भाग ६३
बलदेव अपने पुराने साथियों को देखकर क्षण भर के लिए असमंजस में पड़ गया। उसके मन में चिंता उमड़ पड़ी, लेकिन उसने खुद को नियंत्रित करने और झूठा आत्मविश्वास दिखाने की कोशिश की। उसके पुराने दोस्तों के चेहरों पर एक अलग, विकृत संतुष्टि थी, वे अब आम इंसान नहीं रहे थे, वे सब नरभक्षी भेड़िये बन चुके थे।
बलदेव ने उनसे बातचीत शुरू की,
दुर्गेश्वर: (हँसते हुए) "अरे बलदेव! तुम्हें देखे हुए बहुत समय हो गया। हमें लगा था कि तुम हमसे बिछड़ गए हो। लेकिन देखो, किस्मत ने हमें फिर से मिला दिया है!"
बलदेव: (हँसते हुए) "हाँ, कई साल हो गए। लेकिन तुम अब भी उसी पुराने रास्ते पर ही लग रहे हो!"
कालेश्वर: "उसी पुराने रास्ते पर? ओह, हम अब पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गए हैं! नरभक्षी भेड़िया होने का आनंद ही कुछ और है, बलदेव। ताकत, तेज़ ज़िंदगी! इन सबके बिना तुम कैसे जी रहे हो?"
बलदेव: (हँसते हुए) "क्या तुम्हें सच में लगता है कि यह बदलाव अच्छा है?"
दुर्गेश्वर: (उसका कंधा थपथपाते हुए) "बलदेव, अब हम इसे 'परिवर्तन' नहीं, 'प्रगति' कहते हैं! हम पहले इंसान थे, सीमाओं से बंधे, कमज़ोर! लेकिन अब? अब हम किसी को भी मार सकते हैं, न कोई डर, न कोई बीमारी, भूख लगे तो शिकार करके खा लेते हैं! क्या राजाओं-सामंतों की मेज़ों पर मांस नहीं रहता फिर हम क्यों डरे, अब तो हम खुद शिकारी बन गए हैं! यही तो असली ताकत है!"
बलदेव: (सोचते हुए) "लेकिन इसी वजह से तुम्हारे अंदर की इंसानियत गायब हो गई है। तुम बिना किसी भावना के जीते हो।"
कालेश्वर: (हँसते हुए) "इंसानियत? अहा! यही तो हमने फेंक दी। कमज़ोर लोगों को भावनाओं की ज़रूरत होती है, बलदेव! जानते हो, पिछले महीने हम एक बड़े गाँव घुसे थे। हम एक अमीर आदमी के घर में घुस गए और उसके पूरे परिवार को मार डाला। लेकिन क्या बात है, उसके खून की मिठास कुछ और ही थी! तुम्हें वो अनुभव नहीं हुआ, है ना?"
बलदेव के मन में एक साथ डर और उलझन का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था। उसे पता था कि अगर उसके सामने खड़े नरभक्षियों को आर्या और राजवीर के बारे में कुछ पता चल गया, तो वे दोनों बड़ी मुसीबत में पड़ जाएँगे। अगर वे राजवीर के पिशाच रूप को पहचान गए, तो उसकी जान लेने से नहीं हिचकिचाएँगे।
क्योंकि उनकी नज़र में वह शापित रक्त का वंशज था, उसका अस्तित्व उनकी दुनिया में ख़तरा पैदा कर सकता था, और आर्या? वह बलदेव की दोस्त थी, लेकिन इन नरभक्षियों के लिए, वह सिर्फ़ शिकार थी।
यही वह समय था जब उसे यह तय करना था कि अब तक जो थोड़ी-बहुत इंसानियत उसने बचाकर रखी थी, उसे पूरी तरह से खो देना चाहिए या नहीं। उसने अभी तक सच नहीं बताया था, लेकिन इस राज़ को छिपाना अब और भी मुश्किल होता जा रहा था। उसके दिमाग़ में विचार बढ़ रहे थे, वह सतर्क रहने की कोशिश कर रहा था ताकि एक ग़लत फ़ैसला आर्या और राजवीर को ख़तरे में न डाल दे।
लेकिन साथ ही, वह अपने सामने खड़े अपने पुराने साथियों को भी पहचान ता था। वे कभी उसके सबसे अच्छे दोस्त थे, जिन्होंने उसके साथ खून बहाया था, जंगल में शिकार किया था, एक अलग दुनिया में रहते थे। उनके लिए, वह कभी भाई जैसा था। लेकिन अब? अब वह उनके खिलाफ खड़ा था। अगर वह उन्हें धोखा देने की कोशिश करता, तो वे उसके मन की दुविधा को आसानी से पहचान लेते। इसलिए वह हर जवाब सावधानी से दे रहा था, हर हरकत पर नज़र रख रहा था।
उन्हें शक न हो, इसके लिए वह उनकी बातचीत में शामिल हो रहा था, मुस्कुरा रहा था, उनकी क्रूर यादों का जवाब दे रहा था, लेकिन मन ही मन वह एक उपयुक्त अवसर की तलाश में था। अब उसने ठान लिया था, सच्चाई सामने आने से पहले ही वह इस संकट का कोई ना कोई हल जरूर ढूँढ़ लेगा। लेकिन कैसे? यही सोचकर वह बेचैन हो रहा था।
बलदेव: (धीरे-धीरे उनके चेहरों को देखते हुए) "और तुम कब तक ऐसा करते रहोगे? क्या तुम्हें पता है इसका अंत क्या होगा?"
दुर्गेश्वर: (चेहरे पर हाथ फेरते हुए) "अंत? अरे, हमारे अस्तित्व का तो कोई अंत ही नहीं! अब हम जंगल के राजा बन गए हैं! खून का स्वाद चखकर भला कोई शांत बैठता है क्या?"
बलदेव: (संदेह की स्थिति में) "तो तुम अब भी लोगों को मार रहे हो?"
कालेश्वर: (हँसते हुए) "इतना ही नहीं, हम नए शिकारी भी भर्ती कर रहे हैं। बलदेव, हम तुम्हें, हमारे पुराने साथी को, फिर से अपने साथ चाहते हैं! तुम हमारे बीच वापस आ जाओ। फिर से सचमुच शक्तिशाली बनो! सोचो... यह सुखद मार्ग तुम्हारे सामने खड़ा हुआ है।"
बलदेव अपने दोस्तों से बात कर ही रहा था कि अचानक आर्या घर से बाहर आ गई। उसे देखकर नरभक्षियों की आँखें चमक उठीं। उनकी आँखों में एक अलग ही जिज्ञासा थी, यह औरत कौन थी? बलदेव ने जल्दी से स्थिति संभाली और उसे अपने दोस्तों से मिलवाया।
"यह आर्या है, मेरी खास दोस्त। इसने इस दौरान मेरी बहुत मदद की है," उसने सहजता से कहा, लेकिन उसके स्वर में सावधानी थी। वह जानता था कि ये लोग उसे किस नज़र से देख रहे हैं।
आर्या बिना किसी हिचकिचाहट के उनके सामने खड़ी हो गई, उसे डर तो नहीं था, लेकिन वह उनके बारे में कुछ नहीं जानती थी। उसकी आँखों में एक तरह का आत्मविश्वास था। वह मीठी मुस्कान के साथ बोली,
"आप सभी बलदेव के पुराने दोस्त हैं, इसलिए हमारे घर में आपका हमेशा स्वागत रहेगा।" कुछ लोग उसकी बात सुनकर हँस पड़े, तो कुछ के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे।
फिर आर्या ने सहजता से आगे कहा, "मेरे पति अभी बाहर गए हैं, लेकिन जल्द ही लौट आएंगे। आने पर आपको उनसे में मिलवा दूंगी।" यह सुनकर बलदेव की धड़कनें तेज़ हो गईं। अगर इन नरभक्षियों को पता चल गया कि उसका पति राजवीर है, तो बात बिगड़ जाएगी। लेकिन वह संभला और अपने दोस्तों की तरफ देखते हुए बोला,
"हाँ, आपको भी उससे मिलकर खुशी होगी।"
आर्याने आगे कहा, "आप कुछ दिन यहीं रहिए। यह हमारे लिए भी अच्छा रहेगा, और आपको भी थोड़ा आराम मिलेगा। इसके अलावा, अगर आपको किसी मदद की ज़रूरत हो, तो हमारे साथ रहकर हम आपकी मदद भी कर सकेंगे।" उसकी बात सुनकर नरभक्षी एक-दूसरे को देखने लगे।
कुछ लोग इस विचार से सहमत थे, जबकि कुछ अभी भी सोच रहे थे। बलदेव ने मन ही मन राहत की साँस ली, आर्या ने स्थिति को, अस्थायी रूप से ही सही, आसानी से संभाल लिया था। लेकिन उसके मन में अभी भी एक बात थी, इन नरभक्षियों को कुछ भी शक नहीं होना चाहिए।
जैसे ही उसके सभी दोस्त नहाने के लिए बाहर गए, बलदेव ने झट से आर्या का हाथ पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया। उसके चेहरे पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था।
"आर्या, हम बड़ी मुसीबत में हैं," उसने धीमी आवाज़ में कहा। आर्या उलझन में थी। "क्या हुआ?" उसने पूछा। बलदेव ने दरवाज़े की तरफ़ देखा कि कोई सुन तो नहीं रहा, फिर बुदबुदाया,
"ये सब मेरे दोस्त हैं, लेकिन ये कोई आम इंसान नहीं हैं। ये मेरी तरह नरभक्षी भेड़िये हैं। इनके सामने ज़्यादा कुछ मत कहना, और किसी भी हालत में इन्हें राजवीर का असली रूप नहीं दिखना चाहिए!"
आर्या की आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। "क्या मतलब है तुम्हारा?" उसने डरते हुए कहा।
"अगर उन्हें पता चल गया कि राजवीर एक पिशाच है, तो वे उसे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। और न ही तुम... न ही मैं," बलदेव ने डरते हुए कहा, उसकी आँखें उसकी आँखों से मिल गईं। आर्या की साँस रुक गई। उसे यह एक बुरे सपने जैसा लग रहा था, वह एक भयानक सच्चाई के मुहाने पर खड़ी थी।
"तो अब हमें क्या करना चाहिए?" उसने जल्दी से पूछा। बलदेव एक पल चुप रहा, फिर गंभीर स्वर में बोला,
"राजवीर के लौटने पर उसे यह बात बताना। हम दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसे हम पर शक न हो। अगर वह हमारे खिलाफ हो गए, तो हम उनके चंगुल से बच नहीं पाएँगे।"
आर्या सुन्न हो गई। उसने अपना हाथ अपने पेट पर रख लिया, अब उसे न केवल अपने पति की, बल्कि अपने अजन्मे बच्चे की भी जान बचानी थी।
क्रमशः
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