भाग ४६
रात के घने अँधेरे में, जंगल में ठंडी हवा गरज रही थी। पेड़ों की परछाइयाँ पागलों की तरह हिल रही थीं, मानो उस रात उन्हें किसी अलग ही डर ने जकड़ रखा हो। राजवीर, बलदेव और आर्या एक बड़े पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। आर्या गहरी नींद में सो रही थी, लेकिन राजवीर की आँखों में नींद नहीं थी।
अँधेरे पेड़ों में तेज़ हलचल हो रही थी। एक पुराने पेड़ के पीछे से एक परछाई आगे बढ़ी। उसकी चाल बहुत धीमी, लेकिन स्थिर थी। राजवीर और बलदेव दोनों सतर्क थे। आर्या नींद से जाग उठी और उनके पीछे खड़ी हो गई। वह काँपते हाथों से अपने पेट पर हाथ रखे खड़ी थी। उसकी आँखों में थोड़ा डर था, लेकिन वह कोशिश कर रही थी कि उसे अपने चेहरे पर न दिखाए।
वह अजनबी औरत एक कदम आगे बढ़ी। "तुम ज़रूर रक्तमणि ढूँढ रहे हो, है ना?" उसकी आवाज़ धीमी, लेकिन प्रभावशाली थी।
"तुम कौन हो?" राजवीर ने अपनी तलवार और कसकर पकड़ ली। बलदेव उसके चारों ओर चक्कर लगाने लगा, उसकी भेड़िया की नाक उसकी गंध पहचानने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन यह बहुत अजीब था, इंसानों जैसा, फिर भी अलग।
“मैं विशानी हूँ। मैं कभी रक्तमणि की रक्षकों में से एक थी,” उसने धीरे से कहा।
विशानी का रूप पहली नज़र में साधारण सा लग रहा था, लेकिन उसके अस्तित्व में कुछ अजीब था। वह ज़्यादा लंबी नहीं थी, लेकिन उसकी चाल में एक अदृश्य शक्ति थी। उसके बाल गहरे काले, लंबे और थोड़े बिखरे हुए थे, मानो जंगल की हवा ने उन्हें हमेशा खुला रखा हो। उसकी त्वचा पर हल्का नीला रंग था, जो चांदनी में और भी ज़्यादा उभर कर आ रहा था। लेकिन उसकी आँखें सबसे ज़्यादा पैनी थीं, वे गहरे बैंगनी रंग की थीं और उनकी गहराई में एक रहस्यमयी चमक थी, मानो उनमें अतीत और भविष्य की यादें संजोई हों।
वह इस जंगल में अकेली कैसे ज़िंदा रह सकती थी? उसके चेहरे की हल्की रेखाएँ और उसकी चौकस निगाहें बता रही थीं कि उसने बहुत कष्ट झेले हैं। उसके कपड़े प्रकृति से प्रभावित थे, गहरे भूरे और हरे कपड़े जो उसे पेड़ों की छाया में घुल-मिल रहे थे। उसके गले में एक प्राचीन ताबीज था, जिस पर कुछ रहस्यमय चिन्ह अंकित थे, जो संभवतः रक्तमणि के संरक्षकों से जुड़े थे।
वह कौन थी? वह कहाँ से आई थी? उसका असली मकसद क्या था? इन सवालों के जवाब मिलने से पहले ही उसकी मौजूदगी ने माहौल को और भी रहस्यमय और खतरनाक बना दिया था।
बलदेव ने तिरस्कार से कहा, "रक्षक? तो फिर आज तुम यहाँ जंगल में क्या कर रही हो?"
विशानी की आँखों में एक चमक आ गई। "क्योंकि, मैं ही बची हूँ। और मैं तुम्हें चेतावनी देने आई हूँ।"
राजवीर चुपचाप खड़ा रहा, उसकी बातों का इंतज़ार कर रहा था।
विशानी ने आगे कहा, "तुम्हें लग रहा होगा कि रक्तमणि आसानी से मिल जाएगा, लेकिन वह ऐसी जगह है जहाँ पहुँचने के लिए तुम्हें मौत की दहलीज़ पार करनी होगी।"
"तुम्हारा क्या मतलब है?" आर्याने कहा।
"उस जगह तक पहुँचने के लिए, तुम्हें प्राचीन जादू से ग्रस्त जगह पर जाना होगा। और वहाँ पहुँचते ही, तुम्हारे अतीत की कोई चीज़ तुम्हारे सामने खड़ी हो जाएगी। अगर तुम उसका सामना कर सको, तभी तुम आगे बढ़ पाओगे।"
बलदेव ने उसे शक से देखा। "और इसके लिए तुम हमारी मदद करोगी?"
विशानी कुछ देर चुप रही और फिर बोली, "हाँ... लेकिन इसके लिए तुम्हें एक शर्त माननी होगी।"
राजवीर ने हाथ में तलवार एक तरफ़ ले ली। "कौन सी शर्त?"
विशानी आगे बढ़ी। उसकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी। "एक बार जब तुम उस गुफा में चले जाओगे, तो तुम्हें पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं है। चाहे कोई भी चीख़, आवाज़ या दृश्य तुम्हें दिखाई दे, तुम्हें रुकना नहीं है। अगर तुम पीछे मुड़ जाओगे, तो तुम वहीं फँस जाओगे।"
आर्या ने धड़कते दिल से कहा, "तो फिर हम कैसे जाएँगे, हमें पता करना होगा कि हम सही रास्ते पर हैं या नहीं?"
"वही असली परीक्षा होगी," विशानी ने मंद मुस्कान के साथ कहा।
राजवीर सोच में डूबा हुआ था। बलदेव का चेहरा अभी भी अविश्वास से भरा था। उसने एक बार फिर विशानी की तरफ़ देखा।
"राजवीर, क्या तुम इस औरत पर भरोसा करना चाहते हो?" बलदेव ने अनजाने में बड़बड़ाते हुए पूछा।
राजवीर ने गहरी साँस ली। "लगता है वो सच कह रही है। और हमारे सामने कोई और रास्ता नहीं है।"
बलदेव ने विशानी की तरफ़ देखा। "अगर ये धोखा है, तो मैं ख़ुद ही उसे चीर डालूँगा।"
विशानी ने बिना एक पल भी हिचकिचाए कहा, "मेरा मक़सद सिर्फ़ तुम्हें सही रास्ता दिखाना है। तुम्हारी नियति, तुम्हारी लड़ाई।"
विशानी ने उन्हें एक अलग रास्ता दिखाया। यह रास्ता जंगल की गहरी अँधेरी गहराइयों से होकर जाता था। रात का घना अँधेरा उनके चारों ओर जाल की तरह लिपटा हुआ था। हवा में एक अजीब सी गंध भर गई थी, जैसे मिट्टी और खून की मिली-जुली गंध।
कुछ देर चलने के बाद, सामने एक विशाल पत्थर का दरवाज़ा दिखाई दिया। उस पर कुछ प्राचीन शिलालेख खुदे हुए थे। विशानी ने दरवाज़े को हल्के से छुआ, और उस पर खुदे अक्षरों से अचानक एक तेज़ नीली रोशनी निकली।
"यह मौत का दरवाज़ा है," वह बुदबुदाई। "एक बार अंदर घुस गए, तो वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं है।"
राजवीर ने आर्या की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर हल्का सा डर था, लेकिन उसने दृढ़ निगाहों से उसे देखा।
"मैं तैयार हूँ," उसने दृढ़ता से कहा।
हालाँकि, बलदेव को अभी भी विशानी पर पूरा भरोसा नहीं था। लेकिन वह राजवीर के फैसले का विरोध नहीं करने वाला था।
वे तीनों दरवाज़े से अंदर घुस गए।
उनके अंदर घुसते ही दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। वे अंदर फँस गए, और आगे सिर्फ़ घना अँधेरा था।
उस रहस्यमयी सन्नाटे में, हवा की गति अचानक बढ़ गई। राजवीर ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा और आँखें कसकर बंद कर लीं... और साथ ही, उसके कंधे पर एक ठंडा स्पर्श महसूस हुआ।
उसने इधर-उधर देखा, पर वहाँ कोई नहीं था। हालाँकि, उसके सामने धुंध भरे अँधेरे में एक आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही थी। एक जाना-पहचाना चेहरा... उसकी आँखें चिंता से भरी थीं, चेहरे पर दर्द की लकीरें... और फिर भी, उसका अस्तित्व आधा धुंधला था, मानो वह वास्तविकता और अतीत में फँसी हो।
"राजवीर..." उसकी आवाज़ आते ही उसका दिल धड़क उठा।
"मृणालिनी...?"
उसके सामने उसकी पूर्व प्रेमिका—मृणालिनी—खड़ी थी, जो चिनार के राजा की क्रूरता का शिकार हो गई थी। उसकी आँखें उदासी से भरी थीं, पर उनमें एक चेतावनी, एक डर था।
"राजवीर, समय रहते जाग जाओ! मेरे जैसे आर्या का भी शिकार हो जाएगा... सहस्त्रपाणि उसे ज़िंदा नहीं रखेगा !"
राजवीर के शरीर में एक काँटा चुभ गया। उसने उसकी ओर देखा, उसके शब्दों की तीव्रता उसके दिल में चुभ रही थी।
"मृणालिनी, यह कैसे संभव है? तुम यहाँ कैसे हो?" उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
"मैं अभी भी यहाँ हूँ, राजवीर। मैं अभी भी पीड़ित हूँ। सहस्त्रपाणि ने मेरी आत्मा पर कब्ज़ा कर लिया था, मैं उसके जाल से बच निकली, लेकिन मेरी आत्मा अभी भी आज़ाद नहीं हुई है। मैं तुम्हें चेतावनी देने आई हूँ... वह तुम्हारी आँखों के सामने आर्या को मार डालेगा!"
राजवीर का दिमाग सुन्न हो गया। मृणालिनी का आखिरी पल उसे याद आ गया, वह दिन जब चिनारा के राजा ने उस पर वार किया था और उसने उसकी बाहों में आखिरी साँस ली थी। वह दिन जब उसने खुद को असहाय समझा था, जब उसकी आँखों के सामने उसका प्यार छीन लिया गया था।
और अब, उसकी परछाईं उसके सामने खड़ी थी, उसे अपने भविष्य की भयावहता का एहसास करा रही थी।
"जो उसने मेरे साथ किया, वही आर्या के साथ भी करेगा! अगर तुम कुछ नहीं करोगे, तो वह भी मेरी तरह मौत का सामना करेगी! उसका बच्चा भी सुरक्षित नहीं रहेगा..."
राजवीर ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। वह आर्या के नाज़ुक चेहरे, उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर सकता था... मृणालिनी के शब्दों ने उसके दिल में भय भर दिया।
उसने आँखें खोलीं, लेकिन मृणालिनी, उस धुंधले, धुएँ जैसे रूप में, अब उसकी नज़रों से ओझल हो रही थी।
"राजवीर, मुझे फिर से मत खोना... आर्या को बचा लो!"
और एक पल में वह गायब हो गई।
राजवीर पसीने से तरबतर था। वह ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रहा था, अपने मन को शांत करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन वह शांत नहीं रह पा रहा था। क्या यह सिर्फ़ एक सपना था या सच में कुछ और? वह आगे बढ़ने या पीछे मुड़ने के बीच फँसा हुआ था, उसके पैर आगे नहीं बढ़ पा रहे थे।
क्रमशः
कहानी अभी लिखी जा रही है। अगले एपिसोड इरा के फेसबुक पेज पर नियमित रूप से पोस्ट किए जाएँगे, इसलिए पेज को फ़ॉलो करते रहें। यदि आपको यह कहानी श्रृंखला पसंद आती है तो प्रतिक्रिया अवश्य दें।
यह कहानी काल्पनिक है। इसमें चित्रित नाम, पात्र, स्थान और घटनाएँ लेखक की कल्पना की उपज हैं या काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, घटना या स्थान, जीवित या मृत, से इसकी कोई भी समानता पूर्णतः संयोगवश है।
सभी अधिकार सुरक्षित, इस प्रकाशन के किसी भी भाग को लेखक की स्पष्ट लिखित अनुमति के बिना किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से पुन: प्रस्तुत या कॉपी नहीं किया जा सकता है, या किसी डिस्क, टेप, मीडिया या अन्य सूचना भंडारण उपकरण पर पुन: प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। पुस्तक समीक्षाओं के संक्षिप्त उद्धरणों को छोड़कर।
copyright: ©®
Download the app
आता वाचा ईराच्या कथा सोप्या पद्धतीने, आजच ईरा app इंस्टॉल करा