भाग ५०
अंधेरे कोने में, जहाँ अभी भी अँधेरा छाया हुआ था, राजवीर, आर्या और बलदेव थके हुए लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ चल रहे थे। उन्होंने अतीत की परछाइयों को पीछे धकेल दिया था, छाया सैनिकों को परास्त कर दिया था, और अब उनका अंतिम लक्ष्य रक्तमणि को ढूँढ़ना था।
आर्या के हाथ में विनायक ताबीज़ से अब एक बहुत धीमी हल्की सी चमक निकल रही थी, मानो यह संकेत दे रही हो कि रक्तमणि कहीं आस-पास छिपा है। राजवीर ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, उसके हृदय में मिश्रित भावनाएँ उमड़ रही थीं। उसके लिए रक्तमणि पाना एक जीत थी, लेकिन कोई नहीं जानता था कि रक्तमणि के श्राप का क्या परिणाम होने वाला था।
"यह जगह अलग लग रही है," बलदेव ने सावधानी से चारों ओर देखते हुए कहा। उसका भेड़िया रूप धीरे-धीरे फीका पड़ रहा था, लेकिन उसके संवेदनशील कान अभी भी अपने आस-पास की हर हलचल पर सतर्क थे।
"हाँ, हवा भी अलग लग रही है," आर्याने अपनी कोक में हाथ रखते हुए धीरे से बुदबुदाया। उसकी गर्भावस्था ने उसे और भी सतर्क बना दिया था।
जैसे ही वे आगे बढ़े, एक अजीब, ठंडी हवा उनके ऊपर आने लगी। दीवारों पर प्राचीन नक्काशी किसी अनजान भाषा में की गई थी, जिसका अर्थ कोई नहीं समझ सकता था, लेकिन उसकी ध्वनि प्राचीन मंत्रों जैसी थी।छत आग की लपटों से ढकी हुई थी, और टूटे हुए पत्थरों ने ज़मीन को कठोर बना दिया था। हर कदम के साथ, उनके जूतों की रगड़ से गुफा में गहरी गूँज उठ रही थी, मानो कोई उन्हें अँधेरे में देख रहा हो। वातावरण घना और रहस्यमय था, मानो वे किसी अलग ही दुनिया में प्रवेश कर रहे हों।
कमरे के बीच में रखा रक्तमणि, घने अँधेरे में भी, अपनी लालिमा से चमक रहा था। वह सिर्फ़ एक पत्थर नहीं था, बल्कि जीवित लग रहा था। वह अपने आप ही कोमल तरंगें उत्सर्जित कर रहा था, मानो उनसे संवाद कर रहा हो।मेज के चारों ओर की ज़मीन पर अजीबोगरीब चिह्न उकेरे गए थे, और धीरे-धीरे उसमें एक हल्की लालिमा चमकने लगी।
गुफा में घना सन्नाटा और भी गहरा गया।
"यही वह रक्तमणि है... जिसकी हम इतने समय से तलाश कर रहे थे," बलदेव फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ भी उस जगह की भारी उपस्थिति में खो गई। राजवीर आगे बढ़ा, उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, वह रक्तमणि के चमकीले लाल रंग को घूर रहा था, लेकिन उसे एहसास हो रहा था... यह सिर्फ़ एक शक्तिशाली पत्थर नहीं, बल्कि एक शापित वस्तु थी, जो उसके स्पर्श का इंतज़ार कर रही थी।
"हाँ, यही वो रक्तमणि है जो हमें चाहिए!" राजवीर का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। इतने दिन की यात्रा, युद्ध और कठिनाइयाँ, यह सब इसी के लिए था।
"इसे उठाने से पहले सावधान रहना," बलदेव ने आगे बढ़ते हुए चेतावनी दी। "यह कोई साधारण पत्थर नहीं, शापित चीज है।"
"शापित हो या न हो, मेरे पास इसे लेने के अलावा कोई चारा नहीं है," राजवीर ने दृढ़ता से अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा।
जैसे ही उसकी उंगलियाँ रक्तमणि को छूतीं, पूरी गुफा काँपने लगती। हवा का एक तेज़ झोंका उन्हें पीछे धकेलने लगता, और उसके साथ एक अपार शक्ति का प्रभाव महसूस होने लगता। दीवारों पर बनी नक्काशी से एक काली रोशनी निकलने लगी, मानो वे प्राचीन प्रतीक भी इस स्पर्श का विरोध करने की कोशिश कर रहे हों। अचानक, एक भयानक, दर्द भरी चीख ने पूरी गुफा को हिलाकर रख दिया।
यह आवाज़ किसकी थी? किसी मरी हुई आत्मा की, या फिर खून की? राजवीर ने अपना हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी उंगलियाँ रक्तमणि से चिपकी हुई लग रही थीं। उसके शरीर में गर्मी की एक लहर दौड़ गई, और अनगिनत अनजान आवाज़ें उसके दिमाग में गूंजने लगीं।
"तुम मेरे वारिस हो... लेकिन अब यह श्राप भी तुम्हारा है!"
आर्याने डरकर पीछे मुड़कर देखा, बलदेव ने अपनी तलवार तान दी, लेकिन उनके सामने कोई नहीं था, सिर्फ़ उस रक्तमणि से निकलती एक परछाई।
राजवीर ने मुट्ठी भींच ली, लेकिन जब उसने अपने हाथ में से काली नसें निकलती देखीं, तो वह दंग रह गया। उन नसों में प्रवाहित ऊर्जा गर्म हो रही थी, मानो कोई अनजानी शक्ति उसके शरीर में ज़बरदस्ती प्रवेश कर रही हो। उसके मन में तरह-तरह के डरावने चित्र उभरने लगे, रक्त से सने युद्ध के मैदान, करुण क्रंदन करते लोग, और उसके ही हाथों किए गए नरसंहार। उन दृश्यों में एक बात साफ़ थी, यह रक्तमणि न सिर्फ़ ताकत दे रहा था, बल्कि पूरी आत्मा को सुन्न कर रहा था।
"यह श्राप तुम्हारे खून में मिल चूका है, अब तुम पीछे नहीं हट सकते..." उसके दिमाग़ में एक भयानक आवाज़ गूँजी। उस आवाज़ ने उसके दिमाग़ को ऐसा महसूस कराया जैसे वह टूटने के कगार पर हो, उसकी मुट्ठी और भी कस गई, लेकिन वह कुछ नहीं कर सका। उसके अंदर कहीं गहरे में, एक भूख पनप रही थी, एक अमानवीय इच्छा, कुछ नष्ट करने की, कुछ खा जाने की! उसने दाँत पीसकर खुद को होश में रखने की कोशिश की, लेकिन रक्तमणि उसे जकड़ चुका था। अनजाने में ही उसकी आँखों में एक अजीब सी लालिमा छा गई और उसके मन में एक ही विचार घूमने लगा,
"मुझे शक्ति चाहिए, और शक्ति!"
"राजवीर, यह रक्तमणि छोड़ दो!" आर्या डर के मारे चीखी।
"अब बहुत देर हो चुकी है..." राजवीर ने होंठ भींचते हुए कहा। उसकी आँखों के सामने भूत और भविष्य के अलग-अलग दृश्य घूमने लगे। उसने देखा कि अगर वह रक्तमणि की शक्ति का इस्तेमाल करे, तो वह पूरे राज्य पर विजय प्राप्त कर सकता है, लेकिन इसके साथ ही, एक भयानक सच्चाई भी उसके सामने आई, वह खुद त्रिकाल या सहस्त्रपाणि जैसा क्रूर पिशाच बन सकता है!
बलदेव ने तुरंत राजवीर का हाथ पकड़ा और उसे पीछे खींच लिया। "इसका प्रभाव बढ़ रहा है, हमें इसे यहीं छोड़ देना चाहिए!"
"नहीं!" राजवीर चिल्लाया, उसकी आवाज़ गुफा में गूँज रही थी। उसकी आँखों में दर्द और दृढ़ संकल्प दोनों झलक रहे थे। उसके शरीर से पसीना बह रहा था, लेकिन उसने रक्तमणि को पकड़ने की कोशिश नहीं छोड़ी।
"मैं इतनी दूर आ गया हूँ और अब यहाँ से बिना कुछ लिए वापस नहीं जा सकता। यह रक्तमणि मेरे बेटे को बचाएगा!" उसके शब्दों में एक तड़प थी, लेकिन उसके आस-पास का अँधेरा गहराने लगा। दीवारों पर बनी नक्काशी तेज़ी से चमकने लगी, मानो वे भी उसका विरोध कर रही हों।
अचानक, रक्तमणि ने एक गर्म लहर छोड़ी और राजवीर की छाती पर एक ज़ोरदार प्रहार किया। वह थोड़ा पीछे हट गया, लेकिन फिर भी उसने उसे नहीं छोड़ा। उसके मन में एक ही विचार गूँज रहा था,
"मैं हार नहीं मानूँगा। मैं अपने बेटे को किसी भी कीमत पर बचाऊँगा!"
"लेकिन शायद इसका श्राप तुम्हें और हम सबको नष्ट कर सकता है," आर्या ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
"कृपया, इस प्रलोभन से बचो।"
वह एक पल के लिए असमंजस में पड़ गया। रक्तमणि उसके हाथ में काँप रहा था, मानो खुद से बात कर रहा हो। लेकिन आर्या की आवाज़ और बलदेव के शब्दों का उसके मन पर गहरा असर हो रहा था।
"ठीक है..." राजवीर ने गहरी साँस ली और हालाँकि उसके हाथ थोड़े काँप रहे थे, उसने रक्तमणि को सावधानी से एक कपड़े की थैली में रख दिया। उसी क्षण, गुफा में तेज़ हवाएँ थम गईं, दीवारों पर नक्काशी धुंधली पड़ गई और एक सन्नाटा सा छा गया। हालाँकि, उस सन्नाटे में भी, उसके मन में एक रहस्यमयी एहसास घर कर गया था, यह संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ था। यह तो बस शुरुआत थी।
उस रक्तमणि के भार ने उसके कंधों पर एक अदृश्य बोझ डाल दिया था, मानो वह किसी नई, भयावह यात्रा का अग्रदूत हो। बलदेव और आर्या भी कुछ उलझन में थे, लेकिन वे बिना कुछ बोले एक-दूसरे को देखते रहे, अब पीछे मुड़ना नामुमकिन था।
"हम इसे यहीं वापस रख सकते थे, लेकिन अब यह हमारे साथ आनेवाला है," बलदेव ने चिंतित होकर कहा।
"हाँ, और अब हमें इस श्राप का फल भी भुगतना होगा," आर्या ने अपने पेट पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा। उसे लग रहा था कि कुछ बड़ा होने वाला है।
उन्होंने रक्तमणि तो प्राप्त कर ली थी, लेकिन साथ ही उन्हें एक नया शत्रु भी मिल गया था, उसका श्राप।
क्रमशः1
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