भाग ७४
सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर विराजमान हुआ था, लेकिन वह बहुत बेचैन था। उसने राजवीर का पता लगाने के लिए अपने सैनिकों को चारों दिशाओं में भेज दिया था। लेकिन अब उसे यकीन हो गया था, राजवीर उस घने जंगल में किसी गुप्त गुफा में छिपा होगा! भविष्यडोह में देखते समय, उसने आर्या, बलदेव और राजवीर को जहा घूमते हुए देखा था। उसके चारों ओर घने पेड़ थे, हवा तेज़ थी, और इसी वजह से उसने उस जंगल को पहचान लिया था। यहीं वह गुप्त गुफा होगी, जहाँ उसे लगा कि वे तीनों इस समय वही शरण लिए हो सकते हैं।
"मेरे सैनिकों को भेजने के बजाय, मैं स्वयं जाकर उसका नाश करूँगा," उसने मन ही मन बुदबुदाया। इस विचार से उसकी आँखों में एक क्रूर चमक आ गई। कुछ चुनिंदा, वफ़ादार सैनिकों को लेकर, सहस्त्रपाणि स्वयं उस रहस्यमयी गुफा की ओर चल पड़ा।
सहस्त्रपाणि ने अपनी तलवार म्यान से निकाली। उसके क्रोध की प्रज्वलित झलक उसकी धातु के तलवार पर प्रतिबिंबित हो रही थी। उसने अपने आस-पास के सैनिकों पर नज़र डाली। ये चुने हुए योद्धा, क्रूर, शक्तिशाली और उसके आदेशों के प्रति वफ़ादार थे। वे बिना किसी सवाल के आदेशों का पालन करने के आदी थे। वह उसके साथ उस अँधेरे, डरावने जंगल की ओर चल पड़े। रास्ता कठिन था, घने जंगल से गुज़रते हुए ऊँची-ऊँची लताएँ उनका रास्ता रोक रही थीं।
ठंडी हवाएँ चल रही थीं, और वातावरण में एक अजीब सी बेचैनी छा रही थी। यह कोई साधारण जंगल नहीं था, यहाँ कुछ रहस्यमय था। एक क्षण दूर से किसी उल्लू ने आवाज लगायी, उस खामोश सन्नाटे में वह आवाज़ बहोत डरावनी लग रही थी। फिर भी, सहस्त्रपाणि दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ता रहा। वह राजवीर को खत्म करना चाहता था। और इसके लिए, वह खुद आगे बढ़ रहा था, अँधेरे की गहराइयों में, उस रहस्यमयी गुफा की ओर।
उस घने जंगल के बीचों-बीच एक प्राचीन, विस्मृत रहस्यमयी गुफा थी। गुफा का प्रवेश द्वार मानव हड्डियों से भरा पड़ा था। गुफा की दीवारों पर अजीबोगरीब चिन्ह खुदे हुए थे, जो किसी प्राचीन पिशाच संस्कृति के प्रतीत होते थे। अंदर से लगातार फुसफुसाहट की आवाज़ आ रही थी, ऐसा लग रहा था मानो गुफा ज़िंदा हो, और उसका काला मुँह किसी को उसे निगलने के लिए बुला रहा हो। अंदर से ठंडी हवा का एक झोंका बह रहा था, जिसमें सड़ते खून और लाशों की तीखी गंध घुली हुई थी।
सहस्त्रपाणि ने अपने सैनिकों की ओर देखा। उनके चेहरों पर भी डर साफ़ झलक रहा था, लेकिन वह बिना रुके आगे बढ़ते रहे। "यही वह जगह है," उन्होंने मन ही मन बुदबुदाया। लेकिन अगले ही पल, उस अंधेरी गुफा के भीतर से एक स्त्री आकृति प्रकट हुई। गुफा के अंधेरे द्वार से निकलती हुई वह स्त्री आकृति धीरे-धीरे चल रही थी। उसकी चाल में एक अजीबसा रहस्य था, मानो वह स्वयं अंधेरे से प्रकट हुई हो।
उसने गहरे नीले रंग का एक लंबा, लहराता हुआ वस्त्र पहना हुआ था, जो हवा के साथ हल्की लहरों में लहरा रहा था। उसके बाल लंबे और काले, साँप की तरह घुंघराले थे, और उसकी आँखों में एक पागल सी चमक थी। जो कभी मनमोहक तो कभी डरावनी लग रही थी। उसके होठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी, और वह सहस्त्रपाणि की ओर बढ़ने लगी। उसके हाथ में एक सफ़ेद अंगूठी थी, जिसके बीच में लाल, चमकते हुए पत्थर का एक टुकड़ा दिख रहा था।
सहस्त्रपाणि ने तुरंत पहचान लिया कि वह कौन है। सर्पकला! एक प्राचीन और शक्तिशाली पिशाच महिला, जिससे अतीत में कई लोगों ने बचने की कोशिश की थी मगर बच नहीं सके।
"सहस्त्रपाणि," उसने धीमी, मगर गहरी आवाज़ में कहा, मानो उसके स्वर में सम्मोहन समाया हो। "तुम खुद यहाँ कैसे आ गए?" उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आ गई, लेकिन उसके पीछे कुछ रहस्यमय था। उसकी आवाज़ धीमी लग रही थी, लेकिन उसके पीछे एक ख़तरनाक इशारा था।
सहस्त्रपाणि उसे बिना देखे पार करने ही वाला था कि वह उसके सामने आ गई।
सहस्त्रपाणि रुक गया। "क्या तुम जानती हो राजवीर कहाँ है?" उसने पूछा।
सर्पकला रहस्यमय ढंग से मुस्कुराई।
"राजवीर... उसका नाम लेते ही कितनी यादें ताज़ा हो जाती हैं!" वह हँसते हुए मन ही मन बुदबुदाई। उसकी आँखों में एक अलग भाव उभर आया, वासना और क्रूर प्रलोभन का।
"राजवीर ने मेरा रक्तमणि चुरा लिया है। मैं उसे वापस चाहता हूँ!" सहस्त्रपाणि ने सीधे विषय को छुआ।
सर्पकला ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसके हाथ की अंगूठी चमकने लगी। कुछ पल बाद, उसने आँखें खोलीं, और उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे।
"मैंने अपनी जादुई अंगूठी से उसका स्थान देख लिया है। मैं उसे तुम्हारे लिए ला सकती हूँ," उसने मुस्कुराते हुए कहा।
सहस्त्रपाणि को थोड़ा आश्चर्य हुआ, जो भविष्यडोह नहीं देख पाया वह सर्पकला की अंगूठी में दिखाई दे रहा था, वह थोड़ा आगे बढ़ा।
"तो तुरंत करो," उसने कटु स्वर में कहा।
हालांकि, सर्पकला स्थिर खड़ी रही, उसके मन में कुछ चल रहा था। उसने एक अनोखी माँग की।
"मैं तुम्हें रक्तमणि लाकर दूँगी, लेकिन इसके लिए मुझे तुमसे कुछ चाहिए," उसने कहा।
सहस्त्रपाणि ने अपनी भौहें उठाईं। "तुम्हें क्या चाहिए?"
अब सर्पकला की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। "राजवीर मेरा है। मैं उससे प्यार करती थी। लेकिन उसने मुझे अस्वीकार कर दिया था। अब मैं उसे वापस लाऊँगी। अगर मैं तुम्हें रक्तमणि लाकर दूँगी, तो तुम्हें बदले में कुछ करना होगा।"
सर्पकला की आँखों में अब एक पागल सी चमक थी, जो बढ़ती ही जा रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि छा गई, लेकिन उसके पीछे पुराने दर्द और घृणा का मिश्रण था। वह थोड़ा आगे झुकी और धीमी, लेकिन दृढ़ आवाज़ में बोली,
"राजवीर मेरा है... उसे हमेशा के लिए मेरा होना चाहिए था। मैंने उससे प्यार किया, मैंने उसके लिए सब कुछ दिया, लेकिन उसने मेरे प्यार की कद्र नहीं की। उसने मुझे, उस मृत मृणालिनी के लिए, ऐसे ठुकरा दिया जैसे मैं कुछ भी नहीं हूँ... और अब? अब मैं उसे पाऊँगी।" वह थोड़ा मुस्कुराई, लेकिन उस मुस्कान में नफ़रत ज़्यादा थी।
सहस्त्रपाणि चुपचाप उसकी बात सुन रहे थे, लेकिन उनके चेहरे पर जिज्ञासा साफ़ झलक रही थी। सर्पकला उनकी प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना बोलती रही।
"मैं उसे वापस लाऊँगी। हक़ से, बल से, या किसी भी तरह से, लेकिन वह मेरा होगा। और अगर मैं तुम्हें रक्तमणि दूँगी, तो बदले में तुम्हें एक काम करना होगा।"
अब वह थोड़ा पीछे हटी और अपनी उंगलियाँ हवा में घुमाईं। एक पल में, उसके हाथ की अंगूठी चमक उठी, और उस चमक में मानो राजवीर और उसके साथ आर्या का एक धुंधला सा प्रतिबिंब दिखाई देने लगा। उसकी आवाज़ में अब ज़्यादा अधिकार और एक अजीब सा आकर्षण था।
"मेरी शर्त सीधी-सी है, सहस्त्रपाणि। अगर मैं तुम्हें रक्तमणि दिला दूँ, तो तुम राजवीर को मेरे पास छोड़ दोगे... हमेशा के लिए। और उसके साथ आर्या नाम की उस औरत को तुम मार देना। फिर वह और मैं इस सब से दूर चले जाएँगे। मेरी यही शर्त है, क्या तुम इसे स्वीकार करोगे?"
वह अब शांति से सहस्त्रपाणि की आँखों में देख रही थी, उत्तर की प्रतीक्षा में। हालाँकि सहस्त्रपाणि उसे देखकर मुस्कुराया, लेकिन उसके मन में कुछ और ही विचार चल रहे थे।
सहस्त्रपाणि अब और भी उत्सुक हो गया।
"क्या तुम मुझे फिर से बताओगी? मुझे वास्तव में क्या करना चाहिए?" उसे अपनी आँखों में इस अजीब माँग पर विश्वास नहीं हो रहा था।
सर्पकला आगे आईं और स्पष्ट रूप से बोली, "तुम राजवीर को जिन्दा छोड़ोगे। लेकिन उसकी आर्या, तुम्हें उसे अपने हाथों से मार देना होगा। तब राजवीर केवल मेरा होगा। उसके बाद, मैं उसे ले जाऊँगी और हमेशा के लिए तुम्हारे साम्राज्य से चली जाऊँगी।"
सहस्त्रपाणि ज़ोर से हंसा। "अगर मेरे साम्राज्य को कोई खतरा नहीं है, और मुझे रक्तमणि मिल जाता है, तो मुझे उसके पत्नी की जान लेने में कोई आपत्ति नहीं है!"
सर्पकला के चेहरे पर एक संतुष्ट मुस्कान आ गई। "तो फिर तय हो गया! मैं राजवीर का पता लगाकर उस तक पहुँचूँगी। पर याद रखना, सहस्त्रपाणि, अब वह सिर्फ़ मेरा होगा, तुम्हारा उससे कोई लेना-देना नहीं, अगर होगा तो तुम्हें मुझसे परेशानी होगी!"
यह कहकर सर्पकला जादुई अंगूठी की मदद से राजवीर का पता लगाने के लिए अंधेरे में विलीन हो गई।
सहस्त्रपाणि ने संतोष से गुर्राते हुए कहा, "इस पागल को कौन समझाए, अब तो यह खेल खत्म हो ही जायेगा!"
क्रमशः
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