भाग ५
उस जंगल में, अंधेरी रात की छाया में एक गुप्त बैठक भरी हुई थी। त्रिकालके कुछ सरदार एक साथ इकट्ठा हुए थे। उन सभी के बीच खड़ा था क्रूर और चतुर त्रिकालराज। उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान थी, और उसकी आँखों में बदला लेने की ज्वाला सभीको दिख रही थी।
"अपनी योजनाओं को लागू करने का समय आ गया है," त्रिकालराज गुरगुराट करके बोला। “राजवीर ने हमें कई बार हराया है, लेकिन अब वह और उसका ये गाँव जीवित नहीं रहेगा।हम इस तरह से हमला करेंगे कि इनकी आने वाली पीढ़ियों को इनके अस्तित्व का कोई सबूत या निशान कभीभी पता नहीं चलेगा।
त्रिकाल के लोग जोर जोरसे चिल्लाने लगे, उनकी आवाज में द्वेष झलक रहा था। उन्होंने साजिश रची, त्रिकाल और उनके लोग रात के अंधेरे में गाँव पर हमला करने वाले थे।
दूसरी ओर, खिरसु गांव रात के समय चुपचाप सो रहा था। हालांकि, राजवीर की संवेदनशील पिशाच क्षमता के कारण, उसने अनुमान लगा लिया था कि जंगल में कुछ भयानक गतविधियां चल रही है। उसकी आवाज घर्घर कर रही थी , और उसकी आँखों के किनारे लाल होने लगे थे।
"आर्या," राजवीर ने उसकी ओर देख कर आवाज लगायी, "आज रात कुछ गलत होने वाला है ऐसा मुझे लग रहा है । तुम अपने घर जाकर छिप जाना, मुझे जंगल की ओर जाकर देखना होगा"
आर्याने उसे संदेह से देखा। पिछले कुछ घंटों से, राजवीर अजीब तरह का व्यवहार कर रहा था, बैठे-बैठे कुछ बुदबुदा रहा था, हवेली के अँधेरे कमरेमे गायब हो रहा था, उसकी गहरी आँखें, और उसके चेहरे पर दिख रही एक गंभीर छाया, इस बजह से वह भी डर गई थी।
"वास्तव में तुम क्या छिपा रहे हैं, राजवीर?" यदि गाँव पर कोई संकट आने वाला है, तो मुझे बता दो, हम निश्चित रूप से गाँव को इक्कठ्ठा करके उसपर जीत पानेकी कोशिश करेंगे। अगर हर कोई एक साथ आ जाता है, तो हमें किसी भी चीज़ से डरने की जरुरत नहीं और फिर हमें कोई चोटभी नहीं पहुंचा पायेगा।
आर्याने पूछा, लेकिन राजवीरने उसके सवाल को नजरअंदाज कर दिया और जंगल की तरफ निकल गया।
रात में, त्रिकाल का गिरोह गाँव में पहुँच चुका था । आगकी मशाले, जहरीले तीर और तलवारों के साथ उन्होंने गाँव में प्रवेश कर लिया था। उन्होंने योजना बनाई थी, गाँव के हर एक व्यक्ति को मार के उसके शरीर की आखरी बून्द तक पी जायेंगे और ताकतवर बन के गाँव की सम्पत्ति को नेस्तनाबूत कर देंगे, ताकि उस सभी क्षेत्र में उनसे दुश्मनी या विरोध करने की कोई कोशिश नहीं कर पायेगा।
"हमला शुरू करो!" त्रिकालराज चिल्लाया ।
एक पल में, पूरा गाँव जल रहा है ऐसे लगने लगा। लोग डर कर यहाँ से वहां भागने लगे। महिलाएं और बच्चे उनसे बचने के लिए चिल्ला रहे थे। लेकिन त्रिकाल के लोगो ने किसी को भागने का मौका नहीं दिया।
राजवीर गाँव को बचाने के लिए समय पर वापस लौट आया था। उसने आर्या को घर पर छिप कर रहने को कहा था। आर्या उसके घर जाने के बाद, वह पिशाच रूप में आकर गाँव को बचाने की कोशिश करनेवाला था।
उसने अपनी तेज नाक से त्रिकाल के लोगो की गंध मेहसूस की और उन्हें ढूढने लगा। उसकी आँखें लाल हो गयी, दांत बाहर आ गए, और ताकत तो शायद दस गुना बढ़ गई थी। वह एक के पीछे एक त्रिकाल के सैनिकोंको हराने लगा।
"यह एक सामान्य आदमी नहीं है," त्रिकाल के सैनिक चिल्ला के वहासे भागने लगे। "यह भी एक राक्षस है!"
राजवीरने अब अविश्वसनीय गति से आगे बढ़ना शुरू कर दिया। उसने तीन सैनिकों को एक झटके में हवा में उड़ा दिया। उसके तलवार का एक घाव न जाने कितने लोगोको घायल कर रहा था। उसके पंजे इतने मजबूत थे कि वह सामने वालो की तलवारे अपने हातो से पकड़ कर तोड़ रहा था।
"त्रिकालराज! तुम्हारे ये फालतू सैनिक कभी भी मेरा सामना नहीं कर पाएंगे, तुम इन सब को लेकर यहाँ से निकल जाओ !" राजवीर जोर से चिल्लाया।
त्रिकालराज आगे आया, उसके हाथ में एक जादुई तलवार थी।
"मैंने तुम्हारी शक्तियों के बारे में काफी कुछ जान लिया है, राजवीर।" उसने कहा।
"आज मैं तुम्हे हमेशा हमेशा के लिए समाप्त करने जा रहा हूं, मैं यहाँ आज तुम्हारी अमरता को ख़त्म करने आया हूं, और मैं तुम्हारे रक्त का अभिषेक अपने गुरु के चरणों में अर्पित करुंगा, इससे मुझे भयानक शक्तियाँ मिलेंगी, फिर मैं इस संसार का निरंकुश सम्राट बन जाऊँगा।"
राजवीर त्रिकाल की बाते सुनते सुनते अपने एक हाथ से अपनी विशालकाय तलवार उठाई और कई को झटके में हवा में फेंक दिया। उसके शरीर की हरकते इतनी तेज थी कि कोई भी उसे देख नहीं पा रहा था।
राजवीर और त्रिकाल दोनों एक दूसरे से टकरा गए। चमकती तलवारों की आवाज़ मैदान में घूम रही थी। त्रिकालराज की जादुई तलवार राजवीर की गति से बहुत तेज थी, त्रिकाल आराम से राजवीर की ताकत और चपलता का सामना कर पा रहा था, त्रिकाल उससे कहीं अधिक ताकतवर होकर आया था, ये राजवीरको अब पता चल चूका था।
लेकिन अब लड़ाई शुरू हो गई थी। इसलिए वह पीछे हटना नहीं चाहता था। उसकी वापसी मतलब गाँव का अंत था, जो उसे स्वीकार नहीं था, उसका दोस्त "आशय " अगर उसके साथ होता तो उसे बहुत अच्छी मदत मिल सकती थी। लेकिन उसका कोई अतापता नहीं था, वह अपनी पूरी ताकत से त्रिकाल के हर वार से बचने की कोशिश कर रहा था।
त्रिकाल ने तेजी से आक्रमण शुरू किया और राजवीर को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। उसने एक ही तीव्र प्रहार से राजवीर के हाथ से तलवार गिरा दी।
उस झटके से राजवीर जमीन पर गिर पड़ा, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी लड़ने की भावना थी।
"यह दिखावा मत कर कि तुने यह युद्ध जीत लिया है, मैं तुम्हें इतनी आसानी से यहाँ से जाने नहीं दूंगा," राजवीर गुर्राया। त्रिकाल ने उस पर तलवार उठा ली। "तुम्हारा अंत आज होगा। खिरसू गांव तुम्हे अब फिर कभी नहीं दिख पायेगा।" त्रिकाल ने अपनी तलवार राजवीरके सीने में उतार दी, और वह अपनी जेब में रखी छोटी शीशी को राजवीर के रक्त से भरने के लिए विजयी भाव से नीचे झुका उसी समय राजवीर ने हाथ झटक कर उसकी गर्दन पर अपने नाखूनों से वार कर दिया वहा से खून निकलने लगा।
अप्रत्याशित हमले से त्रिकाल घबरा गया और उसका खून जमीन के ऊपर पड़ने से डर कर वह भागने लगा, त्रिकाल ये जानता था की उसके खून की एक बूँद भी राजवीर को मिल गयी तो उसकी आधी शक्ति राजवीर को मिल जाएगी। त्रिकालराज को भागते हुए देखकर, उसके बाकी सैनिक भी भाग गए।
"गाँव सुरक्षित है," राजवीर ने खुद को संभाला। हालांकि, उसका चेहरा अभीभी चिंतित था, अगर आर्याने इनसे लड़ाई करते वक्त मुझे देखा होगा तो ?
उसके सौभाग्य से आर्या घर में ही बैठी हुई थी। बाहर से आ रहे शोर और त्रिकालके सैनिको की ज़ोरदार हँसी से वह हिल गई। उसे पता नहीं चल रहा था कि, गाँव में क्या हो रहा है, शायद डकैती की संभावना थी, क्योंकि इस तरह की डकैती पहले भी उनके गाँव में हो चुकी थी , गाँव में कोई सुरक्षा उपकरण नहीं होने के कारण ऐसे वक्त गांव सुनसान हो जाता था। इस बार भी ऐसा ही होगा यह सोचकर वह घर में छिप गई थी।
उसे चिंता थी कि राजवीर को लुटेरों से अकेले ही लड़ना पड़ सकता है। अकेले उनसे लड़ने की अमानवीय शक्ति उसके पास कहाँ से आयी होगी? यह सवाल भी उसे फिर से सताने लगा था। उसे पहले से ही संदेह था कि उसका चेहरा, आँखें और हरकते एक इंसान की तरह नहीं है।
कुछ ही समय के भीतर गाँव के लोग घरसे बाहर आ गए, कुछ लोगों के शव बाहर पड़े हुए दिख रहे थे । हर जगह रोना शुरू हो गया। आर्या दौड़कर हवेली में पहुँची।
राजवीर अपने हाथ को अपने सीने के पास रख कर कुछ मंत्रोचारण कर रहा था। उसका हाथ खून से लथपथ था।
"राजवीर, तुम वास्तव में कौन हो?" आर्या कपकपा कर पूछ रही थी।
क्या उन लोगों ने तुम्हे घायल कर दिया? तुम उन सभी के साथ अकेले कैसे लड़ते रहे?
राजवीर एक पल के लिए चुप हो गया। वह जानता था कि सच्चाई को छिपाना अब असंभव था। लेकिन वह कोशिश कर रहा था। उसके सीने का घाव अब पूरी तरह से ठीक हो गया था।
"आर्या, मैं तुम्हे बताने से डरता हु, लेकिन मैं इस देश के महाराज का एक अंगरक्षक सैनिक हूं। लढ़ाईकी बहोत सारी विद्याये मुझे आती है, इसलिए मैं उन सबसे लड़ सका, तुम्हारे कुछ गाँववालोने मेरी बहुत मदद की, लेकिन वे लड़ाई में शहीद हो गए। मैं भाग्यशाली था और मुझे ज्यादा चोटे नहीं आयी।राजवीर उससे झूठ बोल रहा था।
आर्या सदमे से पीछे हट गयी। "तुम ... सैनिक? फिर तुमने ये सब हमसे क्यू छिपाया ? अब मुझे एहसास हो रहा है हमारी असली समस्या तुम ही हो। वे सभी लोग तुम्हारे लिए ही यहां आये थे ना? तुम्हारी बजह से गांव के लोग मारे गये।
"मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा, आर्या।" राजवीर ने विनम्रता से कहा।
लेकिन आर्या उलझन में थी। वह राजवीर पर भरोसा करना चाहती थी, लेकिन उसके दिमाग में, संदेह के कीड़े बोए जा चुके थे।
हालांकि गाँव अभी बच गया था, लेकिन त्रिकालराज का हमला सिर्फ एक शुरुआत थी। त्रिकाल और उसके शेष सैनिकों ने जंगल में फिर से जुड़ने का फैसला किया।
"यह पिशाच अजेय लगता है, लेकिन इसे नष्ट करने के लिए भी एक योजना मेरे पास है," त्रिकालराज ने घायल होते हुए भी घोषणा की।
खिरसु गांव का संकट अभी तक टला नहीं था, और अब राजवीर को न केवल खुद के लिए लड़ना था, बल्कि गाँव को बचाने के लिए भी लढना जारी रखना था।
क्रमशः
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