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रक्तपिशाच का रक्तमणि ६०

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ६०

घने जंगल के अंधेरे में, राजवीर अपनों को ढूँढ़ रहा था। रक्तमणि के श्राप ने उसका मन बदल दिया था, लेकिन उसका दिल अभी भी आर्या और अपने बच्चे के लिए प्यार से भरा हुआ था। इस बीच, आर्या और बलदेव गाँव के एक अस्पताल में आराम कर रहे थे। आर्या बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी। उसके पेट में दर्द हो रहा था, बलदेव को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

आर्या की कमज़ोरी देखकर, बलदेव उसे गाँव के प्रसिद्ध डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने उसकी सावधानीपूर्वक जाँच की और उसे आश्वस्त किया, "बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है, लेकिन संभावना है कि वह सातवें महीने में पैदा हो जाएगा।" यह सुनकर बलदेव के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए।

डॉक्टर ने आगे कहा, "चिंता मत करो। अगर आर्या सही आहार लेगी और अपना ध्यान रखेगी, तो प्रसव सुरक्षित होगा।" उन्होंने पौष्टिक भोजन का महत्व समझाया, दूध, फल, दालें और भरपूर आराम उसके लिए ज़रूरी था। लेकिन आर्या को उसकी  चिंता नहीं थी। बच्चा उसके गर्भ में सुरक्षित था, लेकिन उसके दिल में दर्द और खालीपन था, क्योंकि राजवीर उसके साथ नहीं था।

आर्या सीधे सामने देख रही थी। राजवीर का अक्स उसकी आँखों के सामने तैर रहा था, वह कहाँ होगा? कैसा होगा? क्या वह ज़िंदा होगा? या फिर इस दुनिया में उसका वजूद ही नहीं रहा? उसके मन में तरह-तरह के विचार उमड़ घुमड़ रहे थे, और हर विचार उसके दिल को दर्द के गहरे गर्त में डुबो रहा था।

डॉक्टरों ने उसे अच्छा खाना खाने को कहा था, वरना प्रसव मुश्किल हो जाएगा। लेकिन आर्या को अब अपनी सेहत की कोई परवाह नहीं थी। उसके लिए सब कुछ थम सा गया था, मानो समय का प्रवाह थम सा गया हो।

बलदेव उसके बगल में बैठा उसे समझा रहा था, उसे भूख लगी होगी यह सोचकर फल छील कर खिला रहा था। लेकिन आर्या की जीभ को कुछ भी स्वाद नहीं आ रहा था। अगर वह मुँह में एक निवाला भी डालती, तब भी उसे वह निगलने की ताकत नहीं लगा पाती। न सिर्फ़ उसका शरीर, बल्कि उसका मन भी भूखा हो गया था। उसे बस एक ही चीज़ चाहिए थी, "राजवीर"।

"अगर वह मेरे साथ होता तो क्या होता?" यह विचार बार-बार उसके मन में आ रहा था। वह किसी तरह उठ बैठ रही थी, लेकिन उसका मन पूरी तरह टूट चुका था।

बलदेव ने उसके पीले चेहरे को देखा। वह जानता था कि वह कुछ नहीं खाएगी, फिर भी उसने कोशिश करना नहीं छोड़ा। उसने धीरे से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा,

"आर्या, मुझे पता है, तुम ये सब सह रही हो। लेकिन अगर अपने लिए नहीं, तो इस नन्ही जान के लिए कुछ खा लो। वह तुम्हारे पेट में है, उसे तुम्हारे प्यार और देखभाल की ज़रूरत है।"

आर्या ने उसकी तरफ़ देखा, उसकी आँखों में आँसू थे। उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके गहरे चेहरे पर उसके दिल का दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था। बलदेव ने समझदारी से उसके हाथ में एक फल का टुकड़ा रखा, लेकिन उसने उसे वहीं छोड़ दिया। वह अब भी उस याद में खोई हुई थी जो उसके जीवन का एकमात्र सहारा थी, राजवीर की याद।

राजवीर घने जंगल से तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। उसे कोई डर नहीं था, बस आर्या और बलदेव तक पहुँचना था। उसके मन में बस एक ही ख्याल था, उन दोनों को सुरक्षित देखना, उनकी रक्षा करना और आर्या के साथ एक बार फिर से ज़िंदगी शुरू करना।

बिछड़ने के दर्द, संघर्ष की आपाधापी और एक नए जीवन की उम्मीद से भरे इस दौर में, राजवीर और आर्या के बीच का संघर्ष और गहरा होता जा रहा था। लेकिन नियति के अगले मोड़ में उनके लिए क्या लिखा था, यह तो वक़्त ही बता सकता था।

पूरी रात जंगल रौंदने के बाद, राजवीर जैसे जल्दी में गाँव के दरवाज़े पर पहुँचा, तब आसमान गुलाबी हो रहा था। सूरज की किरणों की सुनहरी, कोमल धार धरती पर पड़ रही थी, और ठंडी हवा जंगल के पत्तों पर एक रहस्यमयी फुसफुसाहट पैदा कर रही थी। लेकिन उसके मन में शांति नहीं थी।

अंदर एक ज्वालामुखी फूट रहा था। इतने दिनों की यात्रा के बाद, इतने संघर्षों के बाद, वह आखिरकार आर्या तक पहुँच ही गया था। उसका दिल उसकी याद में धड़क रहा था। वह उसे सुरक्षित देखने के लिए बेताब था।

उसकी नज़रें पूरे गाँव में सिर्फ़ जानी-पहचानी परछाइयों को ढूँढ़ रही थीं, और कुछ ही पलों में उसे वे दिखाई दिए, आर्या और बलदेव।

लेकिन उसे अपनी आँखों के सामने आए दृश्य पर यकीन नहीं हो रहा था।

जैसे ही उसने वह दृश्य देखा, उसकी रगों में खून की चिंगारी दौड़ पड़ी। उसकी आँखों के सामने बलदेव था, आर्या  के बिल्कुल पास बैठा हुआ। उसके हाथ में एक फल था, और वह उसे अपने हाथ से आर्या के मुँह में डाल रहा था। आर्या ने कोई विरोध नहीं किया। वह दर्द से बेहाल थी, उसके चेहरे पर न खुशी थी, न गम, सिर्फ़ खालीपन दिख रहा था। लेकिन राजवीर की आँखों में यह नज़ारा शैतानी आग में घी की तरह जलने लगा।

उसके दिमाग़ में एक भयंकर आग फैल गई।

"जब मैं यहाँ नहीं हूँ तो वह मेरी पत्नी को कैसे छू सकता है?" उसकी पति प्रवृत्ति ने ज़ोर पकड़ा। उस रात, उसने बाज के घोंसले में अपने अंदर के जानवर को काबू में किया था। लेकिन आज? आज वह ऐसा नहीं कर सकता था। उसका अहंकार अपनी प्यारी स्त्री को किसी दूसरे मर्द के हाथों से खाना खाते देखने का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता था।

उसके शरीर की हर नस गुस्से से तन गई। उसकी आँखें खून से लाल हो गईं। एक ज़ोरदार दहाड़ के साथ, उसने अपना असली रूप प्रकट कर दिया, उसके लंबे नाख़ून चमक उठे, उसके पंजे और भी तीखे और भयानक हो गए। उसके शरीर का रंग काला और भयावह हो गया। वह अब कोई साधारण आदमी नहीं रहा।

वह बिजली की तरह बलदेव पर टूट पड़ा।

बलदेव कुछ समझ पाता, इससे पहले ही उसे एक ज़ोरदार वार लगा। राजवीर के पंजे उसकी छाती पर ज़ोर से लगे। उसका शरीर दर्द से फट गया, खून की गर्म फुहारें हवा में उड़ गईं। बलदेव ने विरोध करने का निश्चय किया, लेकिन उसके पास समय नहीं था। वह राजवीर की भयानक ताकत के सामने एक पल भी टिक नहीं सका। उसका शरीर गहरे ज़ख्मों से भर गया और वह ज़ोर से गिर पड़ा।

उसी क्षण, आर्या डर के मारे चीख पड़ी,

"राजवीर!"

उसकी आवाज़ सुनकर राजवीर एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। लेकिन अब वह गुस्से से अंधा हो चुका था। उसकी आँखों के सामने बस एक ही चीज़ थी, बलदेव का खून से सना चेहरा!

आर्या डर के मारे राजवीर की ओर दौड़ी। बलदेव दर्द से तड़प रहा था, लेकिन राजवीर की आँखों में खून की प्यासी क्रूरता चमक रही थी। उसके पंजे अभी भी बलदेव की गर्दन पर कसकर लिपटे हुए थे। आर्या जोर से रोने लगी,

"राजवीर, रुको! वह हमारा दुश्मन नहीं है! उसे जाने दो!" उसकी आवाज़ में डर था, दर्द था, लेकिन सबसे ज़रूरी, प्यार दिख रहा था। उसने महसूस किया कि राजवीर का शरीर अभी भी रक्तमणि के श्राप से प्रभावित है । वह पागल की तरह बलदेव को मार रहा था। आर्या उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका गुस्सा अँधेरे की तरह गहरा होता जा रहा था। आर्या की आँखों में आँसू भर आए, वह उन दोनों को खोना नहीं चाहती थी।

राजवीर की आँखों में गुस्सा उमड़ रहा था। आर्या बार-बार उसकी ओर आ रही थी, उसे रोकने की कोशिश कर रही थी, उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे खींच रही थी।

"राजवीर, रुको! तुम्हें मेरी कसम! शांत हो जाओ!" वह हताश होकर चिल्लाई। लेकिन राजवीरके गुस्से ने उसे अंधा कर दिया था। आर्या की बातें सुनने के बजाय, उसने उसे ज़ोर से धक्का दे दिया। आर्या असंतुलित होकर पीछे गिर पड़ी, और बदकिस्मती से, उसके पेट में ज़ोर से चोट लगी।

उसी पल, उसके मुँह से एक दिल दहला देने वाली चीख निकली। वह दर्द से जड़ हो गई, उसकी आँखों में आँसू आ गए, और वह अपना हाथ पेट पर रखकर कराह उठी। राजवीर एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। उसकी साँसें थम गईं। मैंने क्या किया? उसने अपने हाथों की ओर देखा... और पहली बार, उसके अंदर अपराध की गहरी भावना रिसने लगी।

क्रमशः


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