गहरी साँस ली, लेकिन कोई नज़र नहीं आ रहा था, बस चारों ओर घना अँधेरा था।
हल्की हवा में उसे कुछ हल्के कदमों की आहट सुनाई दी। उसकी आँखों में शक की एक लकीर उभर आई। कोई उसे देख रहा था। उसने एक पल सोचा। अभी बाहर जाना ख़तरनाक हो सकता है। इसलिए उसने रक्तमणि की तलाश में अपनी यात्रा थोड़ी देर के लिए टालने का फ़ैसला किया। सावधानी से कदम बढ़ाते हुए वह फिर घर में दाखिल हुआ, और दीवार की आड़ में एक कोने में छिप गया। वह अंदर से स्थिति का जायज़ा लेता रहा। आज जाना ठीक नहीं होगा, पहले इस रहस्यमय ख़तरे को पहचानना ज़रूरी था।
रात का अँधेरा अभी भी गहराता जा रहा था। थांग गाँव का माहौल शांत था, लेकिन इस शांति के पीछे कुछ भयानक घटित हो रहा है, यह एहसास बलदेव के मन को भी सता रहा था। नींद में भी उसके चेहरे पर चिंता साफ दिखाई दे रही थी।
इस बीच, एक घुड़सवार अँधेरे के साये में तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। यह जासूस क्रूरसेन के तंबू से निकलकर सहस्त्रपाणि के रहस्यमय किले की ओर जा रहा था। उसे बस एक ही काम सौंपा गया था, थांग गाँव से सहस्त्रपाणि तक जानकारी पहुँचाना।
बिना कहीं रुके, वह सहस्त्रपाणि के निवास पर पहुँच गया। अपना घोड़ा बाहर छोड़कर, वह अंदर गया।
सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर विराजमान था। उसके चारों ओर वफादार अनुयायी खडे थे। जासूस उसके सामने आया और झुककर अभिवादन किया। उसने आगे कहा,
"गुरुवर, मैं थांग गाँव से आया हूँ।"
सहस्त्रपाणि ने उस पर ध्यान केंद्रित किया।
"बोलो। तुम्हारे पास क्या जानकारी है?"
"राजवीर थांग गाँव लौट आया हैं," जासूस ने कहा। "और उसके हाथ में एक नक्शा है। क्रूरसेन को लगता है कि यह रक्तमणि का नक्शा हो सकता है। मुझे आपके पास यह पूछने के लिए भेजा गया है कि क्रूरसेन को अब क्या करना चाहिए।"
सहस्त्रपाणि धीरे से मुस्कुराया। उसका चेहरा कठोर और आत्मविश्वास से भरा था।
"नक्शा मिलने का मतलब यह नहीं कि उसे रक्तमणि मिल गया," उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो?" जासूस उलझन में पड़ गया।
सहस्त्रपाणि ने आगे कहा, "रक्तमणि इतनी आसानी से किसी को नहीं मिल सकता। कोई नहीं जानता कि उस जगह तक पहुँचने से पहले उसे कितनी कठिनाइयों से गुजरना पड़ेगा। उसके रास्ते में इतनी कठिनाइयाँ हैं कि अगर मैं खुद भी जाऊँ, तो भी उसे पाना मेरे लिए मुश्किल होगा। इस खोज में उसका मरना निश्चित है इसलिए उसकी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
जासूस ने सावधानी से अपना सिर हिलाया।
सहस्त्रपाणि ने अपने अनुयायियों की ओर देखा और कहा, "हम नक्शा चुराने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन अब वह सुरक्षित जगह पर होगा। राजवीर मूर्ख नहीं है। वह हम पर शक करेगा।"
"तो फिर हम क्या करेंगे?" जासूस ने पूछा।
सहस्त्रपाणि ने रहस्यमय स्वर में कहा, "हम उसे रोकना नहीं चाहते, बल्कि उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं। रक्तमणि की खोज में उसे जो कष्ट सहने पड़ेंगे, वे उसका पतन बनेंगे। हमें बस सही समय पर सही जगह पर होना है।"
जासूस ने सहमति जताई। "तो फिर अगला आदेश क्या है?"
"क्रूरसेन से कहो, राजवीर को यह एहसास दिलाओ कि वह सुरक्षित है। उसे आराम से आगे बढ़ने दो। लेकिन यह सुनिश्चित करो कि उसके पीछे चल रही हमारी परछाइयाँ उसे कभी अकेला न छोड़ें। सही जगह पर, और सही समय पर हम उस पर वार करेंगे।"
जासूस ने सिर हिलाया और अपने रास्ते पर वापस लौट गया। सहस्त्रपाणि सिंहासन पर वापस बैठ गया, आँखें बंद कर लीं और मन ही मन बुदबुदाया, "रक्तमणि ढूँढ़ना मुश्किल है... लेकिन राजवीर को मारना ज़्यादा आसान है, उस नक्शे के मुताबिक़, उसे और भी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा, अगर उस मुसीबत में उसकी मौत हो गई, तो कोई बात नहीं और अगर बच भी गया, तो हमारे लोग हैं जो उसे ज़िंदा नहीं रखेंगे।"
उधर, थांग गाँव में, राजवीर फिर से अपनी अगली यात्रा की तैयारी कर रहा था।
"देखो बलदेव," राजवीर ने कहा, "अभी समय नहीं है। मैं जितनी जल्दी रक्तमणि की तलाश में निकल जाऊँगा, उतनी ही जल्दी तुम लोग सुरक्षित हो जाओगे।"
बलदेव ने उसे गंभीरता से देखा। "राजवीर, तुमने नक्शा तो देख लिया है, लेकिन क्या तुम्हें पता है कि उसे ढूँढ़ते हुए तुम्हें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा?"
"हाँ, लेकिन कोई और चारा नहीं है। अगर आर्या और बच्चे को सुरक्षित रखना है, तो मुझे जाना होगा।"
जैसे ही बलदेव कुछ कहने ही वाला था, उसे बाहर से फुसफुसाहट सुनाई दी। उसने इशारा करके राजवीर को रोक लिया। दोनों सतर्क थे।
"बाहर कौन है?" बलदेव ने पुकारा।
बलदेव ने दरवाज़ा खोला और बाहर निकला। हालाँकि, वहाँ कोई नहीं था। बस हवा में हिलते पेड़ और उस अँधेरे में किसी हलचल के धुंधले निशान थे।
"कोई हमारी गतिविधियों पर नज़र रख रहा है," बलदेव ने गंभीरता से कहा।
"इसलिए मुझे जल्दी निकलना होगा," राजवीर ने दृढ़ता से कहा।
राजवीर रक्तमणि की खोज में निकलने की तैयारी कर रहा था। उसके मन में एक ही विचार घूम रहा था, क्या इस नक्शे के आधार पर रक्तमणि तक पहुँचना संभव होगा? मंद रोशनी में, उसने अपना खंजर कसकर पकड़ा और घर के दरवाज़े के पास रुक गया। लेकिन उसी समय, दूर जंगल के द्वार से एक साया थांग गाँव की ओर लौट रहा था, क्रूरसेन का जासूस।
जासूसने अपनी कुछ दिन की यात्रा पूरी करके, क्रुरसेन के घर में कदम रखा और सीधा सहस्त्रपाणि का संदेश देने चला गया। क्रुरसेन बड़ी ताकत से ऊँचे बैठा था। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी, मानो उसे पहले से ही सब कुछ पता हो। गुप्तचर ने प्रणाम किया और कहा,
"महामहिम क्रूरसेन, मैं सहस्त्रपाणि से मिलकर आया हूँ। उन्होंने मुझे एक गंभीर बात बताई है। रक्तमणि का नक्शा प्राप्त करने का मतलब रक्तमणि प्राप्त करना नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए अनगिनत कष्टों से गुजरना होगा। सहस्त्रपाणि ने कहा, 'अगर वे वहाँ स्वयं भी जाते, तो भी रक्तमणि प्राप्त करना कठिन होता।'"
"अगर वह रक्तमणि तक जाता है, तो तुम भी उसके पीछे चलो, उसे पता भी न चलने दो कि तुम उसके पीछे हो।"
क्रूरसेन विचारमग्न हो गए। उन्होंने धीरे से अपनी पैनी नज़र गुप्तचर पर गड़ा दी। "तो यह उतना आसान नहीं है जितना हमने सोचा था। लेकिन अगर राजवीर रक्तमणि की खोज में जाता है, तो वह अपने रास्ते पर ज़रूर आगे बढ़ेगा। हम उसे रोक नहीं सकते, लेकिन हम उसके पीछे छाया की तरह रह सकते हैं, जैसा कि गुरुदेव ने कहा है।"
उन्होंने अपने आदमियों की ओर देखा और गहरी आवाज़ में आदेश दिया।
"जैसेही राजवीर घर से निकल जाएगा। हम साये की तरह उसके पीछे-पीछे रहेंगे। उसे पता न चले कि कोई उसका पीछा कर रहा है। मुझे उसकी हर हरकत पता होनी चाहिए। वह कहाँ जाता है, किससे मिलता है, क्या करता है, मुझे सबका हिसाब चाहिए!"
उसके आदमियों ने तुरंत सिर हिलाया और अपने-अपने रास्ते चले गए। राजवीर को पता भी नहीं था कि क्रूरसेन की बुरी नज़र उस पर है।
"मालिक, राजवीर नक्शा लेकर जाने को तैयार है," जासूस ने कहा।
क्रूरसेन ने आँखें सिकोड़ लीं। "अच्छा। तो अब उसके पीछे पीछे जाने का समय आ गया है।"
उसके इशारे पर कुछ घुड़सवार खड़े हो गए। वे तैयार थे, राजवीर को उसकी यात्रा में ही खत्म करने के लिए।
राजवीर जाने के लिए तैयार हुआ, उसे विदा करने के लिए बलदेव और आर्या गाँव के द्वार पर आए। राजवीर को विदा करते हुए आर्या का मन रोने का कर रहा था, लेकिन राजवीर ने उसे समझाया। उसने उसे कसकर गले लगाया और खुश रहने को कहा।
"मेरे लिए नहीं, अपने बच्चे के लिए, मुस्कुराती रहो, जब भी रोने का मन करे,अपने कोख में पल रहे बच्चे को याद करना।" राजवीर ने समझदारी से उसे चार शब्द कहे।
आर्या का रोना थोड़ा कम हुआ, लेकिन वह राजवीर को जाने नहीं देना चाहती थी। उसने भारी मन से राजवीर को अलविदा कहा।
अब यह सफ़र आसान नहीं होगा। रक्तमणि की तलाश का यह रास्ता एक बड़े युद्ध में बदलने वाला था...।
क्रमशः
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