भाग ६४
राजवीर दरवाज़े पर खड़ा था और उसकी पैनी नज़र आँगन में बैठे आदमियों पर पड़ी। हालाँकि उनकी उपस्थिति कुछ हद तक सामान्य लग रही थी, पर उसके तेज़ दिमाग़ ने उनकी हरकतों में एक ख़ास तरह की सोच-समझ का अंदाज़ा लगा लिया। क्या वे यहाँ बस आराम करने आए थे? या उनके पीछे कोई और मक़सद था?
उनके चेहरों के सूक्ष्म हाव-भाव उसे सचेत कर रहे थे, कुछ धीरे से बोल रहे थे, पर उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार का पीछा कर रहा हो! उनके बैठने का तरीक़ा, उनके अंगों में महसूस होने वाली मज़बूती, उनके अस्तित्व से निकलती अनोखी क्रूरता... राजवीर को समझते देर नहीं लगी कि ये कोई मामूली मुसाफ़िर नहीं, बल्कि भेड़ियों की एक जमात के सदस्य थे, बिल्कुल बलदेव की तरह!
उसके अंदर बेचैनी की लहर दौड़ गई। हालाँकि बलदेव भेड़िया जाति का था, उसने अपनी प्रवृत्ति को दरकिनार कर दिया था। बलदेव बदल गया था, उसने अपनी सहज प्रवृत्ति पर क़ाबू पा लिया था... पर ये लोग? क्या ये उसके जैसे होंगे, या फिर अब भी अपनी प्रवृत्ति पर क़ाबू रख पाएँगे? उसके मन में शंकाएँ घर कर गईं। अगर वे बलदेव की तरह धीमे और संयमी नहीं होंगे, तो आर्या और उसके अजन्मे बच्चे के लिए ख़तरनाक हो सकते थे।
जैसे ही वह उनके पास पहुँचा, वे सतर्क हो गए। उन्होंने राजवीर को ऐसे देखा, मानो उसे गौर से देख रहे हों। राजवीर के मन में एक अलग ही डर घर कर गया, क्या वे उसे पहचान पाएँगे? क्या मैं उनसे अलग हूँ? क्या मैं उनके जैसा नहीं हूँ? उसने मन ही मन खुद को शांत रखने की कोशिश की, लेकिन उसकी धड़कनें तेज़ होती जा रही थीं। अब उसे साफ़-साफ़ एहसास हो रहा था कि यह मुलाक़ात कोई साधारण बात नहीं थी, यह भविष्य में एक बड़े संघर्ष की शुरुआत थी।
उसके मन में अनगिनत विचारों का तूफ़ान उठा। लेकिन क्या यह सब पहले जैसा ही हो सकता है? क्या वे अब भी अपनी भूख की गिरफ़्त में शिकार करने वाले भेड़िये हो सकते हैं? इसी विचार को मन में रखते हुए, आर्याने राजवीर को आगे लेकर और उसका परिचय करवाया।
राजवीर के मन में अनगिनत सवालों का तूफ़ान उमड़ रहा था। क्या ये लोग सचमुच बलदेव की तरह बदल गए थे? या फिर वे अब भी अपनी शिकारी प्रवृत्ति के अधीन थे? उनकी आँखों की चमक, उनकी चाल में फुर्ती और उनकी मौजूदगी में व्याप्त बेचैनी, ये सब उसे किसी भयावहता का आभास दे रहे थे। लेकिन आर्या ने उसका हाथ थाम लिया और धीरे से कहा, "राजवीर, ये बलदेव के दोस्त हैं। ये कुछ देर यहीं रुकेंगे।" उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी।
राजवीर अभी भी उलझन में था, लेकिन उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की। आर्या उसे आगे ले गई और उन आदमियों से मिलवाया।
"ये राजवीर हैं। मेरे पति।" यह सुनकर, कुछ आदमियों ने एक-दूसरे को देखा, मानो कुछ हिसाब लगा रहे हों। राजवीरने भी उनसे उनके बारे में पूछ ताछ की। उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, मानो वे उसे परख रहे हों। उन आँखों में शक था या स्वीकृति? उन्हे यह समझने के लिए अभी और समय देना होगा। लेकिन एक बात तो तय थी, इन लोगों की यहाँ मौजूदगी कुछ बड़ा करने वाली थी।
शाम को, सब लोग घर के सामने आँगन में बैठे थे। आग जल रही थी और चारों तरफ हल्की हवा चल रही थी।
बलदेव: (हँसते हुए) "तो फिर, राजवीर! तुम्हें देखकर तो लगता है कि तुम भी हमारे ग्रुप के ही हो! तुम्हारी नज़र इतनी तेज़ है कि मेरे किसी भी दोस्त को शर्म आ जाए!"
राजवीर: (हल्के से हँसते हुए) "मेरी नज़र तो अच्छी है, लेकिन मैं शिकार करने में तुम्हारी तरह अच्छा नहीं हूँ।"
रघुवेंद्र: (बलदेव का दोस्त, ज़ोर से हँसते हुए) "अरे, अब शिकार की बात मत करो ! अब हम वो सब पीछे छोड़ चुके हैं! अब हमने अपनी मर्ज़ी से जीने का फैसला कर लिया है।"
दुर्गेश्वर: "हाँ! गाँव के घर में रहने और हमेशा कोई पीछा कर रहा है ऐसा महसूस करने के दिन अब बीत चुके हैं जैसे। इस नए जीवन में, हम अपने मन के राजा हैं।"
बलदेव: (गंभीर होते हुए) "लेकिन फिर भी, कुछ आदतें आसानी से नहीं जातीं, है ना?"
राजवीर: (उसकी बातों में छिपे अर्थ को समझते हुए) "हाँ, कुछ आदतें और कुछ राज़ भी..."
कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया, लेकिन फिर कालेश्वर बोला।
कालेश्वर: (हँसते हुए) "अरे, राज़ की बातें बंद करो! राजवीर, बताओ तुम जंगल क्यों गए थे? और आर्या से कैसे मिले?"
राजवीर: (आर्या की ओर देखते हुए) "यह एक लंबी कहानी है। लेकिन संक्षेप में कहें तो, ज़िंदगी मुझे उसके रास्ते पर ले आई और फिर मुझे उससे प्यार हो गया।"
रघुवेंद्र: (हँसते हुए) "हे भगवान! ये हमारी तरह कोई मामूली नहीं, सीधा-सादा आशिक है!"
सब हँसने लगे।
दुर्गेश्वर: "अच्छा, बताओ, बचपन से तुम कैसे थे? तुम्हारे रिश्तेदार, माँ, बाप, बहन और भाई अब कहाँ हैं? क्या तुम्हें पहले अकेले रहना पड़ता था?"
राजवीर: (गंभीर होते हुए) "शहर में... पर ज़िंदगी मुझे जंगल में ले आई। एक युद्ध में, मेरे पूरे परिवार को हमारे दुश्मनों ने मेरे सामने मार डाला। मैं उनसे बचकर जंगल में छिप गया। अब... (एक पल रुककर) अब जंगल और मैं अलग नहीं रह सकते।"
दुर्गेश्वर और बलदेव के बाकी दोस्त एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें लगा कि राजवीर उससे कुछ छिपा रहा है। लेकिन वे चुप रहे।
रघुवेंद्र: (विषय बदलते हुए) "अच्छा, अब खाने में क्या है? हमें भूख लगी है!"
आर्या : (अंदर से पुकारते हुए) "खाना तैयार है! सब लोग जल्दी करो!"
सब हँसते-बोलते हुए रात के खाने के लिए घर की ओर चल पड़े। लेकिन राजवीर के मन में अभी भी कुछ शंकाएँ थीं... इन लोगों का असली मकसद क्या है ?
राजवीर और बलदेव के दोस्तों के बीच शुरुआती बातचीत सहज और सौहार्दपूर्ण रही। राजवीर ने उन्हें थांग गाँव के बारे में विस्तार से जानकारी दी, यहाँ की आबादी, उनकी जीवनशैली, उनके नियम-कानून और गाँव में शांति कैसे बनी रहती है। बलदेव के दोस्त भी ध्यान से सुन रहे थे और बीच-बीच में कुछ सवाल भी पूछ रहे थे, लेकिन उनके सवालों में एक अलग ही जिज्ञासा थी।
राजवीर ने उन्हें गाँव के बारे में कुछ ज़रूरी बातें भी बताईं, जंगल की सीमा, गाँव का मुख्य चौक, और रात में कुछ इलाकों से दूर रहने की ज़रूरत, क्योंकि वहाँ जंगली जानवर अक्सर आते हैं। उनकी प्रतिक्रियाओं से उसे अंदाज़ा हो गया कि वे गाँव के बारे में पहले से ही कुछ जानते हैं। ख़ासकर, वे गाँव के जंगल वाले इलाके के बारे में ज़्यादा पूछ रहे थे, मानो वे वहाँ जाने की योजना बना रहे हों, क्योंकि उन्हें यह भी पता था कि पूर्णिमा की रात उन्हें गाँव से दूर जाना होगा।
बातचीत आगे बढ़ी, राजवीर को उनकी मौजूदगी का शक होने लगा। कुछ देर बाद, उसने उनके ठैरने के बारे में पूछा, और पता चला कि वे अगले आठ-दस दिन यहीं रहेंगे, क्योंकि आर्या ने ज़िद की थी। यह सुनकर उसके दिल में डर और बढ़ गया।
चार दिन बाद, पूर्णिमा थी, और उस रात, वे सभी अनजाने में अपना असली रूप त्यागकर नरभक्षी भेड़िये बन जाएँगे, क्योंकि पूर्णिमा के दिन, हर नरभक्षी भेड़िया अपने आप ही अपना मानव रूप त्यागकर भेड़िये का रूप धारण कर लेता है। उस समय, उन्हें पक्का पता चल जाएगा कि राजवीर एक रक्तपिशाच है, और उसे पता था कि उसके बाद क्या होगा। राजवीर ने उनकी आँखों में कुछ अलग देखा, एक नज़र जो निगलने को तैयार थी, किसी मौके की तलाश में!
चूँकि बलदेव उनके बीच था, इसलिए उन्हें अभी तक कुछ शक नहीं हुआ था, जल्द ही यह साफ़ हो जाएगा कि वे सचमुच बस आराम करना चाहते थे, या उनके मन में कोई और योजना है। राजवीर ने मन ही मन एक फैसला किया,वह उन पर कड़ी नज़र रखेगा।
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, अब बस एक ही सवाल था, उस रात खुद को और आर्या को इन सब से कैसे बचाए?
क्रमशः
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