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रक्तपिशाच का रक्तमणि ४५

रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ४५

सहस्त्रपाणि और क्रूरसेन एक ही मंडप में खड़े थे। उनके सामने अग्नि धधक रही थी, और उनके चेहरों पर छाई परछाइयाँ उनकी बेचैनी को और भी गहरा कर रही थीं। दोनों दुर्मद से अगली खबर का इंतज़ार कर रहे थे। क्रूरसेन के ज़ख्म अभी भी हरे थे। राजवीर ने उसे हराकर भगा दिया था, और यह उसके अहंकार पर एक बड़ा आघात था।

"दुर्मद अब कहाँ है?" क्रूरसेन ने झुंझलाकर पूछा।

"वह सतर्क है। राजवीर को ढूँढ़ना आसान नहीं है। लेकिन उसकी गतिविधियों का जल्द ही अंदाज़ा लगाया जा सकेगा," सहस्त्रपाणि ने कहा। "तुम अपने नए बलवान सैनिकों को उसकी मदद के लिए भेज दो, वह और भी बलवान हो जाएगा।"

"मैं आज ही इसका इंतज़ाम कर दूँगा।" क्रूरसेन ने सिर हिलाया।

उसी समय, दुर्मद एक पेड़ की छाया में खड़ा, जंगल की गहराइयों से राजवीर और आर्या को ढूँढ़ रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि थी। "राजवीर, अब तुम जहाँ भी जाओगे, मैं तुम्हारे पीछे परछाई की तरह रहूँगा!" वह मन ही मन बुदबुदाया।

राजवीर, आर्या और बलदेव रक्तमणि की तलाश में घने जंगल से होते हुए आगे बढ़ रहे थे। पेड़ों की घनी छतरी और बीच-बीच में जंगली जानवरों का दिखना उनकी यात्रा को और मुश्किल बना रहा था। आर्या अपना पेट सहला रही थी। उसके चेहरे पर थकान साफ़ दिखाई दे रही थी, और हालाँकि उसके पैर सूज चुके थे, फिर भी वह बिना कुछ बोले उन दोनों के साथ चल रही थी।

"क्या तुम ठीक हो?" राजवीर ने चिंतित स्वर में पूछा।

"हाँ, लेकिन... कुछ अजीब सा लग रहा है। मेरे पेट में दर्द होने लगा है," आर्याने चिंतित स्वर में कहा।

"हमें तुरंत एक हकिम ढूँढ़ना होगा," बलदेव ने गंभीर स्वर में कहा।

वे तुरंत पास के एक गाँव की ओर चल पड़े। गाँव पहुँचने पर उन्हें हकीम की झोपड़ी मिली। झोपड़ी बहुत छोटी थी और मिट्टी की दीवारों से बनी थी। अंदर एक बूढ़ा हकीम बैठा हुआ था, उसकी आँखों में दुनियादारी का ज़बरदस्त अनुभव झलक रहा था।

"मेरी पत्नी की तबियत थोड़ी बिगड़ गयी है," राजवीर ने उससे कहा।

हकीम ने आर्या की ध्यान से जाँच की, उसकी नब्ज़ देखी, और उसके चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए।

हकीम ने कहा, "भ्रूण अपनी उम्र के हिसाब से बहुत बड़ा है। उसे और ज़्यादा खाने की ज़रूरत है। माँ को ज़्यादा पौष्टिक खाना देना होगा, वरना स्थिति गंभीर हो जाएगी, गर्भ में पल रहा भ्रूण माँ के अंगों को खाने की कोशिश कर सकता है।"

बलदेव ने सोचा, "ज्यादा खाना?" "हम जंगल में हैं। वहाँ हमें ज्यादा खाना कैसे मिलेगा? आर्या मांस नहीं खाती, वरना उसे किसी भी जानवर का मांस दिया जा सकता था।"

राजवीर ने कहा, "हम गाँव में रुककर कुछ इंतज़ाम कर सकते हैं।"

आर्या ने दृढ़ता से कहा, "नहीं!" हम यहाँ नहीं रुक सकते। क्रूरसेन और उसके आदमी किसी भी समय और सैनिकों के साथ हमें ढूँढ़ने आ सकते है।"

राजवीर और बलदेव ने एक-दूसरे की तरफ देखा। इस सफ़र पर आगे बढ़ना ज़रूरी था, लेकिन आर्या की सेहत का भी ध्यान रखना था।

गाँव में रुकना शायद ख़तरनाक था, इसलिए वे जंगल के बाहर किसी सुरक्षित जगह पर आराम करने के लिए रुक गए। रात के अँधेरे में जंगल और भी भयावह लग रहा था। हवा में पेड़ों के पत्ते आपस में टकरा रहे थे और दूर से लोमड़ियों की चीख़ें सुनाई दे रही थीं।

अचानक, बलदेव को कुछ अजीब सा एहसास हुआ।

"कोई हमें देख रहा है," उसने धीरे से फुसफुसाया।

राजवीर ने अपनी तलवार हात में पकड़ी और सतर्क हो गया। अचानक, सामने पेड़ की परछाई से एक काली आकृति हिलती हुई दिखाई दी। राजवीर क्षण भर के लिए आगे बढ़ा, लेकिन वह आकृति तेज़ी से पीछे हट गई और जंगल में गायब होने की कोशिश करने लगी।

"रुको!" राजवीर चिल्लाया।

और फिर, अचानक, उन पर भालों और धनुषों से हमला हुआ। दुर्मद के आदमियों ने उनका पीछा कर लिया था!

बलदेव भेड़िये के रूप में उछला और एक सैनिक पर ज़ोरदार वार किया। राजवीर ने एक सैनिक का भाला ज़ोर से फेंका, उसकी छाती में वह ज़ोर से लगा। आर्या पीछे खड़ी खुद को बचाने की कोशिश कर रही थी।

"तुम दोनों किसी सुरक्षित जगह जाकर छिप जाओ!" राजवीर ने ज़ोर से कहा।

"नहीं!" आर्या ने दृढ़ता से कहा। "मैं नहीं जाऊँगी।"

"आर्या, यह ज़िद ठीक नहीं है," बलदेव ने कहा।

"अब मैं अपने बच्चे के लिए कहीं भी डर कर छुप नहीं सकती," उसने दृढ़ता से कहा।

राजवीर ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में डर नहीं, बस प्यार, दृढ़ संकल्प और समर्पण था। जैसे ही वह कुछ कहने ही वाला था, एक सैनिक उनकी ओर दौड़ा। लेकिन बलदेव ने उसे वहीं ढेर कर दिया। वे तीनों पेड़ों की घनी झाड़ियों में छिप गए। उससे ज़्यादा देर तक लड़ने और चोटिल होने की कोई ज़रूरत नहीं थी। राजवीर यह जानता था।

"हमें चुप चाप यहाँ से चले जाना चाहिए," राजवीर ने कहा। तीनों ने दुर्मद के सैनिकों की नज़रों से बचते हुए उस इलाके से भागने का फैसला किया।

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इस बीच, सहस्त्रपाणि और क्रूरसेन अभी भी दुर्मद से समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक, दुर्मद का जासूस प्रकट हुआ। उसके चेहरे पर थोड़ी संतुष्टि और थोड़ी परेशानी थी।

"बताओ, क्या हुआ?" सहस्त्रपाणि ने पूछा।

"राजवीर अभी भी जीवित है," जासूस ने कहा। "और आर्या उसके साथ है। वह गर्भवती है, लेकिन अभी भी उसके साथ यात्रा कर रही है। दुर्मद उसका पीछा कर रहा है। लेकिन उसने अभी तक कुछ और नहीं किया है।"

यह सुनकर सहस्त्रपाणि का क्रोध भड़क उठा।

"इतनी देर तक उनके पीछे रहने के बाद क्या वह सो रहा है?" वह दहाड़ा।

"वे बस किसी बेवक़्त मौके का इंतज़ार कर रहे हैं," जासूस ने कहा।

क्रूरसेनने अपनी मुट्ठी भींच ली। "मैं राजवीर को ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!"

"तुम पहले ही नाकाम हो चुके हो," सहस्त्रपाणि ने कहा।

"सौभाग्यसे, मैंने दुर्मद को उसके पीछे लगा दिया है। अब वह जो चाहेगा करेगा।"

क्रूरसेन गुस्से से दाँत पीस रहा था। लेकिन अब उसके मन में बस एक ही विचार था, राजवीर को ख़त्म करना।

जंगल के दूसरे छोर पर, राजवीर, आर्या और बलदेव एक सुरक्षित जगह पर पहुँच गए। आर्या थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। उसके चेहरे पर दर्द के भाव थे, लेकिन वह फिर भी आगे बढ़ने के लिए दृढ़ थी। उसके पेट में फिर से भूख लगने लगी थी, और दर्द होने लगा था।

आर्या को जैसे ही भूख लगी, राजवीर और बलदेव जंगल में भटकने लगे यह देखने के लिए कि क्या वे उसके लिए कुछ ढूंढ सकते हैं। वे दोनों घने पेड़ों की छाया में अलग-अलग दिशाओं में चले गए।

बलदेव ने ज़मीन पर नज़र दौड़ाई और उसकी नज़र जंगल में खरगोश के बिल पर पड़ी। उसने ध्यान से उस छोटे से बिल के आसपास की मिट्टी हटानी शुरू की। कुछ देर बाद, उसे कुछ दिलचस्प दिखाई दिया, कुछ छोटी जड़ें और जंगली गाजर जो खरगोशों ने उनके लिए जमा करके रखी थीं! वह हल्के से मुस्कुराया और गाजर अपने हाथ में ले लीं।

गिलहरियाँ जंगलमे जहां रहती है, उस तरफ, राजवीर एक बड़े पेड़ की शाखाओं पर खेल रहे गिलहरियो को देख रहा था। उसने गौर से देखा और गिलहरियों के पेड़ के घोसले में कुछ चमकता हुआ महसूस किया। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा और देखा कि घोसले में ढेर सारी मूंगफली की फलियाँ रखी थीं। गिलहरियाँ उसे डर से देख रही थी, लेकिन उसने बहुत धीरे से बहुत सारी फलियाँ उठा ली और उन्हें सावधानी से लेते हुए, किसी गिलहरी को नुकसान नहीं पहुँचाया।

दोनों कुछ ही देर में आर्या के पास लौट आए। बलदेव ने उसके सामने जंगली गाजर रखे, जबकि राजवीर ने उसे मूंगफली की फलियाँ दे दीं।

"देखो, तुम्हें कुछ ताज़ा और पौष्टिक मिल गया है," बलदेव ने मुस्कुराते हुए कहा।

"जंगल में रहना है तो जंगल के हिसाब से ढलना होगा," राजवीर ने मुश्किल से उसे फलियाँ देते हुए कहा।

आर्या ने उन्हें प्यार भरी नज़रों से देखा। उसके चेहरे पर संतुष्टि झलक रही थी। वह जानती थी कि चाहे कितनी भी मुसीबतें आएँ, ये दोनों हमेशा उसका साथ देंगे।

"हमें रक्तमणि ज़रूर मिलेगा," उसने धीरे से कहा।

राजवीर और बलदेव ने एक-दूसरे की तरफ देखा। अब उनके सफ़र में और भी रुकावटें आने वाली थी, लेकिन वे एक साथ थे। और वे अंत तक ऐसे ही लड़ने वाले थे।

क्रमशः

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