भाग ५९
किले से भागने के बाद, राजवीर सीधे जंगल में उड़ने लगा। उसका शरीर अब पूरी तरह से चमगादड़ में बदल चुका था। उसे अभी तक अपने नए शरीर की सीमाओं और क्षमताओं का पूरा एहसास नहीं था। उसके पंख उसे उड़ने में बहुत सहज और आरामदायक महसूस करा रहे थे, लेकिन उसका छोटा शरीर उसे शक्ति से असहाय भी बना रहा था। पैरों तले ज़मीन खिसकने से उसे एक तरह की बेचैनी महसूस हो रही थी। लेकिन सोचने का समय नहीं था। उसे जल्द से जल्द आर्या तक पहुँचना था।
पेड़ों के बीच से सीधे जाने के बजाय, उसने ऊँची उड़ान भरने का फैसला किया। वह तेज़ी से हवा में उछलता हुआ जंगल पार करने लगा। लेकिन उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि वह बहुत ऊपर चला गया है।
राजवीर ने जंगल के घने अँधेरे से ऊपर अपनी छलांग बनाए रखी थी। उसका छोटा, हल्का शरीर हवा में आसानी से उड़ रहा था, जिससे उसे गति मिल रही थी। वह जितना ऊपर जाता, उतना ही किले और सहस्त्रपाणि की पकड़ से छूटता हुआ प्रतीत हो रहा था। लेकिन उसे पता ही नहीं था कि एक विशाल बाज़ ने उस पर अपनी नज़रें गड़ा रखी थीं। वे एक शिकारी की तीखी आँखें थीं, जो अपने शिकार की हर हरकत पर नज़र रख रही थीं। राजवीर अब एक छोटा सा चमगादड़ था, उसका शरीर कमज़ोर और आसमान में वह अकेला था। फिर अचानक, एक तेज़ साया उस पर छा गया!
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसे भयानक गति से हवा में ऊपर खींचा जा रहा था। पल भर में, वह बेकाबू हो गया। उसके छोटे-छोटे पंख ज़ोर-ज़ोर से फड़फड़ा रहे थे, बचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। बाज़ के शक्तिशाली पंजों ने उसे कस कर जकड़ रखा था। उसके पंजे इतने तीखे थे कि वे राजवीर के शरीर में गहरी खरोंच लगा रहे थे।
दर्द बढ़ता जा रहा था, लेकिन उससे भी ज़्यादा भयानक था आसमान में ऊँचा लटकना, जैसे किसी को गहरे अँधेरे में घसीटा जा रहा हो। जितना वह संघर्ष करता, बाज़ उसे उतना ही ज़ोर से जकड़ता। लड़ना बेकार था। उसकी चमगादड़ जैसी आँखों के सामने बस एक ही डर तैर रहा था।
"क्या यह सब यहीं खत्म हो जाएगा?"
बाज उसे एक ऊँचे पहाड़ की ओर ले गया। नीचे जंगल दिखाई दे रहा था, लेकिन अब राजवीर खुद एक शिकारी के पंजों में फँस चुका था। उसका मन डरा हुआ था, पर एक कोने में उसके भीतर के योद्धा के लिए जगह थी।
"ये मेरे आखिरी पल हो सकते हैं, पर मैं आसानी से हार नहीं मानूँगा।"
पहाड़ की चोटी पर, एक विशाल घोंसले में, बाज के बच्चे इंतज़ार कर रहे थे। उनकी छोटी-छोटी आँखों में भूख साफ़ दिखाई दे रही थी। उनकी माँ उनके लिए खाना ला रही थी... और वह खाना राजवीर था। यह एक क्रूर सत्य था। शिकारी होते हुए भी, इस बार वह दूसरों का शिकार बन गया था। उसे याद आया कि पहले भी कई बार उसने बेसहारा जानवरों का शिकार किया था, उन्हें इसी तरह पकड़ा था, उनकी जान ली थी। पर आज वह खुद उसी हालत में था। उसके हाथों अनगिनत मौतें हुई थीं, पर आज उसकी मौत पर रोने के लिए कोई नहीं था।
बाज ने उसे घोंसले में डाल दिया। ज़मीन पर गिरते ही राजवीर को दर्द हुआ, पर उसे उससे भी बड़ा डर लगा, उसके ठीक सामने तीन छोटे बच्चे भूखी निगाहों से उसे घूर रहे थे। उनकी छोटी-छोटी चोंचें खुली थीं, उनकी आँखें भूखी और अधीर थीं। उन्हें यह एहसास नहीं था कि उनके सामने मौजूद शिकार अभी भी जीवित और लड़ने में सक्षम है।
ऊपर माँ बाज़ अपने विशाल पंख फैलाकर चूज़ों की ओर झुकी। वह अब अपने चूज़ों को खाना खिलाना चाहती थी और वह राजवीर को टुकड़े-टुकड़े करने को तैयार थी। राजवीर बस एक ही बात जानता था, वह किसी एक जानवर के हाथ में नहीं, बल्कि एक पूरे शिकारी परिवार के मुँह में था! लेकिन उसके दिल के एक कोने में अभी भी उम्मीद थी। वह आसानी से मरने वाला नहीं था।
राजवीर एक पल के लिए स्थिर रहा, लेकिन उसी पल उसने फैसला किया, "अभी मेरा अंत नहीं हुआ है!" उसने अपने अंदर से बची हुई ताकत इकट्ठा की, क्योंकि वह जानता था, यह संघर्ष अब सिर्फ़ उसके अपने अस्तित्व के लिए नहीं, बल्कि आर्या और उसके अजन्मे बच्चे के लिए भी था।
राजवीर ने अपने मन को संभाला और अपने भीतर की शक्ति का आह्वान किया। उसका छोटा सा चमगादड़ जैसा शरीर हिलने लगा, उसका शरीर आकार में फैलने लगा। पंख सख्त हो गए, हड्डियाँ खिंचने लगीं, और कुछ ही पलों में उस छोटे जीव की जगह एक लंबी, शक्तिशाली आकृति खड़ी हो गई, राजवीर अपने मूल पिशाच रूप में लौट आया था! बाज़ अचानक दृश्य परिवर्तन से भ्रमित हो गया।
जहाँ कुछ क्षण पहले उसकी तीखी आँखों के सामने एक छोटा सा शिकार था, वहाँ अब एक लंबा-चौड़ा आदमी खड़ा था, जिसकी आँखों में लालिमा थी। राजवीर ने उसे घूरा, और उसी क्षण बाज़ समझ गया, वह किसी साधारण शिकार पर नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली शिकारी के सामने खड़ा था!
माँ बाज़ सतर्क हो गई। अचानक, अपने चूज़ों के सामने खड़ी इस विशालकाय आकृति ने उसकी सुरक्षात्मक प्रवृत्ति को जगा दिया। वह एक पल के लिए भी नहीं हिचकिचाई, उसने अपने पंख फैलाए, चूज़ों को अपनी सुरक्षा में लिया, और अपने सामने अनजान दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार हो गई।
उसकी तीखी निगाहों में कोई डर नहीं था, बस दृढ़ संकल्प था। एक माँ के प्यार से प्रेरित होकर, वह शक्ति अपने शावकों के लिए किसी भी खतरे से लड़ने के लिए तैयार थी, अपनी जान की परवाह किए बिना। उसके शानदार पंखों के पीछे से, नन्हे शावक अश्रुपूर्ण आँखों से बाहर झाँक रहे थे, लेकिन वह जानती थी, अगर वह आज जीत गई, तो उसके शावक कल उगते सूरज को देख पाएँगे!
राजवीर की आँखों में खून की प्यासी क्रूरता चमक उठी। अपमान का भाव उसके खून में उमड़ पड़ा, एक तुच्छ पक्षी ने उसे नीचे खींच लिया था, उसकी शक्ति, उसके अस्तित्व का अपमान हुआ था। वह अपनी भयानक शक्ति से उन नन्हें शावकों को आसानी से कुचल सकता था। वह उनके नन्हे शरीरों को पल भर में नष्ट कर सकता था और उस बाज की आँखों के सामने रक्त बहा सकता था।
लेकिन तभी, शावकों की माँ को देखकर, एक पल के लिए उसके मन में आर्या की छवि आयी। वह भी अब एक नवजात शिशु की माँ बनने वाली थी। जैसे ही उसे आर्या के गर्भ में पल रहे बच्चे की याद आई, उसके अंदर का राक्षस शांत हो गया। उसके पंजे निचे झुक गए। वह एक रक्तपिपासु शापित योद्धा था, लेकिन उसके अंदर अभी भी कुछ था, मानवता का एक अंश, जो उन मासूम बच्चो को देखकर फिर से जाग उठा था।
राजवीर के मन में एक द्वंद्व शुरू हो गया। उस माँ बाज की आँखों में बस एक ही चीज़ साफ़ थी, प्यार । अपने चूज़ों को बचाने के लिए उसे अपनी जान की भी परवाह भी नहीं थी।
यह क्षण निर्णायक था। राजवीर के भीतर एक ज़बरदस्त द्वंद्व चल रहा था, एक तरफ़ उसका ख़ून का प्यासा स्वभाव उसे बदला लेने पर मजबूर कर रहा था, दूसरी तरफ़ उसके अंदर की बची हुई इंसानियत उसे रोकने की कोशिश कर रही थी। उसने आँखें बंद कीं, गहरी साँस ली और खुद को संभाला। वह कौन था? एक क्रूर पिशाच या एक योद्धा जो अब भी इंसानियत की गर्माहट महसूस कर सकता था?
आर्या का चेहरा उसके मन में साफ़ दिखाई दिया, उसकी आँखों में प्यार, उसके पेट में पल रहा उसका बच्चा, एक नई शुरुआत। वह एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। एक गहरी साँस लेकर उसने अपने अंदर के पिशाच को पीछे छोड़ दिया और इंसानियत को आगे लेकर बढ़ा। उसने अपने पंजे अंदर लिए, चूज़ों को देखा और वापस मुड़ गया। राजवीर ने एक चुनाव कर लिया था, वह अब भी इंसान था।
वह अब भी भूखा था, गुस्से में था, बाज़ ने उसका अपमान किया था, उसे शिकारी से शिकार बना दिया था। लेकिन अब उसका गुस्सा, उसकी हैवानियत, आर्या की यादों से ज़्यादा प्रभावित थी। वह सिर्फ़ एक रक्तपिशाच नहीं था। वह आर्या का प्रेमी भी था, एक बच्चे का पिता भी।
वह चुपचाप घोंसला छोड़कर, ऊँचे पहाड़ से नीचे जाने लगा, और फिर से अपने रास्ते पर चल पड़ा। उसके नीचे पेड़ों की चोटियाँ चरमरा रही थीं, चाँदनी में उसकी परछाई ज़मीन पर घूम रही थी, वह अब भी भयानक था, शक्तिशाली था, लेकिन अब वह बदल रहा था। सिर्फ़ शरीर से नहीं, मन से भी।
क्रमशः
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