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रक्तपिशाच का रक्तमणि ४३

रक्तपिशाच और एक मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ४३

क्रूरसेन को परास्त करने और उसकी सेना को नेस्तनाबूत करने के बाद, राजवीर और बलदेव, हालाँकि एक पल के लिए शांत हो गए थे, उन्हें पता था कि असली संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। वे पूरी गति से आर्या की ओर चल पड़े। बलदेव ने पहले ही उसे जंगल के पास एक प्राचीन मंदिर में बैठा कर रखा था। इसलिए उसे वहाँ दोबारा जाने में ज़्यादा समय नहीं लगा।

जब वे दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर पहुँचे, तो आर्या मंदिर के एक कोने में बैठी उनका इंतज़ार कर रही थी। उसके चेहरे पर चिंता साफ़ दिखाई दे रही थी। बलदेव ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा, 

"आर्या, कैसी हो? तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?"

आर्या ने आँखों में आँसू भरकर उत्तर दिया, "डरु नहीं तो क्या करू? मुझे तुम दोनों की चिंता थी, कितना समय हो गया तुम लौट कर आयेही नहीं!" वह खड़ी हुई और राजवीर की ओर देखा। वह अभी भी युद्ध की भागदौड़ से थका हुआ लग रहा था, लेकिन उसकी आँखों में जीत की एक चमक थी।

राजवीर ने बलदेव से आगे पूछा, "तुम आर्या को उसके गाँव के घर से इस घने जंगल में क्यों लाए हो? क्या उसे गर्भवती अवस्था में इतनी कठिन परिस्थितियों में रखना उचित है?"

बलदेव ने उसके सवालों को गंभीरता से लिया और शांति से उत्तर दिया, "राजवीर, हम वहा सुरक्षित जगह पर नहीं थे। गाँव और खासकर हमारे घर पर नज़र रखी जा रही है। अगर क्रूरसेन के लोगों को पता चल जाता कि आर्या गर्भवती है, तो वे उस पर हमला कर देते। मैं ऐसा नहीं होने दे सकता।"

राजवीर अभी भी बेचैन लग रहा था। उसने फिर पूछा, "लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि जंगल में झाड़ियों के बीच चलना, रहना उसके लिए आसान है? तुम्हें पता है, वह गर्भवती है? क्या तुम्हें अब भी लगता है कि उसे मेरे साथ इस कठिन यात्रा पर आना चाहिए?"

बलदेव कुछ देर चुप रहा। उसे लगा कि राजवीर की बात सच है। आगे बढ़कर राजवीरने कहा,

"बलदेव, मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूँ। लेकिन अभी यह संभव नहीं है। तुम दोनों वापस जाओ। मैं अकेला ही आगे बढ़ूँगा। कुछ दिनों में आशय भी मुझसे मिलने आ जाएगा, इसलिए चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

आर्या यह सुनकर झट से उठ खड़ी हुई। उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय साफ़ दिखाई दे रहा था। वह राजवीर के ठीक सामने खड़ी हो गई और दृढ़ स्वर में बोली, "मैं कहीं नहीं जाऊँगी! मैं तुम्हारे साथ चलूँगी!"

बलदेव और राजवीर दोनों उसे देखते रहे। राजवीर जानता था कि वह अपने फैसले पर अडिग रहेगी।

उसने उसे समझाने की कोशिश की, "आर्या, समझो। यह सफ़र तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा। हमें बहुत दूर जाना है, एक अनजान जगह पर, जहाँ कोई भी ख़तरा हो सकता है। मैं तुम्हें किसी भी ख़तरे में नहीं डालना चाहता।"

लेकिन आर्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और दृढ़ता से जवाब दिया। "राजवीर, मैं तुमसे और अपनी बच्ची से प्यार करती हूँ। मैं गाँव में अकेली नहीं रह सकती । अगर तुम मुसीबत में हो, तो मुझे तुम्हारे साथ रहना होगा। हमारी ताकत हमारी एकता में है।"

बलदेव ने आर्या की हिम्मत देखी और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "राजवीर, मुझे लगता है कि अब तुम्हें यह बहस खत्म कर देनी चाहिए। क्योंकि वह तुम्हारे साथ जाने वाली है।"

राजवीर ने एक पल सोचा। वह अभी भी चिंतित था, लेकिन उसे आर्या के साहसी प्रेम और दृढ़ संकल्प का सम्मान करना था। आखिरकार, उसने एक गहरी साँस ली, उसे अपने पास खींचा और कहा, "ठीक है, लेकिन तुम्हें मेरी हर बात माननी होगी। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हें और हमारे बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए अपनी जान दे दूँगा।"

आर्या के चेहरे पर थोड़ी सी जीती हुई लड़ाई साफ़ दिखाई दे रही थी।

"अब मौत की बात कोई नहीं करेगा," आर्या ने गुस्से से कहा।

बलदेव उसके ज़िद्दी प्यार पर मुस्कुराया और सिर हिलाया, "तो चलो, हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमें तुरंत अपने रास्ते पर निकलना होगा!"

उसी रात राजवीर, आर्या और बलदेव ने रक्तमणि की तलाश में अपनी नई यात्रा शुरू कर दी। हर कदम पर मुश्किलें थीं, लेकिन उनके दृढ़ निश्चय के आगे वे कुछ भी नहीं थीं!

रात का समय था। घना जंगल अँधेरे में डूबा हुआ था। चाँदनी पेड़ों की ऊँची शाखाओं के बीच से झाँक रही थी, लेकिन जंगल का घना अँधेरा उसे ज़्यादा कुछ करने का मौका नहीं दे रहा था। राजवीर, आर्या और बलदेव जंगल के एक खुले इलाके में रुक गए थे। रास्ता थोड़ा उबड़-खाबड़ था और आर्या गर्भवती होने के कारण लगातार चलने से थकी हुई थी।

राजवीर ने उसके थके हुए चेहरे को देखा। उसके चेहरे पर हल्का पसीना था, फिर भी वह कुछ नहीं कह रही थी। यह देखकर उसे बुरा लग रहा था।

"आर्या, तुम बहुत थकी हुई हो। हमें थोड़ी देर रुकना होगा," उसने उसके हाथ पर हाथ रखते हुए कहा।

आर्या ने मुस्कुराते हुए मना कर दिया। " मैं ठीक हूँ, राजवीर। चलो थोड़ा और आगे चलते हैं।"

बलदेवने भी उसके चेहरे की तरफ देखा और नाक सिकोड़ ली। "उसकी बात मत सुनो, राजवीर। मुझे पता है, वह बहुत थकी हुई है। और तुम उसे इस तरह जंगल में घुमा रहे हो, इसी बात पर मुझे गुस्सा आ रहा है!"

राजवीर ने थोड़ा सिर हिलाया। "मुझे पता है, बलदेव। लेकिन यहाँ रुकना सुरक्षित नहीं है।"

"यह सच है, लेकिन अगर हम थोड़ी देर और इंतज़ार करें, तो कुछ नहीं बिगड़ेगा," बलदेव ने कहा।

राजवीर ने जल्दी से इधर-उधर देखा और फिर आर्या को एक बड़े पेड़ के नीचे बिठाया। वह उसके सामने बैठ गया और उसकी आँखों में देखा।

"मैं अपनी ज़िद्दी पत्नी को कैसे मनाऊँ?" उसने उसके बालों में हाथ फेरते हुए मुस्कुराते हुए कहा।

आर्या ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया। "राजवीर, मुझे पता है कि तुम मेरी चिंता करते हो। लेकिन मुझे तुम्हारे साथ रहना अच्छा लगता है। मैं तुम्हारी छाया में सुरक्षित महसूस करती हूँ।"

उसके दिल में प्यार उमड़ पड़ा। उसे इतनी रात में जंगल में लेकर घूमना बुरा लग रहा था, लेकिन आर्या उसे छोड़ नहीं रही थी।

उसने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और बहुत शांत स्वर में कहा, "आर्या, तुम्हारी सुरक्षा से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचने दूंगा। अगर तुम अभी भी थकी हुई हो, तो मुझे बताना। मैं तुम्हें कंधे पर उठा के लेकर जाऊँगा।"

आर्या ने हल्के से सिर हिलाया। "नहीं, मैं ठीक हूँ।"

फिर भी, राजवीर उसके पैरों के पास बैठ गया और अपने हल्के हाथों से उसके पैरों की मालिश करने लगा। आर्या ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

"राजवीर, ऐसा मत करो।" उसने शर्माते हुए कहा।

"मैं जीवन भर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ। मैं तुम्हारा हर दर्द दूर करना चाहता हूँ," उसने उसकी ओर देखते हुए कहा।

"मैं तुम्हें इस सफ़र पर लाया हूँ, इसलिए तुम्हारा ख्याल रखना मेरा फ़र्ज़ है।"

उसकी लाल आँखों में ईमानदारी देखकर आर्या की आँखों में भी आँसू आ गए। उसने अपने हाथ उसके हाथों पर रख दिए और हल्के से अपने होंठ उसके माथे पर चूमे।

"क्या तुम हमेशा मेरे लिए ऐसे ही रहोगे?" आर्याने धीमी आवाज़ में पूछा।

राजवीर ने उसकी आँखों में गहराई से देखा और कहा, "मेरे जीवन के अंत तक... और उसके बाद भी।"

आर्या आँखें बंद करके सो गई थी। राजवीर ने उसे अपनी शॉल से अच्छी तरह ढक दिया और उसके पास बैठ गया। उसके मन में कई विचार चल रहे थे। बलदेव लंबी दूरी की गश्त पर गया था, इसलिए अब सिर्फ़ वो और आर्या ही थे।

उसके मन में कई यादें उमड़ आईं। वो पल जब वो उससे पहली बार मिला था, वो पल जब उन्होंने साथ मिलकर मुश्किलों का सामना किया था, और अब वो अपने गर्भ में उसके बच्चे का पालन-पोषण कर रही थी, इन सब बातों ने उसे और भी ज़िम्मेदारी का एहसास कराया।

उसने धीरे से आर्या के बालों में हाथ फेरा। "मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा, आर्या। और हमारे बच्चे की भी," उसने मन ही मन बुदबुदाया।

तभी, पेड़ के पीछे से एक आवाज़ आई। राजवीर सतर्क हो गया। वह जल्दी से उठा और अपनी तलवार की मूठ पर हाथ रखा। उसके तीखे कानों ने आवाज़ सुनी।

"कौन है?" उसने धीमी आवाज़ में कहा।

लेकिन आगे कोई हलचल नहीं हुई। जंगल फिर से शांत हो गया।

राजवीर कुछ पल उसी तरफ़ देखता रहा, लेकिन फिर कुछ न देखकर, वह फिर से आर्या के पास बैठ गया।

वह अपनी प्यारी पत्नी के चेहरे को देखता रहा, उसकी धीमी साँसों पर ध्यान देता रहा।

"जब तक मैं ज़िंदा हूँ, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचने दूँगा," उसने फिर खुद से बुदबुदाया।

और उस रात वह जागता रहा, उसकी रक्षा के लिए।

क्रमशः

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