भाग ६१
आर्या के गिरते ही उसके पेट में एक दर्दनाक गांठ सी उठी और वह ज़ोर से कराह उठी। उसके चेहरे पर दर्द और पीड़ा साफ़ दिखाई दे रही थी। उसकी आँसुओं से भरी आँखें दर्द से बंद हो रही थीं। उसने अपने हाथों से अपने पेट को कसकर पकड़ रखा था, मानो उसने अपनी सारी ताकत अपने बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए इकट्ठा कर ली हो। उसकी साँसें अनियमित हो रही थीं और उसके मुँह से हल्की चीखें निकल रही थीं।
राजवीर का ध्यान उसे धक्का देने के बाद बलदेव पर था, लेकिन आर्या की बेबस चीख सुनते ही वह स्तब्ध रह गया। उसके अंदर एक भयानक एहसास उमड़ आया, वह अपने गुस्से में इतना अंधा हो गया था कि उसने आर्या को चोट पहुँचाई थी! उसके दर्द ने उसे हिलाकर रख दिया। वह वहीं स्तब्ध खड़ा रहा, और एक पल के लिए उसे खुद से घृणा होने लगी।
"आर्या!" वह ज़ोर से चिल्लाया और बलदेव को पीछे छोड़ते हुए उसकी ओर दौड़ा। उसने उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।
"मेरी आर्या... मुझे माफ़ कर दो! मुझे नहीं पता था... मैंने तुम्हारे साथ ऐसा किया..." उसकी आवाज़ काँप रही थी।
राजवीर की बाहों में गिरते ही आर्या धीरे-धीरे काँपने लगी। उसके शरीर में एक सिहरन दौड़ गई, दर्द के मारे वह बोल भी नहीं पा रही थी। उसकी गर्म साँसों का स्पर्श उसके माथे पर था, लेकिन उसके दिल में अभी भी डर और दर्द की छाया थी। राजवीर के हाथों का काँपता स्पर्श महसूस करते ही, वह उसके प्यार को महसूस कर सकती थी।
उसकी आँखों से आँसू गालों पर बहने लगे। वह मासूमियत से उसे देख रही थी, लेकिन उसके दिल का दुःख अभी शब्दों में बयाँ नहीं हुआ था। राजवीर उसके चेहरे को देख रहा था, अपनी गलतियों का एहसास उसके दिल में चुभ रहा था। उसने फिर धीमी आवाज़ में कहा,
"मैंने तुम्हें चोट पहुँचाई है, आर्या... मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा..." और ये शब्द उसके मुँह से अनजाने में निकल गए,
"राजवीर..."
उसने उसे धीरे से उठाया और उसके पेट पर हाथ फेरने लगा। जैसे ही उसकी काँपती उंगलियाँ उसके पेट पर फिरीं, अंदर एक डर उमड़ आया, क्या कुछ हुआ होगा? क्या होगा अगर उसके गर्भ में पल रहे उसके बच्चे को कुछ हो गया? इस विचार से उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
आर्या अभी भी आँसुओं भरी आँखों से उसे देख रही थी। दर्द से कराहते हुए उसने कहा,
"राजवीर... हमारा बच्चा..."
राजवीर ने उसे अपनी बाँहों में और कस लिया, मानो उसके स्पर्श ने उसका दर्द गायब कर दिया हो। जैसे ही उसके हाथों का नाज़ुक लेकिन सुकून देने वाला स्पर्श आर्या के पेट पर पड़ा, उसकी साँसें थोड़ी स्थिर हो गईं। उसकी कराहें धीमी हो गईं, और उसके माथे पर जमी दर्द की परत धीरे-धीरे कम होने लगी।
राजवीर के मन से डर और अपराध का बोझ थोड़ा कम हुआ। उसने अपनी काँपती उँगलियों से उसके गाल पर हाथ फेरा और धीमी आवाज़ में कहा,
"मैं हूँ, आर्या... मैं तुम्हें फिर कभी चोट नहीं पहुँचाऊँगा।" उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन अब वे सिर्फ़ दर्द के नहीं थे... वे उसके प्यार और पश्चाताप का एहसास भी थे।
"क्या तुम ठीक हो, आर्या?" उसने अधीरता से पूछा।
वह थोड़ी संभली, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी उसके व्यवहार को लेकर सवाल थे। उसने कमज़ोर आवाज़ में पूछा,
"राजवीर, तुम बलदेव को क्यों मार रहे थे?"
राजवीर अचानक उठ खड़ा हुआ, उसकी आँखों में फिर से गुस्से की चिंगारी जल उठी। उसने एक गहरी साँस ली, लेकिन फिर भी अपने दिल के गुस्से को काबू में नहीं कर पाया।
"आर्या, क्या तुम सच में समझ नहीं पा रही हो?" उसने गुस्से से कहा।
"मेरे ज़िंदा रहते हुए कोई दूसरा आदमी तुम्हें कैसे छू सकता है? वो तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था, और तुमने उसे रोका तक नहीं! क्या तुम्हें मेरी याद भी नहीं आई?" उसकी आवाज़ में दर्द, गुस्से और अपमान का मिला-जुला भाव था। उसके दिल को यह बात चुभ रही थी कि आर्या किसी और के साथ थी, भले ही उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़।
वह उस पर चिल्लाना नहीं चाहता था, लेकिन उसके दिल की जलन उसे चुप नहीं बैठने दे रही थी।
"मैं अभी मरा नहीं हूँ, आर्या... और मेरे सिवा किसी का तुम पर कोई हक़ नहीं हो सकता!" वह गुस्से में चिल्लाया, उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं और माहौल में तनाव फैल गया।
उसने अपने हाथ कसकर भींच लिए और बोला,
"यह बलदेव... हमेशा तुम पर नज़र रखता था। अब जब मैं चला गया हूँ, तो उसने मौका पाकर तुम्हारे करीब आने की कोशिश की। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता! मैं अभी ज़िंदा हूँ, आर्या! और तुम इस तरह बर्ताव नहीं कर सकती!"
उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसके शब्दों में गुस्सा और चिड़चिड़ाहट साफ़ झलक रही थी। बलदेव अभी भी खून से लथपथ ज़मीन पर पड़ा था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी कोई गुस्सा नहीं था। बल्कि, वह आर्या को प्यार से देख रहा था, मानो उसे अपने दर्द से ज़्यादा उसकी चिंता हो।
आर्या ने थोड़ी कोशिश करके उठने लगी। उसने ठंडी आँखों से राजवीर को देखा और साफ़ कहा,
"राजवीर, ऐसा कुछ नहीं है। तुम गलत समझ रहे हो। तुम्हारे वियोग ने मेरी ऐसी हालत कर दी थी कि मैं खा भी नहीं पा रही थी। बलदेव मुझे ज़बरदस्ती खाना खिला रहा था, सिर्फ़ तुम्हारे बच्चे की सेहत के लिए। उसका कोई बुरा इरादा नहीं था!"
राजवीर उसकी बातों से चुप हो गया। उसने गौर से उसे देखा। उसकी आँखों में ईमानदारी थी। वह झूठ नहीं बोल रही थी। एक पल के लिए उसके अंदर एक द्वंद्व उठा, गुस्सा और अपराध। आख़िरकार उसने गहरी साँस ली और बलदेव की ओर देखा।
बलदेव ज़मीन पर निश्चल पड़ा था, उसके चारों ओर खून का एक तालाब दिख रहा था। सीने में गहरा घाव उसे असहनीय दर्द दे रहा था, हर साँस के साथ दर्द की एक तेज़ लहर उसके शरीर पर बरस रही थी। उसका शरीर काँप रहा था, और उसकी आँखों के सामने धुंधली तस्वीरें घूमने लगी थीं। वह ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन खून रुकने का कोई मौका नहीं था। उस ठंडी, खामोश रात में, उसे बस अपनी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी, धीरे-धीरे धीमी होती जा रही थी, थकती जा रही थी।
राजवीर को एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। एक छोटी सी ग़लतफ़हमी की वजह से, उसने अपने दोस्त की जान लगभग ले ली थी। अपराध ने उसे जकड़ लिया। वह धीरे से आगे बढ़ा, ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा, और धीरे से बलदेव को खड़ा होने में मदद की।
"माफ़ करना, बलदेव," उसने रुँधे हुए स्वर में कहा।
"मैंने ग़लत समझा। मैंने... तुमसे पूछे बिना..." उसकी आवाज़ में अपराधबोध साफ़ झलक रहा था। उसने अपनी आँखें नीची कर लीं, खुली हवा में अनिश्चितता से अपने हाथ हिलाए।
बलदेव उसे शांति से देख रहा था, उसकी आँखों में दर्द तो था, पर गुस्सा नहीं। एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। फिर वह धीरे से आगे बढ़ा, गहरी साँस ली और धीमी आवाज़ में बोला, "जो बीत गया उसे जाने दो। पर अगली बार... भरोसा मत टूटने देना।"
बलदेव ने थोड़ा कष्ट सहते हुए सिर हिलाया। वह दर्द से काँप रहा था, फिर भी उसके चेहरे पर एक शांत भाव था।
"राजवीर... तुम्हें बस अपनी पत्नी की चिंता थी। मैं समझ सकता हूँ। लेकिन मेरे मन में उसके बारे में कभी कोई पागलपन भरा विचार नहीं आया। मैं तो बस उसकी और तुम्हारे बच्चे की भलाई के लिए यहाँ था," बलदेव ने रुकते हुए कहा।
राजवीर की आँखों में शर्म का भाव झलक उठा। उसने बलदेव के घाव पर हाथ रखा और अपनी आंतरिक शक्ति से उसे भरने की कोशिश की। धीरे-धीरे घाव से खून बहना बंद हो गया और बलदेव के चेहरे पर थोड़ी राहत की भावना दिखाई दी।
आर्या एक तरफ खड़ी होकर यह सब देख रही थी। उसने सोचा,
"राजवीर अभी पूरी तरह से राक्षस नहीं बना है। उसमें अभी भी इंसानियत बाकी है।"
उसके मन में एक अलग ही विचार आया, यह सफ़र आसान नहीं है। कौन जाने उसके और राजवीर के रिश्ते को और कितनी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ेगा?
वे तीनों ही घायल, थके हुए और भावनाओं से अभिभूत थे। लेकिन एक बात साफ़ थी, यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी।
क्रमशः
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