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रक्तपिशाच का रक्तमणि ८०

एक रक्तपिशाच और मानव कन्या की प्रेम कहानी
भाग ८०

सहस्त्रपाणि एक क्षण रहस्यमयी मौन में बैठे रहा। उसके चेहरे पर एक भावशून्यता थी जिसका किसीकोभी कुछ अंदाज़ा नहीं था, लेकिन उसके दिमाग़ में एक नई योजना आकार ले रही थी। सर्पकला उसके ठीक सामने खड़ी थी, लेकिन उसने उसे रक्तमणि का ठिकाना नहीं बताया था। सहस्त्रपाणि यह जनता था। फिर भी, उसे गुस्सा नहीं आया। वह जानता था कि गुस्से से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि उसे अपनी इच्छानुसार खेल को आगे बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त मोहरे का इस्तेमाल करना चाहिए। उसने अब एक नई योजना बनाई थी, एक ऐसी योजना जो राजवीर का दिल भी हिला देगी।

उसने अपने दाहिने हाथ से सिंहासन की भुजा पर हल्के से थपथपाया और ठंडे, दृढ़ स्वर में आदेश दिया,

"जाओ, वज्रदंत को बुलाओ।" दरबार में एक पल का सन्नाटा छा गया। वज्रदंत! इस नाम से कई लोगों की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। उपस्थित सैनिक और सेवक एक-दूसरे को भयभीत आँखों से देखने लगे। वह कोई साधारण योद्धा नहीं था। वह एक भयानक, क्रूर और अजेय योद्धा था, जो किसी को भी मार डालने के लिए माहिर जाना जाता था।

उसकी क्रूरता के किस्से पूरे राज्य में फैल गए थे। उसे चुनौती देना मौत को दावत देने जैसा था। सर्पकला भी सहस्त्रपाणि को देखती रही। उसे अंदाज़ा हो गया था कि यह कोई अलग ही खेल है। सहस्त्रपाणि कुछ बड़ा करने की सोच रहा था, कुछ ऐसा जिससे राजवीर काँप उठेगा और उसके हाथों में आसानी से रक्तमणि छूट जाएगा!

सहस्त्रपाणि जिसे पुकार रहा था, वह कोई साधारण योद्धा नहीं था। वज्रदंत एक राक्षस योद्धा था। उसका शरीर लंबा, बेहद मज़बूत था, और उसकी गहरी लाल त्वचा उसे और भी भयानक बना रही थी। उसके बाल गर्दन तक फैले हुए थे, और उसकी आँखें हमेशा लाल रंग के चमक से चमकती रहती थीं। लेकिन उसकी असली पहचान उसके भयानक जबड़े थे, उसके दाँत लंबे, तीखे और वज्र जैसे कठोर थे, जिससे उसका नाम "वज्रदंत" पड़ा। वह किसी भी प्रतिद्वंद्वी को, यहाँ तक कि हाथी को भी, काटकर चीर सकता था। उसके एक वार में सैकड़ों सैनिक ढेर हो जाते थे।

वज्रदंत न केवल शक्तिशाली था, बल्कि वह क्रूरता की हद तक निर्दयी और क्रूर योद्धा भी था। उसका शरीर एक सामान्य मनुष्य से दुगुना था, रुद्राक्ष की माला से सजी उसकी मांसल भुजाएँ, युद्ध की कहानियाँ सुनाने वाले गहरे ज़ख्मों और घावों से ढँकी हुई थीं।

उसका चेहरा भयंकर था, उसकी आँखों में हिंसा की एक अजीब सी लालिमा थी। उसके बाल हमेशा के लिए धूल और खून से सने हुए थे, क्योंकि वह युद्ध की आग से कभी बाहर नहीं निकला था। जब वह युद्ध में प्रवेश करता, तो कोई भी शत्रु उससे बच नहीं सकता था। उसके लिए, केवल दो प्रकार के शत्रु थे, एक जो मर चुके थे और दूसरे जो मर रहे थे।

उसके हाथ में एक विशाल तलवार थी, जो एक ही वार से पूरे शरीर को दो टुकड़ों में काट सकती थी। उस तलवार पर कई शत्रुओं का खून सूख चुका था, लेकिन उसने उसे कभी साफ़ नहीं किया, उसे वह ऐसे ही, खून से सनी हुई, पसंद थी। कई लाशें पीछे छूट गईं जो उसकी क्रूरता की कहानी कहती थीं। उसका नाम लेते ही लोग अनायास ही डर से काँप उठते थे। उसमें न दया थी, न पश्चाताप, न भावना बस एक ही लक्ष्य, सामने वाले को नष्ट करना। और अब, सहस्त्रपाणि ने उसे बुलाया था, राजवीर के विनाश के लिए!

सहस्त्रपाणि के आदेश पर, उसके सैनिक वज्रदंत को ढूँढ़ने निकल पड़े। वह एक गहरी, अँधेरी गुफा में वह सो रहा था। उसके चारों ओर मानव हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं, जो उसकी क्रूरता की गवाही दे रही थीं। सैनिक सावधानी से आगे बढ़े और उसे जगाने की कोशिश की।

एक सैनिक ने डरते हुए कहा, "महाराज वज्रदंत, सहस्त्रपाणि स्वामी ने आपको तुरंत बुलाया है।"

वज्रदंत ने एक धीमी, दुष्ट मुस्कान के साथ अपनी आँखें खोलीं। उसकी लाल आँखें चमक उठीं।

"अगर सहस्त्रपाणि मुझे बुला रहे हैं, तो इसका मतलब है कि कुछ बड़ा हुआ है।" उसने आँखें बंद कर लीं और एक पल सोचा, फिर एक पल में उठ खड़ा हो गया।

"चलो, कौन मुझे किले में ले जाने की हिम्मत करेगा?" सैनिक डर के मारे पीछे हट गए, लेकिन एक बहादुर सैनिक ने उसे रास्ता दिखाया।

जैसे ही वज्रदंत ने सिंहासन कक्ष में प्रवेश किया, पूरे दरबार में एक अलग ही तनाव फैल गया। उसका विशाल, मांसल शरीर, उसके भारी कदमों के साथ खनकती चाँदी की चप्पल, और उसकी हर हरकत में महसूस होने वाली उग्रता ने सभा में बैठे सरदारों और सैनिकों को भ्रमित आँखों से एक-दूसरे को देखने पर मजबूर कर दिया। हालाँकि, सहस्त्रपाणि अपने क्रूर योद्धा को देखकर संतुष्ट था। वह मुस्कुराया, वह मुस्कान विजय का प्रतीक थी। अपने सिंहासन से उठकर, वह आगे बढ़ा और सीधे वज्रदंत की आँखों में देखते हुए कपटपूर्ण स्वर में बोला।

"मेरे प्रिय योद्धा, मैं तुम्हें एक चुनौती देना चाहता हूँ।" सभा में एक पल का सन्नाटा छा गया। वज्रदंत के चेहरे पर एक रहस्यमय, निर्दयी मुस्कान आ गई। उसने अपने मज़बूत हाथों से ताली बजाते हुए और आगे झुकते हुए उत्तर दिया,

"स्वामी, मेरे लिए हर एक चुनौती युद्ध के बराबर है, एक और विजय! आप किसे ख़त्म करना चाहते हैं?" उसकी गहरी आवाज़ ने दरबार में मौजूद सभी लोगों की छाती पीट दी। सहस्त्रपाणि की आँखों में एक चमक आ गई और उसने कहा,

"राजवीर!"

इस एक नाम पर, वज्रदंत की आँखों में हिंसा की आग भड़क उठी।

वज्रदंत ने एक पल सोचा। "राजवीर तुम्हारे इतने योद्धाओं से पराजित नहीं हो सका, तो क्या मैं उसे हरा सकता हूँ?"

सहस्त्रपाणि आगे बढ़ा और कपटपूर्ण स्वर में बोला, "क्योंकि तुम एक महत्वपूर्ण बात जानने वाले हो, जो पहले किसी को नहीं पता थी, आर्या।"

वज्रदंत की आँखों में एक अलग ही चमक आ गई। उसके चेहरे पर एक हल्की-सी जिज्ञासा दिखाई दी, लेकिन उसके अंदर एक अलग ही गणना चल रही थी। सहस्त्रपाणि उसे देख रहा था। वह थोड़ा आगे बढ़ा और रहस्यमयी स्वर में बोला, "अगर तुम आर्या को अपनी गिरफ़्त में ले लोगे, तो राजवीर ख़ुद ही आत्मसमर्पण कर देगा। वह तुम्हें रक्तमणि भी दे देगा।"

वज्रदंत चुपचाप सुन रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, एक क्रूर मुस्कान। उसने अपनी बड़ी-बड़ी उँगलियों को हल्के से आपस में फँसाया और थोड़ा आगे झुककर फुसफुसाते हुए कहा,

"इसका मतलब मुझे उसके दिल पर वार करना चाहिए?"

सहस्त्रपाणि के होठों पर संतुष्टि की मुस्कान आ गई। "नहीं," उसने धीरे से कहा, "तुम्हें उसका दिल लहूलुहान कर देना चाहिए, लेकिन तलवार से नहीं। उसकी सबसे प्यारी चीज़ को दांव पर लगाकर। आर्या उसके लिए सिर्फ़ एक औरत नहीं, उसकी कमज़ोरी है। उसे ख़ुद आकर उसकी रक्षा करनी होगी, तुम्हारे आगे घुटने टेकने होंगे, और फिर वह ख़ुद ही राजमणि तुम्हें सौंप देगा, यही जीत का सस्ता रास्ता होगा।"

वज्रदंत ने गहरी साँस ली। उसका चेहरा अभी भी भावशून्य था, लेकिन उसके अंदर अब हिंसा की लहर उठ रही थी। "और अगर राजवीर मेरे आगे घुटने नहीं टेकता तो?" उसने ठंडे स्वर में पूछा।

सहस्त्रपाणि मुस्कुराया, उसके चेहरे पर एक क्रूर प्रसन्नता थी। "तो फिर आर्या को खत्म कर दो।"

वज्रदंत रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया। उसने सौदा पक्का कर लिया था, खेल अब उसके हाथ में था।

सहस्त्रपाणि आगे झुका और बोला, "सर्पकला तुम्हारे साथ होगी। उसे राजवीर के ठिकाने का पता है। अगर तुम उसकी मदद से उसे ढूँढ़ लोगे, तो तुम्हें कोई बाधा नहीं होगी।"

वज्रदंत ने ज़ोरदार हँसी के साथ हाथ उठाया और दहाड़ा, "अभी तक मेरे हाथों से कोई नहीं बचा है! राजवीर भी कोई अपवाद नहीं होगा। मैं रक्तमणि लेकर ही लौटूँगा!"

वज्रदंत ने अपनी शक्तिशाली तलवार उठाई और किले से निकलने की तैयारी की। सर्पकला भी उसके साथ निकल पड़ी, लेकिन उसके मन में कई विचार चल रहे थे। अगर वज्रदंत आर्या का अपहरण कर राजवीर को हरा देता है, तो रक्तमणि सहस्त्रपाणि के हाथों में चला जाएगा और आर्या एक बार फिर राजवीर के पास चली जाएगी। फिर वह राजवीर को दोबारा पाने के सपने से दूर रह जाएगी।

उसने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया, "मैं इस चाल को सहस्त्रपाणि के हित में नहीं होने दूँगी!"

अब यह देखना ज़रूरी था कि क्या वज्रदंत और सर्पकला मिलकर राजवीर तक पहुँचते हैं, या सर्पकला कोई और नई चाल चलती है...

क्रमशः

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