भाग ४९
उस जगह अँधेरा और सन्नाटा छा रहा था। राजवीर, आर्या और बलदेव धीमे कदमों से आगे बढ़ रहे थे। हवा में एक अजीब सी ठंडक थी, मानो वह जगह खुद ज़िंदा हो और उन्हें देख रही हो। आर्या अभी भी उस नीले फूल के बारे में सोच रही थी जो विनायक ने उसे दिया था।
"विनायक ने यह फूल क्यों दिया? क्या उसे यह सब पहले से पता था?"
उसके मन में सवालों का सैलाब उमड़ पड़ा था। जैसे ही वह फूल को देख रही थी, उसके थैले से एक लाल रोशनी निकली। वह रोशनी हवा में तैरती हुई प्रतीत हुई, और कुछ ही पलों में उसमें से विनायक का एक पत्र प्रकट हुआ।
उसमें लिखा था।
"जो चीज़ें दिखाई देती हैं, ज़रूरी नहीं कि वे सच हों! सावधान!"
अचानक, जंगल में काली परछाइयाँ घूमने लगीं, जैसे ही उसे उसकी चेतावनी मिली।
राजवीर ने अपनी तलवार निकाली और परछाइयों को देखा और आगे बढ़ गया। वे आकृतियाँ पूरी तरह से इंसानी नहीं थीं। उनके शरीर से धुएँ जैसी काली गंध आ रही थी, और उनकी आँखें कोयले जैसी चमक रही थीं।
जैसे ही बलदेव आगे बढ़ा, उसके शरीर पर एक भयानक परछाईं पड़ गई। वह लड़खड़ाकर पीछे हट गया।
"ये कौन हैं?" उसने डरते हुए पूछा।
राजवीर ने परछाइयों को देखा और उन्हें पहचान लिया।
"ये परछाईं सैनिक हैं। ये साधारण हथियारों से नहीं मरते!"
राजवीर ने तलवार से वार किया, लेकिन परछाईं ने उसे ऐसे भेद दिया मानो वह कभी थी ही नहीं। परछाईं सैनिक ने अपना रूप बदला और उस पर टूट पड़ा। परछाईं एक के बाद एक उसके चारों ओर घूमने लगीं। वे न केवल धुंध जैसी दिख रही थीं, बल्कि उनमें एक भयंकर गर्मी थी, जो धीरे-धीरे राजवीर को घेरने लगी।
वह वार करता रहा, लेकिन किसी को भी नहीं लग रहा था। तलवार चलाने से उसके हाथ दुखने लगे थे। तभी, एक परछाईं तेज़ी से आगे आई और उसके सीने पर वार किया। वह पीछे की ओर उछलकर एक पेड़ से टकरा गया। परछाईं सैनिकों ने एक ही दहाड़ से उस पर हमला करने की कोशिश की।
उसी समय, बलदेव ने भी अपना भेड़िया रूप धारण कर लिया। उसकी आँखों में एक क्रूर चमक थी। वह परछाईं सैनिकों में से एक पर झपटा और अपने तीखे पंजों से उसके चेहरे पर नोचने लगा। लेकिन उसके पंजे बेजान काले धुएँ जैसे कोहरे में ही वापस लौट आए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस काले भूत से कैसे लड़े? एक साये ने मौका पाकर बलदेव की पीठ पर हमला कर दिया।
साया उसके शरीर पर फैल गया, और एक अजीब सी ठंडक उसके शरीर में समा गई। वह ज़ोर से चीखा, पर कोई आवाज़ नहीं निकली। यह साया उसे निगलने ही वाला था! बलदेव ने जल्दी से खुद को संभाला और ज़ोर से गुर्राते हुए साये को झटकने की कोशिश की, लेकिन वह कसकर चिपका हुआ था। उसने ऐसी अजीब लड़ाई में पहले कभी हिस्सा नहीं लिया था। वह पहली बार डरा हुआ था।
"ऐसा क्यों हो रहा है?"
आर्या ने जल्दी से थैले में हाथ डाला और विनायक द्वारा दिया गया ताबीज़ निकाल लिया। उसके मन में बस एक ही विचार था, यह ताबीज़ कुछ ख़ास है। परछाइयाँ उसे घेरे हुए थीं। बलदेव कराह रहा था, राजवीर ने एक बार फिर प्रतिशोध की भावना से अपनी तलवार उठाई थी, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आर्या ने ताबीज़ ऊँचा फेंका और ज़ोर से चिल्लाई, "हे प्रकाश की शक्ति से निर्मित सुरक्षा! अगर तुम सचमुच पवित्र हो, तो हमें बचाओ!"
ताबीज़ हवा में घूम गया और उस ताबीज़ से निकलने वाली तेज़ रोशनी पूरे इलाके में फैल गई। उस रोशनी से बेलों की शाखाएँ सुनहरी लग रही थीं। उस रोशनी के स्पर्श से परछाईं सैनिक दर्द से चीख़ने लगे। कुछ वहीं पिघल गए, कुछ तेज़ी से भागने लगे। बलदेव के शरीर से चिपकी परछाईं चीख़ी और धुएँ की तरह बिखर गई। राजवीर भी अवाक था।
वह लड़ रहा था, लेकिन प्रकाश की यह एक लहर दुश्मन की ताकत को नष्ट कर रही थी। आर्या ने ताबीज़ को फिर से कस कर पकड़ लिया। उसके चेहरे पर दृढ़ संकल्प था, इस अँधेरे के आगे वह हार नहीं मानना चाहती थी! आर्या, राजवीर और बलदेव चुपचाप उस दृश्य को देखते रहे। कुछ ही पलों में, पूरा माहौल सामान्य हो गया था, लेकिन ताबीज़ की रोशनी की ऊर्जा अभी भी मौजूद थी।
लेकिन युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ था...
अचानक, सामने पेड़ों के पीछे से एक राजसी आकृति प्रकट हुई। वह कोई साधारण योद्धा नहीं था, वह स्वयं दुर्मद राक्षस था!
उसके माथे पर खून का गहरा धब्बा था, और उसका चेहरा बिल्कुल निर्दयी लग रहा था।
"राजवीर, तुम बहुत देर तक छिपे रहे। अब तुम्हें आखिरी क्षण तक लड़ना होगा!"
जैसे ही वह आगे बढ़ा, उसके पीछे से और भी राक्षसी छाया सैनिक निकल आए। उनका पूरा क्षेत्र अब भयानक अंधकार में डूब गया था।
बलदेव ने आर्या की ओर देखा और चिल्लाया -
"आर्या, जल्दी से ताबीज़ चलाओ!"
लेकिन उसी समय, दुर्मद ने एक बड़ा लोहे का गज हवा में उठाया और फेंक दिया। गज सीधा आर्या की ओर झपटा!
आर्या जल्दी से मुड़ी और गज से बच गई, लेकिन उसने उसके कंधे को खरोंच दिया। वह दर्द से गिर पड़ी, ताबीज़ उससे थोड़ा दूर गिर गया, उसकी रोशनी धीमी पड़ गई।
राजवीर बिना एक पल की भी हिचकिचाहट के दुर्मद पर कूद पड़ा। उनके बीच तलवारों का भीषण युद्ध शुरू हो गया। दुर्मद सहस्त्रपाणि का एक बहुत ही कुशल योद्धा था। उसका हर वार बहुत शक्तिशाली होता था।
बलदेव ने फिर से एक पूर्ण भेड़िये का रूप धारण कर लिया। लेकिन इस बार उसकी आँखों में एक चमकदार नीली चमक थी।
वह हवा में उछला और दुर्मद पर झपटा। राजवीर और बलदेव दोनों तरफ से उससे लड़ रहे थे, लेकिन वह उन दोनों पर भारी पड़ रहा था।
दुर्मद मुस्कुराया और अपना हाथ बढ़ाकर काले जादू का एक बड़ा अग्निबाण छोड़ा। वह सीधे बलदेव की छाती में लगा और वह एक पेड़ से टकराकर गिर पड़ा।
आर्या दर्द सहते हुए खड़ी हो गई। वह ताबीज की ओर सरकने लगी। प्राचीन ताबीज ने एक बार फिर उसके हाथ को छुआ। आर्या के हाथ में आते ही, वह फिर से चमकने लगा।
"दुर्मद, यह ताबीज तुम्हारे अंत की शुरुआत करेगा!"
आर्या ने पूरी ताकत से ताबीज को हवा में उछाला। जैसे ही ताबीज हवा में उभरा, उसमें से एक तेज़ रोशनी निकली, इतनी तेज़ कि उस ज़मीन के घने अंधेरे में भी दूर-दूर तक रोशनी फैल गई। रोशनी पड़ते ही छाया सैनिक काँपने लगे। कुछ ने आखरी हमला करने की कोशिश की, लेकिन उनकी गति धीरे-धीरे धीमी हो गई।
उनकी आकृतियाँ विलीन होने लगीं, मानो वे धुएँ की लहरों की तरह हवा में विलीन हो रही हों। राजवीर और बलदेव यह सब विस्मय से देख रहे थे।
"यह ताबीज सचमुच अद्भुत है!" बलदेव ने कर्कश स्वर में कहा।
दुर्मदने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन रोशनी ने उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। उसके चेहरे पर तीव्र दर्द की छाया दिखाई दी। वह ज़ोर से चिल्लाया, "नहीं! यह मुमकिन नहीं...!" उसके शरीर के चारों ओर गहरा काला धुआँ छा गया, लेकिन वह उस रोशनी के आगे बेबस लग रहा था। धुआँ धीरे-धीरे उसके शरीर से निकलकर ज़मीन पर गिरने लगा।
"यह अभी ख़त्म नहीं हुआ है! तुम्हें और कष्ट सहना होगा!" चिल्लाते हुए, वह धुएँ की लहर की तरह हवा में विलीन हो गया और अंततः ज़मीन पर गिर पड़ा।
उसके गिरने के साथ ही पूरे इलाके में सन्नाटा छा गया। छाया सैनिक गायब हो गए, अँधेरा छँट गया और ठंडी हवा पूरे इलाके में फैल गई। आर्या ने थककर अपने हाथ नीचे कर लिए, लेकिन उसके दिल में जीत की एक झलक थी। "हम बच गए..." उसने काँपते हुए कहा।
बलदेव उठा, उसके शरीर पर कई घाव थे, लेकिन वह ज़िंदा था। राजवीर ने अपनी तलवार वापस म्यान में रख ली। और आर्या के कंधे को सहारा दिया।
"हम अभी ज़िंदा हैं," बलदेव ने थकी हुई आवाज़ में कहा।
आर्या ने अपने हाथ में ताबीज़ देखा। वह अब पूरी तरह से निष्क्रिय लग रहा था।
"शाप चला गया, लेकिन क्या यह हमेशा के लिए चला गया?" उसने डरते हुए पूछा।
राजवीर ने एक तरफ़ देखा। उसके मन में भी यही सवाल घूम रहा था।
क्रमशः
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