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रक्तपिशाच का रक्तमणि ५२

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ५२

रात का अँधेरा गहराता जा रहा था। जंगल में सिर्फ़ हवा की आवाज़ और बुलबुलों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। हालाँकि, पेड़ के नीचे बैठे आर्या और बलदेव के मन में एक तूफ़ान सा उठ गया था। वे दोनों राजवीर के बदलते व्यवहार से बेचैन थे। रक्तमणि के प्रभाव से उसका स्वभाव क्रूर और हिंसक होता जा रहा था।

"अगर हम कुछ नहीं करेंगे, तो वह पूरी तरह से रक्तमणि के प्रभाव में आ जाएगा," बलदेव ने चिंता व्यक्त की।

आर्या ने आह भरी और अपने हाथ की छोटी सी छड़ी तोड़ते हुए कहा, "हाँ, मुझे भी यही लग रहा है। पहले तो वह सिर्फ़ खून पीने की इच्छा जता रहा था, लेकिन अब उसे ऐसा करने का कोई पछतावा नहीं है। क्या तुमने उसकी आँखें देखी हैं? वे दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही हैं।"

"हाँ। और आज वह सारा दिन हमसे बचता रहा। मानो वह हमसे बात ही नहीं करना चाहता है," बलदेव ने कहा।

आर्या चुप रही। वह अंदर ही अंदर डरी हुई थी। राजवीर अब पहले जैसा नहीं रहा। उसके शरीर की काली नसें गहरी होती जा रही थीं। उसकी हरकतें भी भारी और अजीब होती जा रही थीं।

"हमें इसका कोई ना कोई हल ढूँढ़ना ही होगा," बलदेव ने दृढ़ता से कहा।

आर्या ने थोड़ा सिर हिलाया। उसने विनायक द्वारा दिए गए थैले की ओर देखा। उसने कई बार उसमें झाँका था, लेकिन आज उसे वह थैला फिर याद आ गया, वही थैला जिसने हमेशा आर्या की हर मुसीबत में मदद की थी।

"क्या इस थैले में कुछ काम का हो सकता है?" उसने मन ही मन बुदबुदाया।

उसने उसे कोमल हाथों से खोला। अंदर कुछ औषधीय जड़ी-बूटियाँ, मोतियों की एक माला और एक छोटी माचिस की डिब्बी थी। लेकिन उसने अंदर कुछ और भी देखा, एक छोटी, पुरानी किताब!

"यह क्या है?" बलदेव ने आश्चर्य से पूछा।

आर्या ने उसे बाहर निकाला। उसके पन्ने पुरानी, सूखी स्याही से सने थे। उस पर कोई रहस्यमयी भाषा लिखी थी, लेकिन कुछ पन्ने हिंदी में भी थे।

आर्या ने पन्ने पलटे और एक जगह रुक गई। वहाँ बड़े अक्षरों में लिखा था:

जो भी रक्तमणि के निकट होगा, वह उसके आकर्षण से मोहित हो जाएगा। शुरुआत में हर कोई उस असीम शक्ति के भ्रम से मोहित हो जाता है जो उसे प्राप्त होती है। उसे अपने शरीर में एक अलग ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है, मानो वह सर्वशक्तिमान हो गया हो। हालाँकि, यह शक्ति केवल एक भ्रम है, एक जंजीर जो उसे एक अँधेरे गर्त में खींचती है।

जैसे-जैसे यह शक्ति शरीर में गहराई तक जड़ें जमाती है, व्यक्ति अपनी पुरानी पहचान खोने लगता है। उसके रक्त की शुद्धता लुप्त होने लगती है, उसके विचारों पर अंधकार की छाया छाने लगती है। वह धीरे-धीरे एक हिंसक प्राणी बन जाता है, जिसके मन में केवल क्रूरता, लोभ और अमरता की एक पागल प्यास रह जाती है। अंततः, वह स्वयं को भी भूल जाता है, रक्तमणिका का दास बन जाता है।"

आर्या और बलदेव ने एक-दूसरे की ओर देखा।

"इसका क्या अर्थ है..." बलदेव पूछने लगा।

आर्या आगे पढ़ने लगी।

"रक्तमणि के प्रभाव से मुक्ति पाने का केवल एक ही उपाय है,  व्यक्ति के मस्तिष्क पर उसकी अपनी ऊर्जा का प्रहार करना। यह उपाय खतरनाक था, क्योंकि रक्तमणि की शक्ति इतनी प्रबल थी कि अगर वार ठीक से न किया जाए, तो व्यक्ति हमेशा के लिए पागल हो सकता था या उसकी मृत्यु भी हो सकती थी।

लेकिन अगर वार सही कोण पर और पर्याप्त बल से किया जाए, तो रक्तमणि का प्रभाव कम से कम कुछ क्षणों के लिए कमज़ोर हो सकता था। यही वो पल होता है जब इंसान फिर से साफ़ सोच सकता है, खुद पर काबू पा सकता है और इस अभिशाप से हमेशा के लिए आज़ाद होने की कोशिश कर सकता है।"

यह पढ़कर, रात के अँधेरे साये में बैठे आर्या और बलदेव चिंतित हो गए। उनके सामने, आग की मंद रोशनी में, राजवीर बैठा था। उसके चेहरे पर एक अनोखी कठोरता थी, उसकी आँखों में हिंसा की झलक थी। वह बदल गया था, अब वह राजवीर नहीं, बल्कि रक्तमणि के प्रभाव में एक राक्षसी शक्ति था।

"हमें कुछ करना होगा," आर्या ने धीरे से कहा।

"क्या तुम्हें एहसास है कि यह रक्तमणि उसके शरीर में कितनी गहराई तक घुस चूका है?" उसकी आवाज़ चिंता से भरी थी। बलदेव ने भी गंभीरता से सिर हिलाया। उसने कुछ देर पहले ही यह सब देखा था, राजवीर की आँखें गहरी होती जा रही थीं, उसकी रक्त वाहिकाएँ काली दिखने लगी थीं, और उसका गुस्सा छोटी-छोटी बातों पर भी भड़क रहा था।

"अगर हम समय रहते कुछ नहीं करेंगे, तो वह हमेशा के लिए रक्तमणि का शिकार हो जाएगा," बलदेव ने गंभीरता से कहा। आर्या ने पोटली अपने पास रखी और गहरी साँस ली।

"हमें जल्द ही कोई रास्ता ढूँढ़ना होगा, वरना हम उसे खो देंगे," उसने चिंता से कहा।

"हाँ, पर हम उससे वह रक्तमणि छीन नहीं सकते," बलदेव फुसफुसाया। "अगर उसने हम पर हमला कर दिया तो?"

आर्या एक पल के लिए चुप रही। अचानक उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी। "अगर हम उसके सिर पर रक्तमणि से ही वार कर दें, तो वह कुछ समय के लिए उसके प्रभाव से मुक्त हो जाएगा," उसने कहा।

बलदेव ने सोचा। "यह खतरनाक है, पर कोई और रास्ता नहीं है। पर यह कैसे किया जाए?"

राजवीर अब अपने सामने रखे जानवर के मांस को देख रहा था। रक्तमणि का प्रभाव उसे पागल कर रहा था। वह पूरे जंगल पर राज करने के विचार में खोया हुआ था।

उसी क्षण आर्या उठ खड़ी हुई। उसके हाथ में एक जंजीर थी, जिसे उसने एक छोटे से पत्थर से बाँध रखा था। बलदेव धीरे-धीरे राजवीर के पीछे चला गया, जबकि आर्या उसके सामने खड़ी थी।

"राजवीर," उसने धीमी आवाज़ में उसे पुकारा। "तुम्हें यह देखना चाहिए..."

राजवीर ने उसे शक की निगाह से देखा, लेकिन उसी क्षण बलदेव ने एक धीमी आवाज़ निकाली, मानो वह पीछे हटने का आभास दे रहा हो। राजवीर मुड़ा, और उसी समय आर्या ने अपने हाथ में पकड़ी चेन राजवीर के कोट की जेब के पास ज़ोर से मारी।

उस फुफकार के साथ जेब में रखा रक्तमणि कोट से बाहर उड़ गया। जैसे ही राजवीर ने उसे पकड़ने की कोशिश की, बलदेव ने उसे पीछे से ज़ोर से धक्का दे दिया। राजवीर अचानक झटके से गिर पड़ा, ठीक उसी समय ऊपर उड़ता हुआ रक्तमणि उसके ही सिर से टकराया।

उसी क्षण, एक तेज़ रोशनी कौंधी। राजवीर दर्द से चीखा, और ज़मीन पर गिर पड़ा। दर्द उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था। वह कराह रहा था, मानो उसके अंदर दो ताकतें लड़ रही हों।

आर्या और बलदेव सतर्क थे। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं, क्योंकि रक्तमणि की चमक इतनी तेज़ थी कि उसे देखना भी मुश्किल था। कुछ ही पलों में सब शांत हो गए।

राजवीर धीरे से उठा। उसकी आँखों की क्रूरता कम हो गई थी, उसका चेहरा उलझन से भर गया था। "अरे... मेरे दिमाग में क्या चल रहा है?" उसने काँपते हुए कहा।

आर्या और बलदेव ने एक-दूसरे को देखा। उन्हें लगा था कि उन्होंने पहला चरण जीत लिया है, लेकिन यह तो बस संघर्ष की शुरुआत थी। रक्तमणि अभी भी उनके पास था, और उसका श्राप अभी भी ज़िंदा था।

आर्या ने राजवीर के कंधे पर हल्का हाथ रखा और शांत लेकिन कोमल स्वर में कहा, "राजवीर, तुम रक्तमणि के श्राप से प्रभावित थे। उसके स्पर्श ने तुम्हारे अंदर क्रूरता और एक अनोखी भूख जगा दी थी। हमने उसी रक्तमणि को तुम्हारे सर पर पटक दिया, इसलिए उसका असर तुम्हारे ऊपर कुछ समय के लिए कम हो गया है।

लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं है... क्योंकि रक्तमणि को पहले तुमने छुआ था। इसलिए, उसका श्राप अब तुम्हारे साथ रहेगा, वह तुम्हें वापस अपने चंगुल में खींच सकता है। अगर हमें इस श्राप से हमेशा के लिए मुक्त होना है, तो हमें सही रास्ता ढूँढ़ना होगा।"

रात में, जब सब लोग चैन की नींद सो रहे थे, बलदेव और आर्या धीरे-धीरे तंबू से बाहर निकले। हल्की चाँदनी में उनके गंभीर चेहरे साफ़ दिखाई दे रहे थे। उनके मन में बस एक ही विचार था, राजवीर को रक्तमणि के श्राप से मुक्त करने का कोई रास्ता ढूँढ़ना। आर्या ने अपने पास रखे पोटली को कसकर पकड़ रखा था, मानो उसमें अँधेरे से बचने की चाबी हो। बलदेव ने इधर-उधर देखा और धीमी आवाज़ में कहा,

"हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है। अगर हमें जल्द ही कुछ पता नहीं चला, तो वह फिर से रक्तमणि के कब्जे में चला जायेगा।" आर्या ने दृढ़ता से सिर हिलाया और दोनों ने अँधेरे जंगल की ओर देखने लगे।

क्रमशः


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