भाग ७२
कालेश्वर और उसके दोनों साथी गुस्से में जंगल की अंधेरी परछाइयों में गायब हो गए थे। उनके दिलों में गुस्से की आग धधक रही थी। इस फैसले से उनका कोई लेना-देना नहीं था। उनकी नज़र में राजवीर अब भी एक पिशाच था, और बलदेव जैसे योद्धा का उसका साथ देना उनके लिए असहनीय था। उन्होंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, और पल भर में वे जंगल में गायब हो गए।
राजवीर और बलदेव चुपचाप उनके कदमों को देखते रहे। उन्होंने कालेश्वर के गुस्से को भाँप लिया था, लेकिन उसे समझाने की कोशिश अब बेकार थी। वह अपने अहंकार और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था। राजवीर पर वह कभी भरोसा नहीं कर सकता था। बाकी भेड़िये भी असमंजस में थे, लेकिन उन्होंने कालेश्वर के नक्शेकदम पर चलने के बजाय गाँव जाने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था कि इस बार एक शक्तिशाली दुश्मन से लड़कर ज़िंदा रहना ज़रूरी है, और इसके लिए उन्हें एकता की ज़रूरत है।
कालेश्वर जंगल के उस अँधेरे रास्ते पर आगे बढ़ रहा था, लेकिन उसका मन बेचैन था। वह न सिर्फ़ गुस्से में था, बल्कि दुविधा की स्थिति में भी था। उसे यह स्वीकार नहीं था कि राजवीर सचमुच सहस्त्रपाणि के विरुद्ध लड़ रहा था। वर्षों से वह पिशाचो को अपना शत्रु मानता आया था, फिर अचानक अपना विचार कैसे बदल सकता था? उसे बलदेव पर भी क्रोध आ रहा था। 'उसे मेरा साथ देना चाहिए था... पर उसने उस पिशाच का साथ दिया!' इन विचारों ने उसे और भी क्रोधित कर दिया। लेकिन कहीं भीतर, एक धीमी सी आवाज़ उसे कह रही थी।
'शायद, तुम ग़लत हो...' लेकिन वह आवाज़ उसके क्रोध की आग में डूब गई थी।
राजवीर और बलदेव, बचे हुए भेड़ियों को लेकर गाँव की ओर चल पड़े। गाँव पहुँचकर उन्होंने देखा कि सब अभी भी रात वाली घटना पर चर्चा कर रहे थे। लोगों के मन में भय था, इतने सालों बाद जंगल में अचानक इतने भेड़िये कहाँ से आ गए? क्या उनका गाँव से कोई संबंध है? या यह सिर्फ़ अजीबोगरीब दुर्घटनाओं का सिलसिला है? गाँव वालों की शक भरी निगाहें राजवीर और उसके साथ आए योद्धाओं पर टिक गईं। उनमें से कुछ डर के मारे पीछे हट गए, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।
आखिरकार गाँव का मुखिया आगे आया। उसने राजवीर की आँखों में देखा और गंभीर स्वर में कहा।
मुखिया: (गंभीर स्वर में) "राजवीर, हमें तुम पर भरोसा है, इस संकट का सामना करने के लिए हमें तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की मदद की ज़रूरत है।"
राजवीर: (थोड़ा हैरान होकर) "सरपंचजी, तुम्हारा भरोसा मेरे लिए बहुत मायने रखता है। लेकिन मुझे साफ़-साफ़ बताओ, तुम्हें हमसे किस तरह की मदद चाहिए?"
मुखिया: (बाकी गाँव वालों की तरफ़ देखते हुए) "कल रात जो हुआ, उसे हम दोबारा नहीं होने दे सकते। गाँव की औरतें, बच्चे और बूढ़े अभी भी डरे हुए हैं। हमें उनकी रक्षा करनी है। हमारे कुछ लोग रात में गश्त करेंगे, लेकिन हमें तुम्हारे साथियों की मदद की ज़रूरत होगी। वे मज़बूत और सक्षम लग रहे हैं। अगर वे गाँव की रक्षा में मदद करेंगे, तो हम शांत रह पाएँगे।"
राजवीर: (हल्का मुस्कुराते हुए, लेकिन सोचते हुए) "सरपंचजी, यह सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा है। वे मेरे मेहमान हैं, मैं उन्हें काम पर कैसे लगाऊँ?"
सरपंच: (संकेत देते हुए, लेकिन दृढ़ता से) "यह सच है। लेकिन हालात बदल रहे हैं, और हमें अब तुम्हारी ज़रूरत है, हमने तुम्हारी ज़रूरत के वक़्त तुम्हारी मदद की थी, इसलिए उस एहसान के बदले में तुम हमारी मदद करो।"
राजवीर: (गंभीर होते हुए) "मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूँ, लेकिन अपने साथियों से रात की गश्त करने के लिए कहना थोड़ा मुश्किल होगा। क्योंकि..." (वह एक पल के लिए रुकता है, और बलदेव उस पर हल्का सा मुस्कुराता है।)
बलदेव: (गंभीर लेकिन कठोर स्वर में) "सरपंच जी, बात यह है कि आपके गाँव की रक्षा करने वाले ये लोग रात में पहरा देंगे, लेकिन अगर भेड़ियों ने फिर हमला किया, तो उन्हें दूसरे आदमियों की भी ज़रूरत पड़ेगी।"
सरपंच: (खुश होते हुए) "यह चिंता आप हम पर छोड़ दीजिए, हम संभाल लेंगे..."
राजवीर: (मुस्कुराते हुए और बलदेव से फुसफुसाते हुए) "पूर्णिमा बीत चुकी है, इसलिए अब वे आसानी से मानव रूप में रह सकते हैं। इस तरह गाँव वालों को उन पर शक नहीं होगा। और इसीलिए वे सबकी रक्षा में भी मदद कर पाएँगे।"
सरपंच: (आश्वस्त होते हुए), "अगर वे सचमुच गाँव की रक्षा की ज़िम्मेदारी ले लें, तो शायद गाँव वाले उन्हें अलग नज़र से देखेंगे। शायद वे आप पर भरोसा करना सीखेंगे।"
राजवीर: (गंभीर होते हुए) "तभी असली लड़ाई जीती जाएगी, सरपंच जी। क्योंकि लड़ाई सिर्फ़ बाहरी दुश्मन से नहीं, बल्कि अपने मन के डर से भी है।"
राजवीर और बलदेव एक-दूसरे को देखते हुए मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। अपनी रक्षा के लिए भेड़ियों को खुद मदद के लिए बुलाना वाकई हास्यास्पद था। लेकिन उन्होंने इस भावना को अपने चेहरे पर ज़ाहिर नहीं होने दिया।
राजवीर ने अपने साथियों की ओर देखा। "तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है?"
गाँव की रक्षा के लिए आगे आने का निश्चय करके, बाकी योद्धाओं ने एक-दूसरे की ओर देखा और सिर हिलाया। वे जानते थे कि चूँकि पूर्णिमा बीत चुकी है, इसलिए उन्हें भेड़ियों के रूप में नहीं आना पड़ेगा। अब वे मानव रूप में रहकर गाँव की रक्षा कर पाएँगे, और इसलिए गाँव वालों को उन पर शक भी नहीं होगा। जो लोग कुछ समय पहले उन्हें ख़तरनाक समझते थे, अब उनसे मदद की उम्मीद कर रहे थे। यह विचार उनके लिए थोड़ा अजीब था, लेकिन वे जानते थे कि अगर वे इस अवसर को स्वीकार करते हैं, तो गाँव वाले उन पर भरोसा कर सकते हैं।
यह सुनकर सरपंच खुश हुआ। उसने गाँव के लोगों को बताया और राजवीर और उसके साथियों के लिए अच्छे भोजन का प्रबंध किया।
उस रात, योद्धाओं ने गाँव के विभिन्न हिस्सों में अपनी-अपनी जगह बना ली। कुछ बाहर पहरा दे रहे थे, जबकि कुछ छतों से देख रहे थे। गाँव शांत था, लेकिन फिर भी गांव वाले सभी सतर्क थे। गाँव वाले भी अपने घरों से यह दृश्य देख रहे थे। उन्हें अब भी संदेह था, पर उन्हें यह भी एहसास था कि अगर ये योद्धा सचमुच मदद माँगेंगे, तो उन्हें भी अपने घर छोड़ने पड़ेंगे। रात के उस रहस्यमयी माहौल में, पहली बार इंसान भेड़िये के क़रीब आए थे, उन्हें कुछ भी पक्का नहीं पता था। वे बस एक ही मक़सद से साथ खड़े थे, गाँव की सुरक्षा के लिए।
दूसरी ओर, सहस्त्रपाणि अपनी अँधेरी गुफा में टहल रहा था। उसके माथे पर झुर्रियाँ थीं, और उसकी लाल आँखों में बेचैनी थी। उसने अपने सैनिकों और जासूसों को बहुत पहले ही भेज दिया था, पर अभी तक उनकी ओर से कोई ख़बर नहीं आई थी। यह देरी उसके बर्दाश्त के बाहर थी। कुछ तो गड़बड़ थी। उसके मन में संदेह की लहर दौड़ गई, राजवीर और उसके साथी इतनी आसानी से पराजित नहीं होने वाले थे।
ज़रूर कुछ अनहोनी हुई होगी। उसने गुफा की पत्थर की दीवार को अपने तीखे नाखूनों से खरोंचा, और खरोंचें गहरी थीं। उसका गुस्सा अब उबल रहा था। अगर उसके भेजे हुए आदमी हार मान लेते, तो उनके पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं होता। लेकिन अगर राजवीर और उसके साथियों ने कोई योजना बनाई होती, तो उन्हें कुचलना ही पड़ता। उसने मन ही मन एक नई योजना बनाई, अब उसे खुद कुछ नहीं करना पड़ेगा।
"राजवीर और उसके साथियों को खत्म करने के लिए मैंने जो आदमी भेजे थे, उनका क्या हुआ? दुर्मद कहाँ है?" उसने मन ही मन सोचा। उसकी क्रूर लाल आँखों में गुस्से की चिंगारी चमक उठी।
उसे अभी भी नहीं पता था कि राजवीर ने अपने सिंहासन के नीचे रक्तमणि छिपा रखी है। वह मणी पाना चाहता था, लेकिन इसके लिए उसे राजवीर को ढूँढ़ना ज़रूरी था।
"मुझे राजवीर को ज़िंदा पकड़ना है," उसने मन ही मन कहा।
"सिर्फ़ वही बता सकता है कि रक्तमणि कहाँ है। लेकिन मैं यह कैसे करूँ?"
वह तरह-तरह की तरकीबें आज़मा रहा था। अब उसके मन में एक नई योजना बन रही थी...।
क्रमशः
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