भाग ७९
सर्पकला तेज़ी से किले की ऊँची पहाड़ी पर चढ़ रही थी। उसका शरीर खून से लथपथ था, और उसकी घायल आँख का तेज़ दर्द उसे हर कदम की याद दिला रहा था। फिर भी, उसके कदम धीमे नहीं पड़े। दुर्गम पहाड़ी रास्तों से गुज़रते हुए, उसके मन में बस एक ही ख्याल था, सहस्त्रपाणि। वह उसके सामने खड़ी होने वाली थी, यही उसके अपमान का समाधान होगा।
आखिरकार, जब वह किले के विशाल द्वार पर पहुँची, तो पहरेदारों ने सावधानी से अपने हथियार निकाल लिए। सर्पकला को एक पल रुकना पड़ा। लेकिन जैसे ही उसने पहरेदारों को अपना परिचय दिया, वे एक तरफ़ हट गए। वह एक गहरी साँस लेकर अंदर दाखिल हुई। किले की पत्थर की दीवारों में गूँजते उसके तेज़ कदमों की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी। उसके शरीर में अब पहले जैसी ताकत नहीं थी, लेकिन उसकी आँखों में धधकती आग अभी भी बाकी थी।
सहस्त्रपाणि अपने सिंहासन पर विश्राम कर रहा था। उसके वफ़ादार योद्धा और मंत्री दरबार में खड़े उसके आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। दरबार का माहौल भारी था। इसी बीच, एक सेवक दौड़कर आया और प्रणाम करके बोला,
"महाराज! सर्पकला आ गई है।" यह सुनकर सहस्त्रपाणि अचानक उत्साहित हो गया। उसके चेहरे पर विजय का भाव आ गया। उसने सेवक की ओर देखा और गंभीर स्वर में पूछा,
"क्या वह अकेली है? और क्या उसके हाथ में कुछ है?" सेवक थोड़ा झिझका, लेकिन विनम्रता से बोला,
"महाराज, वह अकेली है। लेकिन उसका चेहरा थोड़ा थका हुआ और घायल लग रहा है।" सहस्त्रपाणि ने उसकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। उसके मन में बस एक ही विचार था।
'सर्पकला रक्तमणि के साथ आई होगी!' वह अपने सिंहासन से उठा और अपने आस-पास के योद्धाओं को देखकर गर्व से मुस्कुराया।
"वह सफल हो गई! आखिरकार, रक्तमणि मेरे हाथ में होगा!" उसने सेवक को हाथ से इशारा करते हुए आदेश दिया,
"उसे तुरंत अंदर लाओ!" दरबार में फुसफुसाहट शुरू हो गई, सबकी निगाहें अब दरवाज़े पर टिकी थीं। सहस्त्रपाणि बड़े आत्मविश्वास से आगे बढ़ा और सर्पकला के आगमन की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा।
जैसे ही सर्पकला सिंहासन कक्ष के भव्य द्वार से अंदर दाखिल हुई, सहस्त्रपाणि जल्दी से उठ खड़ा हुआ। उसकी आँखों में गहरी जिज्ञासा थी। सर्पकला का चेहरा थोड़ा तना हुआ था, एक आँख के चारों ओर एक काला निशान था, फिर भी उसकी उपस्थिति ने पूरे दरबार को अभिभूत कर दिया। सर्पकला को देखते ही सहस्त्रपाणि तेज़ी से उसकी ओर बढ़ा और अधीरता से पूछा,
"सर्पकला, रक्तमणि कहाँ है? वह तुम मेरे लिए लाई हो, है ना?" उसकी आवाज़ में जीत की खुशी साफ़ झलक रही थी। दरबार में सभी की नज़रें सर्पकला पर टिकी हुई थी।
लेकिन सर्पकला के चेहरे पर कोई उत्सुकता नहीं थी। वह उसे एकटक देखती रही। एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। आखिरकार, उसने गहरी साँस ली और कठोर स्वर में उत्तर दिया,
"नहीं, महाराज... मैं रक्तमणि नहीं ला सकी, लेकिन..."
उसके ये आधे-अधूरे शब्द सुनकर, सहस्त्रपाणि का चेहरा एक पल के लिए सूख गया। उसके होठों की विजयी मुस्कान गायब हो गई और माथे पर एक शिकन उभर आई। उसने सर्पकला के कंधों को कसकर पकड़ लिया और गुस्से से पूछा, "तुमने क्या कहा? रक्तमणि नहीं? यह कैसे संभव है? तुम भी असफल हो गई?"
सहस्त्रपाणि का क्रोध अब ज्वालामुखी की तरह भड़क उठा। उसने सिंहासन पर ज़ोर से लात मारी। दरबार में फुसफुसाहट शुरू हो गई। उसके अंगरक्षकों ने अपनी तलवारें खींच लीं, जबकि मंत्री एक-दूसरे को देखने लगे। वह एक पल वहीं खड़ा रहा, फिर ज़ोर से चिल्लाया,
"तुम इतना बड़ा नाटक करके गई थी, मेरी पूरी सेना का अपमान किया था, फिर भी खाली हाथ लौट आई?"
सर्पकला दर्द, गुस्से और अपमान से चीख पड़ी। "राजवीर मेरे हाथ से बाहर है," वह गुर्राई। "मैं उसको ज़रा भी नुकसान नहीं पहुँचा सकी। उल्टा, उसने मुझे हरा दिया और मेरा अपमान किया।"
सहस्त्रपाणि क्रोधित हो गया। उसने अपने हाथ में लिया राजदंड ज़ोर से पटक दिया। सभा में एक ज़ोरदार गर्जना गूँजी। "तो उसने तुम्हें भी हरा दिया? पहले उसने मेरे सबसे अच्छे योद्धाओं को मार डाला, और अब तुम भी हार गई! मैंने तुम्हें क्यों भेजा था? अपमानित होने के लिए?"
सर्पकला एक पल के लिए चुप रही। लेकिन फिर वह शांत स्वर में बोली। "राजवीर को हराना इतना आसान नहीं है। वह अब एक औरत से प्यार करता है... आर्या। अगर हमें राजवीर का अंत करना है, तो पहले उसे खत्म करना होगा। उसकी मौत के बाद, वह टूट जाएगा और फिर उससे निपटना आसान हो जाएगा। हम उसके प्यार का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर सकते हैं।"
सर्पकला सहस्त्रपाणी के क्रोध और अधीरता को समझते हुए स्थिर खड़ी रही। वह जानती थी कि अगर उसने रक्तमणि का पता बता दिया, तो सहस्त्रपाणी उसे तुरंत हथिया लेगा और अपना असली मकसद पूरा होते ही राजवीर का पीछा करना छोड़ देगा। लेकिन सर्पकला का एकमात्र लक्ष्य राजवीर को हराना नहीं था, वह उसे टूटते हुए देखना चाहती थी, उसके प्रेम का दर्द देखना चाहती थी। अगर सहस्त्रपाणि राजवीर को भूलकर सिर्फ़ रक्तमणि पर ध्यान केंद्रित करता, तो आर्या फिर सुरक्षित रहती।
"महाराज, रक्तमणि अभी भी राजवीर के हाथ में है। लेकिन मैं अभी भी उसका सही स्थान ढूँढ सकती हूँ। वह मुझे पूरे विश्वास के साथ बताएगा, लेकिन इसके लिए हमें उसके प्यार को खत्म करना होगा।"
सहस्त्रपाणी के चेहरे पर अब उलझन साफ़ दिखाई दे रही थी। उसने संदेह से उसकी आँखों में देखा।
"सर्पकला, तुम कुछ छिपा रही हो। मैंने तुम्हें रक्तमणि के साथ लौटने के लिए भेजा था, और तुम खाली हाथ लौट आईं। अब तुम मुझे और इंतज़ार करने के लिए कह रही हो?" उसकी आवाज़ और भी कठोर हो गई। लेकिन सर्पकला ने शांति से उत्तर दिया,
"महाराज, अगर मैं तुम्हें रक्तमणि का स्थान बता दूँ और तुम वहाँ पहुँच जाओ, तो राजवीर सावधान हो जाएगा, वह तुम्हें ज़रूर हरा देगा क्योंकि वह वहाँ तैयार होगा। उसे बहुत आसानी से हराया जा सकता है, लेकिन इसके लिए तुम्हें सही अवसर चाहिए।"
सहस्त्रपाणि ने उसकी बात पर विचार किया। उसकी क्रोधित आँखें धीरे-धीरे चमकने लगीं। वह अपने सिंहासन पर पीछे झुक गया। उसके दिमाग में विचार घूमने लगे।
"सर्पकला, तुम एक बात भूल गई," उसने ठंडे लेकिन कड़वे स्वर में कहा। "तुम राजवीर से मिल चुकी हो, जिसका मतलब है कि तुम्हें उसका स्थान पता है। और अगर तुम्हें यह पता है, तो हम अभी भी जीत सकते हैं!"
सर्पकला सतर्क हो गई। उसने सहस्त्रपाणि को संदेह से देखा। "तुम्हारा क्या सुझाव है?"
सहस्त्रपाणि सिंहासन पर पीठ टिकाए मुस्कुरा रहा था। उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी। सभा में मौजूद योद्धा और सर्पकला ने उसे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। वह एक बार फिर आगे बढा और धीमी आवाज़ में बोला,
"तुम सोच रहे होगे कि हमारे सारे मौके खत्म हो गए हैं, लेकिन हमारे हाथ में अभी भी एक बड़ा मोहरा है। वह अभी खेल में उतरा भी नहीं है। अगर वह राजवीर को हरा देता है, तो राजवीर मेरे सामने खुद ही रक्तमणि लेकर आ जाएगा!"
सर्पकला का मन भ्रमित हो गया। उसने कुछ उलझन में पूछा, "महाराज, वह कौन है? कौन है जो राजवीर को हरा सकता है?"
सहस्त्रपाणि और भी ज़ोर से हँसा। "यह कोई साधारण योद्धा नहीं है, सर्पकला। यह एक ऐसा योद्धा है जो न केवल शक्तिशाली है, बल्कि राजवीर के सबसे बड़े डर को भी सच कर सकता है!" वह सिंहासन से उठा और सभा के बीचों-बीच टहलने लगे। वहाँ खड़े अपने विश्वस्त आदमियों को देखते हुए, उसने आज्ञाकारी स्वर में कहा,
"जाओ! उसे बुलाओ। मैं खुद उसे आदेश दूँगा। अब यह खेल और भी दिलचस्प होने वाला है!"
सर्पकला सिकुड़ी हुई आँखों से देख रही थी। उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे। यह नया मोहरा कौन होगा? क्या वह सहस्त्रपाणि, जिसके बारे में वह इतने आत्मविश्वास से बात कर रहा था, सचमुच राजवीर को हरा पाएगा? और सबसे महत्वपूर्ण बात, अब यह खेल किस ओर मुड़ेगा?
मंच का माहौल और भी रहस्यमय हो गया था। सहस्त्रपाणि ने एक बार फिर अपनी साज़िश रचनी शुरू कर दी थी, और सर्पकला के मन में नए-नए संदेह घर कर रहे थे। इस लड़ाई में जल्द ही एक नया खिलाड़ी उतरने वाला था।
क्रमशः
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