भाग ४२
राजवीर रात के अँधेरे में सावधानी से चल रहा था। उसने थांग गाँव की सीमा पार की और घने जंगल में प्रवेश किया। हवा पेड़ों की शाखाओं से सरसराहट कर रही थी, लेकिन उसमें कुछ अलग था, एक ऐसी उपस्थिति जो आँखों से दिखाई नहीं दे रही थी, एक अजीब सी बेचैनी जो ज़ुबान पर छाई हुई थी।
वह एक पल के लिए ठिठक गया, उसके कान खड़े हो गए। किसी मंद साये की तरह, कोई उसके पीछे था। बिना कोई आवाज़ किए, उसने चुपचाप अपनी तलवार की मूठ पर मज़बूती से हाथ रखा और अचानक पीछे मुड़ गया!
"कौन है?" उसने गंभीर स्वर में पूछा।
पेड़ों के पीछे एक आकृति पास ही चलती हुई दिखाई दी। उसने एक आदमी को देखा, लेकिन उसके पीछे अभी भी कुछ काले जाल थे। क्रूरसेन द्वारा भेजे गए भाड़े के योद्धा!
उसने अपनी तलवार म्यान से निकाली। "अगर कोई मुझे ज़बरदस्ती रोकने की कोशिश करेगा, तो मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।"
क्रूरसेन के सैनिक अब साफ़ दिखाई दे रहे थे। उन्होंने अपने भाले उस पर तान दिए।
"राजवीर! हम तो बस तुम्हारा रास्ता माप रहे थे, पर हमें नहीं लगा था कि तुम हमें इतनी जल्दी पहचान लोगे। अब जब तुमने हमें ढूँढ़ ही लिए है, तो सुनो, तुम रक्तमणि की तलाश में तो निकले हो, पर यह तलाश तुम्हारी मौत पर खत्म होगी!" एक ने हँसते हुए कहा।
राजवीर चुप था। उसके अंदर का योद्धा जाग उठा था। मानो तलवार से संवाद कर रहा हो, वह आगे बढ़ा और पल भर में तलवार का पहला वार सामने वाले योद्धा के कंधे पर कर दिया। वह दर्द से चीखा और पीछे गिर पड़ा।
दूसरे योद्धा ने भाले से वार किया, लेकिन राजवीर ने जल्दी से वार को चकमा दिया और अपनी तलवार से उसकी छाती पर गहरा घाव कर दिया। एक-एक करके उसने उनके प्रतिरोध को तोड़ दिया।
राजवीर अभी भी लड़ रहा था, तभी दूर घनी छाया में एक आकृति खड़ी थी, "दुर्मद"। वह सब कुछ देख रहा था।
क्रूरसेन को भेजने के बाद भी सहस्त्रपाणि पूरी तरह निश्चिंत नहीं था। उसने अपने पास खड़े दुर्मद की ओर देखा और धीमी आवाज़ में कहा, "भले ही क्रूरसेन को राजवीर के पीछे भेजा गया हो, लेकिन वह क्रोधि और जल्दबाज़ है। वह राजवीर को खत्म करने में एक पल भी बर्बाद नहीं करेगा। लेकिन हम उसे सिर्फ़ मारना नहीं चाहते, हम उसे पूरी तरह से खत्म करना चाहते हैं! हम रक्तमणि का नक्शा प्राप्त करना चाहते हैं और उसे नष्ट करना चाहते हैं! इसके लिए एक चतुर और सतर्क नज़र की ज़रूरत है।"
दुर्मद ने एक कोमल मुस्कान के साथ अपना सिर हिलाया। सहस्त्रपाणि ने आगे कहा, "तुम भी उसके पीछे रहो। अगर क्रूरसेन असफल भी हो जाए, तो तुम्हें मौका मिलेगा। राजवीर को कोई मौका दिए बिना, छाया की तरह उसके पीछे रहो। जब समय आएगा, तो तुम उस पर अंतिम प्रहार करोगे।" दुर्मद के चेहरे पर एक रहस्यमयी छाया छा गई। "जैसी आपकी आज्ञा, महाराज," उसने सावधानी से कदम बढ़ाते हुए कहा और अंधेरे में गायब हो गया। वही दुर्मद आज जंगल में राजवीर और क्रूरसेन के आदमियों के बीच हो रहे युद्ध को देख रहा था। उसने अपनी तलवार की मूठ पर हाथ रखा, लेकिन वह अभी तक युद्ध में शामिल नहीं हुआ था।
तभी, जंगल से एक घुड़सवार अचानक आगे आया। क्रूरसेन!
तभी, जंगल से एक घुड़सवार अचानक आगे आया। क्रूरसेन!
"राजवीर!" वह दहाड़ा। "तुम इस खेल में फँस गए हो, इससे जीवित नहीं निकल सकते!"
"मुझे फैसला करने दो। तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं किसी के आगे नहीं झुकता।" राजवीर ने उत्तर दिया।
क्रूरसेन के आगमन से उसके आदमियों का आत्मविश्वास और बढ़ गया। उसके आदेश पर, उन्होंने अवसर का लाभ उठाया और राजवीर को चारों ओर से घेर लिया। काले कपड़ों में लिपटे और खून की प्यासी निगाहों से देखते हुए वे क्रूर योद्धा धीरे-धीरे पास आने लगे। उनके हाथों में भाले तिरछे रखे हुए थे, मानो वे राजवीर को पल भर में ज़िंदा पकड़ लेने पर आमादा हों। राजवीर शांत भाव से सबको देख रहा था। वह जानता था कि ये कोई साधारण योद्धा नहीं थे।
वे क्रूरसेन के प्रशिक्षित सैनिक थे, जिनका हर वार घातक था, पर राजवीर के चेहरे पर भय का ज़रा भी नामोनिशान नहीं था। उसने अपनी तलवार पर अपनी पकड़ मज़बूत की और पल भर में हवा के झोंके की तरह घूम गया। उसकी तलवार के एक ज़ोरदार वार से आगे के दोनों सैनिकों के भाले हवा में उड़ गए और वे पीछे गिर पड़े। बाकियों ने उस पर झपटने की कोशिश की, लेकिन उसने उन्हें आसानी से चकमा दे दिया। राजवीर इस युद्ध में ज़रूरत से ज़्यादा देर तक नहीं फँसना चाहता था, वह आगे बढ़ना चाहता था।
तभी एक भयानक दहाड़ सुनाई दी। अचानक जंगल में एक काला भेड़िया आ खड़ा हुआ! उसकी आँखों में कोयला था, उसके पंजे ज़मीन में गड़े हुए थे। बलदेव ने भेड़िया रूप धारण कर लिया था!
उसे देखकर क्रूरसेन के सैनिक डर गए। "हा हा...हा भेड़िया!" किसी ने डर के मारे चिल्लाया।
बलदेव ने एक ही झटके में एक सैनिक को ज़मीन पर गिरा दिया और उसकी छाती पर पंजा मारकर उसे पीछे धकेल दिया। एक-एक करके उसने सबको जंगल में पटक दिया। राजवीर भी एक तरफ़ से लड़ रहा था।
अब मैदान में सिर्फ़ दो योद्धा बचे थे, राजवीर और क्रूरसेन! बलदेव भी उस पर झपटा, लेकिन क्रूरसेन ने उसे उठाकर एक ही वार में मार दिया। बलदेव ज़मीन पर पड़े एक पत्थर से ज़ोरदार चोट खा गया। जोरदार लगने के वजह से, दूर बैठकर दोनों को अराजक युद्ध में लड़ते देखने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
क्रूरसेन ने अपनी तलवार खींच ली। "क्या तुम मुझे बाकी सैनिकों जैसा समझते हो, जो इस कमजोर भेड़िये से डरेंगे? राजवीर, मैं आज तुम्हें मार डालूँगा!"
"नींद से जागो क्रूरसेन, तुम मुझे मारोगे, अरे मेरे सामने तुम्हारा त्रिकालभी नहीं बचा, और तुम ऐसी बात करते हो।" राजवीर अभी भी उसे चिढ़ा रहा था।
योद्धाने अपनी तलवार से वार किया, लेकिन क्रूरसेन ने फुर्ती से उसे रोक दिया। उनकी तलवारों की टक्कर आग और चिंगारियों उगलने लगी।
क्रूरसेन ने वार किया, लेकिन राजवीर झुक गया और अपनी तलवार उसके पेट के पास रख दी। लेकिन क्रूरसेन ने तुरंत एक तरफ हटकर उसका वार रोक दिया।
अचानक, क्रूरसेन ने अपनी जेब से एक ज़हरीला चाकू निकाला और राजवीर पर फेंक दिया!
राजवीर समय रहते पीछे हट गया, लेकिन चाकू उसके कंधे पर लगा। उसके शरीर से खून बहने लगा।
फिर भी, राजवीर खड़ा रहा। उसने अपनी तलवार से क्रूरसेन पर ज़ोर से वार किया और क्रूरसेन की तलवार कुछ दूर जाकर गिरी। राजवीर ने एक हाथ से अपने कंधे पर पट्टी बाँधी और फिर से क्रूरसेन के लिए खड़ा हो गया।
"राजवीर, यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है!" क्रूरसेन कहते हुए उठा और जंगल के घने अंधेरे में गायब हो गया।
राजवीर तेज़ी से काले, भयानक भेड़िये की ओर दौड़ा। उसकी चमकीली आँखों में पहचान की एक चमक थी, और राजवीर को यह समझने में देर नहीं लगी कि वह बलदेव था। राजवीर के पास आते ही भेड़िया गुर्राया और अपना रूप बदलकर बलदेव के रूप में फिर से खड़ा हो गया। बलदेव, जो अभी भी युद्ध की प्रचंड ऊर्जा से अभिभूत था, राजवीर की ओर देखकर मुस्कुराया।
राजवीर ने बिना किसी हिचकिचाहट के पूछा, "तुम यहाँ कैसे पहुँचे?" इस पर बलदेव ने तीखी आवाज़ में उत्तर दिया, "तुम जैसे ही गए, मैंने क्रूरसेन का एक बड़ा बेड़ा तुम्हारे पीछे आता देखा। मुझे लगा कि तुम खतरे में हो, और फिर मैं रुक नहीं सका। इसलिए मैं भी तुम्हारी मदद करने तुम्हारे पीछे आ गया!" बलदेव के शब्दों में एक सच्चे मित्र की निष्ठा और चिंता ने राजवीर के दिल को छू लिया। उसने बलदेव के कंधे पर हाथ रखा और गंभीर स्वर में कहा, "मित्र, तुम्हारी मदद के बिना इस संघर्ष को जीतना असंभव था।" दोनों ने एक-दूसरे को देखा।
लेकिन थोड़ी देर बाद राजवीर के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, "अगर तुम यहाँ हो, तो आर्या कहाँ है? इस समय उसके साथ कौन है?"
"डरो मत, मैं उसे यहाँ लाया हूँ, वह इस जंगल में, हमसे थोड़ी दूर, किसी अनजान के बनाए एक छोटे से मंदिर में बैठी है।" बलदेव ने उत्तर दिया।
"तुम्हें अब हमें अपने साथ ले जाना होगा," बलदेव ने आगे कहा। राजवीर आखिरकार उसे ले जाने के लिए तैयार हो गया। और उसने सिर हिलाया।
एक और व्यक्ति पेड़ों की छाया में खड़ा था। उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। "बहुत दिलचस्प! राजवीर... अब यह खेल और आगे बढ़ेगा।"
वह धीरे-धीरे जंगल की ओर चल पड़ा। क्योंकि वह जानता था कि यह अंत नहीं है। यह तो बस शुरुआत थी...
क्रमशः
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