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रक्तपिशाच का रक्तमणि ५१

एक रक्त पिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ५१

रक्तमणि मिलने के बाद से राजवीर का स्वभाव धीरे-धीरे बदल गया। पहले वह एक शांत, संयमी योद्धा था जिसे अपने लोगो की परवाह थी। लेकिन अब उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, मानो उस पर किसी अनजानी शक्ति का कब्ज़ा हो गया हो। उसके दिल में एक अजीबसी बेचैनी थी, और वह उसे बयां भी नहीं कर पा रहा था।

उस रात जंगल में घूमते हुए उसे अचानक ज़ोर की भूख लगी। आर्या और बलदेव ने सोचा कि हमेशा की तरह उसे कोई छोटा जानवर मिल जाएगा। लेकिन वे बिलकुल गलत थे। राजवीर बिना कुछ कहे, सामने खड़े एक हिरण पर झपट पड़ा। पल भर में उसने अपने हाथों से उसका गला पकड़ लिया और उसे ज़मीन पर पटक दिया। हिरण कराह रहा था, लेकिन राजवीर के चेहरे पर ज़रा भी दया नहीं थी। उलटा, उसकी आँखों में एक पागल सी हिंसा चमक रही थी।

"राजवीर, तुम क्या कर रहे हो?" आर्या डर के मारे पीछे हट गयी।

बलदेव भी अवाक रह गया। वह कुछ कहने ही वाला था कि राजवीर ने अपने तीखे पंजों से हिरण का गला फाड़ दिया और उसके छटपटाते शरीर से बहते गर्म खून को पीने लगा। उसके चेहरे पर एक पागल सी खुशी थी, मानो वह कब से इस पल का इंतज़ार कर रहा था।

आर्या डर के मारे पीछे हट गई। "राजवीर! यह... क्या कर रहे हो?" उसकी आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था।

बलदेव भी सुन्न पड़ गया। "राजवीर, यह ठीक नहीं है! तुम ऐसे नहीं हो!"

लेकिन राजवीर सुनने को बिल्कुल तैयार नहीं था। रक्तमणि के प्रभाव में वह खुद को खोता जा रहा था। जब उसकी भूख शांत हुई, तो उसने अपना सिर उठाया। उसके चेहरे और हाथों पर खून लगा हुआ था।

"मैं ऐसा कभी नहीं था... अब मैं जो हूँ, वही मेरा असली रूप है," उसने ठंडी आवाज़ में कहा।

आर्या और बलदेव राजवीर के बदलते स्वभाव को लेकर चिंतित थे। रक्तमणि का उस पर असर हर घंटे बढ़ता जा रहा था। जब वह पहले लड़ता था, तो उसकी आँखों में एक दृढ़ संकल्प होता था, वह अपने लोगों के लिए लड़ता था। लेकिन अब उसकी आँखों में क्रूरता थी, एक हिंसक वासना, मानो उसे दूसरों को चोट पहुँचाने में मज़ा आ रहा हो।

उस रात भी कुछ अलग हुआ। अँधेरे जंगल में, दूर कुछ जानवर हिल रहे थे। रात के कीड़ों की आवाज़ भी बंद हो गई थी, मानो जंगल उसकी मौजूदगी से डर गया हो। राजवीर चुपचाप उठा और जंगल में चला गया। आर्या और बलदेव सोने का नाटक कर रहे थे, लेकिन असल में वे राजवीर की हरकतों पर कड़ी नज़र रख रहे थे।

राजवीर एक पेड़ के पीछे चला गया और उसकी आँखों की लाल चमक और गहरी हो गई। अचानक, एक तेंदुआ धीरे-धीरे उसके सामने से आगे बढ़ रहा था। उसने अभी तक राजवीर को देखा भी नहीं था, लेकिन एक पल में, राजवीर आगे बढ़ा और तेंदुए पर टूट पड़ा। उसने अपने हाथों से तेंदुए का गला घोंट दिया और कुछ ही पलों में, खून की तेज़ धार के साथ तेंदुआ मर गया।

पेट भरा होने के बावजूद, उसने तेंदुएका खून पीना शुरू कर दिया, और साथ ही उसके शरीर में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगा। मानो रक्तमणि ने उसमें नई ताकत भर दी हो। उसके हाथों की नसें गहरी हो गईं, आँखों की लालिमा और तेज़ हो गई।

आर्या  और बलदेव दूरसे यह सब देख रहे थे। आर्या के मन में भय की लहर दौड़ गई।

"वह पूरी तरह बदल रहा है... हमें कुछ करना होगा।"

बलदेव भी चुप था। वह भी डर रहा था।

"अगर हम कुछ नहीं करेंगे, तो शायद एक दिन वह हमें भी मार डालेगा..."

"नहीं! वह ऐसा नहीं करेगा," आर्या ने थोड़े आत्मविश्वास से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में संदेह साफ़ था।

हालाँकि बलदेव और आर्या उस रात उसके साथ नहीं रहे, वे दोनों अलग-अलग पेड़ों के पीछे छिप गए। उन्हें राजवीर पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा था। बलदेव ने धीमी आवाज़ में आर्या को चेतावनी दी,

"आर्या, उससे तुम दूर रहो। तुम महसूस कर सकते हो कि मैं क्या देख रहा हूँ, है ना? वह अब पहले जैसा राजवीर नहीं रहा... कुछ भयानक हो रहा है।"

उस रात दोनों में से किसी को नींद नहीं आई। दोनों की नज़रें लगातार राजवीर पर टिकी थीं। वह एक पेड़ के नीचे बैठा अपने खून से सने हाथों को देख रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि थी, लेकिन उसके अंदर कुछ टूट रहा था। उसके मन में एक अलग ही लड़ाई चल रही थी, उसके अंदर के इंसान और रक्तमणि से बने राक्षसी रूप के बीच की लड़ाई।

जब सुबह हुई, बलदेव और आर्या अभी भी सतर्क थे। हालाँकि, राजवीर सामान्य व्यवहार कर रहा था, मानो कुछ हुआ ही न हो। लेकिन उसकी आँखों में अभी भी कुछ अलग था।

जब बलदेव ने उसे थोड़ा समझाने की कोशिश की, तो राजवीर का गुस्सा भड़क उठा।

"क्या तुम्हें लगता है कि मैं बदल गया हूँ?" उसने भावुक आँखों से बलदेव को देखा।

"राजवीर, तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है। यह रक्तमणि तुम्हें एक अलग रास्ते पर ले जा रहा है। तुम्हें समझना चाहिए," बलदेव ने शांत स्वर में कहा।

राजवीर ज़ोर से हँसा। "यह रक्तमणि मुझे ताकत दे रहा है, बलदेव! ऐसी ताकत जो मेरे पास कभी नहीं थी! तुम और आर्या इसे अभिशाप मान सकते हो, लेकिन मैं इसे वरदान मानता हूँ।"

"वरदान ?" आर्या ने आँखों में आँसू भरकर पूछा। "तुम जानवरों को चीर-फाड़ कर उनका खून पीते हो। यह कौन सा वरदान है, राजवीर?"

राजवीर उसकी ओर बढ़ा। "तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? यह रक्तमणि मुझे भूखा बना रहा है, मेरे शरीर में नई ऊर्जा भर रहा है। मैं इस भूख को रोक नहीं सकता, आर्या। तुम मेरे बारे में चिंतित मत हो, मैं अब पहले जैसा नहीं रहा।"

उस शाम, राजवीर जंगल में आगे बढ़ा। बलदेव और आर्या उससे कुछ दूरी पर चल रहे थे। अचानक, जंगल के पेड़ हिलने लगे। ऐसा लगा जैसे ज़मीन के नीचे से कुछ हिल रहा हो।

"यह क्या है?" आर्या ने डरते हुए पूछा।

बलदेव सतर्क हो गया। "शायद हमें यहाँ नहीं रुकना चाहिए।"

तभी, ज़मीन के नीचे से काला धुआँ उठने लगा और उसमें से एक विशाल आकृति उभरी। इससे पहले कि वह समझ पाता कि वह कौन है, वह आकृति हवा में तैरने लगी, और उसने पुराने, कामुक कपड़े पहने हुए थे। उसकी आँखों में काला अँधेरा था।

"तुमने रक्तमणि के श्राप को जगा दिया है..." उसने फुसफुसाते हुए कहा।

राजवीर ने उसकी ओर देखा। "तुम कौन हो?"

"मैं इसकी रक्षक हूँ," उसने कहा।

"जो कोई भी रक्तमणि को छूता है, उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं। तुम पहले से ही इस श्राप के प्रभाव में हो, राजवीर।"

आर्या आगे बढ़ी और पूछा, "इसका क्या मतलब है?"

"यह रक्तमणि जितना ज़्यादा समय तक तुम्हारे साथ रहेगा, तुम्हारा जीवन उतना ही ज़्यादा बर्बाद होता जाएगा। और जो लोग इसके साथ रहते हैं, वे भी इससे बच नहीं पाएँगे," महिला ने कहा।

बलदेव और आर्याने एक-दूसरे को देखा। उनके चेहरों पर चिंता थी।

हालाँकि, राजवीर दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ा। "जो मेरे हाथ में आया है, मैं उसे जाने नहीं दूँगा। मैं इस श्राप को सहने के लिए तैयार हूँ।"

महिला ने फीकी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। "ऐसे कई योद्धाओं ने पहले भी कोशिश की है, लेकिन कोई भी बच नहीं पाया।"

"तुम्हारा क्या मतलब है?" बलदेव ने पूछा।

"अगर राजवीर रक्तमणि को ज़्यादा देर तक अपने पास रखेगा, तो वह पूरी तरह बदल जाएगा। अभी तो उसे बस भूख लगी है, लेकिन जल्द ही वह इंसान नहीं रहेगा। उसका दिल टूट जाएगा, उसकी आत्मा अंधकार में डूब जाएगी। और उसका अंत उसके दोस्तों के हाथों होगा..."

यह सुनकर आर्या और बलदेव दोनों दंग रह गए।

"राजवीर, हम अभी भी रुक सकते हैं," आर्या ने चिंता से उससे कहा।

लेकिन राजवीर ने उसे रोक दिया। "नहीं। यही मेरा रास्ता है। मैंने इस रक्तमणि को स्वीकार कर लिया है, अब मैं पीछे नहीं हट सकता।"

वह महिला मुस्कुराई और गायब हो गई।

आर्या और बलदेव ने एक-दूसरे को देखा। अब वे एक बड़े संकट के कगार पर थे।

क्या राजवीर पूरी तरह से रक्तमणि के कब्ज़े में आ जाएगा? क्या बलदेव और आर्या उसे इससे बचा पाएँगे, या वह इसे खो देगा? और यह श्राप कैसे समाप्त होगा?

क्रमशः


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