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रक्तपिशाच का रक्तमणि ६२

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ६२

बलदेव के शरीर का दर्द धीरे-धीरे कम हो रहा था। उसकी छाती के गहरे ज़ख्म भर रहे थे, और अब वह ठीक से बैठ पा रहा था, हालाँकि उसे थोड़ी मुश्किल हो रही थी। यह पल राजवीर और आर्या के लिए बहुत संतुष्टिदायक था। इतने संघर्ष के बाद, मौत के कगार से वापस लौटे बलदेव को पूरी तरह होश में देखकर उनके दिलों को सुकून मिल रहा था। आर्या उसके बगल में बैठी थी, उसकी आँखों में स्नेह और चिंता साफ़ दिखाई दे रही थी। बलदेव भी उसे चुपचाप देख रहा था, मानो उनके बीच शब्दों से परे कोई संवाद हो रहा हो।

राजवीर की आवाज़ गंभीर और गहरी हो गई थी। उसने अपनी यात्रा की कहानी सुनानी शुरू की, कैसे वह सहस्त्रपाणि तक पहुँचा, कैसे उस क्रूर राक्षस ने उस पर प्रभाव डाला, और कैसे उस रक्तमणि के संगत से  उसके खून में हिंसा की एक अलग धारा को घोल दिया था। पहले तो उसे कुछ समझ नहीं आया। मानो उसके शरीर में एक नई ऊर्जा का प्रवेश हो गया हो, लेकिन यह ऊर्जा शांति की नहीं, बल्कि विनाश की थी। हर गुज़रते घंटे के साथ वह और भी क्रूर होता जा रहा था, मानो उसने खुद पर नियंत्रण खो दिया हो। उसकी हर गतिविधि रक्तमणि से प्रभावित थी।

वह सहस्त्रपाणि के उस अँधेरे किले खुद को खो रहा था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। सहस्त्रपाणि के एक मूर्ख सेवक ने राजवीर के मन में उजाला भर दिया। वह समझ गया कि सहस्त्रपाणि के मन में क्या है, कि एक बार रक्तमणि मिल जाए तो वह मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा, और यही वजह थी कि उसने बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ़ निकाला। उसने उस नर्क से निकलने का निश्चय किया और अंततः एक चमगादड़ का रूप धारण करके किले से नीचे उतरा।

वह बोलता रहा, उसके शब्दों में अभी भी उस संघर्ष की तीव्रता थी। कैसे एक बाज़ ने उसे उठाकर अपने बच्चों के सामने खाने के लिए रख दिया था, और फिर उसने अपना रूप बदलकर यहाँ तक का सफ़र पूरा किया। वह इसी बारे में संक्षेप में बात कर रहा था। बलदेव और आर्या मंत्रमुग्ध होकर उसकी बातें सुन रहे थे। राजवीर की यादें अभी भी दर्द से भरी थीं, लेकिन उसकी आवाज़ की अस्थिरता अब शांति में बदल रही थी। जैसे-जैसे वह बोलता रहा, उन सभी घटनाओं का प्रतिबिंब उन दोनों की आँखों में साफ़ दिखाई दे रहा था।

वह जो सहस्त्रपाणि के सिंहासन के पास खड़ा हुआ, उस सिंहासन के पीछे रक्तमणि को बिना किसी को पता चले छुपाने वाला, अपने क्रोध से सब नष्ट होते हुए देखनेवाला, और अंततः वहाँ से भागने का रास्ता खोज कर चुपकेसे निकलने वाला वह सब बाते उन्हें बता रहा था ! आर्या यह सब सुन रही थी, और उसके हृदय में केवल एक ही भावना उमड़ रही थी।

शुक्र है भगवान! क्योंकि वह महसूस कर सकती थी कि राजवीर के रक्त में व्याप्त दुष्ट प्रभाव अब लुप्त हो गया था। उसे घेरे हुए अँधेरी शक्तियाँ अब नष्ट हो गई थीं। उसकी आँखों में पहले जैसी चमक थी, अब उनमें केवल प्रेम और कर्तव्य का भाव था, रक्तपिपासु पागलपन का नहीं। आर्या के हृदय में शांति का प्रकाश फैल गया।

राजवीर के बोलने के बाद, कुछ देर के लिए चारों ओर सन्नाटा छा गया। उस घर में एक-दूसरे की साँसों की आवाज़ भी साफ़ सुनाई दे रही थी। राजवीर अभी भी आँखें बंद किए बैठा था, सहस्त्रपाणि का विचार उसके मन में लगातार घूम रहा था, लेकिन साथ ही, आर्या का चेहरा उसके दिमाग में उभर रहा था, वह उसे चिंता से देख रही थी, उसकी आँखों में भय और प्रेम साफ़ दिखाई दे रहा था।

बलदेव भी कुछ नहीं बोला। उसका ध्यान पूरी तरह आर्या पर ही था। आर्या का चेहरा थोड़ा थका हुआ था। उसकी गर्भावस्था अब पाँच महीने की हो चुकी थी, और अगले तीन महीनों में बच्चा होने वाला था। कुछ दिन पहले ही एक अनुभवी डॉक्टर ने बलदेव को यह खबर दी थी। उस खबर ने आर्या का मन थोड़ा हल्का कर दिया था, लेकिन वह अभी भी राजवीर की चिंताओं और सहस्त्रपाणि के साये में फँसी हुई थी।

हालाँकि, बलदेव अब ज़्यादा सचेत था। आर्या के पेट को देखते हुए उसके चेहरे पर एक ज़िम्मेदारी साफ़ दिखाई दे रही थी। वह उसकी ज़रूरत की हर चीज़ इकट्ठा कर रहा था, हरी सब्जिया, पौष्टिक फल और उसके बच्चे के लिए खाना। वह उसके सोने के लिए मुलायम घास का बिस्तर बिछाता, यह सुनिश्चित करता कि उसे ज़्यादा न चलना पड़े ताकि वह थक न जाए। बलदेव अब न सिर्फ़ उसकी सुरक्षा का ध्यान रख रहा था, बल्कि अजन्मे बच्चे के लिए एक ज़िम्मेदार अभिभावक की भूमिका भी निभा रहा था।

आर्या यह सब महसूस कर सकती थी। वह बलदेव के बदले हुए व्यवहार के लिए आभारी थी। लेकिन उसके मन में बस एक ही बात चल रही थी, राजवीर। उन्होंने एक-दूसरे के साथ कितने सपने साझा किए थे, अपने बच्चे के जन्म के बाद उन्होंने कितने खुशी के पल साथ बिताए थे। लेकिन अब, राजवीर उसके साथ नहीं रह रहा था, वह जंगल में जाकर अकेला रहता था। हालाँकि रक्तमणि का असर कम हो गया था, फिर भी वह सहस्त्रपाणि को मारने की साज़िश रच रहा था। आर्या अभी भी उसके साये में डर महसूस कर सकती थी। वह मन ही मन ईश्वर से एक ही प्रार्थना कर रही थी, उसके परिवार को इस अंधकारमय समय से सुरक्षित निकलने की शक्ति दे!

अँधेरी शाम ढलने लगी थी, और गाँव का सन्नाटा अचानक कुछ तेज़ कदमों की आहट से टूट गया। बलदेव की आँखों के सामने कुछ साये उसके नजदीक आ रहे थे। वह एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। वे छह-सात लोग थे, जिनके साथ उसने कभी खूनी दिन बिताए थे। उस समय, वे सभी उसके साथी थे, वही लोग जो नरभक्षी भेड़िये बनने के बाद एक साथ आए थे।

आज, इतने सालों बाद, वे फिर एक-दूसरे के सामने थे, लेकिन एक अलग मकसद से। पल भर में, बलदेव के मन में संदेह और भय की आग भड़क उठी। क्या होगा अगर इन लोगों को पता चल गया कि राजवीर एक रक्तपिशाच का वंशज है और आर्या के गर्भ में पल रहा बच्चा उसके ही खून का है? अगर उन्हें पता चल गया, तो वे राजवीर और आर्या को ज़रूर मार डालने की कोशिश करेंगे। उस बच्चे का अस्तित्व भी खतरे में था।

बलदेव ने धीरे से आर्या की ओर देखा। वह अभी भी अपने दर्द भरे पेट को पकड़े हुए थी, उसके चेहरे पर थकान के निशान थे। लेकिन अब समय नहीं था, वह उसे दिलासा देने के लिए रुक नहीं सकता था। वह तेज़ी से आगे बढ़ा और चेहरे पर मुस्कान लिए, मानो पुराने दोस्तों से मिलकर खुश हो, बोला,

"ओह, तुम यहाँ? इतने सालों बाद अचानक?"

लेकिन मुस्कुराते चेहरे के पीछे बेचैनी को छिपाने की उसने कितनी भी कोशिश की, उसकी आँखों का भ्रम छिप नहीं सका। सामने खड़े उन ख़तरनाक आदमियों की आँखों की चमक बलदेव को ख़तरे की चेतावनी दे रही थी। वे यहाँ यूँ ही नहीं आए थे। उनकी आँखों का शक और उनकी हरकतों की लापरवाही उसे बता रही थी कि वे कोई गुप्त जानकारी ढूँढ़ने आए हैं। बलदेव के मन में डर और सावधानी का एक ज़बरदस्त द्वंद्व शुरू हो गया था।

क्या उसे सबको सच बताकर उन पर भरोसा करना चाहिए, या उसे इसे छिपाकर आर्या और राजवीर की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी चाहिए? वह जानता था कि हालाँकि ये लोग उसके पुराने साथी थे, फिर भी उन्होंने शिकार करने और अपनी भूख मिटाने का काम पूरी तरह से नहीं छोड़ा था। अगर उन्हें राजवीर की अमानवीय उत्पत्ति के बारे में पता चलता, तो वे उसे एक राक्षस समझते और उसे नष्ट करने की कोशिश करते।

आर्या गर्भवती थी, उसके गर्भ में एक अद्भुत वंश की विरासत थी। बलदेव को यह सब जोखिम उठाकर क्या हासिल होने वाला था? लेकिन दूसरी ओर, झूठ बोलने का जोखिम बहुत बड़ा था। अगर इन लोगों को सच्चाई का ज़रा भी अंदाज़ा होता, तो उनका भरोसा टूट जाता और वे और भी क्रूरता से पेश आते। बलदेव ने गहरी साँस ली। उसके दिमाग में विचारों का तूफ़ान उठा। उसने फैसला किया, अब वह आर्या और उसके अजन्मे बच्चे की किसी भी कीमत पर रक्षा करेगा, चाहे उसे कितने भी झूठ बोलने पड़ें। उसे यह राज़ रखना ही था। किसी भी कीमत पर!

क्रमशः

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