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रक्तपिशाच का रक्तमणि ४८

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ४८

आर्या के हाथ में नीले फूल की खुशबू आते ही राजवीर और बलदेव के मन पर छाया भ्रम का जाल पल भर में छँटने लगा। उनके काँपते शरीर स्थिर हो गए, उनके सिर पर छाए भय के बादल छँटने लगे। कुछ ही पलों में दोनों को होश आ गया और वे इधर-उधर देखने लगे।

राजवीर ने आँखें खोलते ही उसकी साँसें तेज़ी से ऊपर-नीचे होने लगीं। उसकी आँखों में पिछले कुछ पलों के भय की छाया अभी भी दिख रही थी। होश में आते ही आर्या ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और धीमी आवाज़ में बोली, "राजवीर, डरो मत, यह सब झूठ था... बस इस जगह का जाल! वह भ्रम था। यह ऐसी जगह है जो तुम्हें भय के सबसे गहरे गर्त में धकेल देती है!"

राजवीर ने उसे असमंजस से देखा, "लेकिन... मैंने सचमुच उसकी आवाज़ सुनी थी, उसकी छवि देखी थी... उसने मुझसे कहा था कि सहस्त्रपाणि तुम्हें भी उसकी तरह मार डालेंगे!"

आर्या उसके सामने बैठ गयी और बोली, "यह जगह तुम्हारे मन को पढ़ती है, तुम्हारे अतीत में झाँकती है और तुम्हारे डर को बढ़ाती है। जो कुछ भी तुम महसूस कर रहे थे, वह बस एक भ्रम था। मैंने भी अपने माता-पिता की आत्माओं को देखा था, उन्होंने भी मुझे यहाँ से जाने को कहा था। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यह सब एक भ्रम था, हमारे मन का खेल था!"

बलदेव अभी भी शांत नहीं हुआ था। उसके चेहरे पर एक अपराधबोध था। उसने काँपती आवाज़ में पूछा, "मेरे अंदर एक भेड़िये का दिमाग है... उसने मुझे आर्या को फाड़कर खाने, राजवीर को मारने के लिए कहा था... यह सब इतना सच लग रहा था कि मैं खुद को रोक नहीं पाया..."

आर्या ने उसकी तरफ देखा और एक नीले फूल की खुशबू को अपने पास लाया। "यह फूल सत्य के प्रतीक जैसा है, जो अंधकार को दूर करता है। यह हमें यहाँ से निकलने में मदद करेगा।"

जब वे तीनों इस सदमे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, तभी एक अजीब सी आवाज़ उनके कानों में पड़ी। एक मोटा, कुबड़ा आदमी एक पेड़ के पीछे से निकला। उसके बाल बिखरे हुए थे, आँखें लाल थीं, और चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। वह उनकी ओर बढ़ा और भारी आवाज़ में बोला,

"अब तो तुम्हे होश आ गया... लेकिन जिन लोगों को यह जगह एक बार खींच लेती है, वे फिर आसानी से यहाँ से नहीं जा सकते!"

राजवीर और बलदेव तुरंत सतर्क हो गए। दोनों ने अपने हथियार उठा लिए। आर्या पीछे हट गयी और उस आदमी की तरफ़ देखा।

बलदेव गुर्राया, "कौन हो तुम?"

वह आदमी पागलों की तरह हँसा। "मैं? मैं भी तो यहाँ फँसा हूँ... सालों से... ठीक वैसे ही जैसे तुम अब फँसने वाले हो!"

वह ज़ोर से चिल्लाया और उसके पीछे से लोगों के झुंड निकल आए। वे सब पागल लग रहे थे, उनकी आँखें बेजान थीं। मानो किसी जाल में फँसकर उन्होंने अपनी पहचान खो दी हो।

"ये लोग ज़िंदा नहीं हैं..." आर्या डरकर फुसफुसाई।

वे सब उन तीनों के इर्द-गिर्द घूमने लगे। कुछ ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया।

"हमें उन्हें रोकना होगा। हमें इनसे बाहर निकलना होगा!"

राजवीर ने अपनी तलवार उठाई और अपने सामने खड़े पागल लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया। एक के बाद एक, उसके वार से कुछ लोग पीछे हट गए, कुछ ज़मीन पर गिर पड़े, लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उन्हें ज़रा भी नुकसान नहीं हुआ! न खून निकल रहा था, न ही उनकी हरकतें धीमी पड़ रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वे मरकर भी ज़िंदा हों। कुछ ही पलों में, वे फिर से उठ खड़े हुए और राजवीर को उसी भयानक, अटल निगाहों से देखने लगे। उसका मन बेचैन होने लगा।

"आखिर ये क्या है? ये लोग तो मरे हुए लग रहे हैं, पर मर नहीं रहे!" उसने मन ही मन बुदबुदाया। आर्या और बलदेव भी वहीं खड़े होकर यह भयानक दृश्य देख रहे थे।

बलदेव ने एक-दो लोगों को अपने से दूर फेंकने की कोशिश करते हुए एक भयानक चीख मारी। लेकिन लोगों में ज़रा भी डर नहीं था, उनकी आँखें अभी भी खाली थीं, मानो वे अपने मन पर काबू नहीं रख पा रहे हों।

राजवीर ने उनमें से एक आदमी को चाकू मारा, पर उसमें से खून नहीं निकला! वह आदमी फिर से खड़ा हो गया, मानो उसे कुछ हुआ ही न हो।

आर्या ने काँपती आवाज़ में पूछा, "ये लोग कौन हैं? ये तो मरे हुए लग रहे हैं, पर मर नहीं रहे!"

राजवीर को अचानक याद आया। "ये लोग तो अतीत में फँसे हुए हैं! अगर हम यहाँ ज़्यादा देर रहे, तो हम भी वैसे ही हो जाएँगे!"

तीनों उस पागल भीड़ से दूर भागने लगे। मानो उस इलाके में समय थम गया हो। कोई पक्षी नहीं था, बस एक रहस्यमयी सन्नाटा था।

आर्या के हाथ में नीला फूल अब भी चमक रहा था, मानो उसमें से कोई दिव्य आभा निकल रही हो। जैसे ही उसने असमंजस में लोगों को देखा, वे सभी आर्या के पास पहुँच गए। और उसके सामने पागल भीड़ अजीब तरह से व्यवहार करने लगी। जो चेहरे कुछ क्षण पहले निडर होकर आगे बढ़ रहे थे, अब एक अनजानी बेचैनी से ढँक गए थे। उनकी चाल धीमी हो गई, और वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे, मानो कुछ न देख रहे हों। पहली बार, उनकी शांत आँखों में एक हल्का सा भ्रम दिखाई दिया।


"यह फूल... उन्हें गुमराह कर रहा है?" आर्या ने मन ही मन सोचा। लेकिन तीनों एक बात समझ गए, यह फूल किसी न किसी तरह इन रहस्यमयी शक्तियों को प्रभावित कर रहा था!

बलदेव बिना एक पल भी हिचकिचाए आर्या से चिल्लाया,

"यह फूल उन्हें डरा रहा है! आर्या, इसका इस्तेमाल करो!"

आर्याने नीले फूल की खुशबू को हवा में धीरे से घुमाया, और उस पल मानो पागल भीड़ पर कोई अनजानी विपत्ति आ पड़ी हो। जो लोग कुछ पल पहले निडर होकर आगे बढ़ रहे थे, वे दर्द से कराहने लगे, अपने चेहरे हाथों से ढँक लिए और ज़मीन पर गिर पड़े। उनके चेहरों पर असहनीय दर्द दिखाई दे रहा था, मानो फूल की खुशबू ने उनके अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया हो। कुछ ने मुँह खोलकर चीखने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में अब पहले जैसी ताकत नहीं रही।

"यह फूल उनके लिए ज़हर जैसा असर कर रहा है!" आर्या चौंक गयी और आगे बढ़ने लगी। जबकि राजवीर और बलदेव यह नज़ारा देखकर और ज़्यादा सतर्क हो गए।

एक-एक करके, पागल लोग डर के मारे पीछे हटने लगे, मानो उन पर किसी अनजानी शक्ति का कब्ज़ा हो गया हो। कुछ के कदम भारी हो गए, कुछ ने फिर से आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही नीले फूल की खुशबू उन तक पहुँची, वे और भी बेबस होते गए। कुछ तो ज़मीन में समा गए, मानो धरती ने उन्हें निगल लिया हो। कुबड़े ने आखिरी कोशिश में गुस्से से चीखने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज़ हवा में धीमी पड़ गई। कुछ ही पलों में, वह भी धुएँ की तरह गायब हो गया, मानो उसका कभी अस्तित्व ही न रहा हो। अब उस अजीब जगह में बस एक रहस्यमयी सन्नाटा था।

थककर तीनों एक बड़ी दीवार के नीचे साँस लेने के लिए रुक गए। अतीत के डर की गूँज अभी भी उनके मन में गूँज रही थी। आर्या ने अपनी काँपती उँगलियों से नीले फूल को देखा। उसकी चमकदार नीली रोशनी अभी भी मंद-मंद चमक रही थी। उसके मन में एक विचार आया, 
"विनायक ने यह फूल क्यों दिया होगा? क्या उसे यह सब पहले से पता था? क्या उसे पता था कि हम इतने भयानक जाल में फँस जाएँगे?" वह उलझन में थी। अब वह विनायक के शांत, चमकीले फूल के पीछे के रहस्य के बारे में और जानना चाहती थी।

बलदेव ने गहरी साँस ली। "हम इस संकट से सुरक्षित बाहर आ गए हैं, लेकिन रक्तमणि अभी तक नहीं मिला है। हमें अभी भी उसे ढूँढ़ना है और इन कठिनाइयों को सहने के बाद जल्द से जल्द वहाँ से निकलना है।"

राजवीर अभी भी थोड़ा सोच में डूबा हुआ था। वह पीछे मुड़ा और उस जगह को देखा जहाँ से वे निकले थे। उस आदमी और उन पागल आत्माओं ने उसे चेतावनी दी थी, अतीत से बच निकलना आसान नहीं है।

कोई नहीं जानता था कि आगे क्या मुसीबतें आएगी। लेकिन एक बात साफ़ थी, इस जगह में अभी भी कुछ छिपा हुआ था।


क्रमशः 

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