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रक्तपिशाच का रक्तमणि ५६

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ५६


राजवीर अँधेरे कमरे में चुपचाप बैठा था। बाहर ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उसके मन में विचारों का तूफ़ान हिंसक रूप ले चुका था। सहस्त्रपाणि ने उसे दो दिन दिए थे, सोचने के लिए, फ़ैसला करने के लिए। उन दो दिनों में उसे तय करना था कि वह कौन सा रास्ता अपनाएगा।

उसके मन में दो विचार उमड़ रहे थे। एक हिस्सा उसे कह रहा था कि उसे यहाँ से चले जाना चाहिए। आर्या अब भी उसके लिए चिंतित होगी। उसने उसे छोड़ा नहीं था। हालाँकि वह राक्षसी क्रूरता के साये में फँस गया था, फिर भी उसे उसकी आँखों में वह भरोसा याद था। उसके गर्भ में उसका बच्चा था, उसका उत्तराधिकारी जो जन्म लेने वाला था।

जिस लड़के के भविष्य के लिए उसने यह सब सहा था, वह अभी पैदा भी नहीं हुआ था, और वह खुद को बेचने की सोच रहा था? अगर वह खुद पर नियंत्रण खो बैठा और सहस्त्रपाणि का साथ दे दिया, तो उसके बच्चे का क्या होगा? क्या यह श्राप उसके खून में भी होगा? क्या उसे भी इस अँधेरे में धकेल दिया जाएगा? या फिर वह एक योद्धा के रूप में जन्म लेगा और राजवीर को बचाने की कोशिश करेगा? इस विचार ने उसके अंदर हलचल मचा दी।

"नहीं!" वह इतना कमज़ोर नहीं हो सकता था। उसके पास अभी भी एक मौका था। वह इससे बच सकता था, अपने बच्चे के लिए, अपने आर्या के लिए, और अपने अस्तित्व के लिए! लेकिन उसके मन में एक और आवाज़ फुसफुसा रही थी।

"यह सब पहले से तय है। तुम्हारा अस्तित्व अब इस अंधकार से बंधा है। इससे भागने की कोशिश करना मूर्खता होगी।" वह इन दो विचारों के बीच फँसा हुआ था.........।

"यह मेरा कर्तव्य है। मुझे इन दोनों के लिए लड़ना होगा!" उसने खुद को समझाने की कोशिश की।

लेकिन तभी दूसरी तरफ़ रक्तमणि का असर उस पर छल कर रहा था।

"राजवीर, तुम किस मूर्खतापूर्ण विचारों में फँसे हो?" भीतर से एक गरजती हुई आवाज़ गूँजी।

अब इन शब्दों ने उसके विचारों को एक और मोड़ दे दिया। सच में, प्यार, परिवार, बच्चा, क्या यह सब महज़ एक भ्रम नहीं है? सहस्त्रपाणि के शब्दों ने उसके मन में संदेह को और बढ़ा दिया। उसे वह सब याद आ गया जो उसने खोया था, वह सब जो उसने सहा था। अतीत का दुःख, अपमान, पीड़ा, क्या वह इन सबका अंत नहीं कर सकता था?

अगर उसके पास अपार शक्ति होती, तो वह अपने रास्ते की हर बाधा को कुचल देता! हर कोई उससे डरता, कोई उसके सामने टिक न पाता। क्या यह सच्ची शक्ति नहीं है ? एक बच्चे, एक स्त्री के प्रेम, एक परिवार के सपनों का उसे कितना उपयोग होगा? अगर उसके पास शक्ति होती, तो वह सहस्त्रपाणि के बराबर खड़ा हो पाता, और फिर हज़ारों वारिस पैदा कर सकता!

वह एक पल में यह सब खत्म करके अपने लिए एक नया भविष्य रच सकता था। आर्या, बलदेव, उसका अतीत क्या वह अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बना सकता था? ये विचार उसके मन में निष्ठा, प्रेम और ज़िम्मेदारी को तोड़ने लगे। रक्तमणि के प्रभाव में, उसके मन में उस अंतिम निर्णय की पालकी धीरे-धीरे सहस्त्रपाणि की ओर झुकने लगी।

राजवीर ने सिर हिलाया और विचारों को झटकने की कोशिश की।

"नहीं! मैं आर्या और अपने बच्चे के लिए लड़ रहा हूँ। उन्हीं के लिए मैंने यह सब सहा है।"

लेकिन तभी उसके मन में एक अलग विचार आया।

"सच में? क्या आर्या सचमुच तुम्हें चाहती है? अगर वो तुम्हें बचाना चाहती, तो क्या तुम्हें ऐसे अकेला छोड़ देती? और तुम्हारा बच्चा? अभी तो पैदा भी नहीं हुआ है। ये तो बस एक ख़याल है। क्या तुम अपना भविष्य इसी एक ख़याल के हवाले करना चाहते हो? या फिर सत्ता हासिल करना चाहते हो?"

रक्तमणि की गर्मी उसके सीने से टकराई। उसे अपने शरीर में एक अजीब सी शक्ति का संचार महसूस होने लगा। उसके मन का भ्रम अब एक अलग ही दिशा में मुड़ रहा था।

"हाँ... शक्ति का एक अलग ही आकर्षण होता है। अगर मैं सहस्त्रपाणि के साथ चला जाऊँ, तो कोई भी मेरे सामने टिक नहीं पाएगा। मैं ख़ुद भगवान बन सकता हूँ।"

उसके चेहरे पर एक भयावह मुस्कान आ गई। उसके अंदर के रक्तमणि का असर और भी गहरा हो गया। "मैंने फ़ैसला कर लिया है... मैं सहस्त्रपाणि का साथ दूँगा।"

रात का घना अँधेरा छा रहा था। किले की चोटी पर ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन राजवीर के शरीर पर एक अलग ही गर्मी थी। उसे अभी भी अपने दिल में रक्तमणि का एहसास हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कोई जीवंत शक्ति उसके शरीर में बह रही हो। वह धीरे से अपने कमरे से बाहर आया और किले के एक ऊँचे स्थान पर खड़ा हो गया।

वह अभी भी असमंजस में था। क्या मुझे सचमुच सहस्त्रपाणि का साथ देना चाहिए? या यहाँ से भाग जाना चाहिए? वह किले के किनारे से दूर पहाड़ों को देखते हुए सोच रहा था। अचानक उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। वह सतर्क हो गया और एक तरफ छिप गया।

नीचे, किले के एक अँधेरे कोने में, दुर्मद के कुछ सेवक आपस में फुसफुसा रहे थे। उनमें से एक ने कहा, "बस अब दो दिन। एक बार उस मूर्ख राजवीर ने स्वेच्छा से रक्तमणि त्याग दिया, तो उसका कुछ भी नहीं बचेगा। हम उसे घेरकर खत्म कर देंगे।"

राजवीर के कान खड़े हो गए। "मैं क्या सुन रहा हूँ?"

दूसरे सेवक ने थोड़ा असमंजस में कहा, "लेकिन दोस्त, अगर सहस्त्रपाणि उसे अपने साथ रख रहे हैं, तो हम उसे क्यों मार रहे हैं?"

पहला सेवक हँसा और बोला, "अरे मूर्ख, ये सब एक साज़िश है। सहस्त्रपाणि को सिर्फ़ रक्तमणि चाहिए, राजवीर नहीं। एक बार रक्तमणि उसके हाथ लग गया, तो उसे राजवीर की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी। दुर्मद ये बात पहले से ही जानता है। और फिर वो हमें बताएगा कि राजवीर को कैसे खत्म किया जाए।"

दूसरा सेवक थोड़ा घबरा गया, "तो ये सब एक साज़िश है? राजवीर ने रक्तमणि अपनी मर्ज़ी से देने के  बाद तुम उसे ज़िंदा नहीं रखना चाहते?"

पहला सेवक हँसा और बोला, "बिल्कुल। और मैंने तय कर लिया है, मैं राजवीर का खून पीऊँगा। मैं उसका खून चखूँगा। इतनी शक्ति पाकर भी वो मूर्खों की तरह प्यार और बंधन चाहता रहा। उसे जीने का कोई हक़ नहीं है।"

राजवीर का दिमाग़ सुन्न हो गया। उसे धोखा देने की साज़िश रची जा रही थी। सहस्त्रपाणि, दुर्मद, क्रूरसेन सब बस उसका इस्तेमाल करके उसे खत्म करने की सोच रहे थे।

अब वो सतर्क हो गया था। अब उसे पक्का पता था।

"यहाँ से निकलना ज़रूरी है। लेकिन अगर वह रक्तमणि को अपने साथ ले गया, तो सहस्त्रपाणि और उसके सैनिक उसका पीछा करते रहेंगे। उसे लगातार इस अँधेरे में घसीटा जाएगा। इसलिए, उसे कोई रास्ता ढूँढ़ना था, रक्त मणि को यहीं कहीं छिपाना चाहिए था!

अगर वह इसे सही जगह छिपा देगा , तो भविष्य में ओर लोगों के साथ, शक्तिशाली साथियों के साथ वापस आकर। वह और उसके साथी मिलकर सहस्त्रपाणि का नाश कर सकते थे। लेकिन अगर उसने रक्तमणि को अपने पास रखा, तो सहस्त्रपाणि उसका जीवन जरूर नष्ट कर सकता था।

वह इस षडयंत्र में खुद को खो सकता था । वह जानता था कि सहस्त्रपाणि के किले में कई रहस्य, कई गुप्त स्थान हैं जिनके बारे में सहस्त्रपाणि को भी पता नहीं होगा। उसे बस खोज के लिए तैयार रहने की ज़रूरत थी। उसने इस किले की दीवारों, इसके कमरों का निरीक्षण करना शुरू कर दिया।

उसे इस रक्तमणि को कहीं छिपाने का कोई रास्ता ढूँढ़ना था, वह भी बिना किसी को बताए। लेकिन समय कम था। अगर दुर्मद या क्रूरसेन को शक हुआ, तो उसकी पूरी योजना धरी की धरी रह जाएगी। उसने मन बना लिया, पहले वह रक्तमणि छिपाएगा और फिर सही समय पर किला छोड़ देगा।

लेकिन उसके पास ऐसा करने के लिए सिर्फ़ दो दिन थे, और उसे इन दो दिनों में जो करना था, वो जल्दी करना था।


क्रमशः 


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